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Showing posts from 2008

वार्षिक गीतमाला (पायदान ३० से २१ तक)

वर्ष २००८ के श्रेष्ट ५० फिल्मी गीत (हिंद युग्म के संगीत प्रेमियों द्वारा चुने हुए),पायदान संख्या ३० से २१ तक पिछले अंक में हम आपको ४०वीं पायदान से ३१वीं पायदान तक के गीतों से रूबरू करा चुके हैं। उन गीतों का दुबारा आनंद लेने के लिए यहाँ जाएँ। ३० वीं पायदान - मेरी माटी (रामचंद पाकिस्तानी) पाकिस्तान के जानेमाने निर्देशक महरीन जब्बार ,जिन्होंने पहचान, कहानियाँ, पुतली घर जैसे नामचीन टीवी धारावाहिकों एवं नाटकों का निर्देशन किया है, "रामचंद पाकिस्तानी" लेकर फिल्म-इंडस्ट्री में उपस्थित हुए हैं। यह फिल्म अपने अनोखे नाम के कारण दर्शकों को आकर्षित करती है। नगरपरकर गाँव में रहने वाली "चंपा"(नंदिता दास द्वारा अभिनीत) की जिंदगी में तब उथलपुथल मच जाता है,जब उसका पति एवं उसका लड़का "रामचंद" अनजाने हीं सरहद पारकर भारत आ जाता है और भारतीय फौज उन्हें घुसपैठिया मान लेती है। यह फिल्म उसी चंपा की दास्तान है। देबज्योति मिश्रा द्वारा संगीतबद्ध एवं अनवर मक़सूद द्वारा लिखित "मेरी माटी" गायकों (शुभा मुद्गल एवं शफ़क़त अमानत अली) की अनोखी जुगलबंदी के कारण श्रोताओं पर असर करने मे

वार्षिक गीतमाला (पायदान ४० से ३१ तक)

वर्ष २००८ के श्रेष्ट ५० फिल्मी गीत (हिंद युग्म के संगीत प्रेमियों द्वारा चुने हुए),पायदान संख्या ४० से ३१ तक पिछले अंक में हम आपको ५०वीं पायदान से ४१वीं पायदान तक के गीतों से रूबरू करा चुके हैं। उन गीतों का दुबारा आनंद लेने के लिए यहाँ जाएँ। ४० वीं पायदान - आशियाना(फैशन) ४०वें पायदान पर फिल्म "फैशन" का गीत "आशियाना" काबिज़ है। इस गीत के बोल लिखे हैं इरफ़ान सिद्दकी ने और सुरबद्ध किया है सलीम-सुलेमान की जोड़ी ने। इस गीत को सलीम मर्चैंट(सलीम-सुलेमान की जोड़ी से एक) ने अपनी आवाज़ से जीवंत किया है। मधुर भंडारकर की यह फिल्म "फैशन" अपने विषय के साथ-साथ अपने गीतों के कारण भी चर्चा में रही है। ३९ वीं पायदान - अलविदा(दसविदानिया) कैलाश खेर यूँ तो अपनी आवाज़ और संगीत के कारण संगीत-जगत में मकबूल हैं। लेकिन जो बात बहुत कम लोग जानते हैं, वह यह है कि अमूमन अपने सभी गानों के बोल कैलाश हीं लिखते हैं।अलविदा भी उनकी त्रिमुखी प्रतिभा का साक्षात उदाहरण है। "दसविदानिया" अपनी सीधी-सपाट कहानी, हद में किए गए अभिनय और "कौमन मैन" की छवि वाले नायक के कारण फिल्मी जगत क

