ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 739/2011/179
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! शमशाद बेगम के गाये गीतों पर केन्द्रित इस लघु शृंखला में आइए आज एक बार फिर से रुख़ करते हैं कमल शर्मा द्वारा ली गई साक्षात्कार की तरफ़ और पढ़ा जाये उसी साक्षात्कार से कुछ और अंश।
कमल जी - मुंबई में आने के बाद यहाँ आपकी पहली फ़िल्म कौन सी थी?
शमशाद जी - पहली फ़िल्म महबूब साहब का किया, 'तक़दीर', वो लाहौर गये थे। 'तक़दीर' पिक्चर के लिए मुझे बूक किया था। वहाँ उनकी हीरोइन थी, उनका ससुराल भी वहीं था। वो तो नहीं आईं, महबूब साहब मेरे घर आए और कहा कि तुम मेरे साथ चलो। मेरे बाबा आने नहीं देते थे। वो कहते थे इधर ही ठीक है, तुम क्या इतनी दूर बम्बई जाओगी? दो दो साल शक्ल देखने को नहीं मिलेंगे। महबूब साहब नें कहा कि अरे समुंदर में जाने दो उसको। उन्होंने बाबा से कहा कि मिया, आप ग़लत समझ रहे हैं, इसको जाने दीजिए। अब इसका नाम इतना है कि जाने दो इसे, आप नें सोचा भी नहीं होगा कितनी बड़ी इंडस्ट्री है। उनके कहने पर बाबा नें कहा कि अच्छा जाने देते हैं। फिर 'तक़दीर' पिक्चर बनाकर हम वापस (लाहौर) चले गये। 'तक़दीर' में संगीत था रफ़ीक़ ग़ज़नवी का। रफ़ीक़ बहुत अच्छा गाते थे।
कमल जी - लेकिन 'तक़दीर' नें तय कर दिया कि आपकी तक़दीर मुंबई में ही लिखी है।
शमशाद जी - बम्बई में, यहाँ से चली गई थी मैं, फिर मुझे पूना से बुलाया। एक पिक्चर थी 'नवयुग चित्रपट' की - 'पन्ना'। इसके सारे गानें सुपरहिट हुए। और फ़िल्म सिल्वर जुबिली से भी ज़्यादा टाइम चली थी। फिर वहाँ से बम्बई आ गए। बम्बई आने के बाद, यहाँ सब लोग कहने लगे यह करो वह करो। सब करते करते दो महीने लग गए। फिर आहिस्ता आहिस्ता मैं इधर ही रहने लगी। अभी मकान लिया नहीं था, होटल में रहते थे कई कई। जब हम इधर आकर सेटल हो गए, तब मकान लिया। माहिम में रहते थे।
कमल जी - और पहली गाड़ी आपनें कब ख़रीदी?
शमशाद जी - पहली गाड़ी तो आते ही साल ख़रीदी थी, नहीं तो कैसे आते जाते? नई गाड़ी तो मिलती नहीं थी, तो हमने सेकण्ड हैण्ड ली। नई गाड़ी तो आती नहीं थी। बुकिंग करवानी पड़ती थी या फिर बाहर से आती थी। और कितने कितने साल लग जाते थे, बुकिंग में। फिर '४७ में नई गाड़ी ली, शेवरोले।
कमल जी - मुंबई में सब से ज़्यादा रेकॉर्डिंग् आपकी कहाँ होती थी? यूं तो आज बहुत सारे रेकॉर्डिंग् स्टुडिओज़ हैं, पर उस समय तो गिने-चुने स्टुडिओज़ ही थे। तो सबसे ज़्यादा रेकॉर्डिंग् आपकी कहाँ हुई?
शमशाद जी - आपनें देखा होगा जहाँ पे रणजीत स्टुडिओ हैं न, वहाँ पे गली में जाकर एक बहुत बड़ा स्टुडिओ था - 'सिने साउण्ड'। वहाँ पर बहुत सारे गानें रेकॉर्ड होते थे, क्योंकि वहाँ पे शर्मा का बहुत नाम था ऐज़ रेकॉर्डिस्ट।
कमल जी - अच्छा सब से ज़्यादा रिहर्सल आपने किस गाने के लिये किया था?
शमशाद जी - यह तो भइया मुझे कुछ नहीं याद! मैंने कितने ही गाने गाये हैं।
कमल जी - ऐसा गाना कि एक दिन हो गया, दो दिन भी हो गए?
