गायक तलत महमूद की ८५ वीं जयंती पर विशेष
गीत संगीत के बिना जरा जीवन की कल्पना करिये और लगे हाथ यह कल्पना भी कर डालिये कि तलत महमुद जैसे गायक की खूबसूरत मखमली आवाज यदि हमारे कानों तक पहुँचनें से महरुम रहती तो। तब ज्यादा कुछ न होता, धरती अपनी जगह ही बनी रहती, आसमान भी वहीं स्थिर रहता, बस हम इन बेहद खूबसूरत गीतों को सुननें से महरूम रह जाते। "वो दिन याद करो","आहा रिमझिम के वो प्यारे प्यारे गीत लिये","प्यार पर बस तो नहीं फिर भी", जैसे गीत हमारे नीरस जीवन, में मधुर रस घोलते हैं।
सुनिए १९६८ में आई फ़िल्म "आदमी" से रफी और तलत का गाया गीत, गीतकार हैं शकील बदायूँनी और संगीत है नौशाद का -
तहजीब के शहर लखनऊ में २४ फरवरी १९२४ में जन्में तलत महमुद को बचपन से ही संगीत का बेहद शौक था। वे संगीत के इतने दीवाने थे कि पूरी पूरी रात वे संगीत सुनते सुनते ही बिता देते थे। उन्होनें संगीत की विधिवत शिक्षा प.भट्ट से ली। अपने संगीत कैरियर की शुरूआत मीर, जिगर, दाग गजलों से की। उस समय संगीत की सबसे बडी कंपनी एच एम वी के लिये उन्होनें १९४१ "सब दिन एक समान नहीं था"; गीत गवाया जो बेहद प्रसिद हुआ। १९४४ में उनका गाया गैर फिल्मी गीत "तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला ना सकेगी" बेहद मशहुर हुआ और आज तक वह सबसे ज्यादा बिकने वाली गैर फिल्मी अलबम बनी हुई है।
सुनिए गीत "बेरहम आसमां", तलत, राजेंदर कृष्ण और मदन मोहन.-
तलत ने फिल्मों में आने से पहले आकाशवाणी लखनऊ और फिर बाद में कलकता आकाशवाणी में तपन कुमार के नाम से कई गैर फिल्मी गीत गाये। लखनऊ और कलकता में अपने गायन का लोहा मनवाने के बाद उनकी किस्मत उन्हें १९४९ में बम्बई ले आई जहाँ उनके हुनर को पहले ही पहचाना जा चुका था। बम्बई में उन्के गायन का चर्चा आम हो चुका था। महान संगीतकार अनिल विश्वास ने जब तलत को सुना तो वे उनकी कँपकपाहट में सिमटी हुई आवाज से बेहद प्रभावित हुये। पर जब अनिल विश्वास जी की जब दुबारा तलत महमुद जी से मुलाकात हुई तो उन्होनें तलत की आवाज में मौजूद कंपकपाहट गायब देखी, इसका कारण पुछनें पर तलत ने जवाब दिया की सभी कहते हैं की मैं जब गाता हुँ तो मेरी आवाज काँपती हैं, तो मैं उसे अपनी आवाज में तबदील कर के गा रहा हुँ। तब अनिल विश्वास ने कहाँ अपनी प्राकर्तिक आवाज को बदलने की गलती मत करना, मुझे तुम्हारी वो ही काँपती हुई आवाज चाहियें। आगे चलकर वह कंपकंपाहट ही तलत महमुद के गायन की विशेषता बनी।
उसी कंपकंपाती आवाज़ का जादू है इस गीत में भी- "तस्वीर बनता हूँ..."-