डॉ॰ मृदुल कीर्ति का साक्षात्कार

वेदों, उपनिषदों जैसे अनेकों धार्मिक ग्रंथों का काव्यानुवाद कर चुकी एक विदुषी का साक्षात्कार डॉक्टर मृदुल कीर्ति आवाज़ के श्रोता डॉ॰ मृदुल कीर्ति को पॉडकास्ट कवि सम्मेलन के संचालक के तौर पर पहचानते हैं। लेकिन इस महात्मा के साहित्य-जगत में कई ऐसे उल्लेखनीय योगदान हैं, जिन्हें जानकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है। 07 अक्तूबर 1951 को उत्तर प्रदेश में जन्मी मृदुल कीर्ति ने वेदों, उपनिषदों का काव्यानुवाद किया है। साहित्य में अनुवाद को बहुत कठिन काम माना गया है, उसपर भी काव्यानुवाद, अपने-आप में एक तप-कर्म है। डॉ॰ मृदुल कीर्ति ने सामवेद का पद्यानुवाद (1988), ईशादि नौ उपनिषद (1996) , अष्टावक्र गीता - काव्यानुवाद (2006) , ईहातीत क्षण (1991) , श्रीमद भगवद गीता का ब्रजभाषा में अनुवाद (2001) किया है। इसके अतिरिक्त "ईशादि नौ उपनिषद" में इन्होंने नौ उपनिषदों का हरिगीतिका छंद में हिन्दी अनुवाद किया है। पांतजलि योग्रसूत्र के सभी चार अध्यायों का चौपाई छंद में अनुवाद हुआ है, जिसको संगीतबद्ध करने का काम हिन्द-युग्म की आवाज़ टीम कर रही है। मृदुल जी के बारे में ज्यादा कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा ह

मैं पैयम्बर तो नहीं, मेरा कहा कैसे हो

दूसरे सत्र के २७ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज अपनी पहली दो ग़ज़लों से श्रोताओं और समीक्षकों सभी पर अपना जादू चलाने के बाद रफ़ीक़ शेख लौटे हैं अपनी तीसरी और इस सत्र के लिए अपनी अन्तिम प्रस्तुति के साथ. शायर है इस बार मुंबई के दौर सैफी साहब, जिनके खूबसूरत बोलों को अपनी मखमली आवाज़ और संगीत से सजाया है रफ़ीक़ ने. तो दोस्तों आनंद लें हमारी इस नई प्रस्तुति का और हमें अपनी राय से अवश्य अवगत करवायें. सुनने के लिए नीचे के प्लयेर पर क्लिक करें - Rafique Sheikh is back again for the last time in this season with his new ghazal, "jo shajhar..." written by a shayar from Mumbai Daur Saifii Sahab, hope you enjoy this presentaion also as most of his ghazals so far has been loved by audiences and critics as well. to listen, please click on the player below - Lyrics - ग़ज़ल के बोल - जो शज़र सूख गया है वो हरा कैसे हो, मैं पैयम्बर तो नहीं, मेरा कहा कैसे हो. जिसको जाना ही नही, उसको खुदा क्यों माने, और जिसे जान चुके हैं वो खुदा कैसे हो, दूर से देख के मैंने उसे पहचान लिया, उसने इतना भी नही मुझसे

वार्षिक गीतमाला (पायदान ५० से ४१ तक)

वर्ष २००८ के श्रेष्ट ५० फिल्मी गीत (हिंद युग्म के संगीत प्रेमियों द्वारा चुने हुए),पायदान संख्या ५० से ४१ तक ५० वीं पायदान नम्बर ५० पर है फ़िल्म "किड्नाप" का दर्द भरा गीत जिसे गाया है संदीप व्यास ने और वही इस गीत की सबसे बड़ी खासियत भी हैं. संगीत भी ख़ुद संदीप और उनके भाई संजीव का बनाया हुआ है, बोल भी ख़ुद संदीप और संजीव ने ही रचे हैं. संजय गाधवी की इस फ़िल्म को दर्शकों का प्यार नही मिला, इस साल के हॉट शॉट हीरो इमरान खान की खलनायकी भी इसे डूबने से नही बचा पायी. पर संगीत प्रेमियों के इस बेहद प्रभाशाली संगीत जोड़ी का काम अनदेखा नही होने दिया. " मिट जाए " मिट कर भी नही मिटा, तभी कोई इसे पचासवीं पायदान से नही पाया हटा. ४९ वीं पायदान ४९ वीं पायदान पर है अज़ीज़ मिर्जा के निर्देशन में बनी रोमांटिक फ़िल्म किस्मत कनेक्शन का गीत "कहीं न लागे मन", पहला नशा की तर्ज पर बने इस गीत में वही सवाल है जो हर नया नया प्रेमी ख़ुद से पूछता है यानी - क्या यही प्यार है. थीम वही पुराना है पर गीत फ़िर भी सुनने में मधुर लगता है. शब्बीर अहमद के बोलों को सुरों से सजाया है प्रीतम ने और

