ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 599/2010/299
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और फिर एक बार स्वागत है इस महफ़िल में जिसमें हम इन दिनों पियानो की बातें कर रहे हैं। आइए आज पियानो का वैज्ञानिक पक्ष आज़माया जाए। सीधे सरल शब्दों में जब भी किसी 'की' पर वार होता है, एक चेन रीऐक्शन होता है जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। पहले 'की' 'विपेन' को उपर उठाता है, जो 'जैक' को 'हैमर रोलर' पर वार करवाता है। उसके बाद हैमर रोलर लीवर को उपर उठाता है। 'की' 'डैम्पर' को भी उपर की तरफ़ उठाता है, और जैसे ही 'हैमर' 'वायर' को स्ट्राइक करके ही वापस अपनी जगह चला जाता है और वायर में वाइब्रेशन होने लगती है, रेज़ोनेट होने लगता है। जब 'की' को छोड़ दिया जाता है, तो डैम्पर वापस स्ट्रिंग्स पर आ जाता है जिससे कि वायर का वाइब्रेशन बंद हो जाता है। वाइब्रेटिंग पियानो स्ट्रिंग्स से उत्पन्न ध्वनियाँ इतनी ज़ोरदार नहीं होती कि सुनाई दे, इसलिए इस वाइब्रेशन को एक बड़े साउण्ड-बोर्ड में पहुँचा दिया जाता है जो हवा को हिलाती है, और इस तरह से उर्जा ध्वनि तरंगों में परिवर्तित हो जाती हैं। अब बात आती है कि ये ध्वनि तरंगें किस तरह की होंगी, कितनी ऊँची पट्टी होगी। तीन चीज़ें हैं जो उस वाइब्रेशन के पिच पर असर करती हैं। ये हैं लम्बाई (वायर जितनी छोती होगी, पिच उतना ऊँचा होगा), चौड़ाई (वायर जितनी पतली होगी, पिच उतना ऊँचा होगा), और टेन्शन (वायर जितनी टाइट होगी, पिच उतना ऊँचा होगा)। एक वाइब्रेटिंग वायर अपने आप को कई छोटे वायरों में बाँट लेती है। और प्रत्येक भाग एक अपना अलग पिच उत्पन्न करती है, जिसे 'पार्शियल' (partial) कहते हैं। किसी वाइब्रेटिंग स्ट्रिंग में एक फ़ण्डमेण्टल होता है और पार्शियल्स का एक पूरा सीरीज़ होता है। इस विज्ञान को अगर और ज़्यादा गहराई से जानना हो तो आप किसी भी कॊलेज फ़िज़िक्स पुस्तक के 'साउण्ड' अध्याय को रेफ़र कर सकते हैं।
'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला में कल आपने ८० के दशक का एक गीत सुना था और आज भी हम इसी दशक में रहेंगे, और कल के और आज के गाने में एक और समानता यह है कि इन दोनों गानों में कुछ हद तक जीवन दर्शन की बातें छुपी हुईं हैं। "जीवन के दिन छोटे सही हम भी बड़े दिलवाले" के बाद आज बारी है "ज़िंदगी हर क़दम एक नई जंग है, जीत जाएँगे हम तू अगर संग है"। जी हाँ, १९८५ की ब्लॊकबस्टर फ़िल्म 'मेरी जंग' का सब से उल्लेखनीय यह गीत है हमारे आज के अंक का गीत। यह गीत भी ख़ूब लोकप्रिय हुआ था और फ़िल्म की कहानी के साथ भी सीधी सीधी जुड़ी हुई है। फ़िल्म की शुरुआत में नूतन और गिरिश करनाड अपने बच्चों के साथ इस गीत को गाते हुए नज़र आते हैं (लता और नितिन मुकेश की आवाज़ों में)। एक ग़लत केस में गिरिश करनाड फँस जाते हैं और उन्हें फाँसी हो जाती है, जिसे नूतन सह नहीं पातीं और मानसिक संतुलन खो बैठती हैं। उनका बेटा अनिल कपूर अपनी माँ और बहन की देखभाल करता है, और कोशिश करता रहता है कि अपनी माँ की याद्दाश्त वापस ला सके। और इस प्रयास में उनका सहारा बनता है वही गीत, और बार बार वो इस गीत को गाते रहते हैं। इस तरह से इस गीत के दो और वर्ज़न है फ़िल्म में, एक शब्बीर कुमार का एकल और एक में शब्बीर कुमार के साथ लता जी भी हैं, जो फ़िल्माया गया है अनिल कपूर और उनकी नायिका मीनाक्षी शेषाद्री पर। और आख़िरकार यही गीत नूतन की याद्दाश्त वापस लाता है। एन.