शमशाद जी - यह तो रोज़ की बात थी। वो एक एक गाने को चार चार छह छह दिन गवाते थे; नौशाद साहब मानेंगे नहीं, आँखें बंद करके बैठ जाते थे। उनकी कितनी ही पिक्चरें हैं जो सिल्वर जुबिली, गोल्डन जुबिली मनायी।
दोस्तों, आज हम शमशाद जी के गाये जिस गीत को लेकर आये हैं, वह है १९५७ की ही फ़िल्म 'मोहिनी' का "कहाँ चले हो जी प्यार में दीवाना करके, मैं तो नीम तले आ गई बहाना करके"। फ़िल्म के संगीतकार थे नारायण दत्ता, जिन्हें हम एन. दत्ता के नाम से ज़्यादा जानते हैं। १९५७ में दत्ता जी नें 'हम पंछी एक डाल के', 'हमारा राज', 'मिस्टर एक्स' और 'मोहिनी' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। 'मोहिनी' में आज के प्रस्तुत गीत के अलावा शमशाद बेगम नें एक और एकल गीत गाया था जिसके बोल हैं "मेरे दिल का सजनवा इलाज"। इस साल शमशाद नें जिन फ़िल्मों में गीत गाये, उसकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है - मदर इण्डिया, मोहिनी, अमर सिंह राठोड़, भक्त ध्रुव, चंडी पूजा, चंगेज़ ख़ान, छोटी बहू, गरमा-गरम, हम पंछी एक डाल के, जहाज़ी लुटेरा, जय अम्बे, कितना बदल गया इंसान, लाल बत्ती, लक्ष्मी पूजा, मायानगरी, मेरा सलाम, मिर्ज़ा साहिबा, मिस बॉम्बे, मिस इण्डिया, मुसाफ़िर, नाग लोक, नया दौर, पाक दमन, पैसा, परिस्तान, पवन पुत्र हनुमान, क़ैदी, राम-लक्ष्मण, सती परीक्षा, शाही बज़ार, शारदा, शेर-ए-बग़दाद, श्याम की जोगन, ताजपोशी, यहूदी की लड़की। इस फ़ेहरिस्त को देख कर आप समझ चुके होंगे कि उस साल शमशाद जी कितनी व्यस्त गायिका रही होंगी। तो आइए आज का गीत सुना जाये, फ़िल्म 'मोहिनी' के इस गीत को लिखा है गीतकार राजा मेहंदी अली ख़ान नें।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
अमित जी, कुछ दिन यूहीं चलने दीजिए, फिर पहेली में कोई नयेपन लेकर हाज़िर होंगें हम
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! शमशाद बेगम के गाये गीतों पर केन्द्रित इस लघु शृंखला में आइए आज एक बार फिर से रुख़ करते हैं कमल शर्मा द्वारा ली गई साक्षात्कार की तरफ़ और पढ़ा जाये उसी साक्षात्कार से कुछ और अंश।
कमल जी - मुंबई में आने के बाद यहाँ आपकी पहली फ़िल्म कौन सी थी?
शमशाद जी - पहली फ़िल्म महबूब साहब का किया, 'तक़दीर', वो लाहौर गये थे। 'तक़दीर' पिक्चर के लिए मुझे बूक किया था। वहाँ उनकी हीरोइन थी, उनका ससुराल भी वहीं था। वो तो नहीं आईं, महबूब साहब मेरे घर आए और कहा कि तुम मेरे साथ चलो। मेरे बाबा आने नहीं देते थे। वो कहते थे इधर ही ठीक है, तुम क्या इतनी दूर बम्बई जाओगी? दो दो साल शक्ल देखने को नहीं मिलेंगे। महबूब साहब नें कहा कि अरे समुंदर में जाने दो उसको। उन्होंने बाबा से कहा कि मिया, आप ग़लत समझ रहे हैं, इसको जाने दीजिए। अब इसका नाम इतना है कि जाने दो इसे, आप नें सोचा भी नहीं होगा कितनी बड़ी इंडस्ट्री है। उनके कहने पर बाबा नें कहा कि अच्छा जाने देते हैं। फिर 'तक़दीर' पिक्चर बनाकर हम वापस (लाहौर) चले गये। 'तक़दीर' में संगीत था रफ़ीक़ ग़ज़नवी का। रफ़ीक़ बहुत अच्छा गाते थे।
कमल जी - लेकिन 'तक़दीर' नें तय कर दिया कि आपकी तक़दीर मुंबई में ही लिखी है।
शमशाद जी - बम्बई में, यहाँ से चली गई थी मैं, फिर मुझे पूना से बुलाया। एक पिक्चर थी 'नवयुग चित्रपट' की - 'पन्ना'। इसके सारे गानें सुपरहिट हुए। और फ़िल्म सिल्वर जुबिली से भी ज़्यादा टाइम चली थी। फिर वहाँ से बम्बई आ गए। बम्बई आने के बाद, यहाँ सब लोग कहने लगे यह करो वह करो। सब करते करते दो महीने लग गए। फिर आहिस्ता आहिस्ता मैं इधर ही रहने लगी। अभी मकान लिया नहीं था, होटल में रहते थे कई कई। जब हम इधर आकर सेटल हो गए, तब मकान लिया। माहिम में रहते थे।
कमल जी - और पहली गाड़ी आपनें कब ख़रीदी?
