"मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की...", इस आरती के बहाने जानिए कि ’जय संतोषी माँ’ फ़िल्म की सफलता का वरदान कैसे अभिशाप में बदल गया!
एक गीत सौ कहानियाँ - 94
'मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की ...'
रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 94-वीं कड़ी में आज जानिए 1975 की फ़िल्म ’जय संतोषी माँ’ के मशहूर गीत "मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की..." के बारे में जिसे उषा मंगेशकर ने गाया था। बोल कवि प्रदीप के और संगीत सी. अर्जुन का।
धार्मिक फ़िल्मों की श्रेणी में ’जय संतोषी माँ’ फ़िल्म जैसी अपार सफलता और किसी फ़िल्म ने नहीं पायी।
निर्माता सतराम रोहड़ा |
हुआ यूं कि एक दिन वितरक संदीप सेठी और उनके पार्टनर केदारनाथ अगरवाल एक होटल में बैठ कर रोहड़ा से
निर्देशक विजय शर्मा और लेखक प्रियदर्शी |
रोहड़ा और अगरवाल, दोनों ने इस फ़िल्म की अपार सफलता से प्रसन्न होकर संतोषी माता का मन्दिर बनाने
सी. अर्जुन और कवि प्रदीप |
’जय संतोषी माँ’ फ़िल्म की आरती "मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की" इस फ़िल्म की सर्वाधिक लोकप्रिय
उषा मंगेशकर |
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आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
Comments
bahut bahut shukriya !!!!