यद्यपि
होली विषयक रचनाएँ राग काफी के अलावा अन्य रागों में भी मिलते हैं, किन्तु
राग काफी के स्वरसमूह इस पर्व के उल्लास से परिपूर्ण परिवेश का चित्रण
करने में सर्वाधिक समर्थ होते हैं। अब हम आपको राग काफी की एक होरी ठुमरी
सुनवाते हैं। इसे प्रस्तुत किया है देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान
‘भारतरत्न’ से अलंकृत पण्डित भीमसेन जोशी ने। सात दशक तक भारतीय संगीताकाश
पर छाए रहने वाले पण्डित भीमसेन जोशी का भारतीय संगीत की विविध विधाओं-
ध्रुवपद, खयाल, तराना, ठुमरी, भजन, अभंग आदि सभी पर समान अधिकार था। उनकी
खरज भरी आवाज़ का श्रोताओं पर जादुई असर होता था। बन्दिश को वे जिस माधुर्य
के साथ बढ़त देते थे, उसे केवल अनुभव ही किया जा सकता है। तानें तो उनके
कण्ठ में दासी बन कर विचरती थी। संगीत-जगत के सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित
होने के बावजूद स्वयं अपने बारे में बातचीत करने के मामले में वे संकोची
रहे। आइए भारत के इस अनमोल रत्न की आवाज़ में राग काफी की यह होरी ठुमरी। इस
रचना के माध्यम से ब्रज की होली का यथार्थ स्वर-चित्र उपस्थित हो जाता है।
आप रस-रंग से भीगी यह होरी ठुमरी सुनिए।
राग मिश्र काफी : ठुमरी होरी : ‘होरी खेलत नन्दकुमार...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
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भारतीय
संगीत की शैलियों में होली विषयक अधिक़तर रचनाएँ राग काफी में मिलती हैं।
परन्तु आज के अंक में हम राग काफी के अलावा अन्य रागों में निबद्ध होली की
रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। पिछले अंक में आपने राग केदार में निबद्ध धमार
रचना का आनन्द लिया था। अब हम आपको राग सोहनी में पिरोयी गई एक विशेष होली
गीत का रसास्वादन करा रहे है। इसे प्रस्तुत कर रहे है, भारतीय संगीत में
शीर्षस्थ पयोगधर्मी संगीतज्ञ पण्डित कुमार गन्धर्व थे। उनके स्वर में राग
सोहनी में निबद्ध एक मनमोहक होली गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। राग सोहनी का
वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गान्धार होता है। धैवत पीड़ा की अभिव्यक्ति
करने में समर्थ होता है। ‘नी सां रें (कोमल) सां’ की स्वर संगति से तीव्र
पुकार का वातावरण निर्मित होता है। संवादी गान्धार कुछ देर के लिए इस
उत्तेजना को शान्त कर सुकून देता है। वास्तव में वादी और संवादी स्वर राग
के प्राणतत्त्व होते हैं, जिनसे रागों के भावों का सृजन होता है। रात्रि के
तीसरे प्रहर में राग सोहनी के भाव अधिक स्पष्ट होते हैं। इस राग में मींड़
एवं गमक को कसे हुए ढंग से मध्यलय में प्रस्तुत करने से राग का भाव अधिक
मुखरित होता है। राग सोहनी के स्वरूप का स्पष्ट अनुभव करने के लिए अब आप इस
राग में निबद्ध एक होली रचना सुनिए, जिसे पण्डित कुमार गन्धर्व ने
प्रस्तुत किया है। पण्डित कुमार गन्धर्व भारतीय संगीत की एक नई प्रवृत्ति
और नई प्रक्रिया के पहले कलासाधक थे। घरानों की पारम्परिक गायकी की अनेक
शताब्दी पुरानी जो प्रथा थी, उसमें संगीत तो जीवित रहता था, किन्तु
संगीतकार के व्यक्तित्व और प्रतिभा का विसर्जन हो जाता था। कुमार जी ने
पारम्परिक संगीत के कठोर अनुशासन के अन्तर्गत कलासाधक की सम्भावना को
स्थापित किया। कुमार गन्धर्व ने जब संगीत जगत में पदार्पण किया, तब भारतीय
संगीत दरबारी जड़ता से प्रभावित था। कुमार गन्धर्व पूर्ण निष्ठा और
स्वर-संवेदना से एकाकी ही संघर्षरत हुए। उन्होने अपनी एक निजी गायन शैली
विकसित की। उनका संगीत इसलिए भी रेखांकित किया जाएगा कि वह लोकोन्मुख रहा
है। आज के अंक में हम आपको इस महान संगीतज्ञ के स्वरों में राग सोहनी की
द्रुत तीनताल में निबद्ध यह होली सुनवाते हैं।
राग सोहनी : ‘रंग ना डारो श्याम जी...’ : पण्डित कुमार गन्धर्व
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रंग-रंगीली
होली के समापन पर्व पर आयोजित ‘स्वरगोष्ठी’ की विशेष श्रृंखला की इस कड़ी
का समापन हम संगीत के मंचों की परम्परा के अनुसार राग भैरवी की एक ऐतिहासिक
महत्त्व की रचना से करेंगे। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दो दशकों में
दिल्ली में ठुमरी के कई गायक और रचनाकार हुए, जिन्होंने इस शैली को समृद्धि
प्रदान की। इन्हीं में एक थे गोस्वामी श्रीलाल, जिन्होंने ‘पछाही ठुमरी’
(पश्चिमी ठुमरी) को विकसित किया था। इनका जन्म 1860 में दिल्ली के एक
संगीतज्ञ परिवार में हुआ था। संगीत की शिक्षा इन्हें अपने पिता गोस्वामी
कीर्तिलाल से प्राप्त हुई थी। ये सितारवादन में भी प्रवीण थे। ‘कुँवरश्याम’
उपनाम से उन्होने अनेक ध्रुवपद, धमार, ख़याल, ठुमरी आदि की रचनाएँ की।
इनका संगीत स्वान्तःसुखाय और अपने आराध्य भगवान् श्रीकृष्ण को सुनाने के
