Skip to main content

"हर इन्सान को अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक़ है..."- युवा अभिनेता युवराज पराशर

अभिनेता युवराज पराशर के पसन्द के ५ लता नम्बर्स
ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 60

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'शनिवार विशेषांक' में। मैं, सुजॉय चटर्जी, हाज़िर हूँ फिर एक बार फिर एक साक्षात्कार के साथ। आज हम आपको मिलवा रहे हैं हाल में बनी फ़िल्म 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' के नायक श्री युवराज पराशर से, जो बनाएंगे अपनी इस फ़िल्म के बारे में और साथ ही साथ हमें सुनवाएंगे लता जी के गाए हुए उनके पसन्दीदा पाँच गीत। आइए मिलते हैं युवा अभिनेता युवराज पराशर से।

सुजॉय - नमस्कार युवराज, स्वागत है आपका 'हिन्द-युग्म' के 'आवाज़' मंच पर और यह है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का साप्ताहिक विशेषांक।

युवराज - नमस्कार, और बहुत बहुत धन्यवाद आपका!

सुजॉय - युवराज, क्योंकि लता जी के जनमदिवस के उपलक्ष्य पर इस सप्ताह का यह विशेषांक प्रस्तुत हो रहा है, और आपका भी लता जी से एक तरह का सम्बंध हुआ है आपकी फ़िल्म के ज़रिए, इसलिए बातचीत का सिलसिला भी मैं लता जी से ही शुरु करना चाहूँगा। सबसे पहले तो अपने पाठकों को वह तस्वीर दिखा दें जिसमें आप और कपिल शर्मा लता जी के साथ नज़र आ रहे हैं।

चित्र-१: युवराज और कपिल के साथ स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर

सुजॉय - कैसा रहा वह अनुभव लता जी के साथ फोटो खिंचवाने का?

युवराज - Oh my God! जब मैंने उनकी शख़्सीयत को सामने से देखा तो ऐसा लगा कि जैसे मैं भगवान के सामने खड़ा हूँ, या कोई देवी मेरे सामने खड़ी हों। मैंने उनके पाँव छूए और उनसे आशीर्वाद लिया। मुझे लगता है कि वो कोई आम इंसान नहीं हैं, बल्कि माँ सरस्वती का अवतार हैं। मैं आपको बता नहीं सकता कि मुझे कैसा रोमांच महसूस हुआ जब उनके साथ फोटो खिंचवाने का मौका मिला। और मेरी पहली फ़िल्म का टाइटल गीत उन्होंने ही गाया है, इससे बड़ी ख़ुशी की बात और मेरे लिए क्या हो सकती है!

सुजॉय - वाह! वाक़ई बहुत भाग्यशाली हैं आप! अच्छा तो बताइए कि आपकी पसन्द पर लता जी का गाया हुआ कौन सा गीत आप सब से पहले सुनवाना चाहेंगे?

युवराज - इसी फ़िल्म का सुनवा दीजिए, 'डोन्नो व्हाई' का टाइटल ट्रैक।

गीत-१ - डोन्नो व्हाई न जाने क्यों (शीर्षक गीत)


सुजॉय - और इसी फ़िल्म में आपको एक और बड़ी हस्ती के साथ काम करने का भी मौका मिला, वो हैं ज़ीनत अमान जी। इस बारे में भी कुछ बताइए।

युवराज - ओह... ज़ीनत जी के साथ काम करना एक बहुत ही सुन्दर अनुभव रहा। उनका दिल भी उतना ही ख़ूबसूरत है जितनी ख़ूबसूरत वो दिखती हैं। उन्होंने मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं न्युकमर हूँ। जब पहली बार 'डोन्नो व्हाई' के सेट पर मैं उनसे मिला तो उन्होंने मुझे देख कर यह कॉम्प्लिमेण्ट दिया कि मैं ब्रैड पिट जैसा दिखता हूँ। यह बात मैं कभी नहीं भूल सकता।

चित्र-२: ज़ीनत अमान की नज़र में युवराज हैं भारत के ब्रैड पिट

सुजॉय - युवराज, 'डोन्नो व्हाई...' फ़िल्म के बारे में बताइए। यह फ़िल्म थिएटरों में तो नहीं आई हमारे शहर में पर हमें पता है कि कई फ़िल्म-उत्सवों में इसने काफ़ी नाम कमाया है।

युवराज - 'डोन्नो व्हाई...' एक कहानी है रिश्तों की, कुछ ऐसे रिश्ते जिन्हें हमारा समाज स्वीकार नहीं करता। यह कहानी तीन रिश्तों की है, पहला रिश्ता एक 'सिन्गल मदर' का है जो अपने परिवार और अपने पति के परिवार के देखभाल के लिए कुछ भी कर सकती है; दूसरा रिश्ता है है एक जवान लड़की का जो अपने जीजाजी से प्यार करने लगती है; और तीसरा रिश्ता है एक शादीशुदा लड़के का सम्लैंगिक रिश्ता।

सुजॉय - यानि कि दूसरे शब्दों में यह एक बहुत ही बोल्ड फ़िल्म है। इसके लिए मैं आपको सलाम करता हूँ कि अपने करीयर के शुरु में आपने इतना बड़ा रिस्क लिया। कैसे मिला आपको यह रोल?