शमशाद जी - पहली गाड़ी तो आते ही साल ख़रीदी थी, नहीं तो कैसे आते जाते? नई गाड़ी तो मिलती नहीं थी, तो हमने सेकण्ड हैण्ड ली। नई गाड़ी तो आती नहीं थी। बुकिंग करवानी पड़ती थी या फिर बाहर से आती थी। और कितने कितने साल लग जाते थे, बुकिंग में। फिर '४७ में नई गाड़ी ली, शेवरोले।
कमल जी - मुंबई में सब से ज़्यादा रेकॉर्डिंग् आपकी कहाँ होती थी? यूं तो आज बहुत सारे रेकॉर्डिंग् स्टुडिओज़ हैं, पर उस समय तो गिने-चुने स्टुडिओज़ ही थे। तो सबसे ज़्यादा रेकॉर्डिंग् आपकी कहाँ हुई?
शमशाद जी - आपनें देखा होगा जहाँ पे रणजीत स्टुडिओ हैं न, वहाँ पे गली में जाकर एक बहुत बड़ा स्टुडिओ था - 'सिने साउण्ड'। वहाँ पर बहुत सारे गानें रेकॉर्ड होते थे, क्योंकि वहाँ पे शर्मा का बहुत नाम था ऐज़ रेकॉर्डिस्ट।
कमल जी - अच्छा सब से ज़्यादा रिहर्सल आपने किस गाने के लिये किया था?
शमशाद जी - यह तो भइया मुझे कुछ नहीं याद! मैंने कितने ही गाने गाये हैं।
कमल जी - ऐसा गाना कि एक दिन हो गया, दो दिन भी हो गए?
शमशाद जी - यह तो रोज़ की बात थी। वो एक एक गाने को चार चार छह छह दिन गवाते थे; नौशाद साहब मानेंगे नहीं, आँखें बंद करके बैठ जाते थे। उनकी कितनी ही पिक्चरें हैं जो सिल्वर जुबिली, गोल्डन जुबिली मनायी।
दोस्तों, आज हम शमशाद जी के गाये जिस गीत को लेकर आये हैं, वह है १९५७ की ही फ़िल्म 'मोहिनी' का "कहाँ चले हो जी प्यार में दीवाना करके, मैं तो नीम तले आ गई बहाना करके"। फ़िल्म के संगीतकार थे नारायण दत्ता, जिन्हें हम एन. दत्ता के नाम से ज़्यादा जानते हैं। १९५७ में दत्ता जी नें 'हम पंछी एक डाल के', 'हमारा राज', 'मिस्टर एक्स' और 'मोहिनी' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। 'मोहिनी' में आज के प्रस्तुत गीत के अलावा शमशाद बेगम नें एक और एकल गीत गाया था जिसके बोल हैं "मेरे दिल का सजनवा इलाज"। इस साल शमशाद नें जिन फ़िल्मों में गीत गाये, उसकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है - मदर इण्डिया, मोहिनी, अमर सिंह राठोड़, भक्त ध्रुव, चंडी पूजा, चंगेज़ ख़ान, छोटी बहू, गरमा-गरम, हम पंछी एक डाल के, जहाज़ी लुटेरा, जय अम्बे, कितना बदल गया इंसान, लाल बत्ती, लक्ष्मी पूजा, मायानगरी, मेरा सलाम, मिर्ज़ा साहिबा, मिस बॉम्बे, मिस इण्डिया, मुसाफ़िर, नाग लोक, नया दौर, पाक दमन, पैसा, परिस्तान, पवन पुत्र हनुमान, क़ैदी, राम-लक्ष्मण, सती परीक्षा, शाही बज़ार, शारदा, शेर-ए-बग़दाद, श्याम की जोगन, ताजपोशी, यहूदी की लड़की। इस फ़ेहरिस्त को देख कर आप समझ चुके होंगे कि उस साल शमशाद जी कितनी व्यस्त गायिका रही होंगी। तो आइए आज का गीत सुना जाये, फ़िल्म 'मोहिनी' के इस गीत को लिखा है गीतकार राजा मेहंदी अली ख़ान नें।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
अमित जी, कुछ दिन यूहीं चलने दीजिए, फिर पहेली में कोई नयेपन लेकर हाज़िर होंगें हम
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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