ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 748/2011/188
वर्तमान भारतीय संगीत में रागों के वर्गीकरण के लिए ‘थाट’ प्रणाली का प्रचलन है। ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर जारी वर्तमान श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के अन्तर्गत अब तक हमने सात थाटों का परिचय प्राप्त किया है। आज बारी है, आठवें थाट अर्थात ‘आसावरी’ की। इस थाट का परिचय प्राप्त करने से पहले आइए प्राचीन काल में प्रचलित थाट प्रणाली की कुछ चर्चा करते हैं।
सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलन में आ चुका था, जो उस समय के ग्रन्थ ‘संगीत-पारिजात’ और ‘राग-विबोध’ से स्पष्ट है। इसी काल में मेल की परिभाष देते हुए श्रीनिवास ने बताया है कि राग की उत्पत्ति थाट से होती है और थाट के तीन रूप हो सकते हैं- औडव (पाँच स्वर), षाड़व (छह स्वर), और सम्पूर्ण (सात स्वर)। सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक थाटों की संख्या के विषय में विद्वानों में मतभेद भी रहा है। ‘राग-विबोध’ के रचयिता ने थाटों की संख्या २३ वर्णित की है, तो ‘स्वर-मेल कलानिधि’ के प्रणेता २० और ‘चतुर्दंडि-प्रकाशिका’ के लेखक ने १९ थाटों की चर्चा की है।
आज हमारी चर्चा का थाट है- ‘आसावरी’। इस थाट के स्वर होते हैं- सा, रे, ग॒, म, प ध॒, नि॒ अर्थात आसावरी थाट में गांधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आसावरी थाट का आश्रय राग आसावरी ही कहलाता है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य मुख्य राग हैं- जौनपुरी, देवगांधार, सिंधु भैरवी, कौशिक कान्हड़ा, दरबारी कान्हड़ा, अड़ाना आदि। राग आसावरी के आरोह में- सा, रे, म, प, ध॒ सां तथा अवरोह में- सां, नि॒, ध॒, प, मग॒, रे, सा स्वरों का प्रयोग किया जाता है। अर्थात आरोह में गांधार और निषाद स्वर वर्जित होता है। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गांधार होता है। दिन के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन सार्थक अनुभूति कराता है।
थाट आसावरी के आश्रय राग आसावरी पर आधारित एक फिल्म-गीत अब हम आपको सुनवाते हैं। आज हम आपको १९६३ में प्रदर्शित फिल्म ‘आज और कल’ का गीत- ‘मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं....’ सुनवाएँगे। इस गीत में राग आसावरी के स्वरों की छाया ही नहीं बल्कि आसावरी का गाम्भीर्य भी उपस्थित है। संगीतकार रवि ने फिल्म के प्रसंग के अनुसार ही इस गीत के धुन की रचना की है। भान के अनुकूल संगीत–रचना करना रवि की विशेषता रही है। संगीत की कर्णप्रियता तथा धुन की गेयता का वे विशेष ध्यान रखते थे। रागों पर आधारित उनके संगीतबद्ध किये गीत भी एक सामान्य व्यक्ति सरलता से गुनगुना सकता है। गीतकार साहिर लुधियानवी के शब्दों को आशा भोसले और मोहम्मद रफी ने अपने स्वरों से सजाया है। कहरवा ताल में निबद्ध यह गीत अभिनेत्री नन्दा और सुनील दत्त पर फिल्माया गया है। लीजिए, आप सुनिए यह आकर्षक गीत-
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. स्वर है मन्ना दा का.
२. इस संगीतकार जोड़ी के आरंभिक दिनों की फिल्म थी ये.
३. प्रभात की बेला को वर्णित करता ये मधुर गीत.