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - दिसम्बर २००८

डॉक्टर मृदुल कीर्ति कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन । देखते ही देखते पूरा वर्ष कब गुज़र गया, पता ही न लगा. श्रोताओं के प्रेम के बीच हमें यह भी पता न लगा कि आज का कवि सम्मलेन वर्ष २००८ का अन्तिम कवि सम्मलेन है। आवाज़ के सभी श्रोताओं और पाठकों को नव वर्ष की शुभ-कामनाओं के साथ प्रस्तुत है दिसम्बर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने। आवाज़ की ओर से हर महीने प्रस्तुत किए जा रहे इस प्रयास में गहरी दिलचस्पी, सहयोग और आपके प्रेम के लिए हम आपके आभारी हैं। हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। इस बार भी हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें तो बहुत ही अच्छी थीं मगर वे हमें अन्तिम तिथि के बाद तब प्राप्त हुईं जब हम कार्यक्रम को अन्तिम रूप दे रहे थे। उनके छूट जाने से हमें भी दुःख हुआ है इसलिए हम एक ब

वार्षिक गीतमाला से पहले वो गीत वो टॉप ५० में स्थान नही पा सके.

इससे पहले कि हम अपनी वार्षिक गीतमाला का शुभारम्भ करें, कुछ बातें हम साफ़ कर देना चाहेंगें. टॉप ५० गीत को आवाज़ के एक पैनल ने बहुत सोच विचार के बाद चुना है जिसमें मुख्य रूप से चार बातों का ध्यान रखा गया है. गीत का नया पन, गीत की मौलिकता, गीत की रिपीट वैल्यू, और गीत की लोकप्रियता. गौर करें कि गीत की लोकप्रियता इन बताये गए चार घटकों में से एक ही है, अर्थात ये हो सकता है कि कोई गीत बहुत लोकप्रिय होने के बावजूद आपको टॉप ५० से नदारद मिले और कोई गीत बहुत कम सुना गया हो पर अपनी मौलिकता, नयेपन, लंबे समय तक सुने जा सकने की योग्यता के दम पर इस सूची में स्थान प्राप्त कर पाने में सफल रहा हो. गीतों की अन्तिम सारणी हमने अपने सुधी श्रोताओं के वोटिंग के आधार पर निर्धारित की है. अन्तिम दिन टॉप १० गीतों के साथ साथ हम अपने श्रोताओं को वर्ष के ५ गैर फिल्मी गीत भी सुनवायेंगे. पर इससे पहले कि हम अपने टॉप ५० की तरफ़ बढ़ें सुन लेते हैं १० ऐसे गीत जो पिछले साल बेहद मकबूल हुए पर हमारे टॉप ५० में स्थान नही बना सके. १०. टल्ली - अगली और पगली - पिछले साल ये गीत खूब बजा पर न तो गाने में कोई नयापन है न ही रिपीट वैल्यू.

