एक गीत सौ कहानियाँ - 97
'चार दिनों की जवानी दीवाने पी ले पी ले...'
अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी (बेगम अख़्तर) |
फ़िल्मों का दौर शुरू होते ही अख़्तरीबाई फ़िल्मों में आ गईं। ’ईस्ट इण्डिया
फ़िल्म कंपनी’ में बतौर
सिंगिंग् स्टार दाख़िल हो गईं। वहाँ उनके अभिनय व गायक से
सजी पहली फ़िल्म निकली ’एक दिन का बादशाह’ जो बनी 1933
में। फिर उसके बाद ’नल दमयन्ती’ (1933), ’मुमताज़ बेगम’ (1934), रूप कुमारी’ (1934), ’अमीना’ (1934), ’जवानी का नशा’ (1935), ’नसीब का चक्कर’ (1936) जैसी फ़िल्में आईं। फ़िल्मों में अत्यधिक व्यस्त होने की वजह से संगीत के
प्रति एक तरह से वो अन्याय कर रही थीं। इसलिए 1937-38 में
उन्होंने फ़िल्मों से सन्यास लेकर लखनऊ चली गईं और गायन में पूरा ध्यान लगा दिया।
एक छोटे अरसे के लिए वो रामपुर के नवाब के दरबार में गायिका भी रहीं। उनके फ़िल्मों
का सफ़र अभी ख़त्म नहीं हुआ था। 1941 में अख़्तरीबाई पूना गईं
एक स्टेज शो के लिए। उस शो में निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान और संगीतकार अनिल
बिस्वास भी ऑडिएन्स में बैठे उनका गायन सुन रहे थे। दरसल वो वहाँ अख़्तरीबाई को
अपनी अगली फ़िल्म ’रोटी’ में गवाने के लिए राज़ी करवाने के उद्येश्य से ही आए थे। बात
कुछ यूं हुई कि जब महबूब साहब ने अनिल दा को आकर कहा कि ’रोटी’ के गीत सरदार अख़्तर
गायेंगी, तब अनिल दा ने साफ़-साफ़ कह दिया कि फिर गाने वैसे ही बनेंगे। महबूब साहब
चिढ़ कर बोले कि क्या तुझे अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी चाहिए? अनिल दा ने साफ़ जवाब दिया कि
मँगवा दे! इस तरह से दोनों पहुँच गए पूना। उन दिनों रामपुर के नवाब उनसे निकाह
करना चाहते थे, पर अख़्तरीबाई को शादी के बन्धनों में नहीं बंधना था। इसलिए महबूब
के ’रोटी’ के प्रस्ताव को पाकर बम्बई स्थानान्तरित होने का फ़ैसला लिया। 1942 में प्रदर्शित ’रोटी’ अख़्तरीबाई की बतौर अभिनेत्री अन्तिम हिन्दी फ़िल्म साबित
हुई।
अनिल बिस्वास |
’रोटी’ में बेगम अख़्तर यानी अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी के गाए छह गीत थे। इस फ़िल्म
में अख़्तरीबाई के साथ चन्द्रमोहन, शेख मुख़्तार अशरफ़ ख़ान और सितारा देवी ने मुख्य
किरदारों में अभिनय किया। अफ़सोस की बात यह था कि जब यह फ़िल्म रिलीज़ होने ही वाली
थी तब मेगाफ़ोन रेकॉर्डिंग् कंपनी ने उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर दिया क्योंकि उनके
साथ उनका कॉनट्रैक्ट था। अदालत ने फ़िल्म पर रोक लगा दी, और फ़िल्म तभी जारी हो सकी
जब उनके गाए सभी गीतों को फ़िल्म से हटा दिया गया। बाद में मेगाफ़ोन ने ही इन छह
गीतों का 78 RPM रेकॉर्ड जारी किया। “चार दिन की
जवानी...” गीत एक पार्टी गीत है जिसे अख़्तरीबाई फ़िल्म के किरदार के अनुरूप गाती
हैं। इस फ़िल्म में उनके गाए छह गीतों में चार ग़ज़लें हैं जिनमें अनिल बिसवास से
ज़्यादा उनकी ख़ुद की पहचान दिखती है। पर बाक़ी के दो गीत फ़िल्मी शैली के गीत हैं, और
आज का प्रस्तुत गीत इन्हीं में से एक है। आप भी सुनिए और आनन्द लीजिए अख्तरीबाई
फ़ैज़ाबादी उर्फ़ बेगम अख़्तर के गाए इस बिल्कुल ही अलग अन्दाज़ के गीत का।
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आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
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