स्वरगोष्ठी – 266 में आज
होली और चैती के रंग – 4 : चैती गीतों के वर्ण्य-विषय
‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...’
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आज
हम आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा कर रहे हैं जो मूलतः ऋतु प्रधान
लोक संगीत की शैली है, किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को
उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई
ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया
जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का
आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव
की चौपालों से लेकर मेलों में, मन्दिरों में, यहाँ तक कि विविध शास्त्रीय
मंचों पर भी चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। उत्तर भारत में इस गीत के
प्रकारों को चैती, चैता और घाटो के नाम से जाना जाता है। चैती गीतों की
प्रकृति-प्रेरित धुनें, इनका श्रृंगार रस से ओतप्रोत साहित्य और चाँचर ताल
के स्पन्दन में निबद्ध होने के कारण यह लोक गायकों के साथ-साथ उपशास्त्रीय
गायक-वादकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है। आज के अंक में हम सबसे पहले
चैती गीतों के उपशास्त्रीय स्वरूप और फिर फिल्मों में इसके प्रयोग के कुछ
उदाहरण सुनेंगे।
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चैती गीत : ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा...’ : विदुषी गिरिजा देवी
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चैती : ‘कइसे सजन घर जइबे हो रामा...’ : स्वर – पण्डित छन्नूलाल मिश्र
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चैती गीत : ‘हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा...’ : फिल्म गोदान : मुकेश
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 266वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको भोजपुरी भाषा की एक पुरानी
फिल्म से लिये गए गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित
तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 270वें
अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक
होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया
जाएगा।
1 – गीत के इस अंश में कौन सी दो तालों का प्रयोग हुआ है? तालों के नाम बताइए।
2 – उपरोक्त तालों में मात्राओं की संख्या बताइए।
3 – क्या आप गीत की गायिका का नाम हमे बता सकते हैं? इस गायिका ने हिन्दी फिल्मों में अनेक सफल गीत गाये हैं।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 23 अप्रैल, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 268वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 264 की संगीत पहेली में हमने आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म
‘गोदान’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था।
आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न
का सही उत्तर है- राग – काफी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- मुख्य गायक – मोहम्मद रफी।
इस बार की पहेली में कुल पाँच प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया है। हमारे नियमित प्रतिभागी विजेता हैं- चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी
श्रृंखला ‘होली और चैती के रंग’ का रसास्वादन कर रहे हैं। श्रृंखला के इस
अंक में हमने आपसे चैती गीतों पर चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ
के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम
उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप
भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का
हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल
अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नई श्रृंखला के नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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