रफ़िक़ शेख की ग़ज़ल ने ली जबरदस्त बढ़त, छोडा खुशमिजाज़ मिटटी को पीछे

अक्तूबर के अजय वीर गीत हैं फ़िर एक बार आमने सामने, और पहले चरण के तीसरे और अन्तिम समीक्षक की पैनी नज़र है उन पर. देखते हैं कि क्या फैसला उनका- डरना झुकना छोड़ दे — गीत बेहद प्रभावी है । बोल बढिया हैं । अच्‍छी बात ये है कि ये गीत एक संदेश देता है । संयोजन और गायकी में भी ये गीत एकदम युवा है । क्‍लब मिक्‍स में जो टेक्‍नो इफेक्‍ट्स हैं वो अच्‍छे लगते हैं । लेकिन मुझे लगता है कि पंजाबी तड़का मिक्‍स ज्‍यादा अच्‍छा बन पड़ा है । इसे हम सूफी मिक्‍स कहते तो ज्‍यादा अच्‍छा लगता । अब तक का सर्वश्रेष्‍ठ गीत । गीत—पूरे पांच. धुन और संगीत संयोजन-पूरे पॉँच, गायकी और आवाज़-पूरे पांच, ओवारोल प्रस्तुति-पूरे पांच कुल- २०/२०: १०/१०, कुल अंक (पहले चरण की समीक्षा के बाद) - 20.5 / 30 ऐसा नहीं कि आज मुझे चांद चाहिए --- इस ग़ज़ल की शायरी ज़रा कमज़ोर लगी । गायकी और संगीत संयोजन उत्‍तम । गीत—४, धुन और संगीत संयोजन-५, गायकी और आवाज़-५, ओवारोल प्रस्तुति-४ कुल- १८/२०: ९/१०, कुल अंक (पहले चरण की समीक्षा के बाद) - 24 / 30 सूरज चांद और सितारे । ये ठीक है कि ये हिंद युग्‍म पर अब तक का सबसे बड़ा ग्रुप है । लेकिन दिक्‍क

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'मन्त्र'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'मन्त्र' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' 'दूसरी शादी' ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "मन्त्र" , जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 31 मिनट और 38 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। कल हम आपके लिए लेकर आ रहे हैं दिसम्बर महीने का पॉडकास्ट कवि सम्मेलन, इसी जगह, इसी समय - सुनना न भूलें! मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी  बूढ़े

मुझे वक्त दे मेरी जिंदगी...

दूसरे सत्र के २६ वें गीत विश्वव्यापी उदघाटन आज दोस्तों आज यूँ तो हमारे नए गीतों के प्रकाशन के इस वर्तमान सत्र का अन्तिम शुक्रवार है पर इस प्रस्तुत गीत को मिलकर हमारे पास ३ प्रविष्टियाँ हैं ऐसी जो इस सत्र में अपना स्थान बनाना चाहती है, जिनका प्रकाशन हम क्रमश आने वाले सोमवार और बुधवार को करेंगें यानी कि सत्र का समापन २८ वें गीत के साथ होगा जो वर्ष की अन्तिम तारिख को प्रकाशित होगा, फिलहाल आनंद लेते हैं २६ वें गीत का. ये संयोग ही है की पिछले सत्र के अंत में भी जिस कलाकारा ने आकर अपनी आवाज़ और गायकी से सबके मन को चुरा लिया था उसी युवा संगीतकार/गायिका के दो नए गीत हैं दूसरे सत्र के अन्तिम ३ गीतों में भी. पिछले सत्र में भी आभा मिश्रा और निखिल आनंद गिरी की जोड़ी ने "पहला सुर" एल्बम दो खूबसूरत ग़ज़लें दी थी. कुछ श्रोताओं ने हिदायत दी थी कि यदि उन ग़ज़लों का संगीत संयोजन अच्छा होता तो और बेहतर होता. इस बार इसी कमी को दुरुस्त करने के लिए हमने सहारा लिया युग्मी संगीतकार साथी रुपेश ऋषि का. तो दोस्तों हिंद युग्म गर्व के साथ प्रस्तुत करता है एक बार फ़िर आभा मिश्रा को, जिन्होंने इस गीत को न सिर

सुनिए हरिवंश राय बच्चन की बाल कविता 'रेल'

बच्चो, पिछले सप्ताह से आपके लिए नीलम आंटी कविताओं को सुनाने का काम कर रही हैं। हरिवंश रा बच्चन की कविता 'गिलहरी का घर' आप सभी ने बहुत पसंद किया। आज सुनिए बच्चन दादा की ही कविता 'रेल'। ज़रूर बताइएगा कि कैसा लगा? Baal-Kavita/Harivansh Rai Bachchan/Rail

