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"चिट्ठी आई है वतन से...", कैसे मिला था पंकज उधास को यह गीत?


एक गीत सौ कहानियाँ - 79
 

'चिट्ठी आई है वतन से...' 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।इसकी 79-वीं कड़ी में आज जानिए 1986 की फ़िल्म ’नाम’ के मशहूर गीत "चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है..." के बारे में जिसे पंकज उधास ने गाया था। बोल आनन्द बक्शी के और संगीत लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल का।  

पंकज उधास को सबसे पहले फ़िल्म-संगीत जगत में उनके जिस गाने की वजह से लोकप्रियता मिली, वह गाना
था 1986 में आई फ़िल्म ’नाम’ का, "चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है..."। पंकज उधास को यह फ़िल्म तब मिली जब वो बहुत संघर्ष करने के बाद मायूसी से घिर कर, हार कर, भारत से बाहर स्थानान्तरित हो गए थे। बात 70 के दशक की है, गायक बनने की ख़्वाहिश में पंकज बम्बई में संघर्ष कर रहे थे। जगह जगह धक्के खाने के बाद उन्हें पहला मौक़ा दिया संगीत निर्देशिका उषा खन्ना ने। उषा जी ने 1972 की फ़िल्म ’कामना’ में पंकज उधास को ब्रेक दिया। जो पहला गाना उन्हें गाने को मिला उसे लिखा था नक्श ल्यालपुरी ने - "तुम कभी सामने आ जाओ तो पूछूँ तुमसे किस तरह दर्द-ए-मोहब्बत में जीया जाता है"। ब्रेक तो मिल गया, गाना भी आ गया, मगर सिंगिंग् करीयर में ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ। अगले चार साल तक पंकज को फिर से निर्माताओं और संगीतकारों के दफ़्तरों के चक्कर लगाने पड़े। हालाँकि अब तक उनके बड़े भाई मनहर उधास भी फ़िल्मों में गाना गाने लगे थे, लेकिन पंकज को इससे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ। चारों तरफ़ से निराश होने के बाद पंकज ने अपने भाई मनहर के साथ स्टेज शोज़ में गाना शुरू कर दिया। और उसके कुछ समय के बाद ही वो हिन्दुस्तान छोड़ कर विदेश चले गए। पंकज बम्बई इन्डस्ट्री से हार कर विदेश जा पहुँचे।

जब राजेन्द्र कुमार ’नाम’ फ़िल्म बना रहे थे, तब उनका किसी वजह से विदेश जाना हुआ। और वहाँ उन्होंने
पंकज का गाना स्टेज शो में सुना। पंकज की लोकप्रियता विदेश में तब तक बहुत बढ़ गई थी। इसी लोकप्रियता को देख कर राजेन्द्र कुमार ने पंकज उधास की एक ग़ज़ल को अपनी फ़िल्म में रखने का मन बना लिया। राजेन्द्र कुमार ने अपने ऐसिस्टैण्ट को पंकज से फ़ोन पर बात करके एक मीटिंग् तय करने को कहा। जब ऐसिस्टैण्ट ने पंकज को फ़ोन करके बताया कि राजेन्द्र कुमार साहब अपनी फ़िल्म में उन्हें एक special appearance के तौर पर लेना चाहते हैं तो पंकज को इस special appearance वाले सीन में कुछ दम नहीं दिखा। उन्होंने इस बात को, इस न्योते को तवज्जु नहीं दी, कोई जवाब नहीं दिया। वक़्त गुज़रता चला गया, राजेन्द्र कुमार को पंकज उधास का कोई जवाब नहीं आया। एक दिन राजेन्द्र कुमार ने इस बात का ज़िक्र (कुछ हद तक शिकायत के तौर पर) बड़े भाई मनहर उधास से किया। तब मनहर ने छोटे भाई पंकज से बात की और उन्हें समझाया। मनहर के कहने पर पंकज को समझ में आया कि उन्होंने राजेन्द्र कुमार जैसे सीनियर फ़िल्मकार को जवाब ना देकर ग़लती की है। उन्होंने राजेन्द्र कुमार से बात की, माफ़ी माँगी और उनके ऑफ़र को मान लिया। क़िस्मत देखिये कि पंकज के इस special appearance वाला गाना वाक़ई पंकज के करीयर में स्पेशल बन गया। और जब स्क्रीन पर आकर उन्होंने यह गाना गाया "चिट्ठी आई है...", इस फ़िल्म को देख कर, इस गीत को सुन कर, पंकज उधास रातों रात स्टार बन गए। आज जहाँ भी भारत के लोग विदेश की धरती पर बसे हैं, ऐसा शायद ही कोई मिले जिसने पंकज उधास का यह गाना ना सुना हो।

यह पंकज उधास का दुर्भाग्य ही है कि 1986-87 में फ़िल्म इन्डस्ट्री में स्ट्राइक चलने की वजह से फ़िल्मफ़ेयर
पुरस्कारों का वितरण समारोह आयोजित नहीं हुआ, और इन दो सालों में कोई भी पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया। अन्यथा इस गीत के लिए पंकज उधास को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का पुरस्कार ज़रूर मिलता। उधर अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत प्रायोजित कार्यक्रम ’सिबाका गीत माला’ में इस गीत ने अन्य सभी गीतों को पछारते हुए उस वर्ष के सर्वोच्च गीत का ख़िताब हासिल किया। इस दौड़ में शामिल थे "हवा हवाई" (मिस्टर इण्डिया), "मैं तेरी दुश्मन" (नगीना), "और इस दिल में क्या रखा है" (इमानदार), "पतझड़ सावन बसन्त बहार" (सिन्दूर), "ना तुमने किया ना मैंने किया" (नाचे मयूरी) जैसे लोकप्रिय गीत। लेकिन "चिट्ठी आई है" के बोलों, संगीत और गायकी के आगे कोई गीत टिक ना सकी। वैसे उस साल ’सिबाका गीत माल” में फ़िल्म ’नाम’ का एक और गीत भी शामिल था। मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज़ में "अमीरों की शाम ग़रीबों के नाम" गीत को वार्षिक कार्यक्रम में आठवाँ पायदान मिला था। मनहर उधास के ज़रिये पंकज उधास तक पहुँचने की वजह से राजेन्द्र कुमार ने मनहर उधास को भी इस फ़िल्म में एक गीत गाने का मौक़ा दिया था। मोहम्मद अज़ीज़ के साथ मनहर उधास का गाया यह युगल गीत था "तू कल चला जाएगा तो मैं क्या करूँगा", जिसमें मनहर ने फ़िल्म के मुख्य नायक संजय दत्त का पार्श्वगायन किया था। फ़िल्म ’नाम’ में दो नायक और दो नायिकाएँ थीं; संजय दत्त के लिए मनहर उधास की आवाज़ ली गई तो कुमार गौरव के लिए चुनी गई मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज़। दो नायिकाओं में अम्रीता सिंह के लिए लता मंगेशकर की आवाज़ ली गई और पूनम ढिल्लों के लिए कविता कृष्णमूर्ति की आवाज़। लेकिन आइटम गीत "चिट्ठी आई है" ने लोकप्रियता के जो झंडे गाढ़े, इस फ़िल्म के दूसरे गीत उसके दूर दूर तक भी नज़र नहीं आए। आज भी लोग "चिट्ठी आई है" को सम्मान के साथ सुनते हैं।



अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर।  





आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




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