Skip to main content

पी के घर आज प्यारी दुल्हन....एक विदाई गीत शमशाद के स्वरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 738/2011/178



पार्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की सातवीं कड़ी में आप सब का स्वागत है। नय्यर साहब के दो गीत सुनने के बाद आज एक बार फिर बारी नौशाद साहब की। १९५७ में नौशाद साहब की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही 'मदर इण्डिया'। इस फ़िल्म में शमशाद बेगम के गाये दो एकल गीतों नें फ़िल्म के अन्य गीतों के साथ साथ ख़ूब धूम मचाई। इनमें से एक तो है मशहूर होली गीत "होली आयी रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी", जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पिछले साल सुनवाया था, और इस साल भी होली के अवसर पर शकील बदायूनी के बेटे जावेद बदायूनी से की गई बातचीत पर केन्द्रित 'शनिवार विशेष' में सुनवाया था। शमशाद जी का गाया 'मदर इण्डिया' का दूसरा गीत था विदाई गीत "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली, रोये माता पिता उनकी दुनिया चली"। बड़ा ही दिल को छू लेने वाला विदाई गीत है यह। शमशाद बेगम के गाये मस्ती भरे गीतों को हमने ज़्यादा सुना है। लेकिन कुछ गीत उनके ऐसे भी हैं जो सीरियस क़िस्म के हैं। १९४८ में नौशाद साहब नें शमशाद बेगम से गवाया था "धरती को आकाश पुकारे"। और इसके १० साल बाद नौशाद साहब नें ही उनसे 'मदर इण्डिया' में "पी के घर" गवाया। दृश्य में राज कुमार और नरगिस का विवाह होता है, और उसके बाद विदाई होती है और पाश्व में शमशाद बेगम और सखियों की आवाज़ें गूंज उठती है। दीपचंदी ताल पर आधारित यह गीत शमशाद बेगम के करीयर का एक उल्लेखनीय गीत है। दीपचंदी ताल पर बहुत से गीत बने हैं, जिनमें राग पहाड़ी का मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है।



आज जब नरगिस और शमशाद बेगम का एक साथ ज़िक्र चल पड़ा है, तो क्यों न आज इस अभिनेत्री-गायिका जोड़ी के बारे में थोड़ी चर्चा की जाये! महबूब ख़ान नें जब अपनी फ़िल्म 'तक़दीर' प्लैन की तो वो एक नए चेहरे की तलाश कर रहे थे। और १४ साल की नरगिस को मोतीलाल के ऑपोज़िट चुन लिया। और उनकी पार्श्वगायन के लिए चुना गया शमशाद बेगम को। फ़िल्म के सभी गीत कामयाब रहे और शमशाद जी बन गईं नरगिस जी की आवाज़। 'तक़दीर' की सफलता के बाद शमशाद-नरगिस जोड़ी वापस आईं दो साल बाद, यानी १९४५ में महबूब साहब की ही फ़िल्म 'हुमायूं' में। इस फ़िल्म में शमशाद जी से गीत गवाये गये लेकिन ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड पर राजकुमारी की आवाज़ थी। इस फ़िल्म का "नैना भर आये नीर" गीत को बहुत सफलता मिली थी। १९४७ में नरगिस अभिनीत फ़िल्म 'मेहंदी' में शमशाद जी नें गाया "ओ दूर जाने वाले आती है याद आजा"। १९४८ में नरगिस-शमशाद की जोड़ी नें दो सुपरहिट फ़िल्मों में काम किया - 'आग' और 'मेला'। 'आग' फ़िल्म का "काहे कोयल शोर मचाये" आप इसी शृंखला में सुन चुके हैं। 'नरगिस आर्ट कन्सर्ण' की फ़िल्म 'अंजुमन' में भी शमशाद जी से गीत गवाये गये। इस फ़िल्म के सात शमशाद नंबर्स में पाँच एकल थे और दो युगल। १९४९ की फ़िल्म 'अंदाज़' में लता जी नें नरगिस का प्लेबैक किया, जब कि शमशाद जी की आवाज़ ली गई कुक्कू के लिए। यह वह समय था जब लता मंगेशकर पहली पहली बार के लिए उस समय की प्रचलित गायिकाओं के सामने कड़ी चुनौती रख दी। १९५० में 'बाबुल' फ़िल्म में एक बार फिर शमशाद जी की आवाज़ सजी नरहिस के होठों पर, हालांकि फ़िल्म के सभी शमशाद नंबर्स गीत नरगिस पर नहीं फ़िल्माये गये थे। इस फ़िल्म में शमशाद जी मुख्य गायिका थीं और लता जी दूसरी गायिका। लेकिन बहुत जल्द ही लता जी मुख्य गायिका के रूप में स्थापित हो गईं। फ़ीमेल डुएट्स में पहले पहले शमशाद बेगम नायिका की आवाज़ बनतीं और लता जी नायिका की सहेली या बहन की; पर ५० के दशक में लता जी बन गईं नायिका की आवाज़ और शमशाद जी की आवाज़ पर "दूसरी लड़की" नें होंठ हिलाये। आइए अब सुना जाये आज का गीत फ़िल्म 'मदर इण्डिया' से। शक़ील साहब के बोल और नौशाद साहब का संगीत।







और अब एक विशेष सूचना:

२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।



पहेली में अमित जी के आलावा कोई उत्साह के साथ रूचि नहीं ले रहा. हमें लगता है कि आने वाले गीत का अंदाजा लगाने के बजाय अब से हम प्रस्तुत गीत पर चर्चा करें...आपका क्या विचार है



खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी






इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

सुजॉय जी / सजीव जी मेरे विचार से तो पहेली जारी रहनी चाहिए.क्षिती जी ने भी उत्तर दिया देरी से सही पर दिया तो. बाकी लोगों का पता नहीं कि वो उत्साहित नही है या फिर समय का अभाव.

बहरहाल आख़िरी निर्णय आप लोगों का है.
indu puri said…
पहेली पूछना बंद मत करो सुजॉय-सजीव जी !
इस साल मेरे दिल ने बहुत झटके दिए वरना आप लोगो के बिना मैं रह सकती थी क्या?
तीन महीने मे दो बार एन्जियोप्लाती करवानी पड़ी उस दौरान जो दर्द ,तकलीफ मैंने सही........क्या लिखूं? जिस व्यक्ति को जीवन भर ये नही मालूम सिर दर्द कैसे होता है या बुखार किसे कहते हैं.जो बिना बोले बिना ठहाके लगाए एक घंटा क्या दस मिनट नही रह पाती थी....उसके लिए यह सब बहुत ही हाताश निराश कर देने वाली स्थिति थी.मैं हंसना,बोलना सब भूल गई थी बाबु! बड़ी मुश्किल से खुद ने खुद को इस हालात से उबारा.मैं आप लोगों से बहुत प्यार करती हूँ बाबु! किसी स्वार्थ या अपेक्षाओं से जुडे हुए नही हैं हम..... एक निःस्वार्थ खूबसूरत रिश्ता है हम सब के बीच. शब्दों से परे.ईश्वर से प्रेम का आधार भी भय या हमारी अधूरी इच्छाओं की पूर्ती की चाह रहती है न ? यहाँ तो वो भाव भी नही है.
इसलिए ये न सोचिये कि हमारी रूचि इस ब्लॉग या कार्यक्रम मे नही रही...........
जारी रखो.आप लोगो की मेहनत,समर्पण और जूनून के आगे मैं नतमस्तक हूँ.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...