आयी फरिश्तों की मीठी आवाज़...मैरी क्रिसमस

इस क्रिसमस पर शास्त्री जे सी फिलिप का विशेष संदेश दुनिया में लगभग हर कौम को कभी न कभी गुलामी देखनी पडी है. और लगभग हर कौम ने गुलामी करवाने वालों के विरुद्ध बगावत की है. ऐसी ही एक खुनी बगावत के लिए मशहूर है कौम यहूदियों की भी. ईस्वी पूर्व 42 की बात है, धनी यहूदियों पर एक शक्तिशाली गैर-यहूदी का राज्य हो गया. हेरोद-महान नामक यह गैर-यहूदी राजा जानता था कि यहूदियों से लोहा लेना आसान नहीं है अत: उसने हर तरह से यहूदियों को प्रसन्न रखा. राजकाज ठीक से चलता रहा. लेकिन लगभग तीन दशाब्दी राज्य करने के बाद उसके राज्य की नींव हिलने लगी. उसने अपनी शक्तिशाली गुप्तचर सेना की सहायता से हर शत्रु का उन्मूलन कर दिया और राज्य अपने हाथ से न जाने दिया. उसकी क्रूरता के कारण यहूदी फिर दब कर रहने लगे. रहस्यमय राजनैतिक हत्यायें चलती रहीं और उसके परिवार के कई प्रतिद्वन्दी एक एक करके लुप्त होने लगे. हेरोद और उसकी गुप्तचर सेना के मारे हर कोई थर्राता था. अचानक एक दिन एक दुर्घटना हुई और हर यहूदी का कलेजा मुँह को आ गया. उस दिन यहूदियों के देश के पूर्वी देशों से विद्वानों का एक बडा काफिला हेरोद-महान के दरबार पहुंचा और बत

सुनिए श्रीलाल शुक्ल की व्यंग्य कहानी 'काश'

श्रीलाल शुक्ल के एक व्यंग्य 'काश' का प्रसारण 'सुनो कहानी' के अंतर्गत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्रीलाल शुक्ल का एक व्यंग्य काश। इस व्यंग्य में प्रशासनिक कार्य व्यवस्था पर प्रहार करते हुए आकस्मिक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति का बड़ा सजीव चित्रण किया गया है जो आपको हंसाता भी है और सताता भी है। आईये सुनें  " काश ", जिसको स्वर दिया है शोभा महेन्द्रू ने। शोभा जी का नाम आवाज़ के श्रोताओं के लिए नया नहीं है। उनकी रचनाएं हमें हिंद-युग्म पर पढने को और पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में सुनने को मिलती रही हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर हमने प्रेमचंद की कहानी प्रेरणा को शोभा जी के स्वर में प्रस्तुत किया था। इसके अलावा शोभा जी की आवाज़ को विमल चंद्र पाण्डेय की कहानी ' स्वेटर ' के नाट्य रूपांतर में और मन्नू भंडारी की कहानी अकेली में भी बहुत पसंद किया गया था. सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें: (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटक

अपनी पसंद के साल 2008 के टॉप 10 गीत बतायें

आपकी नज़र में ऐसे कौन से 50 गाने हैं जो हमेशा सुने जायेंगे? हिन्द-युग्म के आवाज़ मंच पर आपने पूरे वर्ष गीतों का, गीत से जुड़ी बातों का आनंद लिया। महान कलाकारों से मिले। अपने 25 गीतों को एक-एक करके हिन्द-युग्म ने भी रीलिज किया। वर्ष 2008 के खत्म होने में अब बस एक सप्ताह शेष हैं। साल के अंत में देश का हर बड़ा-छोटा मनोरंजन उद्यम वर्ष भर में रीलिज हुए फिल्मी गीतों का काउंट-डाउन ज़ारी करता है। हमने भी सोचा कि इस तरह का एक प्रयास हिन्दी वेबसाइट की ओर से भी होना चाहिए। जबकि हिन्द-युग्म साल भर गीत-संगीत की बात कर रहा है, तब तो हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी बन जाती है। तो हिन्द-युग्म की आवाज़ टीम ने यह निर्णय लिया कि वर्ष 2008 के अंतिम 5 दिनों में (मतलब 27, 28, 29, 30 और 31 दिसम्बर 2008 को) शीर्ष 50 गीतों का काउंटडाउन चलायेगा। आवाज़ की टीम ने शीर्ष 50 गीतों का काउँटडाउन बनाते वक़्त इस बात का ध्यान रखा कि वो गीत चुने जायें, जिन्हें हो सकता है कि रेडियो/टीवी पर कम बजाया गया हो, लेकिन उनकी उम्र लम्बी हो। जैसाकि बहुत से ब्लॉगरों ने इस बात का खुलासा किया था कि इस साल के बहुत से चर्चित गीतों की धुन विदेशी धुन

