ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 03
"ओल्ड इस गोल्ड" की शृंखला में आज का गीत है फिल्म छलिया से. दोस्तों, एक 'टीम' बनी थी राज कपूर, मुकेश, शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन की. 50 के दशक में इस 'टीम' ने एक से एक बेहतरीन 'म्यूज़िकल' फिल्में हमें दी. मुकेश की आवाज़ राज कपूर पर कुछ ऐसी जमी कि इन दोनो को एक दूसरे से जुदा करना नामुमकिन सा हो गया. सन 1960 में जब सुभाष देसाई ने फिल्म छलिया बनाने की सोची तो उन्होने अपने भाई मनमोहन देसाई को पहली बार निर्देशन का मौका दिया. फिल्म का मुख्य किरदार राज कपूर को ध्यान में रखकर लिखा गया. इस तरह से मुकेश को गायक चुन लिया गया. लेकिन गीत संगीत का भार शैलेन्द्र - हसरत और शंकर जयकिशन के बजाय सौंपा गया क़मर जलालाबादी और कल्याणजी आनांदजी को. लेकिन इस फिल्म के गीतों को सुनकर ऐसा लगता है की जैसे वही पुरानी 'टीम' ने बनाए हैं इस फिल्म के गीत. कल्याणजी आनांदजी ने उसी अंदाज़ को ध्यान में रखकर इसके गाने 'कंपोज़' किए. और आगे चलकर कल्याणजी आनंदजी के संगीत निर्देशन में ही मुकेश ने अपने 'करियर' के सबसे ज़्यादा गाने गाए जिनमें से ज़्यादातर मक़बूल भी हुए.
फिल्म छलिया के जिस गीत का ज़िक्र आज हो रहा है, वो है "डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा". यूँ तो जब मुकेश और कल्याणजी आनंदजी के 'कॉम्बिनेशन' की बात आती है तो हमारे ज़हन में कुछ संजीदे, जीवन दर्शन से ओत-प्रोत, या फिर दर्द भरे नगमें उभरकर सामने आते हैं. लेकिन यह एक ऐसा गीत है जिसमें है भरपूर मस्ती, एक संग्रामकता कि इसे जो भी सुन लेता है वो खुद बा खुद थिरकने लगता है. मुकेश ने इस गाने में यह साबित कर दिया कि वो इस तरह के मस्ती वाले गीतों में भी उतने ही पारदर्शी हैं जितने की संजीदे गीतों में. और एक बात इस गाने से जुडी हुई. अगर आप अंताक्षरी खेलने के शौकीन हैं तो आप ने यह ज़रूर महसूस किया होगा की अंताक्षरी में जब भी 'दा' अक्षर से गीत गाने की बारी आती है तो सबसे पहले यही गीत झट से ज़ुबान पर आ जाता है. यही तो है इस गीत की ख़ासीयत. तो सुनिए यह गीत और झूम जाइए बिन पीए. लेकिन याद रहे, कहीं गिर ना जाना.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. १९७० में आई इस फ़िल्म में संजीव कुमार की प्रमुख भूमिका थी.
२. इस महान संगीतकार को इस फ़िल्म के लिए राष्टीय पुरस्कार मिला था.
३. लता मंगेशकर की डेट्स न मिल पाने के कारण फिल्मांकन के लिए संगीतकार ने इस गीत को अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड किया था. बाद में इसे लता ने भी गाया.
कुछ याद आया...?
कल की पहेली का सही जवाब दिया एक बार फ़िर मनु जी ने. आप को बधाई.
प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सदर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
"ओल्ड इस गोल्ड" की शृंखला में आज का गीत है फिल्म छलिया से. दोस्तों, एक 'टीम' बनी थी राज कपूर, मुकेश, शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन की. 50 के दशक में इस 'टीम' ने एक से एक बेहतरीन 'म्यूज़िकल' फिल्में हमें दी. मुकेश की आवाज़ राज कपूर पर कुछ ऐसी जमी कि इन दोनो को एक दूसरे से जुदा करना नामुमकिन सा हो गया. सन 1960 में जब सुभाष देसाई ने फिल्म छलिया बनाने की सोची तो उन्होने अपने भाई मनमोहन देसाई को पहली बार निर्देशन का मौका दिया. फिल्म का मुख्य किरदार राज कपूर को ध्यान में रखकर लिखा गया. इस तरह से मुकेश को गायक चुन लिया गया. लेकिन गीत संगीत का भार शैलेन्द्र - हसरत और शंकर जयकिशन के बजाय सौंपा गया क़मर जलालाबादी और कल्याणजी आनांदजी को. लेकिन इस फिल्म के गीतों को सुनकर ऐसा लगता है की जैसे वही पुरानी 'टीम' ने बनाए हैं इस फिल्म के गीत. कल्याणजी आनांदजी ने उसी अंदाज़ को ध्यान में रखकर इसके गाने 'कंपोज़' किए. और आगे चलकर कल्याणजी आनंदजी के संगीत निर्देशन में ही मुकेश ने अपने 'करियर' के सबसे ज़्यादा गाने गाए जिनमें से ज़्यादातर मक़बूल भी हुए.
फिल्म छलिया के जिस गीत का ज़िक्र आज हो रहा है, वो है "डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा". यूँ तो जब मुकेश और कल्याणजी आनंदजी के 'कॉम्बिनेशन' की बात आती है तो हमारे ज़हन में कुछ संजीदे, जीवन दर्शन से ओत-प्रोत, या फिर दर्द भरे नगमें उभरकर सामने आते हैं. लेकिन यह एक ऐसा गीत है जिसमें है भरपूर मस्ती, एक संग्रामकता कि इसे जो भी सुन लेता है वो खुद बा खुद थिरकने लगता है. मुकेश ने इस गाने में यह साबित कर दिया कि वो इस तरह के मस्ती वाले गीतों में भी उतने ही पारदर्शी हैं जितने की संजीदे गीतों में. और एक बात इस गाने से जुडी हुई. अगर आप अंताक्षरी खेलने के शौकीन हैं तो आप ने यह ज़रूर महसूस किया होगा की अंताक्षरी में जब भी 'दा' अक्षर से गीत गाने की बारी आती है तो सबसे पहले यही गीत झट से ज़ुबान पर आ जाता है. यही तो है इस गीत की ख़ासीयत. तो सुनिए यह गीत और झूम जाइए बिन पीए. लेकिन याद रहे, कहीं गिर ना जाना.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. १९७० में आई इस फ़िल्म में संजीव कुमार की प्रमुख भूमिका थी.
२. इस महान संगीतकार को इस फ़िल्म के लिए राष्टीय पुरस्कार मिला था.
३. लता मंगेशकर की डेट्स न मिल पाने के कारण फिल्मांकन के लिए संगीतकार ने इस गीत को अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड किया था. बाद में इसे लता ने भी गाया.
कुछ याद आया...?
कल की पहेली का सही जवाब दिया एक बार फ़िर मनु जी ने. आप को बधाई.
प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सदर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
madan mohan,,,,,,,,,
maai ri main kaase kahoon peer apne jiyaa ki,,,,
धन्यवाद