एक गीत सौ कहानियाँ - 77
'मैं ख़ुश होना चाहूँ, ख़ुश हो ना सकूँ...'
रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 77-वीं कड़ी में आज जानिए हिन्दी सिनेमा के पहले पार्श्वगायन-युक्त गीत के बारे में। यह गीत है 1935 की फ़िल्म ’धूप छाँव’ का, "मैं ख़ुश होना चाहूँ...", जिसे के. सी. डे, पारुल घोष, सुप्रभा सरकार और हरिमति दुआ ने गाया था। बोल पंडित सुदर्शन के और संगीत राय चन्द बोराल का।
R C Boral, K. C. Dey, Suprova Sarkar |
Nitin Bose & Pankaj Mullick |
फिल्म - धूप-छांव : "मैं खुश होना चाहूँ..." : के.सी. डे, पारुल घोष, सुप्रभा सरकार और हरिमति दुआ
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आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
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