जब अक्टूबर के अजय वीर गीत दूसरी बार भिडे...

किन्हीं कारणों वश हम अपनी समीक्षाओं की प्रस्तुति में कुछ पीछे छूट गए थे. पर कोशिश हमारी रहेगी कि जनवरी के पहले सप्ताह के अंत तक हम इस सत्र के सभी गीतों की पहले चरण की समीक्षा और अंक तालिका आपके समुख रख सकें. तो सबसे पहले नज़र करें कि क्या कहते हैं हमारे दूसरे समीक्षक अक्टूबर के अजय वीर गीतों के बारे में - डरना झुकना छोड दे, सारे बंधन तोड दे.. इस अच्छे गीत की शुरुआत में ही गायकों से हारमोनी के सुरों में गडबड हो गयी है.सुरों की पकड किसी भी सूरत में स्थिर हो नही पाती, जिसकी वजह से आगे चल कर भी गीत प्रभाव नहीं छोड़ पा रहा है. जोगी सुरिंदर और अमनदीप का गला तरल ज़रूर है, मगर इस गफ़लत की वजह से पेरुब द्वारा रचे गये सुरों के इस अज़ीम शाहकार में बॆलेंस नहीं रह पाता. इसी वजह से पंजाबी तडके में भी स्वाद में उतना जायका नही ले पाता सुनने वाला श्रोता, जो आगे चलकर थोडा सुरीला ज़रूर हो जाता है.मगर कर्णप्रिय या लोकप्रिय होना याने गुणवता में उच्च कोटी का होना यह समीकरण नहीं है, कम से कम मेरे विचार से.सुर और ताल किसी भी गाने के मूल तत्व हैं, और इसमें कमी-बेशी पूरे गीत के स्ट्रक्चर को विकलांग बनाता है.

सुनिए मुकेश के गाये दुर्लभ गैर फिल्मी ग़ज़लों का संकलन

महान गायक मुकेश के बारे में हम आवाज़ पर पहले भी कई बार बात कर चुके हैं. संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर जी का संस्मरण हमने प्रस्तुत किया था, साथ ही मशहूर संगीत विशेषज्ञ संजय पटेल जी ने उन पर एक विशेष प्रस्तुति दी थी, तो तपन शर्मा जी ने आप सब के लिए लेकर आ चुके हैं उनका जीवन परिचय और संगीत सफर की तमाम जानकारियाँ. हमारे कुछ श्रोताओं ने हमसे फरमाईश की, कि हम उन्हें मुकेश जी के गाये कुछ गैर फिल्मी गीतों और ग़ज़लों से भी रूबरू करवायें. तो आज हम अपने श्रोताओं के लिए लेकर आए हैं, मुकेश की गैर फिल्मी ग़ज़लों का एक नायाब गुलदस्ता... सुनिए और आनंद लीजिये -

कहाँ है जरुरत रीमिक्स गीतों की...

