Skip to main content

धडकते दिल की तम्मना हो मेरा प्यार हो तुम....कितने कम हुए है इतने मासूम और मुकम्मल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 588/2010/288

सुरैया के गाये सुमधुर गीतों से सजी लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' की आठवीं कड़ी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप सभी हम हार्दिक स्वागत करते हैं। आज की कड़ी के लिए हमने जो गीत चुना है वह ना केवल सुरैया जी के संगीत सफ़र का एक अहम अध्याय रहा है, बल्कि इस गीत के संगीतकार के लिए भी एक मीलस्तंभ गीत सिद्ध हुआ था। ये कमचर्चित और अण्डर-रेटेड म्युज़िक डिरेक्टर थे ग़ुलाम मोहम्मद। १९६१ की फ़िल्म 'शमा' का बेहद मशहूर और ख़ूबसूरत गीत "धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम, मुझे क़रार नहीं जब से बेक़रार हो तुम"। गीत नहीं, बल्कि ग़ज़ल कहें तो बेहतर होगा। कैफ़ी आज़्मी साहब ने क्या ख़ूब लफ़्ज़ पिरोये हैं इस ग़ज़ल में। ग़ुलाम मोहम्मद की तरह क़ैफ़ी साहब भी अण्डर-रेटेड रहे हैं, और उनकी लेखन प्रतिभा का फ़िल्म जगत उस हद तक लाभ नहीं उठा सका जितना उठा सकता था। आगे बढ़ने से पहले आइए इस ग़ज़ल के बाक़ी के शेर यहाँ लिखें...

धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम,
मुझे क़रार नहीं जब से बेक़रार हो तुम।

खिलाओ फूल किसी के किसी चमन में रहो,
जो दिल की राह से गुज़री है वो बहार हो तुम।

ज़ह-ए-नसीब अता कि जो दर्द की सौग़ात,
वो ग़म हसीन है जिस ग़म के ज़िम्मेदार हो तुम।

चढ़ाऊँ फूल या आँसू तुम्हारे क़दमों में,
मेरी वफ़ाओं की उल्फ़त की यादगार हो तुम।

जितने सुंदर बोल, उतनी ही प्यारी धुन, और उतनी ही सुरीली आवाज़, कुल मिलाकर फ़िल्म संगीत के धरोहर का एक अनमोल नगीना है यह ग़ज़ल। ग़ुलाम मोहम्मद की बात करें तो १९२४ में वे बम्बई आये थे और ८ सालों तक संघर्ष करने के बाद उन्हें सरोज मूवीटोन में बतौर तबला वादक नियुक्ति मिली थी। उसके बाद अनिल बिस्वास और नौशाद के सहायक और वादक के रूप में काम किया। नौशाद साहब के साथ उनकी युनिंग् ख़ूब जमी और नौशाद साहब की रचनाओं में ढोलक और तबले के ठेकों का जो रंग निखर कर आता था, वो ग़ुलाम मोहम्मद साहब की ही देन थी। फ़िल्म 'आन' के बाद ग़ुलाम मोहम्मद एक स्वतंत्र संगीतकार बन गये। 'हूर-ए-अरब', 'पगड़ी', 'पारस', और 'परदेस' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। जहाँ तक ग़ुलाम मोहम्मद और सुरैया के साथ की बात है, १९४९ की फ़िल्म 'शायर' में एक उल्लेखनीय गीत था सुरैया का गाया हुआ "हमें तुम भूल बैठे हो, तुम्हें हम याद करते हैं"। उस ज़माने में ग़ुलाम साहब ज़्यादातर लता और शम्शाद बेगम को गवा रहे थे। १९५३ में 'दिल-ए-नादान' फ़िल्म से ग़ुलाम मोहम्मद ग़ज़लनुमा गीतों में भी महारथ हासिल कर ली, जिसकी परछाई अगले ही साल 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में दिखाई दी। आशा भोसले, सुधा मल्होत्रा और जगजीत कौर को भी गवा लेने के बाद 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में सुरैया के साथ उनका उत्कृष्ट काम हुआ। फिर आगे चलकर १९५८ की फ़िल्म 'मालिक' में "मन धीरे धीरे गाये रे मालूम नहीं कौन" एक सदाबहार सुरैया-तलत डुएट रहा है। और इसके बाद १९६१ की फ़िल्म 'शमा' के गानें तो हैं ही। यानी कि कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भले ग़ुलाम मोहम्मद ने सुरैया को ज़्यादा नहीं गवाया, या युं कहें कि ज़्यादा गवाने का अवसर उन्हें नहीं मिला, लेकिन इस जोड़ी का स्कोर १००% रहा है। जितना भी काम हुआ उत्कृष्ट ही हुआ। तो आइए इस जोड़ी के नाम आज की यह शाम करते हुए फ़िल्म 'शमा' की यह सदाबहार ग़ज़ल सुनते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि मुशायरे के रूप में ढाल कर उर्दू शायरी को ग़ुलाम मोहम्मद ने एक और फ़िल्म 'पाक दमन' (१९५७) में संगीत से सजाया था और रफ़ी, चाँदबाला, मुबारक़ बेगम और शक़ील बदायूनी की आवाज़ों का इस्तेमाल किया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 09/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र -बेहद मशहूर गीत.

सवाल १ - फिल्म के निर्देशक बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह क्या बात है....फिर एक बार वही कहानी, अमित जी २ अंकों से आगे जरूर हैं, पर अंजाना जी जिस तरह की टक्कर उन्हें दे रहे हैं कमाल है...विजय जी और इंदु जी धन्येवाद

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

संगीतकार-गुलाम मोहम्मद
Anjaana said…
Music Director :Ghulam Mohammad
AVADH said…
मेरे ख्याल से यह शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल होनी चाहिए.
अवध लाल
सवाल १ - फिल्म के निर्देशक बताएं - Sohrab Modi

Pratibha
Ottawa, Canada
nuktachi hai....yhi to nhi kahin ye geet ?

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...