तलत महमुद फिल्मों में अभिनय करना चाहते थे, अपने शानदार व्यक्तित्व के कारण उन्हें फिल्में भी मिली पर अभिनय के बजाये उनका गायन ही ज्यादा उभर कर सामने आया। उन्कें द्वारा अभिनीत पहली फिल्म १९४५ में बनी 'राजलक्ष्मी' थी और आखिरी नूतन के साथ "सोनें की चिडियाँ"। फिल्म सिटी बम्बई आने पर उनको जो पहला गीत गाने को मिला वह था, संगीतकार अनिल विश्वास के निर्देशन में दिलीप कुमार पर फिल्माया गया गीत "ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो"। दिलीप कुमार के सीधे सरल प्रेमी की छवि पर तलत महमुद की कोमल आवाज बेहद मेल खाती थी।
लता के साथ गाया ये दोगाना भला कौन भूल सकता है..."इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा..." -
तलत महमूद की आवाज में एक खूबसूरत मिठास, सादगी, सुरूचि थी जो उनके समकालीनों में नदारद थी। उर्दू का उनका उच्चारण बेहद साफ सुथरा और सधा हुआ था, जो गजलों के लिये उपयुक्त होता है सो उनके हिस्से में ज्यादा गजल आई। फिल्मों में गजलों को नया आयाम देते हुये तलत महमुद ने बेहतरीन गजलें संगीत जगत को दी। कालंतर में उनको गजलों का शहनशाह कहा गया। उनकी मिश्री सी मिट्ठी आवाज में नफासत के साथ जो कंपकपाहट सुनाई देती है जो दुर्लभ है। जैसे समुंदर की लहरें किनारों से टकराती है या फिर दीये की काँपती लौ, ठीक उसी तरह का आभास देती है तलत महमुद की आवाज।
सुनिए एक बार फ़िर तलत और मदन मोहन की टीम..."दो दिन की मोहब्बत में..."-
मखमली आवाज के धनी तलत महमुद ने १२ भारतीय भाषाओं में गाया और फिल्म अभिनेता के रूप में उन्होनें १३ फिल्मों में काम किया। तलत ने अपने ४० साल के कैरियर में लगभग ८०० गीत गाये जिनमें से कई तो अदभुत गीत है "ए गमें दिल क्या करूँ","रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिये", "हमसे आया न गया", "तेरी आँख के आँसू पी जाऊँ","शामें गम की कसम", "इतना ना मुझसे तु प्यार बढा","फिर वही शाम वो ही तनहाई","मेरी याद में न तुम आँसु बहाना", "ऐ मेरे दिल","तस्वीर बनाता हूँ","जाये तो जाये क्हाँ"," मिलते ही आँखे दिल हुआ दिवाना किसीका","दिले नादान तुझे हुआ क्या है","मैं दिल हुँ एक अरमान भरा","है सबसे मधुर", "प्यार पर बस तो नहीं","ये नई नई प्रीत है", "रात ने क्या क्या ख्वाब दिखाये","अँधें जहान के अँधें रास्ते", "जब छाये सावन की घटा","कोई नहीं मेरा इस दुनिया में'"," '' आँसू समझ कर","बेरहम आसमान","बुझ गयी गम की हवा","जिन्दगी देने वाले सुन","ये हवा ये रात सुहानी", "जो खुशी से चोट खाये वो नजर क्हाँ से लाऊँ", "आंसू तो नहीं मेरी आँखों में'',"सितारों तुम गवाह रहना मेरा","मोहब्बत तुर्क की मानें","वो जालिम प्यार क्या जानें","रो रो बीता जीवन सारा", "जिऊँगा जब तलक तेरे अफसाने याद आयेगें","आँसु तो नहीं हैं आँखों में","दो दिन की मोहब्बत में तुमनें" तुम्हें नींद आयेगी, तुम तो सो भी जाओगें, किसका ले लिया है दिल, ये भी भुल जाओगें, जैसे अनगिन्त गीत तलत महमुद जी आवाज में दर्ज हैं।
"सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ..."- एक और बेशकीमती गीत -
