स्वरगोष्ठी – 267 में आज
होली और चैती के रंग – 5 : कुछ पुरानी चैती
‘यही ठइयाँ मोतिया हेराय गइलें रामा कहवाँ मैं ढूँढू ...’
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी
श्रृंखला – ‘होली और चैती के रंग’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र
आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस
श्रृंखला में हम ऋतु के अनुकूल भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों और रचनाओं की
चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें ग्रीष्मऋतु के शुरुआती परिवेश में गाने-बजाने
की परम्परा है। भारतीय समाज में अधिकतर उत्सव और पर्वों का निर्धारण ऋतु
परिवर्तन के साथ होता है। शीत और ग्रीष्म ऋतु की सन्धिबेला में मनाया जाने
वाला पर्व- होलिकोत्सव और चैत्रोत्सव प्रकारान्तर से पूरे देश में आयोजित
होता है। यह उल्लास और उमंग का, रस और रंगों का, गायन-वादन और नर्तन का
पर्व है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग
उपशास्त्रीय संगीत में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले
चैत्र से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में पूरे उत्तर भारत
में चैती-गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में,
मन्दिरों में, यहाँ तक कि शास्त्रीय संगीत के मंचों पर भी चैती के स्वर
गूँजने लगते हैं। पिछले अंक में हमने चैती लोक संगीत का उपशास्त्रीय
कलाकारों द्वारा प्रस्तुतीकरण किया था। आज के अंक में हम चैती गीतों की कुछ
प्राचीन गायकी का रसास्वादन आपको कराएंगे। आज हम आपको चैती गीत की एक
शताब्दी से अधिक प्राचीन गायकी का अनुभव अपने समय की सुप्रसिद्ध गायिका
अच्छन बाई के स्वरों से कराएंगे। इसके अलावा लगभग छः दशक पूर्व बुजुर्गों
से सुनी चैती, उपशास्त्रीय गायिका निर्मला देवी से और 1963-64 में बनी
भोजपुरी फिल्म ‘बिदेशिया’ में शामिल एक चैती गीत भी पार्श्वगायिका सुमन
कल्याणपुर की आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं।
शास्त्रीय,
उपशास्त्रीय, लोक और फिल्म संगीत की चर्चाओं पर केन्द्रित हमारी-आपकी इस
अन्तरंग साप्ताहिक गोष्ठी में आज हम पुनः चैती गीतों पर चर्चा करेंगे। अपने
पिछले अंक से हमने शास्त्रीय और उपशास्त्रीय कलाकारों की स्वरों में चैत्र
मास में गायी जाने वाली लोक संगीत की शैली ‘चैती’ प्रस्तुत की थी। यूँ तो
चैती लोक संगीत की शैली है, किन्तु ठुमरी अंग में ढल कर यह और भी रसपूर्ण
हो जाती है। आज हम आपसे पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड और फिल्मों में चैती के
प्रयोग पर चर्चा कर रहे हैं। भारत में ग्रामोफोन रिकार्ड के निर्माण का
आरम्भ 1902 से हुआ था। पहले ग्रामोफोन रिकार्ड में उस समय की मशहूर गायिका
गौहर जान की आवाज़ थी। संगीत की रिकार्डिंग के प्रारम्भिक दौर में ग्रामोफोन
कम्पनी को बड़ी कठिनाई से गायिकाएँ उपलब्ध हो पातीं थीं। प्रारम्भ में
व्यावसायिक गायिकाएँ ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती आदि रिकार्ड कराती थीं। 1902
से गौहर जान ने जो सिलसिला आरम्भ किया था, 1910 तक लगभग पाँच सौ
व्यावसायिक गायिकाओं ने अपनी आवाज़ रिकार्ड कराई। इन्हीं में एक किशोर आयु
की गायिका अच्छन बाई भी थीं, जिनके गीत 1908 में ग्रामोफोन कम्पनी ने
रिकार्ड किये थे। अच्छन बाई के रिकार्ड की उन दिनों धूम मच गई थी। उस दौर
में अच्छन बाई के स्वर में बने रिकार्ड में से आज मात्र तीन रिकार्ड उपलब्ध
हैं, जिनसे उनकी गायन-प्रतिभा का सहज ही अनुभव हो जाता है। इन तीन रिकार्ड
में से एक में अच्छन बाई ने पुराने अंदाज़ की मोहक चैती गायी थी। आज हम
आपको एक शताब्दी से अधिक पुरानी शैली की उसी चैती का रसास्वादन कराते हैं।
गायिका ने चैती के एक अन्तरे में उर्दू के शे’र भी कहे हैं।
प्राचीन चैती : ‘कौने बनवा रे फूलेला...’ : स्वर – अच्छन बाई