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (7) ऐ आर आर ने फ़िर किया करिश्मा ऐ आर रहमान ने फ़िर ये कर दिखाया. ब्रिटिश निर्देशक डैनी बोयले की फ़िल्म "स्लम डोग मिलेनियर" के लिए उनके संगीत को अंतर्राष्ट्रीय प्रेस एकेडमी का सेटालाइट पुरस्कार प्राप्त हुआ है. फ़िल्म पूरी तरह से मुंबई में शूट हुई है और एक साधारण सी बस्ती में रहने वाले १८ साल के अनाथ लड़के की एक "गेम शो" में भाग लेकर करोड़पति बनने की बेहद दिलचस्प कहानी कहती है. सर्वश्रेष्ठ संगीत के आलावा फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार भी जीता है. गौरतलब है कि रहमान का ये संगीत गोल्डन ग्लोब पुरस्कार के लिए भी नामांकित हुआ है. वहां भी अपने रहमान बाज़ी मारे हम तो यही कामना करेंगें. कुछ ख़ास है नेहा में एक संगीत चैनल की विजेता रही और पूर्व "वीवा" बैंड की गायिका नेहा इन दिनों बेहद खुश है. फ़िल्म "फैशन" के लिए उनका गाया गीत "कुछ ख़ास है..." बेहद चर्चा में जो है आजकल. और इसी के साथ दिल्ली की कुडी नेहा भासिन का संगीत कैरियर अब उठान पकड़ चुका है. ओनिर कि अगली फ़िल्म "किल छाबरा" के

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'दूसरी शादी'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'दूसरी शादी' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' पूस की रात ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की कहानी "दूसरी शादी" , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 5 मिनट और 19 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी जब तक यह कलंक हमारी कौम से दूर नहीं हो जाता, मैं हर्गिज, कुंवारी तो दूर की बात है, किसी विधवा से भी ब्याह न करूंगा। ( प्रेमचंद

सारी बस्ती निगल गया है (नई धुन, नई ग़ज़ल)

दूसरे सत्र के २५वें गीत के रूप में सुनिए एक ग़ज़ल कुमार आदित्य नाज़िम नक़वी हम वर्ष २००८ के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। हिन्द-युग्म की बड़ी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह भी रही कि ४ जुलाई से अब तक हमने हर शुक्रवार एक नया गाना रीलिज किया। अब तक १७ संगीतकारों से अपना तार जोड़ा। ऐसे ही एक संगीतकार हमें मिले जो फिल्मों में जाने की तमन्ना रखते हैं, जिनके द्वारा कम्पोज एक गीत हमने पिछले शुक्रवार इस सत्र के २४वें गीत के रूप में ज़ारी किया था। आप इनके ऊर्जावान होने का अंदाज़ा यहाँ से लगा सकते हैं कि यह शुक्रवार आया और इन्हें एक नया गीत तैयार कर लिया। जिसमें फिर से इन्हीं की आवाज़ है। जी हाँ, हम अपने २५ गीत के रूप में हिन्द-युग्म के कवि नाज़िम नक़वी की एक ग़ज़ल 'जिस्म कमाने निकल गया है' रीलिज कर रहे हैं, जिसे संगीतबद्ध किया है ग्वालियर के संगीतकार कुमार आदित्य विक्रम ने और आवाज़ है खुद संगीतकार की। तो चलिए सुनते हैं हिन्द-युग्म का २५वाँ गीत- value="transparent"> (सही उच्चारण के साथ) We are heading towards the end of present session. We have releasing released a fresh song on every

एक आम आदमी जिसने भोजपुरी को बना दिया खास...

भिखारी ठाकुर की जयंती पर हमारी संगीतमयी प्रस्तुति भिखारी ठाकुर एक आम आदमी के सतह से शिखर तक की बेजोड़ मिसाल हैं भिखारी ठाकुर... बहुत कम लोग होते हैं जो जीते-जी विभूति बन जाते हैं... दरअसल, इस भिखारी ठाकुर की जीवन-यात्रा भिखारी से ठाकुर होने की यात्रा ही है...फर्क सिर्फ यह है कि लीजेंड बनने की यह यात्रा भिखारी ने किसी रुपहले पर्दे पर नहीं असल ज़िंदगी में जिया. भोजपुरी के नाम पर सस्ता मनोरंजन परोसने की परंपरा भी उतनी ही पुरानी है, जितना भोजपुरी का इतिहास....18 दिसंबर 1887 को छपरा के कुतुबपुर दियारा गांव में एक निम्नवर्गीय नाई परिवार में जन्म लेने वाले भिखारी ठाकुर ने विमुख होती भोजपुरी संस्कृति को नया जीवन दिया.....उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को सामीजिक सरोकारों के साथ ऐसा पिरोया कि अभिव्यक्ति की एक धारा भिखारी शैली जानी जाने लगी...आज भी सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार का सशक्त मंच बन कर जहाँ-तहाँ भिखारी ठाकुर के नाटकों की गूंज सुनाई पड़ ही जाती है.... value="transparent"> भिखारी ठाकुर के स्वर में उन्हीं की कविता 'डगरिया जोहता ना" . यह काव्यपाठ 'बिदेसिया' फिल्म