तलत ने बेहतरीन शायरों के साथ काम किया। वे अच्छी शायरी पर हमेशा जोर देते थे। शकील बदायुँनी, साहिर लुधियानवी, मजरूह सुलतानपुरी के अनमोल शब्दों पर तलत महमुद ने अपनी मखमली आवाज का जामा पहनाया। शकील बदायुँनी से उनकी दोस्ती आखिर तक बनी रही। ५०-६० वह दौर संगीत के लिहाज से स्वर्णिम था। बेहतरीन संगीतकार, लाजवाब शायर, प्रतिभा सम्पंन गायकों का दौर था वह।
फिल्मों के अलावा तलत महमुद अपने गैर फिल्मी गीतों के लिये भी याद किये जायेगें। उनकें कुछ गैर फिल्मी गीतों के बोल इस प्रकार से हैं,"दिल की गहराई नाप कर","जिसने दिल को आँसु बसाके", "कहीं इश्क का तकाजा", "जिंदगी की रात में","जिंदगी की उदास राहों में", "गजल का साज उढाओं बढी उदास", '"उसकी हसरत है जिसे दिल से","असर उसको जरा नहीं होता","सभी अंदाजें हुसन प्यारे हैं", "कोई आरजु नहीं है"। तलत महमुद ने उस समय के सभी बडे अभिनेताओं के लिये अपनी आवाज दी। देव आनन्द के लिये गाये उनके गीत हैं "जाये तो जाये कहाँ","ये नई नई प्रीत है",सुनील दत के लिये गाया उनका प्रसिद्ध गीत है "जलते हैं जिसके लिये" और "इतना ना मुझ से तु प्यार बढा, कि मैं इक बादल आवारा,भारत भूषण के लिये, "इश्क मुझको नहीं वहशत ही सही","तेरी आँख के आँसू पी जाऊँ",लेकिन सबसे ज्यादा दिलीप कुमार पर तलत महमुद की आवाज का इस्तेमाल किया गया।
सुनिए फ़िल्म किनारे किनारे से "देखी तेरी खुदाई..." संगीत है जयदेव का -
देश में ही नहीं उनके लाखों प्रशंसक विदेशों में भी थे इसीलिये उन्कें गीतों का आयोजन विदेशों में भी होने लगे। १९५६ में तलत महमुद पहले फिल्म गायक बने जिन्होनें विदेशों में व्यवसायिक शो दिये। इस तरह के शो की शुरूआत सबसे पहले तलत महमुद से ही हुई थी। ६० के उतरार्थ में तेज संगीत का दौर शुरू हो चुका था, तलत महमूद अपने आप को उस माहौल में ढाल पाने में असमर्थ थे सो वक्त रहते उन्होनें फिल्म गायन से अपने को अलग कर लिया। पर गैर फिल्मी गीत वे लम्बें अरसे तक गाते रहे। बाद में पार्किन्सन की बीमारी ने उनकी आवाज पर असर डालाना शुरू कर दिया। लम्बे अरसे तक वे बीमार रहे, १९९६ में अपनी आवाज रूपी धरोहर हम संगीत प्रेमियों को सौंप कर चले गये।
आज भी मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश के आवाज की तरह गाने वाले मिल जायेगे पर तलत महमुद की मखमली आवाज की नकल करने वाला गायक नहीं मिल सका है। आज २४ फरवरी को उनकी जयंती पर हम तलत महमुद के दीवाने बस इतना ही कह सकते हैं,तलत महमुद का था अँदाजें बया कुछ और...-
प्रस्तुति - विपिन चौधरी
गीत संगीत के बिना जरा जीवन की कल्पना करिये और लगे हाथ यह कल्पना भी कर डालिये कि तलत महमुद जैसे गायक की खूबसूरत मखमली आवाज यदि हमारे कानों तक पहुँचनें से महरुम रहती तो। तब ज्यादा कुछ न होता, धरती अपनी जगह ही बनी रहती, आसमान भी वहीं स्थिर रहता, बस हम इन बेहद खूबसूरत गीतों को सुननें से महरूम रह जाते। "वो दिन याद करो","आहा रिमझिम के वो प्यारे प्यारे गीत लिये","प्यार पर बस तो नहीं फिर भी", जैसे गीत हमारे नीरस जीवन, में मधुर रस घोलते हैं।
