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राग भटियार : SWARGOSHTHI – 260 : RAG BHATIYAR



स्वरगोष्ठी – 260 में आज

दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 8 : राग भटियार

पण्डित रविशंकर और पण्डित राजन मिश्र का भटियार





‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर्शक स्वर सिद्धान्त के अनुसार राग में यदि तीव्र मध्यम स्वर की उपस्थिति हो तो वह राग दिन और रात्रि के पूर्वार्द्ध में गाया-बजाया जाएगा। अर्थात, तीव्र मध्यम स्वर वाले राग 12 बजे दिन से रात्रि 12 बजे के बीच ही गाये-बजाए जा सकते हैं। इसी प्रकार राग में यदि शुद्ध मध्यम स्वर हो तो वह राग रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच का अर्थात उत्तरार्द्ध का राग माना गया। कुछ राग ऐसे भी हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वर प्रयोग होते हैं। इस श्रृंखला में हम ऐसे ही रागों की चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की आठवीं कड़ी में आज हम राग भटियार के स्वरूप की चर्चा करेंगे। साथ ही सबसे पहले हम आपको विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित रविशंकर के सितार पर राग भटियार के स्वर गूँजेंगे। इसके साथ ही लक्ष्मीकान्त – प्यारेलाल का संगीतबद्ध किया फिल्म ‘सुर संगम’ का इसी राग पर आधारित गीत पण्डित राजन मिश्र और एस. जानकी से सुनेगे।



आरोही नी अल्प ले, मध्यम दोऊ सम्हार,
रे कोमल, संवाद म स, क़हत राग भटियार।

पं. रविशंकर
अर्थात इस राग में कोमल ऋषभ और दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह में निषाद स्वर का अल्प प्रयोग किया जाता है। यह मारवा थाट का सम्पूर्ण जाति का राग है। अधिकतर विद्वान इस राग को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं। बिलावल थाट का राग मानने का कारण है कि इस राग में शुद्ध मध्यम स्वर प्रधान होता है, जबकि राग मारवा में शुद्ध मध्यम का प्रयोग होता ही नहीं। स्वरूप की दृष्टि से भी यह मारवा के निकट भी नहीं है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह रात्रि के अन्तिम प्रहर विशेष रूप से प्रातःकालीन सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाने वाला राग है। प्रातःकालीन सन्धिप्रकाश रागों में कोमल ऋषभ और शुद्ध गान्धार के साथ-साथ शुद्ध मध्यम स्वर का प्रयोग भी किया जाता है। तीव्र मध्यम स्वर का भी प्रयोग होता है, किन्तु अल्प। अवरोह के स्वर वक्रगति से लिये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह पाँचवीं शताब्दी के राजा भर्तृहरि की राग रचना है। उत्तरांग प्रधान यह राग भंखार के काफी निकट होता है। राग भंखार में पंचम स्वर पर ठहराव दिया जाता है, जबकि राग भटियार में शुद्ध मध्यम पर। राग भटियार वक्र जाति का राग है। इसमें षडज स्वर से सीधे धैवत पर जाते हैं, जो अत्यन्त मनोहारी होता है। यह राग गम्भीर, दार्शनिक भाव और जीवन के उल्लास की अभिव्यक्ति देने में पूर्ण समर्थ है। राग भटियार का एक शास्त्रोक्त और प्रयोगधर्मी स्वरूप का अनुभव कराने के लिए अब हम आपको विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित रविशंकर से सितार पर दो रचनाएँ सुनवा रहे हैं। पहली रचना मध्यलय तीनताल में और दूसरी द्रुत एकताल में निबद्ध है। तबला संगति पण्डित कुमार बोस ने की है।


राग भटियार : सितार पर मध्यलय तीनताल और द्रुत एकताल की दो रचनाएँ : पण्डित रविशंकर 




लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल
आठवें दशक से ही फिल्म संगीत की प्रवृत्तियों में काफी बदलाव आ चुका था। नौवें दशक के फिल्म संगीत में रागदारी संगीत का समावेश एक उल्लेखनीय घटना मानी जाने लगी थी। ऐसे ही माहौल में 1985 में ‘सुर संगम’ और ‘उत्सव’, दो फिल्में बनीं जिसके संगीत में रागों का सहारा लिया गया था। यह भी उल्लेखनीय है कि इन दोनों फिल्मों के संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल थे। फिल्मों में लम्बे समय तक लोकप्रिय संगीत देने के लिए लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का योगदान सराहनीय रहा है। 1963 में फिल्म ‘पारसमणि’ से फिल्म संगीतकार के रूप में पदार्पण करने वाली इस संगीतकार जोड़ी ने शुरुआती दौर की निम्नस्तरीय स्टंट फिल्मों में भी राग आधारित धुनें बना कर अपनी पैठ बनाई थी। उस दौर में उनकी फिल्में भले ही न चली हो, किन्तु उसका संगीत खूब लोकप्रिय हुआ। इसके बाद उनकी फिल्मों में लोक संगीत और लोकप्रिय सुगम संगीत के साथ-साथ राग आधारित धुनों का भी सहारा लिया गया था। 1985 में प्रदर्शित फिल्म ‘सुर संगम’ में उन्होने तत्कालीन प्रचलित फिल्म संगीत की प्रवृत्तियों के विपरीत संगीत दिया था। इस फिल्म के प्रायः सभी गीत विभिन्न रागों का आधार लिये हुए थे। यही नहीं फिल्म में मुख्य चरित्र के लिए उन्होने किसी फिल्मी पार्श्वगायक को नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र बन्धुओं में से एक राजन मिश्र का सहयोग लिया। फिल्म ‘सुर संगम’ में राग आधारित संगीत देना एक अनिवार्यता थी। दरअसल यह फिल्म दक्षिण भारतीय फिल्म ‘शंकराभरणम्’ का हिन्दी रूपान्तरण थी। फिल्म में मुख्य चरित्र संगीतज्ञ पण्डित शिवशंकर शास्त्री थे, जो संगीत की शुचिता और मर्यादा के प्रबल पक्षधर थे। अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए शास्त्री जी मानव-मानव में कोई भेद नहीं मानते थे। ऐसे विषय के लिए राग आधारित संगीत की आवश्यकता थी। फिल्म में राग मालकौंस पर आधारित गीत- ‘आए सुर के पंछी आए...’, राग भूपाली और देशकार पर आधारित गीत- ‘जाऊँ तोरे चरणकमल पर वारी...’, राग भैरवी के सुरों में- ‘धन्यभाग सेवा का अवसर पाया...’ जैसे आकर्षक गीत पण्डित राजन मिश्र की आवाज़ में थे। परन्तु इस फिल्म का जो गीत लेकर आज हम उपस्थित हुए हैं, वह राग भटियार के सुरों में पिरोया गीत- ‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ है। इस गीत में पण्डित राजन मिश्र के साथ दक्षिण भारत की सुप्रसिद्ध गायिका एस. जानकी के स्वर भी शामिल हैं। गीतकार बसन्त देव का लिखा यह गीत संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने सितारखानी ताल में निबद्ध किया है। आप इस अनूठे फिल्मी गीत में राग का अनुभव कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति प्रदान कीजिए।


राग भटियार : ‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ : पण्डित राजन मिश्र और एस. जानकी





संगीत पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 260वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको राग पर आधारित एक और फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?

2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – क्या आप गीत के गायक और गायिका के नाम हमे बता सकते हैं?

आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 12 मार्च, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 262वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 258 की संगीत पहेली में हमने आपको 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘मेरा साया’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – नन्द, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायिका – लता मंगेशकर

इस बार की पहेली में कुल छः प्रतिभागियों ने सही उत्तर दिया है। नागपुर, महाराष्ट्र से पुष्पा राठी ने ‘स्वरगोष्ठी’ की पहेली में पहली बार भाग लिया है। संगीत-प्रेमियों के इस परिवार में पुष्पा जी को शामिल करते हुए हम उनका हार्दिक स्वागत करते हैं। हमारे अन्य नियमित विजेता प्रतिभागी हैं- चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। सभी छः प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात


मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी श्रृंखला ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ का रसास्वादन कर रहे हैं। श्रृंखला के आठवें अंक में हमने आपसे राग भटियार पर चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें शीघ्र भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  




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