ए दिले नादान, आरज़ू क्या है....इसके सिवा कि लता जी को मिले लंबी उम्र और उनकी आवाज़ का साया साथ चले हमेशा हमारे
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 754/2011/194
‘ओल्ड इज गोल्ड’ के सभी पाठकों की तरफ से लता जी को जन्मदिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ. आज लता जी ने अपने जीवन के ८२ साल पूरे कर लिए हैं. हम सभी की कामना है कि वो दीर्घायु हों और हमेशा स्वस्थ रहें.
लता जी के लिए अभिनेता-निर्माता ओम प्रकाश जी ने एक बार कहा था, "हे ईश्वर, दुनिया में जितने लोग हैं, उनकी जिंदगी से तू सिर्फ़ एक सेकंड कम कर दे और वह लताजी की जिन्दगी में जोड़ दे." ऐसी प्रतिभा के लिए एक सेकंड तो क्या १ घंटा भी कम है.
लता जी के ८० वें जन्मदिन पर आईबीएन7 के लिए जावेद अख्तर ने उनका इंटरव्यू लिया था. जावेद जी ने कहा था – "सदियों में एकाध बार ऐसा होता है कि कोई इंसान इतना बड़ा होता है कि उसकी तारीफ नहीं की जाती। उसकी तारीफ इसलिए नहीं की जाती क्योंकि उसकी तारीफ की नहीं जा सकती। ऐसे शब्द ही नहीं होते। उसकी तारीफ की जरूरत भी नहीं होती। कोई नहीं कहता कि शेक्सपियर बहुत अच्छा राइटर था। कोई नहीं कहता कि माइकल एंजेलो बहुत अच्छे स्टेच्यू बनाता था। कोई नहीं कहता कि बीथोवन बहुत अच्छा म्यूजिक बनाता था। शेक्सपियर नाम अपने आप ही तारीफ है। उसी तरह से मैं समझता हूं कि जिसकी आज हम बात कर रहे हैं उनका नाम ही तारीफ है। आप किसी इंसान की इससे ज्यादा क्या तारीफ कर सकते हैं कि आप कहें कि वह लता मंगेशकर है। लता जी सबसे पहले न सिर्फ मेरी तरफ से बल्कि हिंदुस्तान के करोड़ों लोगों की तरफ से जो आपसे और आपकी आवाज से मुहब्बत करते हैं आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई। आप यूं ही गाती रहें और हम लोगों के दिल जीतती रहें।"
तो चलिए आज फिर अपनी यात्रा हम लता जी की जिन्दगी से जुड़ी हुई बातों से करते हैं. हरीश भिमानी जी और वाणी प्रकाशन का मैं बार बार आभारी हूँ जिन्होंने अपनी पुस्तक के माध्यम से यह सब जानकारी उपलब्ध करवायी. लता जी से एक बार पूछा गया कि एक बार उन्होंने राहुल देव बर्मन की रिकॉर्डिंग मैं पाँच मिनट में गाना सीखा, दस मिनट में गाया और पन्द्रह मिनट में बाहर निकल आयीं. इसके तो दो ही कारण हो सकते हैं. पहला, या तो लता जी में कुछ जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास है कि मैंने जो गाया है एकदम सही गाया है, इसमें कोई क्या मीन-मेख निकाल सकता है? या फिर, वो अपने काम के प्रति लापरवाह हो गयीं हैं जो मानना बड़ा ही मुश्किल है.
उन्होंने बड़ी ही शांति से आरोप सुने और फिर बोलीं, "नहीं, इन दोनों में से एक भी वजह सही नहीं है; दरअसल अपना रिकॉर्ड किया हुआ गीत सुनते हुए मैं डरती हूँ." डरती हूँ कि जब अपना गाया गीत दुबारा सुनूँगी तो न जाने उसमे मुझे कितने ही नुक्स दिखेंगे. हो सकता है, कहीं सुर से हट गयी होऊँगी, या किसी जगह ‘इम्प्रेशन’ में कसर रह गयी होगी, यूँ हर टेक में कुछ न कुछ त्रुटि मिलेगी ही. सुनूँगी तो कहाँ तक बार-बार रिकॉर्डिंग करती रहूँगी और सुधारती रहूँगी? बस यही डर से मैं भाग जाती हूँ. गाना अच्छा हुआ है या नहीं, इस बात का निर्णय मैं संगीतकार, निर्देशक और रिकॉर्डिस्ट पर छोड़ती हूँ."
"अलबत्ता नौशाद साहब के साथ यह नहीं चलता था. वो रिकॉर्डिंग के बाद जबरदस्ती रोका करते और कहते कि ‘पहले बस यह ‘ओ.के.’ टेक सुन कर जाओ’ और मिक्सिंग रूम में आने की विनती करते और वहाँ जाते ही अंदर से दरवाजा बंद करवा देते. यानि की मेरे साथ, रिकॉर्डिस्ट, निर्माता, फिल्म निर्देशक, सब-के सब कैद.... और फिर नौशाद साहब एक टेक सुनकर कब संतोष करने वाले थे. सारे के सारे टेक सुनवाते और मुझे उनमें से किस ‘टेक’ में से गाने का कौन सा अंतरा और संगीत का कौन सा टुकड़ा अच्छा लगा, यह बताना पड़ता था. और सब मिलकर गाने का अंतिम रूप तैयार करा करते."
"मुझे पता रहता है कि मेरे गाये किस गाने में कहाँ कमी रह गयी है और जब कभी में वो गाना सुनती हूँ तो मैं बेहद व्याकुल हो उठती हूँ.अगर अकेली होती हूँ तो फट से रेडियो बंद कर देती हूँ, लेकिन आस-पास कोई हो तो ऐसा नहीं कर पाती हूँ और लोगों का ध्यान बंटाने के लिए जैसे ही वो खामी वाली जगह आने को हो, तो मैं जोर-जोर से बातें करने लगती हूँ ताकि किसी का ध्यान उधर न जाए."
उनकी नजर में ‘चाचा जिंदाबाद’ फिल्म का, मदन मोहन संगीतबद्ध करा 'बैरन नींद न आये, बिना किसी कमी का है.
जिन लता जी की पूरी दुनिया प्रशंषक है वो खुद प्रशंषक हैं, मिस्र (इजिप्ट) की मशहूर गायिका ‘उम्मे कुल्सुम’ की. लता जी के अनुसार उन्हें चाहे अरबी भाषा समझ में न आये, तो भी उनके गाने सुनती रहती हैं. लता जी की सरलता देखिये, वो बोलीं, "सुना है कुछ लोग उन्हें ‘इजिप्ट की लता मंगेशकर’ कहते हैं. यह तो बिलकुल गलत है. वह तो मुझसे कहीं बड़ी हैं. मुझे क्यों कोई ‘भारत की उम्मे कुल्सुम’ क्यों नहीं कहता? मुझे तो बड़ा अच्छा लगता."
आज मैं अपनी पसंद का गाना सुनवाना चाहता हूँ. फिल्म का नाम है ‘रज़िया सुलतान’ और गाना है ‘ए दिले नादान’. जब भी मैं यह गाना सुनता हूँ शरीर में एक सिहरन सी दौड़ जाती है. इस गाने की रचना करी थी जाँ निसार अख्तर ने और संगीतकार थे ‘खय्याम’. यह गाना सीधे से आत्मा में प्रवेश करता है.
ख़य्याम के शब्दों में, "'रज़िया सुल्तान' कमाल अमरोही साहब की फ़िल्म थी. वैसे तो यह गाना सीधा सा गाना था और धुन भी सरल थी, लेकिन इसको गाने के लिए आवाज़ के जादू की ज़रुरत थी. मुझे ख़ुशी है कि लता जी ने मेहनत के साथ गाना गाया."
लीजिए गाना प्रस्तुत है फिल्म से.....
लता जी ने यही गाना ९ मार्च ११९७ को मुम्बई में एक लाइव परफोर्मेंस (Lata An Era In An Evening Concert) में गाया था. उसमें गाये गए गाने को सुनिए.
इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. लता जी की हौन्टिंग आवाज़ है इस गीत में.
२. प्रस्तुत गीत की टीम का ही बनाया हुआ गीत है ये भी.
३. एक अंतरे में शब्द है - "शहनाईयाँ".
अब बताएं -
फिल्म का नाम बताएं - ३ अंक
निर्देशक बताएं - २ अंक
फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री कौन है - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी इतनी बुरी फिल्म लगी क्या आपको ? बाकी लोगों का क्या ख़याल है ?
खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन
‘ओल्ड इज गोल्ड’ के सभी पाठकों की तरफ से लता जी को जन्मदिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ. आज लता जी ने अपने जीवन के ८२ साल पूरे कर लिए हैं. हम सभी की कामना है कि वो दीर्घायु हों और हमेशा स्वस्थ रहें.
लता जी के लिए अभिनेता-निर्माता ओम प्रकाश जी ने एक बार कहा था, "हे ईश्वर, दुनिया में जितने लोग हैं, उनकी जिंदगी से तू सिर्फ़ एक सेकंड कम कर दे और वह लताजी की जिन्दगी में जोड़ दे." ऐसी प्रतिभा के लिए एक सेकंड तो क्या १ घंटा भी कम है.
लता जी के ८० वें जन्मदिन पर आईबीएन7 के लिए जावेद अख्तर ने उनका इंटरव्यू लिया था. जावेद जी ने कहा था – "सदियों में एकाध बार ऐसा होता है कि कोई इंसान इतना बड़ा होता है कि उसकी तारीफ नहीं की जाती। उसकी तारीफ इसलिए नहीं की जाती क्योंकि उसकी तारीफ की नहीं जा सकती। ऐसे शब्द ही नहीं होते। उसकी तारीफ की जरूरत भी नहीं होती। कोई नहीं कहता कि शेक्सपियर बहुत अच्छा राइटर था। कोई नहीं कहता कि माइकल एंजेलो बहुत अच्छे स्टेच्यू बनाता था। कोई नहीं कहता कि बीथोवन बहुत अच्छा म्यूजिक बनाता था। शेक्सपियर नाम अपने आप ही तारीफ है। उसी तरह से मैं समझता हूं कि जिसकी आज हम बात कर रहे हैं उनका नाम ही तारीफ है। आप किसी इंसान की इससे ज्यादा क्या तारीफ कर सकते हैं कि आप कहें कि वह लता मंगेशकर है। लता जी सबसे पहले न सिर्फ मेरी तरफ से बल्कि हिंदुस्तान के करोड़ों लोगों की तरफ से जो आपसे और आपकी आवाज से मुहब्बत करते हैं आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई। आप यूं ही गाती रहें और हम लोगों के दिल जीतती रहें।"
तो चलिए आज फिर अपनी यात्रा हम लता जी की जिन्दगी से जुड़ी हुई बातों से करते हैं. हरीश भिमानी जी और वाणी प्रकाशन का मैं बार बार आभारी हूँ जिन्होंने अपनी पुस्तक के माध्यम से यह सब जानकारी उपलब्ध करवायी. लता जी से एक बार पूछा गया कि एक बार उन्होंने राहुल देव बर्मन की रिकॉर्डिंग मैं पाँच मिनट में गाना सीखा, दस मिनट में गाया और पन्द्रह मिनट में बाहर निकल आयीं. इसके तो दो ही कारण हो सकते हैं. पहला, या तो लता जी में कुछ जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास है कि मैंने जो गाया है एकदम सही गाया है, इसमें कोई क्या मीन-मेख निकाल सकता है? या फिर, वो अपने काम के प्रति लापरवाह हो गयीं हैं जो मानना बड़ा ही मुश्किल है.
उन्होंने बड़ी ही शांति से आरोप सुने और फिर बोलीं, "नहीं, इन दोनों में से एक भी वजह सही नहीं है; दरअसल अपना रिकॉर्ड किया हुआ गीत सुनते हुए मैं डरती हूँ." डरती हूँ कि जब अपना गाया गीत दुबारा सुनूँगी तो न जाने उसमे मुझे कितने ही नुक्स दिखेंगे. हो सकता है, कहीं सुर से हट गयी होऊँगी, या किसी जगह ‘इम्प्रेशन’ में कसर रह गयी होगी, यूँ हर टेक में कुछ न कुछ त्रुटि मिलेगी ही. सुनूँगी तो कहाँ तक बार-बार रिकॉर्डिंग करती रहूँगी और सुधारती रहूँगी? बस यही डर से मैं भाग जाती हूँ. गाना अच्छा हुआ है या नहीं, इस बात का निर्णय मैं संगीतकार, निर्देशक और रिकॉर्डिस्ट पर छोड़ती हूँ."
"अलबत्ता नौशाद साहब के साथ यह नहीं चलता था. वो रिकॉर्डिंग के बाद जबरदस्ती रोका करते और कहते कि ‘पहले बस यह ‘ओ.के.’ टेक सुन कर जाओ’ और मिक्सिंग रूम में आने की विनती करते और वहाँ जाते ही अंदर से दरवाजा बंद करवा देते. यानि की मेरे साथ, रिकॉर्डिस्ट, निर्माता, फिल्म निर्देशक, सब-के सब कैद.... और फिर नौशाद साहब एक टेक सुनकर कब संतोष करने वाले थे. सारे के सारे टेक सुनवाते और मुझे उनमें से किस ‘टेक’ में से गाने का कौन सा अंतरा और संगीत का कौन सा टुकड़ा अच्छा लगा, यह बताना पड़ता था. और सब मिलकर गाने का अंतिम रूप तैयार करा करते."
