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विदुषी गिरिजा देवी |
भारतीय
संगीत की प्रत्येक विधाओं में वर्षा ऋतु के गीत-संगीत उपस्थित हैं। लोक
संगीत के क्षेत्र में कजरी एक सशक्त विधा है। भारतीय पंचांग के अनुसार आषाढ़
मास से लेकर आश्विन मास तक पूरे चार महीने उत्तर प्रदेश के ब्रज,
बुन्देलखण्ड, अवध और पूरे पूर्वांचल और बिहार के प्रायः सभी हिस्से में
कजरी गीतों की धूम मची रहती है। मूल रूप से कजरी लोक-संगीत की विधा है,
किन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में जब बनारस (अब वाराणसी) के
संगीतकारों ने ठुमरी को एक शैली के रूप में अपनाया, उसके पहले से ही कजरी
परम्परागत लोकशैली के रूप विद्यमान रही। उपशास्त्रीय संगीत के रूप में अपना
लिये जाने पर कजरी, ठुमरी का एक अटूट हिस्सा बनी। इस प्रकार कजरी के मूल
लोक-संगीत का स्वररोप और ठुमरी के साथ रागदारी संगीत का हिस्सा बने स्वररोप
का समानान्तर विकास हुआ। अगले अंक में हमारी चर्चा का विषय कजरी का
लोक-स्वरूप होगा, किन्तु आज के अंक में हम आपसे कजरी के रागदारी संगीत के
कलासाधकों द्वारा अपनाए गए स्वरूप पर चर्चा करेंगे।
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पण्डित रवि किचलू |
पिछली कुछ शताब्दी से काशी अथवा वाराणसी प्रमुख संगीतज्ञों का गढ़ रहा है। इन्हीं में से एक महान संगीतज्ञ थे, पण्डित बड़े रामदास जी। आज के अंक में हम इन्हीं बड़े रामदास जी की एक कजरी रचना को तीन विभिन्न वरिष्ठ कलाकारों की आवाज में प्रस्तुत करेंगे। भारतीय
लोक-संगीत के समृद्ध भण्डार में कुछ ऐसी संगीत शैलियाँ हैं, जिनका विस्तार
क्षेत्रीयता की सीमा से बाहर निकल कर, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर
पर हुआ है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी और मीरजापुर जनपद तथा उसके आसपास के
पूरे पूर्वाञ्चल क्षेत्र में कजरी गीतों की बहुलता है। वर्षा ऋतु के परिवेश
और इस मौसम में उपजने वाली मानवीय संवेदनाओं की अभियक्ति में कजरी गीत
पूर्ण समर्थ लोक-शैली है। शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के कलासाधकों
द्वारा इस लोक-शैली को अपना लिये जाने से कजरी गीत आज
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर सुशोभित है। आज की संगोष्ठी का
प्रारम्भ हम विश्वविख्यात गायिका विदुषी गिरिजा देवी की गायी, वर्षा ऋतु के
रस-रंग से अभिसिंचित एक कजरी से करते है। यह प्रस्तुति युगल गीत रूप में
है, जिसमें विदुषी गिरिजा देवी के साथ गायक रवि किचलू की आवाज़ भी है।
कजरी : ‘बरसन लागी बदरिया रूम झूम के...’ : विदुषी गिरिजा देवी और पण्डित रवि किचलू
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पण्डित छन्नूलाल मिश्र |
मूलतः
लोक-परम्परा से विकसित कजरी आज गाँव के चौपाल से लेकर प्रतिष्ठित
शास्त्रीय मंचों पर सुशोभित है। कजरी-गायकी को ऊँचाई पर पहुँचाने में अनेक
लोक-कवियों, साहित्यकारों और संगीतज्ञों का स्तुत्य योगदान है। कजरी गीतों
की प्राचीनता पर विचार करते समय जो सबसे पहला उदाहरण हमें उपलब्ध है, वह
है- तेरहवीं शताब्दी में हज़रत अमीर खुसरो रचित कजरी-‘अम्मा मोरे बाबा को
भेजो जी कि सावन आया...’। अन्तिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की एक रचना-
‘झूला किन डारो रे अमरैया...’, आज भी गायी जाती है। कजरी को समृद्ध करने
में कवियों और संगीतज्ञों योगदान रहा है। भोजपुरी के सन्त कवि लक्ष्मीसखि,
रसिक किशोरी, शायर सैयद अली मुहम्मद ‘शाद’, हिन्दी के कवि अम्बिकादत्त
व्यास, श्रीधर पाठक, द्विज बलदेव, बदरीनारायण उपाध्याय ‘प्रेमधन’ की कजरी
रचनाएँ उच्चकोटि की हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने तो ब्रज, भोजपुरी के
अलावा संस्कृत में भी कजरियों की रचना की है। भारतेन्दु की कजरियाँ विदुषी
गिरिजा देवी आज भी गाती हैं। आज के अंक में जो कजरी हम प्रस्तुत कर रहे
हैं, उसे बनारस घराने के विद्वान पण्डित बड़े रामदास ने रचा है। विदुषी
गिरिजा देवी और पण्डित रवि किचलू के युगल स्वरों में आपने बड़े रामदास की