युवराज - धन्यवाद आपका! मुझे ऑडिशन के लिए बुलाया गया था और स्क्रीनटेस्ट के माध्यम से मुझे चुन लिया गया।

सुजॉय - इस फ़िल्म से जुड़ी कुछ और बातें आपसे करेंगे, लेकिन उससे पहले हम आपकी पसन्द का लता जी का गाया दूसरा गाना सुनना चाहेंगे।

युवराज - फ़िल्म 'लम्हे' का "कभी मैं कहूँ कभी तुम कहो"।

सुजॉय - वाह! मुझे भी यह गीत बहुत पसन्द है और एक समय में यह मेरा हैलो-ट्युन भी हुआ करता था। लता जी के साथ हरिहरण की आवाज़ में सुनते हैं 'लम्हे' का यह गीत।

गीत-२ - कभी मैं कहूँ कभी तुम कहो (लम्हे)


सुजॉय - अच्छा यह बताइए यह जो आपका रोल था, क्या आपको इसे स्वीकार करने में डर नहीं लगा या हिचकिचाहट नहीं हुई एक समलैंगिक चरित्र निभाने में?

युवराज - मैं समझता हूँ कि यह केवल एक चरित्र था जिसे मैंने निभाया और हर अभिनेता को हर किस्म का किरदार निभाना आना चाहिए। क्या मुझसे यही सवाल करते अगर मैंने किसी डॉन या बदमाश गुंडे का रोल निभाया होता? फ़िल्में और कुछ नहीं हमारे समाज का ही आईना हैं। मुझे फ़िल्म की कहानी बहुत पसन्द आई और मुझे लगा कि मेरा रोल अच्छा है, इसलिए मैंने किया।

सुजॉय - लेकिन मैंने सुना है कि इस रोल को निभाने की वजह से आपको एक भारी कीमत चुकानी पड़ी है। आपके परिवार नें आप से नाता तोड़ लिया था सिर्फ़ इस वजह से कि आपने एक समलैंगिक चरित्र निभाया है?

युवराज - हाँ यह सच है, जब मेरे पापा नें मेरे निभाये गये रोल के बारे में सुना तो वो बहुत बिगड़ गए थे। मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिशें की पर उस वक़्त वो कुछ भी सुनना नहीं चाहते थे। पर अब सबकुछ ठीक है। ज़ीनत जी का भी एक बड़ा हाथा था उन्हें समझाने में कि यह केवल एक फ़िल्म मात्र है, हक़ीक़त नहीं। मैं सदा ज़ीनत जी का आभारी रहूंगा।

सुजॉय - युवराज, क्यों न यहाँ पर आपकी पसन्द का तीसरा गीत सुना जाये लता जी का गाया हुआ।

युवराज - ज़रूर! फ़िल्म 'लकी' का "शायद यही तो प्यार है" सुनवा दीजिए जिसे लता जी नें अदनान सामी के साथ मिलकर गाया है।

सुजॉय - वाह! युवराज, मानना पड़ेगा कि भले आप नए गीतों की फ़रमाइशें कर रहे हैं पर ये गानें लाजवाब हैं, एक से बढ़कर एक हैं, आइए सुनते हैं।

गीत-३ - शायद यही तो प्यार है (लकी)


सुजॉय - 'डोन्नो व्हाई...' में आपनें एक समलैंगिक चरित्र निभाया है। समलैंगिकता के बारे में आपके क्या निजी विचार हैं और आप समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

युवराज - मैं बस यही कहना चाहता हूँ कि यह एक व्यक्तिगत पसन्द है और हर इन्सान को अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक़ है, और समाज को चाहिए कि किसी भी इन्सान को इन्सान होने के नाते इज़्ज़त दें ना कि उसकी यौन प्रवृत्ति की जाँच पड़ताल कर।

सुजॉय - मीडिया में कुछ दिन पहले ख़बर आई थी कि आपनें एक जानेमाने फ़िल्मकार पर आप पर हुए यौन शोषण का आरोप लगाया है। पर उस फ़िल्मकार नें आप पर यह उल्टा आरोप लगाया कि आप दोनों में जो कुछ भी हुआ आपकी रज़ामन्दी से ही हुआ। 'हिन्द-युग्म' के माध्यम से कुछ कहना चाहेंगे अपनी सफ़ाई में?