"मुझे पता रहता है कि मेरे गाये किस गाने में कहाँ कमी रह गयी है और जब कभी में वो गाना सुनती हूँ तो मैं बेहद व्याकुल हो उठती हूँ.अगर अकेली होती हूँ तो फट से रेडियो बंद कर देती हूँ, लेकिन आस-पास कोई हो तो ऐसा नहीं कर पाती हूँ और लोगों का ध्यान बंटाने के लिए जैसे ही वो खामी वाली जगह आने को हो, तो मैं जोर-जोर से बातें करने लगती हूँ ताकि किसी का ध्यान उधर न जाए."
उनकी नजर में ‘चाचा जिंदाबाद’ फिल्म का, मदन मोहन संगीतबद्ध करा 'बैरन नींद न आये, बिना किसी कमी का है.
जिन लता जी की पूरी दुनिया प्रशंषक है वो खुद प्रशंषक हैं, मिस्र (इजिप्ट) की मशहूर गायिका ‘उम्मे कुल्सुम’ की. लता जी के अनुसार उन्हें चाहे अरबी भाषा समझ में न आये, तो भी उनके गाने सुनती रहती हैं. लता जी की सरलता देखिये, वो बोलीं, "सुना है कुछ लोग उन्हें ‘इजिप्ट की लता मंगेशकर’ कहते हैं. यह तो बिलकुल गलत है. वह तो मुझसे कहीं बड़ी हैं. मुझे क्यों कोई ‘भारत की उम्मे कुल्सुम’ क्यों नहीं कहता? मुझे तो बड़ा अच्छा लगता."
आज मैं अपनी पसंद का गाना सुनवाना चाहता हूँ. फिल्म का नाम है ‘रज़िया सुलतान’ और गाना है ‘ए दिले नादान’. जब भी मैं यह गाना सुनता हूँ शरीर में एक सिहरन सी दौड़ जाती है. इस गाने की रचना करी थी जाँ निसार अख्तर ने और संगीतकार थे ‘खय्याम’. यह गाना सीधे से आत्मा में प्रवेश करता है.
ख़य्याम के शब्दों में, "'रज़िया सुल्तान' कमाल अमरोही साहब की फ़िल्म थी. वैसे तो यह गाना सीधा सा गाना था और धुन भी सरल थी, लेकिन इसको गाने के लिए आवाज़ के जादू की ज़रुरत थी. मुझे ख़ुशी है कि लता जी ने मेहनत के साथ गाना गाया."
लीजिए गाना प्रस्तुत है फिल्म से.....
लता जी ने यही गाना ९ मार्च ११९७ को मुम्बई में एक लाइव परफोर्मेंस (Lata An Era In An Evening Concert) में गाया था. उसमें गाये गए गाने को सुनिए.
इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. लता जी की हौन्टिंग आवाज़ है इस गीत में.
२. प्रस्तुत गीत की टीम का ही बनाया हुआ गीत है ये भी.
३. एक अंतरे में शब्द है - "शहनाईयाँ".
अब बताएं -
फिल्म का नाम बताएं - ३ अंक
निर्देशक बताएं - २ अंक
फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री कौन है - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी इतनी बुरी फिल्म लगी क्या आपको ? बाकी लोगों का क्या ख़याल है ?
खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
शंकर हुसैन फिल्म की गजल है जी पक्का.आप तो लोक कर दीजिए मेरा जवाब,गलत हो तो .........लोक खोल देना वापस हा हा हा
मैं भाग छुटूगी .क्या करू?ऐसिच हूँ मैं तो -रणछोड़ हा हा हा
हो, गुनगुनाती रहीं मेरी तन्हाइयां
दूर बजती रहीं कितनी शहनाइयां
ज़िन्दगी ज़िन्दगी को बुलाती रही
आप यूँ फासलों से गुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आप यूँ.....
प्रतिभा
ओट्टावा, कनाडा
रेडियो पर लाता जी के गाने सुन रही हूँ.बहुत प्यारे गाने और आपका रेडियो का प्रयोग भी.इश्वर आपको सफलता दे.