रचना का रसास्वादन किया है। यही कजरी अब आप वर्तमान में विख्यात गायक
पण्डित छन्नूलाल मिश्र से सुनिए।
कजरी : ‘बरसन लागी बदरिया रूम झूम के...’ : पण्डित छन्नूलाल मिश्र
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पण्डित विद्याधर मिश्र |
कवियों
और शायरों के अलावा कजरी को प्रतिष्ठित करने में अनेक संगीतज्ञों की
स्तुत्य भूमिका रही है। वाराणसी की संगीत परम्परा में बड़े रामदास जी का नाम
पूरे आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होने भी अनेक कजरियों की रचना
की थी। अब हम आपको बड़े रामदास जी द्वारा रचित उसी कजरी का एक बार फिर
रसास्वादन कराते है। इस कजरी को उन्हीं के प्रपौत्र और गायक पण्डित
विद्याधर मिश्र प्रस्तुत कर रहे हैं। विद्याधर जी बनारस घराने के
सुप्रसिद्ध विद्वान, बड़े रामदास जी के पौत्र और भातखण्डे संगीत
विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर पण्डित गणेशप्रसाद मिश्र के पुत्र हैं और
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। अब आप पण्डित विद्याधर मिश्र से
दादरा ताल में निबद्ध अपने प्रपितामह बड़े रामदास की यह कजरी सुनिए। इस कजरी
में आपको राग देस के साथ ही अन्य रागों की झलक भी मिलेगी आप यह कजरी सुनिए
और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
कजरी : ‘बरसन लागी बदरिया रूम झूम के...’ : पण्डित विद्याधर मिश्र
‘स्वरगोष्ठी’
के 286वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको भारतीय वाद्य संगीत की एक
रचना अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो
प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 290वें अंक के उत्तर सम्पन्न
होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की चौथी
श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह कौन सा वाद्य है? वाद्य का नाम बताइए।
2 – संगीत के इस अंश में प्रयोग किये गए ताल या तालों के नाम बताइए।
3 – वाद्य संगीत के वादक को पहचानिए और हमे उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल
swargoshthi@gmail.com या
radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें
शनिवार, 8 अक्तूबर, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए।
COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 288वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए
COMMENTS के माध्यम से तथा
swargoshthi@gmail.com अथवा
radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 284 की संगीत पहेली में हमने आपको 1976 में प्रदर्शित फिल्म ‘शक’
से लिये गए एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था।
आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले प्रश्न का सही उत्तर
है- राग जयन्त अथवा जयन्ती मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका – आशा भोसले।
इस बार की पहेली में हमारी नियमित प्रतिभागियों में से हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर से क्षिति तिवारी ने तीनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये हैं। तीन में से दो प्रश्नों के सही उत्तर दिये हैं, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल। इन सभी को दो-दो अंक मिलते हैं। वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया
का तीन में से केवल एक उत्तर ही सही रहा, उन्हें केवल एक अंक ही अंक
मिलेगा। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई।
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु
श्रृंखला ‘पावस ऋतु के राग’ जारी है। आज के अंक में आपको लोक संगीत कजरी के
उपशास्त्रीय स्वरूप के दर्शन हुए। अगले अंक में आपका साक्षात्कार कजरी गीत
के लोक व अन्य स्वरूप से होगा। इस श्रृंखला के लिए यदि आप किसी राग, गीत
अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें।
हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह
श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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