लिए ही था। जीवन भर इन्होने किशोरीरमण मन्दिर से बाहर कहीं भी अपने संगीत
का प्रदर्शन नहीं किया। इनकी ठुमरी रचनाएँ कृष्णलीला प्रधान तथा स्वर, ताल
और साहित्य की दृष्टि से अति उत्तम है। राग भैरवी की ठुमरी- ‘बाट चलत नई
चुनरी रंग डारी श्याम...’, कुँवरश्याम जी की सुप्रसिद्ध रचना है। उन्नीसवीं
शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भी देवालय संगीत की परम्परा कहीं-कहीं दीख
पड़ती थी। संगीतज्ञ कुँवरश्याम इसी परम्परा के संवाहक और पोषक थे। आज हम यही
पसिद्ध ठुमरी आपको सुनवाएँगे। राधाकृष्ण की होली के रंगों से सराबोर इस
ठुमरी अनेक सुप्रसिद्ध गायकों ने स्वर दिया है। 1953 में प्रदर्शित फिल्म
‘लड़की’ में गायिका गीता दत्त ने और 1957 की फिल्म ‘रानी रूपमती’ में
कृष्णराव चोनकर और मुहम्मद रफी ने भी इस ठुमरी को अपना स्वर दिया था। राग
भैरवी के स्वरों पर आधारित यह ठुमरी अब हम प्रस्तुत कर रहे है।
पार्श्वगायिका गीता दत्त की आवाज़ में फिल्म ‘लड़की’ के इस गीत का संगीत
धनीराम और आर. सुदर्शनम् ने दिया था। आप राग भैरवी के स्वरों में राधाकृष्ण
की होली का आनन्द लीजिए और मुझे आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की
अनुमति दीजिए।
राग भैरवी : ‘बाट चालत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’ : गीता दत्त : फिल्म – लड़की
‘स्वरगोष्ठी’
के 265वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको उत्तर भारत में प्रचलित एक
लोक शैली पर आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इस गीत शैली का
प्रयोग उपशास्त्रीय संगीतकार भी करते हैं। इस गीतांश को सुन कर आपको
निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के 270वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी
के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का
विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह किस शैली पर आधारित गीत है? शैली का नाम बताइए।
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत के गायक की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल
swargoshthi@gmail.com या
radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें
शनिवार, 16 अप्रैल, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए।
COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 267वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए
COMMENTS के माध्यम से तथा
swargoshthi@gmail.com अथवा
radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 263 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1998 में प्रदर्शित फिल्म
‘सरदारी बेगम’ से एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न
पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- राग – पीलू, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायिका – आरती अंकलीकर।
इस बार की संगीत पहेली में पाँच प्रतिभागी सही उत्तर देकर विजेता बने हैं। ये विजेता हैं - वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप पर्व
और ऋतु के अनुकूल श्रृंखला ‘होली और चैती के रंग’ का रसास्वादन कर रहे हैं।
श्रृंखला के इस अंक में हमने आपको दिग्गज संगीतज्ञों की प्रस्तुतियों का
रसास्वादन कराया। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पास हर
सप्ताह आपकी फरमाइशे आती हैं। हमारे कई पाठकों ने ‘स्वरगोष्ठी’ में दी जाने
वाली रागों के विवरण के प्रामाणिकता की जानकारी माँगी है। उन सभी पाठकों
की जानकारी के लिए बताना चाहूँगा कि रागों का जो परिचय इस स्तम्भ में दिया
जाता है, वह प्रामाणिक पुस्तकों से पुष्टि करने का बाद ही लिखा जाता है। यह
पुस्तकें है; संगीत कार्यालय, हाथरस द्वारा प्रकाशित और श्री वसन्त द्वारा
संकलित और श्री लक्ष्मीनारायण गर्ग द्वारा सम्पादित ‘राग-कोष’, संगीत सदन,
इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित और श्री हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव द्वारा लिखित
पुस्तक ‘राग परिचय’ तथा आवश्यकता पड़ने पर पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे के
ग्रन्थ ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’। हम इन ग्रन्थों से साभार पुष्टि करके ही
आप तक रागों का परिचय पहुँचाते हैं। आप भी अपने विचार, सुझाव और फरमाइश
हमें भेज सकते हैं। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते
हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले
रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप
सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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