स्वरगोष्ठी – 290 में आज
नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 3 : जोहराबाई के स्वर में दीवाली गीत
“आई दीवाली आई दीवाली, दीपक संग नाचे पतंगा...”
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी
श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन
मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम
भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके
कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको
फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार
नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का
समापन हम आगामी 25 दिसम्बर को नौशाद अली के 98वीं जयन्ती के अवसर पर
करेंगे। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के
कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब
कुछ बड़े हुए तो उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ
गए। यहीं निकट ही मुख्य मार्ग लाटूश रोड (वर्तमान गौतम बुद्ध मार्ग) पर
संगीत के वाद्ययंत्र बनाने और बेचने वाली दूकाने थीं। उधर से गुजरते हुए
बालक नौशाद घण्टों दूकान में रखे साज़ों को निहारा करता था। एक बार तो दूकान
के मालिक गुरबत अली ने नौशाद को फटकारा भी, लेकिन नौशाद ने उनसे आग्रह
किया की वे बिना वेतन के दूकान पर रख लें। नौशाद उस दूकान पर रोज बैठते,
साज़ों की झाड़-पोछ करते और दूकान के मालिक का हुक्का तैयार करते। साज़ों की
झाड़-पोछ के दौरान उन्हें कभी-कभी बजाने का मौका भी मिल जाता था। उन दिनों
मूक फिल्मों का युग था। फिल्म प्रदर्शन के दौरान दृश्य के अनुकूल सजीव
संगीत प्रसारित हुआ करता था। लखनऊ के रॉयल सिनेमाघर में फिल्मों के
प्रदर्शन के दौरान एक लद्दन खाँ थे जो हारमोनियम बजाया करते थे। यही लद्दन
खाँ साहब नौशाद के पहले गुरु बने। नौशाद के पिता संगीत के सख्त विरोधी थे,
अतः घर में बिना किसी को बताए सितार नवाज़ युसुफ अली और गायक बब्बन खाँ की
शागिर्दी की। कुछ बड़े हुए तो उस दौर के नाटकों की संगीत मण्डली में भी काम
किया। घर वालों की फटकार बदस्तूर जारी रहा। अन्ततः 1937 में एक दिन घर में
बिना किसी को बताए माया नगरी बम्बई की ओर रुख किया।
लखनऊ
से बम्बई (अब मुम्बई) आने के बाद नौशाद ने पियानो वादक और संगीतकारों के
सहायक के रूप में काम किया। 1939 में स्वतंत्र रूप से पहला गीत फिल्म
‘कंगन’ के लिए स्वरबद्ध किया। इसके बाद स्वतंत्र संगीतकार के तौर पर 1940
में प्रेमनगर, 1941 में माला, दर्शन और स्टेशन मास्टर, 1942 में नई दुनिया
और शारदा, 1943 में कानून, संजोग, नाटक और नमस्ते के संगीत ने लोगों को
लुभाया। 1944 का साल संगीतकार नौशाद के लिए बेहद सफल था। इस वर्ष ‘जेमिनी
पिक्चर्स’ के बैनर तले गीतकार मधोक ने बनाई फिल्म ‘रतन’, जिसके प्रदर्शित
होते ही चारों तरफ़ इसके गीतों की धूम मच गई और नौशाद प्रथम श्रेणी के
संगीतकारों में शामिल हो गए। नौशाद ने इस फ़िल्म में ज़ोहराबाई अम्बालेवाली
से गीत गवाकर चारों तरफ़ तहलका मचा दिया। एम. सादिक़ निर्देशित इस फ़िल्म
के मुख्य कलाकार थे करण दीवान और स्वर्णलता। फ़िल्म में अन्य चर्चित गीतों
के साथ ज़ोहराबाई का गाया “आई दीवाली, आई दीवाली, दीपक संग नाचे पतंगा...” जैसे गीतों में भी राग की सुगन्ध थी।
फिल्म
‘रतन’ में कुल दस गीत थे, जिन्हें मधोक ने लिखे, और मधोक ने ही फ़िल्म के
संवाद भी लिखे। रागों का आधार, उत्तर प्रदेश की लोकधुनें, मधुर
ऑरकेस्ट्रेशन, और ग़ुलाम मोहम्मद की थिरकन भरे तबले और ढोलक के ठेके, कुल
मिलाकर फिल्म संगीत की एक ऐसी शैली का जन्म हुआ जिसे लोगों ने हाथों-हाथ
ग्रहण किया। कहा जाता है कि ‘रतन’ का निर्माण 80,000 रुपये में हुआ था,
जबकि निर्माता को केवल ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड की रॉयल्टी से ही 3,50,000 रुपये
की आमदनी हुई थी। नौशाद अपने परिवार के ख़िलाफ़ जाकर फिल्म संगीत में अपनी
क़िस्मत आज़माने बम्बई गए थे। उनके संगीतकार बन जाने के बाद और सफलता
हासिल कर लेने के बाद भी उनके परिवार में इस कामयाबी को अच्छी निगाहों से
नहीं देखा गया। उन्हीं के शब्दों में एक मज़ेदार क़िस्से का आनन्द लीजिए
यहाँ पर – “माँ का पैग़ाम आया कि शादी के लिए लड़की तय हो गई है, मैं घर
आ जाऊँ। उस वक़्त मैं नौशाद बन चुका था। माँ ने कहा कि लड़की वाले सूफ़ी
लोग हैं, इसलिए उनसे उन्होंने (नौशाद के पिता ने) यह नहीं कहा कि तुम संगीत
का काम करते हो, बल्कि तुम दर्ज़ी का काम करते हो। मैंने मन ही मन सोचा कि
संगीतकार से दर्ज़ी की इज़्ज़त ज़्यादा हो गई है। तो शादी में शामियाना
लगाया गया, और बैण्ड वाले मेरे ही फिल्म के गाने बजाए जा रहे हैं और मैं
दर्ज़ी बना बैठा हूँ।" लीजिए, फिल्म ‘रतन’ से जोहराबाई अम्बालेवाली की आवाज़ में राग भैरवी पर आधारित नौशाद का स्वरबद्ध वह गीत आप भी सुनिए।
राग भैरवी : “आई दीवाली, आई दीवाली,...” : जोहराबाई अम्बालेवाली : फिल्म – रतन
राग
भैरवी के स्वर-समूह अनेक रसों का सृजन करने में समर्थ होते हैं। इनमें
भक्ति और करुण रस प्रमुख हैं। स्वरों के माध्यम से प्रत्येक रस का सृजन
करने में राग भैरवी सर्वाधिक उपयुक्त राग है। संगीतज्ञ इसे ‘सदा सुहागिन
राग’ तथा ‘सदाबहार’ राग के विशेषण से अलंकृत करते हैं। सम्पूर्ण जाति का यह
राग भैरवी थाट का आश्रय राग माना जाता है। राग भैरवी में ऋषभ, गान्धार,
धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी
स्वर शुद्ध मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग भैरवी के आरोह स्वर हैं,
सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां तथा अवरोह
के स्वर, सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒ (कोमल), सा होते
हैं। यूँ तो इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला है,
किन्तु आमतौर पर इसका गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में
किये जाने की परम्परा बन गई है। ‘भारतीय संगीत के विविध रागों का मानव जीवन
पर प्रभाव’ विषय पर अध्ययन और शोध कर रहे लखनऊ के जाने-माने मयूर वीणा और
इसराज वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र से जब मैंने राग भैरवी पर चर्चा की तो
उन्होने स्पष्ट बताया कि भारतीय रागदारी संगीत से राग भैरवी को अलग करने की
कल्पना ही नहीं की जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो मानव जाति प्रातःकालीन
ऊर्जा की प्राप्ति से वंचित हो जाएगी। राग भैरवी मानसिक शान्ति प्रदान करता
है। इसकी अनुपस्थिति से मनुष्य डिप्रेशन, उलझन, तनाव जैसी असामान्य
मनःस्थितियों का शिकार हो सकता है। प्रातःकाल सूर्योदय का परिवेश परमशान्ति
का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में भैरवी के कोमल स्वर- ऋषभ, गान्धार, धैवत
और निषाद, मस्तिष्क की संवेदना तंत्र को सहज ढंग से ग्राह्य होते है। कोमल
स्वर मस्तिष्क में सकारात्मक हारमोन रसों का स्राव करते हैं। इससे मानव
मानसिक और शारीरिक विसंगतियों से मुक्त रहता है। भैरवी के विभिन्न स्वरों
के प्रभाव के विषय में श्री मिश्र ने बताया कि कोमल ऋषभ स्वर करुणा, दया और
संवेदनशीलता का भाव सृजित करने में समर्थ है। कोमल गान्धार स्वर आशा का
भाव, कोमल धैवत जागृति भाव और कोमल निषाद स्फूर्ति का सृजन करने में सक्षम
होता है। भैरवी का शुद्ध मध्यम इन सभी भावों को गाम्भीर्य प्रदान करता है।
धैवत की जागृति को पंचम स्वर सबल बनाता है। इस राग के गायन-वादन का
सर्वाधिक उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। भैरवी के स्वरों की सार्थक
अनुभूति कराने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं, विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे
के स्वर में राग भैरवी में निबद्ध एक नवदुर्गा की स्तुति। इस गीत में देवी
के विविध स्वरूपों का वर्णन भी है। आप दीपावली के पावन पर्व पर इस रचना के
माध्यम से राग भैरवी के भक्तिरस का अनुभव कीजिए और मुझे आज के इस अंक को
यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग भैरवी : "जगज्जननी भवतारिणी मोहिनी तू नवदुर्गा..." : डॉ. प्रभा अत्रे
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 290वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको लगभग सात दशक पुरानी हिन्दी फिल्म के लोकप्रिय गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक का उत्तर सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की चौथी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?
2 – गीत के इस अंश में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गायिका को आवाज़ को पहचान सकते हैं? हमे उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 5 नवम्बर 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 292वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 288 की संगीत पहेली में हमने आपको 1946 में प्रदर्शित फिल्म
‘अनमोल घड़ी’ से एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा
था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले प्रश्न का सही
उत्तर है- राग – पहाड़ी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल - कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका – नूरजहाँ। इस बार की पहेली में हमारे नियमित प्रतिभागियों में से चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर से क्षिति तिवारी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया। उपरोक्त सभी चार विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर सैकड़ों
पाठकों के अनुरोध पर जारी लघु श्रृंखला “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” के
आज के अंक में पुनः आपने राग भैरवी पर आधारित गीत का रसास्वादन किया। इस
श्रृंखला के लिए हमने संगीतकार नौशाद के आरम्भिक दो दशकों की फिल्मों के
गीत चुने हैं। श्रृंखला के आलेख को तैयार करने के लिए हमने फिल्म संगीत के
जाने-माने इतिहासकार और हमारे सहयोगी स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी और लेखक पंकज
राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग लिया है। गीतों के चयन के लिए
हमने अपने पाठकों की फरमाइश का ध्यान रखा है। यदि आप भी किसी राग, गीत अथवा
कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम
आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह
श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले
रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप
सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग भैरवी : SWARGOSHTHI – 290 : RAG BHAIRAVI : 30 अक्तूबर, 2016
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