स्वरगोष्ठी – 262 में आज
दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 10 : राग पूर्वी
पण्डित रविशंकर और उस्ताद शाहिद परवेज का राग पूर्वी
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी
श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की दसवीं और समापन कड़ी में मैं
कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता
हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा कर रहे
हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात
स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम
स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता
है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम
का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति
पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त
निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस
सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर्शक
स्वर सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति हो तो
वह राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र
मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा
सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12
बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ
राग ऐसे भी हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वर प्रयोग होते हैं। इस श्रृंखला में
हम ऐसे ही रागों की चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की दसवीं और समापन कड़ी में
आज हम राग पूर्वी के स्वरूप की चर्चा करेंगे। साथ ही सबसे पहले हम आपके
लिए सुविख्यात सितार वादक उस्ताद शाहिद परवेज़ का सितार पर बजाया राग पूर्वी
की एक रचना प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित
रविशंकर का संगीतबद्ध किया और वाणी जयराम का गाया फिल्म ‘मीरा’ का इसी राग
पर आधारित एक गीत सुनेगे।
रे ध कोमल गाइए, दोनों मध्यम मान,
ग-नि वादी-संवादि सों, राग पूर्वी जान।
उस्ताद शाहिद परवेज |
पूर्वी
थाट का आश्रय राग पूर्वी है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात
इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग पूर्वी के आरोह
के स्वर- सा रे(कोमल), ग, म॑(तीव्र) प, ध(कोमल), नि सां और अवरोह के स्वर- सां नि
ध(कोमल) प, म॑(तीव्र) ग, रे(कोमल) सा होते हैं। इस राग में कोई भी स्वर
वर्जित नहीं होता। ऋषभ और धैवत कोमल तथा मध्यम के दोनों प्रकार प्रयोग किये
जाते हैं। राग पूर्वी का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है
तथा इसे दिन के अन्तिम प्रहर में गाया-बजाया जाता है। राग पूर्वी के आरोह
में हमेशा तीव्र मध्यम स्वर का प्रयोग किया जाता है। जबकि अवरोह में दोनों
मध्यम स्वरों का प्रयोग होता है। कभी-कभी दोनों माध्यम स्वर एकसाथ भी
प्रयोग होते है। इस राग की प्रकृति गम्भीर होती है, अतः मींड़ और गमक का काम
अधिक किया जाता है। यह पूर्वांगवादी राग है, जिसे अधिकतर सायंकालीन
सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाता है। राग का चलन अधिकतर मंद्र और मध्य
सप्तक में होता है। इस राग का प्रत्यक्ष अनुभव कराने के लिए अब हम आपके
समक्ष राग पूर्वी की एक रचना सितार पर सुनवाते हैं, जिसे उस्ताद शाहिद
परवेज़ ने बजाया है। इस प्रस्तुति में पण्डित रामकुमार मिश्र ने तीनताल में
तबला संगति की है।
राग पूर्वी : सितार पर तीनताल की रचना : उस्ताद शाहिद परवेज़
वाणी जयराम |
राग
पूर्वी पर आधारित फिल्मी गीत के लिए अब हम आपको 1979 की फिल्म ‘मीरा’ से
एक भक्तिपद, गायिका वाणी जयराम की आवाज़ में सुनवा रहे हैं। मीराबाई का जन्म
1498ई. में माना जाता है। मीरा राजस्थान के मेड़ता राज परिवार की राजकुमारी
थीं। सात वर्ष की आयु में एक महात्मा ने उन्हें श्रीकृष्ण की एक मूर्ति
दी। कृष्ण के उस स्वरूप पर वे इतनी मुग्ध हो गईं कि उन्हें अपना आराध्य और
पति मान लिया। 1516ई. में मीरा का विवाह चित्तौड़ के शासक राणा सांगा के
पुत्र भोजराज के साथ हुआ। परन्तु कृष्णभक्ति के प्रति समर्पित रहने और
साधु-संतों के बीच समय व्यतीत करने के कारण उनका गृहस्थ जीवन कभी भी सफल
नहीं रहा। मीरा वैष्णव भक्तिधारा की प्रमुख कवयित्री मानी जाती है। उनके
रचे हुए लगभग 1300 पद हमारे बीच आज भी उपलब्ध हैं। उनके पदों में राजस्थानी
बोली के साथ ब्रज भाषा का मिश्रण है। कुछ विद्वान मानते हैं कि मीरा के
भक्तिकाव्य पर उनके समकालीन संगीत सम्राट तानसेन, चित्तौड़ के गुरु रविदास
और गोस्वामी तुलसीदास का प्रभाव है। उनके रचे असंख्य पदों में से आज के अंक
के लिए हमने जो पद चुना है, वह है- ‘करुणा सुनो श्याम मोरी...’। गीतकार
गुलज़ार द्वारा 1979 में निर्मित फिल्म ‘मीरा’ में शामिल यह भक्ति रचना है।
फिल्म का संगीत निर्देशन विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित रविशंकर ने किया था।
पण्डित जी ने मीरा के इस पद में निहित करुणा मिश्रित भक्तिभाव की
अभिव्यक्ति के लिए राग पूर्वी के स्वरों का चयन किया था। आप यह पद गायिका
वाणी जयराम की आवाज़ में सुनिए और करुण और भक्तिरस के मिश्रण की अनुभूति
कीजिए। रचना सितारखानी ताल में निबद्ध है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के
इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग पूर्वी : ‘करुणा सुनो श्याम मोरी...’ : वाणी जयराम : संगीत – पं. रविशंकर
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 262वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको राग पर आधारित एक फिल्मी गीत
का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं
दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 270वें अंक की पहेली के
सम्पन्न होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस
वर्ष की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत के मुख्य गायक का नाम हमे बता सकते हैं?
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 26 मार्च, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 264वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 258 की संगीत पहेली में हमने आपको 1959 में प्रदर्शित फिल्म ‘चाचा
ज़िन्दाबाद’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा
था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- राग – ललित, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक-गायिका – मन्ना डे और लता मंगेशकर।
इस बार की पहेली में कुल छः प्रतिभागियों ने सही उत्तर दिया है। हमारी एक प्रतिभागी नूपुर सिंह
ने ‘स्वरगोष्ठी’ की पहेली में पहली बार भाग लिया है। संगीत-प्रेमियों के
इस परिवार में नूपुर जी को शामिल करते हुए उनका हार्दिक स्वागत है। हमारे
अन्य नियमित प्रतिभागी विजेता हैं- चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। सभी छः प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में अभी तक आप
हमारी श्रृंखला ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ का रसास्वादन कर रहे थे।
श्रृंखला के इस समापन अंक में हमने आपसे राग पूर्वी पर चर्चा की।
‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित
रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय
निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें शीघ्र
भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको
हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नई
श्रृंखला के नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप
सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments
Q. No 3. : Mohammad Rafi Saheb in
Hindi Film Go Daan ( 1963 ).