अब बताएं -
किस राग आधारित है गीत - ३ अंक
गीतकार का नाम बताएं - २ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी शायद आपकी मुराद हम पूरी कर पाए हैं
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
वर्तमान भारतीय संगीत में रागों के वर्गीकरण के लिए ‘थाट’ प्रणाली का प्रचलन है। ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर जारी वर्तमान श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के अन्तर्गत अब तक हमने सात थाटों का परिचय प्राप्त किया है। आज बारी है, आठवें थाट अर्थात ‘आसावरी’ की। इस थाट का परिचय प्राप्त करने से पहले आइए प्राचीन काल में प्रचलित थाट प्रणाली की कुछ चर्चा करते हैं।
सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलन में आ चुका था, जो उस समय के ग्रन्थ ‘संगीत-पारिजात’ और ‘राग-विबोध’ से स्पष्ट है। इसी काल में मेल की परिभाष देते हुए श्रीनिवास ने बताया है कि राग की उत्पत्ति थाट से होती है और थाट के तीन रूप हो सकते हैं- औडव (पाँच स्वर), षाड़व (छह स्वर), और सम्पूर्ण (सात स्वर)। सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक थाटों की संख्या के विषय में विद्वानों में मतभेद भी रहा है। ‘राग-विबोध’ के रचयिता ने थाटों की संख्या २३ वर्णित की है, तो ‘स्वर-मेल कलानिधि’ के प्रणेता २० और ‘चतुर्दंडि-प्रकाशिका’ के लेखक ने १९ थाटों की चर्चा की है।
आज हमारी चर्चा का थाट है- ‘आसावरी’। इस थाट के स्वर होते हैं- सा, रे, ग॒, म, प ध॒, नि॒ अर्थात आसावरी थाट में गांधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आसावरी थाट का आश्रय राग आसावरी ही कहलाता है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य मुख्य राग हैं- जौनपुरी, देवगांधार, सिंधु भैरवी, कौशिक कान्हड़ा, दरबारी कान्हड़ा, अड़ाना आदि। राग आसावरी के आरोह में- सा, रे, म, प, ध॒ सां तथा अवरोह में- सां, नि॒, ध॒, प, मग॒, रे, सा स्वरों का प्रयोग किया जाता है। अर्थात आरोह में गांधार और निषाद स्वर वर्जित होता है। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गांधार होता है। दिन के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन सार्थक अनुभूति कराता है।
थाट आसावरी के आश्रय राग आसावरी पर आधारित एक फिल्म-गीत अब हम आपको सुनवाते हैं। आज हम आपको १९६३ में प्रदर्शित फिल्म ‘आज और कल’ का गीत- ‘मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं....’ सुनवाएँगे। इस गीत में राग आसावरी के स्वरों की छाया ही नहीं बल्कि आसावरी का गाम्भीर्य भी उपस्थित है। संगीतकार रवि ने फिल्म के प्रसंग के अनुसार ही इस गीत के धुन की रचना की है। भान के अनुकूल संगीत–रचना करना रवि की विशेषता रही है। संगीत की कर्णप्रियता तथा धुन की गेयता का वे विशेष ध्यान रखते थे। रागों पर आधारित उनके संगीतबद्ध किये गीत भी एक सामान्य व्यक्ति सरलता से गुनगुना सकता है। गीतकार साहिर लुधियानवी के शब्दों को आशा भोसले और मोहम्मद रफी ने अपने स्वरों से सजाया है। कहरवा ताल में निबद्ध यह गीत अभिनेत्री नन्दा और सुनील दत्त पर फिल्माया गया है। लीजिए, आप सुनिए यह आकर्षक गीत-
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. स्वर है मन्ना दा का.
२. इस संगीतकार जोड़ी के आरंभिक दिनों की फिल्म थी ये.
३. प्रभात की बेला को वर्णित करता ये मधुर गीत.
अब बताएं -
किस राग आधारित है गीत - ३ अंक
गीतकार का नाम बताएं - २ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी शायद आपकी मुराद हम पूरी कर पाए हैं
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
yun maine kalpana bhi nhi ki thi ki jis gaane ke liye main soch rhi hunpichhli paheli ka uttar wahi geet hai.uff kya gana hai !aankhen moond kr kai kai baar ise sunti hun.hnasi mt udana jo kahun kilgta hai mera krishnaa hi jaise mujhe gle lga kr bolta hai 'bahut sahi ghame duniya magar udaas na'....thanx....thanx itne pyaare gaane ke liye itta sara pyar poori team ko