सुनिए १९६८ में आई फ़िल्म "आदमी" से रफी और तलत का गाया गीत, गीतकार हैं शकील बदायूँनी और संगीत है नौशाद का -
तहजीब के शहर लखनऊ में २४ फरवरी १९२४ में जन्में तलत महमुद को बचपन से ही संगीत का बेहद शौक था। वे संगीत के इतने दीवाने थे कि पूरी पूरी रात वे संगीत सुनते सुनते ही बिता देते थे। उन्होनें संगीत की विधिवत शिक्षा प.भट्ट से ली। अपने संगीत कैरियर की शुरूआत मीर, जिगर, दाग गजलों से की। उस समय संगीत की सबसे बडी कंपनी एच एम वी के लिये उन्होनें १९४१ "सब दिन एक समान नहीं था"; गीत गवाया जो बेहद प्रसिद हुआ। १९४४ में उनका गाया गैर फिल्मी गीत "तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला ना सकेगी" बेहद मशहुर हुआ और आज तक वह सबसे ज्यादा बिकने वाली गैर फिल्मी अलबम बनी हुई है।
सुनिए गीत "बेरहम आसमां", तलत, राजेंदर कृष्ण और मदन मोहन.-
तलत ने फिल्मों में आने से पहले आकाशवाणी लखनऊ और फिर बाद में कलकता आकाशवाणी में तपन कुमार के नाम से कई गैर फिल्मी गीत गाये। लखनऊ और कलकता में अपने गायन का लोहा मनवाने के बाद उनकी किस्मत उन्हें १९४९ में बम्बई ले आई जहाँ उनके हुनर को पहले ही पहचाना जा चुका था। बम्बई में उन्के गायन का चर्चा आम हो चुका था। महान संगीतकार अनिल विश्वास ने जब तलत को सुना तो वे उनकी कँपकपाहट में सिमटी हुई आवाज से बेहद प्रभावित हुये। पर जब अनिल विश्वास जी की जब दुबारा तलत महमुद जी से मुलाकात हुई तो उन्होनें तलत की आवाज में मौजूद कंपकपाहट गायब देखी, इसका कारण पुछनें पर तलत ने जवाब दिया की सभी कहते हैं की मैं जब गाता हुँ तो मेरी आवाज काँपती हैं, तो मैं उसे अपनी आवाज में तबदील कर के गा रहा हुँ। तब अनिल विश्वास ने कहाँ अपनी प्राकर्तिक आवाज को बदलने की गलती मत करना, मुझे तुम्हारी वो ही काँपती हुई आवाज चाहियें। आगे चलकर वह कंपकंपाहट ही तलत महमुद के गायन की विशेषता बनी।
उसी कंपकंपाती आवाज़ का जादू है इस गीत में भी- "तस्वीर बनता हूँ..."-
तलत महमुद फिल्मों में अभिनय करना चाहते थे, अपने शानदार व्यक्तित्व के कारण उन्हें फिल्में भी मिली पर अभिनय के बजाये उनका गायन ही ज्यादा उभर कर सामने आया। उन्कें द्वारा अभिनीत पहली फिल्म १९४५ में बनी 'राजलक्ष्मी' थी और आखिरी नूतन के साथ "सोनें की चिडियाँ"। फिल्म सिटी बम्बई आने पर उनको जो पहला गीत गाने को मिला वह था, संगीतकार अनिल विश्वास के निर्देशन में दिलीप कुमार पर फिल्माया गया गीत "ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो"। दिलीप कुमार के सीधे सरल प्रेमी की छवि पर तलत महमुद की कोमल आवाज बेहद मेल खाती थी।
लता के साथ गाया ये दोगाना भला कौन भूल सकता है..."इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा..." -