यह मान्यता है की प्रकृतिजनित, नैसर्गिक रूप से लोक कलाएँ पहले उपजीं, परम्परागत रूप में उनका क्रमिक विकास हुआ और अपनी उच्चतम गुणवत्ता के कारण ये शास्त्रीय रूप में ढल गईं। प्रदर्शनकारी कलाओं पर भरतमुनि प्रवर्तित ग्रन्थ 'नाट्यशास्त्र' को पंचमवेद माना जाता है। नाट्यशास्त्र के प्रथम भाग, पंचम अध्याय के श्लोक संख्या 57 में ग्रन्थकार ने स्वीकार किया है कि लोक जीवन में उपस्थित तत्वों को नियमों में बाँध कर ही शास्त्र प्रवर्तित होता है। श्लोक का अर्थ है कि इस चर-अचर में उपस्थित जो भी दृश्य-अदृश्य विधाएँ, शिल्प, गतियाँ और चेष्टाएँ हैं, वह सब शास्त्र रचना के मूल तत्त्व हैं।" चैती गीतों के लोकरंजक-स्वरुप तथा स्वर और ताल पक्ष के चुम्बकीय गुण के कारण ही उपशास्त्रीय संगीत में यह स्थान पा सका। लोक परम्परा में चैती 14 मात्रा के चाँचर ताल में गायी जाती है, जिसके बीच-बीच में कहरवा ताल का प्रयोग होता है। पूरब अंग के बोल-बनाव की ठुमरी भी 14 मात्रा के दीपचन्दी ताल में निबद्ध होती है और गीत के अन्तिम हिस्से में कहरवा की लग्गी का प्रयोग होता है। सम्भवतः चैती के इन्हीं गुणों ने ही उपशास्त्रीय गायक-वादकों को इसके प्रति आकर्षित किया होगा। आइए अब हम आपको एक ऐसी चैती सुनवाते हैं, जिसे फिल्म जगत से जुड़ी अपने समय की सुप्रसिद्ध उपशास्त्रीय गायिका निर्मला देवी ने स्वर दिया है। निर्मला देवी ने उपशास्त्रीय मंचों पर ही नहीं बल्कि फिल्मी पार्श्वगायन के क्षेत्र में भी खूब यश प्राप्त किया था। आज के विख्यात फिल्म अभिनेता गोविन्दा गायिका निर्मला देवी और अरुण आहूजा के सुपुत्र हैं। उनकी गायी इस चैती में आपको लोक और शास्त्रीय, दोनों रंग की अनुभूति होगी।
चैती गीत : ‘यही ठइयाँ मोतिया हेरा गइल रामा...’ : गायिका निर्मला देवी
सुमन कल्याणपुर |
फिल्म – बिदेशिया : 'बनि जईहों बन के जोगिनियाँ हो रामा...' : स्वर – सुमन कल्याणपुर
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 267वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको राग आधारित फिल्मी गीत का एक
अंश सुनवा रहे हैं। इस गीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 270वें अंक की
पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें
इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इस गीत में किस राग का आभास हो रहा है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत के गायक की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 30 अप्रैल, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 269वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 265 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म
‘गोदान’ से चैती गीत शैली पर आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे
तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली
के पहले प्रश्न में हमने हमेशा पूछे जाने ‘राग’ के स्थान पर गीत की ‘शैली’
के बारे में सवाल किया था। दो प्रतिभागियों को छोड़ कर सभी ने इस प्रश्न के
उत्तर में ‘राग – तिलक कामोद’ लिखा है। वास्तव में राग के सवाल पर यह
उत्तर सही है, परन्तु शैली के सवाल पर यह गलत है। पहेली के सभी
प्रतिभागियों से अनुरोध है कि प्रश्न को खूब ध्यान से पढ़ा करें। इस पहेली
के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- शैली – चैती, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – दीपचंदी और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायक – मुकेश।
इस
बार की संगीत पहेली में दो प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों का, दो
प्रतिभागियों ने तीन में से दो सही उत्तर देकर और एक प्रतिभागी ने एक सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं। ये विजेता हैं - पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, और चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल ने दो-दो अंक अर्जित किए है। हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने इस बार मात्र एक अंक अर्जित किया है। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप पर्व
और ऋतु के अनुकूल श्रृंखला ‘होली और चैती के रंग’ का रसास्वादन कर रहे थे।
श्रृंखला का यह समापन अंक था। अगले अंक से हम अनेक संगीत-प्रेमियों के
आग्रह पर फिल्म संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर एक नई श्रृंखला
आरम्भ कर रहे हैं। हमे पूर्ण विश्वास है कि आप सब संगीत-प्रेमी इस नई
श्रृंखला का स्वागत करेंगे। आप भी अपने विचार, सुझाव और फरमाइश हमें भेज
सकते हैं। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको
हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को नई
श्रृंखला के एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप
सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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