हम भूल न जाए उनको, इसलिए कही ये कहानी...

आईये नमन करें उन शहीदों को जो क्रूर आतंकवादियों का सामना करते हुए शहीद हो गए २६ नवम्बर की वह रात कितनी भयावह थी, जब चारों ओर आग बरस रही थी और सम्पूर्ण भारतीय आतंकित और भयभीत था। एक पिता के कानों में पुत्र की करूण पुकार गूँज रही थी और अपने लाल को बचाने के लिए वह दीवार पर सिर पटक रहा था, प्रशासन के सामने गिड़गिड़ा रहा था। कितनी ही माताएँ अपनी गोद उजड़ने का दृश्य अपनी आँखों से देख रही थी। देश-विदेश के अतिथि किंकर्तव्य विमूढ़ थे। । सबकी साँसें रूकी हुई थी। पल-पल की खबर सबकी धड़कनों को तीव्र कर रही थी। आतंकवादियों ने हमारे स्वाभिमान को ठेस लगाई। मानवता पर कलंक लगाया। कुछ लोगों के कुकृत्यों एवं हिंसक योजनाओं ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। वीरों की संतान कहलाने वाले हम सब कितने असहाय,कितने कमजोर और कितने असावधान थे। अपनी सुरक्षा व्यवस्था के सुराग बहुत स्पष्ट दिखाई दिए। देश के नागरिकों ने अपने दायित्वों को भी जाना । सुरक्षा बल अपनी सम्पूर्ण लगाकर भी इसे रोक पाने में असमर्थ था। ऐसे में देश के बलिदानी निकल पड़े जान हथेली पर लेकर। उनकी आँखों में बस एक ही सपना था। देश की सुरक्षा का । उन्होंने माता

तेरे बिना आग ये चांदनी तू आजा...

ग्रेट शो मैन राज कपूर की जयंती पर विशेष १४ दिसम्बर को हमने गीतकार शैलेन्द्र को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया था. गौरतलब ये है कि फ़िल्म जगत में उनके "मेंटर" कहे जाने वाले राज कपूर साहब की जयंती भी इसी दिन पड़ती है. पृथ्वी राज कपूर के एक्टर निर्माता और निर्देशक बेटे रणबीर राज कपूर को फ़िल्म जगत में "ग्रेट शो मैन" के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दी फिल्मों के लिए उनका योगदान अमूल्य है. १९४८ में बतौर अदाकार शुरुआत करने वाले राज कपूर ने मात्र २४ साल की उम्र में मशहूर आर के स्टूडियो की स्थापना की और पहली फ़िल्म बनाई "आग" जिसमें अभिनय भी किया. फ़िल्म की नायिका थी अदाकारा नर्गिस. हालाँकि ये फ़िल्म असफल रही पर नायक के तौर पर उनके काम की तारीफ हुई. नर्गिस के साथ उनकी जोड़ी को प्रसिद्दि मिली १९४९ में आई महबूब खान की फ़िल्म "अंदाज़" से. निर्माता निर्देशक और अदाकार की तिहरी भूमिका में फ़िल्म "बरसात" को मिली जबरदस्त कमियाबी के बाद राज कपूर ने फ़िल्म जगत को एक से बढ़कर एक फिल्में दी और कमियाबी की अनोखी मिसालें कायम की. आईये आज उन्हें याद करें उनकी चंद फिल