तलत महमूद की आवाज में एक खूबसूरत मिठास, सादगी, सुरूचि थी जो उनके समकालीनों में नदारद थी। उर्दू का उनका उच्चारण बेहद साफ सुथरा और सधा हुआ था, जो गजलों के लिये उपयुक्त होता है सो उनके हिस्से में ज्यादा गजल आई। फिल्मों में गजलों को नया आयाम देते हुये तलत महमुद ने बेहतरीन गजलें संगीत जगत को दी। कालंतर में उनको गजलों का शहनशाह कहा गया। उनकी मिश्री सी मिट्ठी आवाज में नफासत के साथ जो कंपकपाहट सुनाई देती है जो दुर्लभ है। जैसे समुंदर की लहरें किनारों से टकराती है या फिर दीये की काँपती लौ, ठीक उसी तरह का आभास देती है तलत महमुद की आवाज।
सुनिए एक बार फ़िर तलत और मदन मोहन की टीम..."दो दिन की मोहब्बत में..."-
मखमली आवाज के धनी तलत महमुद ने १२ भारतीय भाषाओं में गाया और फिल्म अभिनेता के रूप में उन्होनें १३ फिल्मों में काम किया। तलत ने अपने ४० साल के कैरियर में लगभग ८०० गीत गाये जिनमें से कई तो अदभुत गीत है "ए गमें दिल क्या करूँ","रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिये", "हमसे आया न गया", "तेरी आँख के आँसू पी जाऊँ","शामें गम की कसम", "इतना ना मुझसे तु प्यार बढा","फिर वही शाम वो ही तनहाई","मेरी याद में न तुम आँसु बहाना", "ऐ मेरे दिल","तस्वीर बनाता हूँ","जाये तो जाये क्हाँ"," मिलते ही आँखे दिल हुआ दिवाना किसीका","दिले नादान तुझे हुआ क्या है","मैं दिल हुँ एक अरमान भरा","है सबसे मधुर", "प्यार पर बस तो नहीं","ये नई नई प्रीत है", "रात ने क्या क्या ख्वाब दिखाये","अँधें जहान के अँधें रास्ते", "जब छाये सावन की घटा","कोई नहीं मेरा इस दुनिया में'"," '' आँसू समझ कर","बेरहम आसमान","बुझ गयी गम की हवा","जिन्दगी देने वाले सुन","ये हवा ये रात सुहानी", "जो खुशी से चोट खाये वो नजर क्हाँ से लाऊँ", "आंसू तो नहीं मेरी आँखों में'',"सितारों तुम गवाह रहना मेरा","मोहब्बत तुर्क की मानें","वो जालिम प्यार क्या जानें","रो रो बीता जीवन सारा", "जिऊँगा जब तलक तेरे अफसाने याद आयेगें","आँसु तो नहीं हैं आँखों में","दो दिन की मोहब्बत में तुमनें" तुम्हें नींद आयेगी, तुम तो सो भी जाओगें, किसका ले लिया है दिल, ये भी भुल जाओगें, जैसे अनगिन्त गीत तलत महमुद जी आवाज में दर्ज हैं।
"सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ..."- एक और बेशकीमती गीत -
तलत ने बेहतरीन शायरों के साथ काम किया। वे अच्छी शायरी पर हमेशा जोर देते थे। शकील बदायुँनी, साहिर लुधियानवी, मजरूह सुलतानपुरी के अनमोल शब्दों पर तलत महमुद ने अपनी मखमली आवाज का जामा पहनाया। शकील बदायुँनी से उनकी दोस्ती आखिर तक बनी रही। ५०-६० वह दौर संगीत के लिहाज से स्वर्णिम था। बेहतरीन संगीतकार, लाजवाब शायर, प्रतिभा सम्पंन गायकों का दौर था वह।