युवराज - माफ़ कीजिए मैं इस विषय पर कुछ कहना नहीं चाहूंगा क्योंकि जब इस गंदे मुद्दे का समाधान हुआ था हमारे एक कॉमन फ़्रेण्ड के ज़रिए, हम दोनों नें यह वादा लिया था कि इस विषय पर हम कहीं भी अपनी ज़ुबान नहीं खोलेंगे। और मैं अपना वादा तोड़ना नहीं चाहता।

सुजॉय - पर युवराज आपने वादा तो हमसे भी किया है, उसका क्या?

युवराज - वह क्या?

सुजॉय - वही, लता जी के गाए अपनी पसन्द के पाँच गीत सुनवाने का?

युवराज - हा हा हा, जी हाँ, ज़रूर, चौथा गाना है फ़िल्म 'ग़ुलामी' का "ज़िहाले मिस्किन"।

सुजॉय - क्या बात है! यह तो मेरा भी पसन्दीदा गीत है और पता है इस गीत में लता जी के साथ शब्बीर कुमार हैं और शब्बीर साहब नें ख़ुद मुझे कहा था कि यह उनका सबसे पसन्दीदा गीत रहा है अपना गाया हुआ। चलिए सुनते हैं।

गीत-४ - ज़िहाले मिस्किन मुकुन ब रंजिश (ग़ुलामी)


सुजॉय - जब हमारी बातचीत समलैंगिकता के इर्द-गिर्द घूम ही रही है तो एक और बात जो आजकल चर्चा में आती रहती है कि नवोदित मॉडल और अभिनेताओं का यौन शोषण किया जाता है, जिसे हम 'कास्टिंग काउच' कहते हैं, पहले तो लड़कियों को ही इन सब से गुज़रना पड़ता था, पर अब तो सुनने में आता है कि लड़कों का भी यही अंजाम हो रहा है। आप तो इस ग्लैम वर्ल्ड से ताल्लुख़ रखते हैं। आप बताइए कि क्या यह सच है?

युचराज - यह एक कड़वा सच है जिसे हम सब जानते हैं कि यह होता है।

सुजॉय - और युवराज, अब हम बहुत पीछे की तरफ़ जाते हुए आपसे जानना चाहेंगे आपके बचपन के बारे में, और किस तरह से आप इस ग्लैम वर्ल्ड में आये?

युवराज - ह्म्म्म्म, मेरा बचपन आगरा में बीता है। बचपन से ही मुझे डान्स का बड़ा शौक था। और केवल शौक ही नहीं, मैंने बकायदा कई प्रकार के डान्स सीखे हैं जैसे कि कथक, साल्सा, हिप-हॉप और बॉलीवूड।

सुजॉय - वाह! युवराज, क्योंकि बात आपके बचपन की चल रही है, तो हम चाहेंगे कि आप अपने पसन्द का पाँचवा और अन्तिम गीत उसी ज़माने से हमें सुनवायें।

युवराज - 'आपकी कसम' फ़िल्म का "करवटें बदलते रहें सारी रात हम"

गीत-५ - करवटें बदलते रहें सारी रात हम (आपकी कसम)


सुजॉय - बहुत बहुत शुक्रिया युवराज, जो आपने अपनी व्यस्तताओं के बावजूद हमें समय दिया। 'हिन्द-युग्म' की तरफ़ से, अपने पाठकों की तरफ़ से और मैं अपनी तरफ़ से आपको धन्यवाद देता हूँ और आपको एक बेहद उज्वल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए इस बातचीत को यही विराम देता हूँ, नमस्कार!

युवराज - बहुत बहुत शुक्रिया आपका!

तो दोस्तों, यह था युवा फ़िल्म अभिनेता युवराज पराशर से एक मुलाक़ात और उनकी पसन्द के पाँच लता नम्बर्स। चलते चलते लता जी को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ देते हुए आज की यह प्रस्तुति यहीं समाप्त करते हैं, कल यानि रविवार शाम ६:३० बजे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नियमित महफ़िल में फिर भेंट होगी, नमस्कार!

Comments

नवोदित अभनेता युवराज का स्वागत और शुभकामनाएँ। लता जी के गाये जिन गीतों का युवराज ने चयन किया है, उनमें गुलामी और आपकी कसम के गीत बेहद आकर्षक हैं।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट