स्वरगोष्ठी – 288 में आज
नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 1 : सहगल ने गाया यह गीत
“जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे...”
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से शुरू
हो रही हमारी नई श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” में मैं
कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला
में हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और
उनके कृतित्व पर चर्चा करेंगे। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको
फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार
नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला का समापन हम
आगामी 25 दिसम्बर को नौशाद अली के 98वीं जयन्ती के अवसर पर करेंगे। 25
दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार
में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो
उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए। यहीं निकट
ही मुख्य मार्ग लाटूश रोड (वर्तमान गौतम बुद्ध मार्ग) पर संगीत के
वाद्ययंत्र बनाने और बेचने वाली दूकाने थीं। उधर से गुजरते हुए बालक नौशाद
घण्टों दूकान में रखे साज़ों को निहारा करते थे। एक बार तो दूकान के मालिक
गुरबत अली ने नौशाद को फटकारा भी, लेकिन नौशाद ने उनसे आग्रह किया की वे
बिना वेतन के दूकान पर रख लें। नौशाद उस दूकान पर रोज बैठने लगे। वहाँ वह
साज़ों की झाड़-पोछ करते और दूकान के मालिक का हुक्का तैयार करते। साज़ों की
झाड़-पोछ के दौरान उन्हें कभी-कभी बजाने का मौका भी मिल जाता था। उन दिनों
मूक फिल्मों का युग था। फिल्म प्रदर्शन के दौरान दृश्य के अनुकूल सजीव
संगीत प्रसारित हुआ करता था। लखनऊ के रॉयल सिनेमाघर में फिल्मों के
प्रदर्शन के दौरान एक लद्दन खाँ थे जो हारमोनियम बजाया करते थे। यही लद्दन
खाँ साहब नौशाद के पहले गुरु बने। नौशाद के पिता संगीत के सख्त विरोधी थे,
अतः घर में बिना किसी को बताए सितार नवाज़ युसुफ अली और गायक बब्बन खाँ की
शागिर्दी की। कुछ बड़े हुए तो उस दौर के नाटकों की संगीत मण्डली में भी काम
किया। घर वालों की फटकार बदस्तूर जारी रहा। अन्ततः 1937 में एक दिन घर में
बिना किसी को बताए माया नगरी बम्बई की ओर रुख किया।
घर
से भाग कर नौशाद बम्बई (अब मुम्बई) पहुँचे। कुछ समय तक भटकते रहे। एक दिन
न्यू पिक्चर कम्पनी में संगीत वादकों के चयन के लिए प्रकाशित विज्ञापन के
आधार पर नौशाद बड़ी उम्मीद लेकर ग्राण्ट रोड स्थित कम्पनी के कार्यालय
पहुँचे। वहाँ उस समय के जाने-माने संगीतकार उस्ताद झण्डे खाँ वादकों का
इण्टरव्यू ले रहे थे। नौशाद ने भी खाँ साहब को कुछ सुनाया। उन्होने बाद में
आने को कह कर नौशाद को रुखसत किया। उसी इण्टरव्यू में नौशाद की भेंट गुलाम
मोहम्मद से हुई, जो आगे चलकर पहले उनके सहायक बने और फिर बाद में स्वतंत्र
संगीतकार भी हुए। बहरहाल, उस्ताद झण्डे खाँ ने नौशाद को पियानो वादक के
रूप में चालीस रुपये और गुलाम मोहम्मद को तबला व ढोलक वादक के रूप में साठ
रुपये मासिक वेतन पर रख लिया। और इस तरह नौशाद का प्रवेश फिल्म संगीत के
क्षेत्र में हुआ।
अब
हम आपको नौशाद के फिल्मी सफर के पहले दशक का संगीतबद्ध किया एक
महत्त्वपूर्ण गीत सुनवाते हैं। यह गीत हमने 1946 में प्रदर्शित फिल्म
‘शाहजहाँ’ से लिया है। फिल्म के नायक और गायक कुन्दनलाल सहगल थे। कई अर्थों
में यह फिल्म भारतीय फिल्म इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से अंकित
है। इस फिल्म का गीत- ‘जब दिल ही टूट गया...’ सहगल का अन्तिम गीत सिद्ध
हुआ। इसी गीत के गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी की यह पहली फिल्म थी। इसी गीत को
नौशाद ने सहगल से आग्रह कर दो बार, एक बार बिना शराब पिये और फिर दोबारा
शराब पीने के बाद रिकार्ड कराया और उन्हें यह एहसास कराया कि बिना पिये वे
बेहतर गाते हैं। बहरहाल, आइए हम आपको सहगल का गाया और नौशाद का संगीतबद्ध
किया फिल्म ‘शाहजहाँ’ का वही गीत सुनवाते हैं जो राग भैरवी पर आधारित है।
इस गीत में राग के स्वर के माध्यम से करुणा भाव स्पष्ट रूप से झलकते हैं।
राग भैरवी : “जब दिल ही टूट गया...” : कुन्दनलाल सहगल : फिल्म – शाहजहाँ
अभी
आपने जो गीत सुना, उसमें राग भैरवी के स्वर लगे हैं। स्वरों के माध्यम से
प्रत्येक रस का सृजन करने में राग भैरवी सर्वाधिक उपयुक्त राग है। संगीतज्ञ
इसे ‘सदा सुहागिन राग’ तथा ‘सदाबहार’ राग के विशेषण से अलंकृत करते हैं।
सम्पूर्ण जाति का यह राग भैरवी थाट का आश्रय राग माना जाता है। राग भैरवी
में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है।
इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग भैरवी के आरोह
स्वर हैं, सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां
तथा अवरोह के स्वर, सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒
(कोमल), सा होते हैं। यूँ तो इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल,
सन्धिप्रकाश बेला है, किन्तु आमतौर पर इसका गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा
समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। ‘भारतीय संगीत के विविध
रागों का मानव जीवन पर प्रभाव’ विषय पर अध्ययन और शोध कर रहे लखनऊ के
जाने-माने मयूर वीणा और इसराज वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र से जब मैंने राग
भैरवी पर चर्चा की तो उन्होने स्पष्ट बताया कि भारतीय रागदारी संगीत से
राग भैरवी को अलग करने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो
मानव जाति प्रातःकालीन ऊर्जा की प्राप्ति से वंचित हो जाएगी। राग भैरवी
मानसिक शान्ति प्रदान करता है। इसकी अनुपस्थिति से मनुष्य डिप्रेशन, उलझन,
तनाव जैसी असामान्य मनःस्थितियों का शिकार हो सकता है। प्रातःकाल सूर्योदय
का परिवेश परमशान्ति का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में भैरवी के कोमल स्वर-
ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद, मस्तिष्क की संवेदना तंत्र को सहज ढंग से
ग्राह्य होते है। कोमल स्वर मस्तिष्क में सकारात्मक हारमोन रसों का स्राव
करते हैं। इससे मानव मानसिक और शारीरिक विसंगतियों से मुक्त रहता है। भैरवी
के विभिन्न स्वरों के प्रभाव के विषय में श्री मिश्र ने बताया कि कोमल ऋषभ
स्वर करुणा, दया और संवेदनशीलता का भाव सृजित करने में समर्थ है। कोमल
गान्धार स्वर आशा का भाव, कोमल धैवत जागृति भाव और कोमल निषाद स्फूर्ति का
सृजन करने में सक्षम होता है। भैरवी का शुद्ध मध्यम इन सभी भावों को
गाम्भीर्य प्रदान करता है। धैवत की जागृति को पंचम स्वर सबल बनाता है। इस
राग के गायन-वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। भैरवी के
स्वरों की सार्थक अनुभूति कराने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं, रामपुर,
सहसवान घराने की गायकी के संवाहक उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में राग भैरवी
में निबद्ध एक वंदना गीत। ऐसी मान्यता है कि इस गीत की रचना संगीत सम्राट
तानसेन ने की थी। आप इस रचना के माध्यम से राग भैरवी के भक्तिरस का अनुभव
कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग भैरवी : "जय शारदा भवानी भारती..." : उस्ताद राशिद खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 288वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको सात दशक पुरानी हिन्दी फिल्म
के लोकप्रिय गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन
में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 290वें
अंक के उत्तर सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें
इस वर्ष की चौथी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?
2 – गीत के इस अंश में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गायिका को पहचान सकते हैं? हमे उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 22 अक्तूबर, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 290वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई
जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका
इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 286 की संगीत पहेली में हमने आपको उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और
साथियों द्वारा शहनाई पर प्रस्तुत कजरी वादन का अंश सुनवा कर आपसे तीन
प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- वाद्य – शहनाई, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल - दादरा औए कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- वादक – उस्ताद बिसमिल्लाह खाँ औए साथी।
इस बार की पहेली में हमारी नियमित प्रतिभागियों में से पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर से क्षिति तिवारी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने सही उत्तर दिये हैं। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर अपने
सैकड़ों पाठकों के अनुरोध पर आज से एक नई लघु श्रृंखला “नौशाद के गीतों में
राग-दर्शन” आरम्भ किया है। इस श्रृंखला के लिए हमने संगीतकार नौशाद के
आरम्भिक दो दशकों की फिल्मों के गीत चुने हैं। श्रृंखला के आलेख को तैयार
करने के लिए हमने फिल्म संगीत के जाने-माने इतिहासकार और हमारे सहयोगी
स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का
सहयोग लिया है। गीतों के चयन के लिए हमने अपने पाठकों की फरमाइश का ध्यान
रखा है। यदि आप भी किसी राग, गीत अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना
आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव
प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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