फिल्मों के अलावा तलत महमुद अपने गैर फिल्मी गीतों के लिये भी याद किये जायेगें। उनकें कुछ गैर फिल्मी गीतों के बोल इस प्रकार से हैं,"दिल की गहराई नाप कर","जिसने दिल को आँसु बसाके", "कहीं इश्क का तकाजा", "जिंदगी की रात में","जिंदगी की उदास राहों में", "गजल का साज उढाओं बढी उदास", '"उसकी हसरत है जिसे दिल से","असर उसको जरा नहीं होता","सभी अंदाजें हुसन प्यारे हैं", "कोई आरजु नहीं है"। तलत महमुद ने उस समय के सभी बडे अभिनेताओं के लिये अपनी आवाज दी। देव आनन्द के लिये गाये उनके गीत हैं "जाये तो जाये कहाँ","ये नई नई प्रीत है",सुनील दत के लिये गाया उनका प्रसिद्ध गीत है "जलते हैं जिसके लिये" और "इतना ना मुझ से तु प्यार बढा, कि मैं इक बादल आवारा,भारत भूषण के लिये, "इश्क मुझको नहीं वहशत ही सही","तेरी आँख के आँसू पी जाऊँ",लेकिन सबसे ज्यादा दिलीप कुमार पर तलत महमुद की आवाज का इस्तेमाल किया गया।
सुनिए फ़िल्म किनारे किनारे से "देखी तेरी खुदाई..." संगीत है जयदेव का -
देश में ही नहीं उनके लाखों प्रशंसक विदेशों में भी थे इसीलिये उन्कें गीतों का आयोजन विदेशों में भी होने लगे। १९५६ में तलत महमुद पहले फिल्म गायक बने जिन्होनें विदेशों में व्यवसायिक शो दिये। इस तरह के शो की शुरूआत सबसे पहले तलत महमुद से ही हुई थी। ६० के उतरार्थ में तेज संगीत का दौर शुरू हो चुका था, तलत महमूद अपने आप को उस माहौल में ढाल पाने में असमर्थ थे सो वक्त रहते उन्होनें फिल्म गायन से अपने को अलग कर लिया। पर गैर फिल्मी गीत वे लम्बें अरसे तक गाते रहे। बाद में पार्किन्सन की बीमारी ने उनकी आवाज पर असर डालाना शुरू कर दिया। लम्बे अरसे तक वे बीमार रहे, १९९६ में अपनी आवाज रूपी धरोहर हम संगीत प्रेमियों को सौंप कर चले गये।
आज भी मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश के आवाज की तरह गाने वाले मिल जायेगे पर तलत महमुद की मखमली आवाज की नकल करने वाला गायक नहीं मिल सका है। आज २४ फरवरी को उनकी जयंती पर हम तलत महमुद के दीवाने बस इतना ही कह सकते हैं,तलत महमुद का था अँदाजें बया कुछ और...-
प्रस्तुति - विपिन चौधरी
Comments
लेकिन किस्मत का तमाशा देखिये कि फिल्म 'आदमी' के इसी युगल गान को फिल्म में परदे पर शामिल नहीं किया गया था. इसकी जगह संगीतकार नौशाद साहेब को मोहम्मद रफी और मुकेश की आवाजों में गाना रिकॉर्ड करना पड़ा. शायद यह फिल्म के हीरो दिलीप कुमार की फरमाइश हो सकती हो. जब कि तलत साहेब शुरू में दिलीप कुमार की आवाज़ मने जाते थे.
दाग, फुटपाथ, शबनम, देवदास, के यादगार गीत कौन भूल सकता है.
फिल्म देवदास के 'मितवा...' और 'किसको खबर थी किसको यकीन था' लाजवाब गीत हैं.
एक बार फिर बहुत बहुत शुक्रिया तलत साहेब की याद ताजा .
करने के लिए.
आभार
अवध लाल
काबे से बुतकदे से कभी बादमे जम से
आवाज़ दे रहा हूँ तुझे हर मुकाम से
को कोई सुनवा सकता है . या कोई साईट बता सकता है ?