एन. सिप्पी निर्मित और सुभाष घई निर्देशित इस फ़िल्म को लोगों ने हाथों हाथ लिया, और फ़िल्मफ़ेयर में इस फ़िल्म में जानदार अभिनय के लिए नूतन और अमरीश पुरी, दोनों को ही सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री और सह-अभिनेता के पुरस्कार मिले। 'मेरी जंग' के गीतकार थे आनंद बक्शी और संगीतकार थे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। इस गीत में पियानो का इस्तेमाल जितना सुंदर है, उतने ही शानदार हैं इसके बोल। पूर्णत: आशावादी स्वर में लिखे इस गीत को जब भी हम सुनते हैं, दिल में जैसे एक जोश उत्पन्न हो जाता है ज़िंदगी को एक चैलेंज की तरह स्वीकार करने का। और अगर आप मायूस हैं, टेन्शन में है, दुखी हैं, तो यकीन मानिये, यह गीत किसी दवा से कम कारगर नहीं है। आज़माके देखिएगा कभी! तो आइए इस ख़ूबसूरत गीत को सुना जाये, पहले लता मंगेशकर और नितिन मुकेश की आवाज़ों में और उसके बाद शब्बीर कुमार और लता मंगेशकर की आवाज़ों में। इस गीत में आप मेरी पसंद भी शामिल कर लीजिए, बचपन से लेकर आज तक यह मेरे फ़ेवरिट गीतों में से एक रहा है। और दोस्तों, आज चलते चलते 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तरफ़ से हम भी आप से यही कहना चाहेंगे कि जीत जाएँगे हम आप अगर हमारे संग है। तो अपना साथ युंही बनाये रखिएगा, हमेशा।
क्या आप जानते हैं...
कि यामाहा पियानो कंपनी ने एक नई तरह का पियानो बनाया है जिसकी कीमत कुछ ३३३,००० अमरीकी डॊलर्स है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - १९९१ में प्रदर्शित हुई थी ये फिल्म.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म के निर्देशक की ये पहली फिल्म थी, और वो मुख्यता अभिनय तक सीमित रहते हैं, कौन हैं ये - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्माता कौन थे - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
कल तो अंजाना जी जल्दबाजी में बुरी तरह चूक गए, और ये चूक उन्हें भारी पड़ सकती है....यानी आज फैसला मैच की अंतिम गेंद पर होगा...अंजाना जी आपसे ऐसी शिकायत की उम्मीद नहीं थी...ये तो गुगली है बीच बीच में नहीं पड़े तो सपाट पिच में गेम का मज़ा नहीं रहता...इसे स्पोर्ट्समैन शिप के साथ लीजिए...मौसम क्रिकेट का है इसलिए हम भी जरा उसी भाषा में बतिया रहे हैं....वैसे विजय जी आपको भी कुछ शिकायत थी...कुछ हद तक दूर हुई या नहीं...:)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और फिर एक बार स्वागत है इस महफ़िल में जिसमें हम इन दिनों पियानो की बातें कर रहे हैं। आइए आज पियानो का वैज्ञानिक पक्ष आज़माया जाए। सीधे सरल शब्दों में जब भी किसी 'की' पर वार होता है, एक चेन रीऐक्शन होता है जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। पहले 'की' 'विपेन' को उपर उठाता है, जो 'जैक' को 'हैमर रोलर' पर वार करवाता है। उसके बाद हैमर रोलर लीवर को उपर उठाता है। 'की' 'डैम्पर' को भी उपर की तरफ़ उठाता है, और जैसे ही 'हैमर' 'वायर' को स्ट्राइक करके ही वापस अपनी जगह चला जाता है और वायर में वाइब्रेशन होने लगती है, रेज़ोनेट होने लगता है। जब 'की' को छोड़ दिया जाता है, तो डैम्पर वापस स्ट्रिंग्स पर आ जाता है जिससे कि वायर का वाइब्रेशन बंद हो जाता है। वाइब्रेटिंग पियानो स्ट्रिंग्स से उत्पन्न ध्वनियाँ इतनी ज़ोरदार नहीं होती कि सुनाई दे, इसलिए इस वाइब्रेशन को एक बड़े साउण्ड-बोर्ड में पहुँचा दिया जाता है जो हवा को हिलाती है, और इस तरह से उर्जा ध्वनि तरंगों में परिवर्तित हो जाती हैं। अब बात आती है कि ये ध्वनि तरंगें किस तरह की होंगी, कितनी ऊँची पट्टी होगी। तीन चीज़ें हैं जो उस वाइब्रेशन के पिच पर असर करती हैं। ये हैं लम्बाई (वायर जितनी छोती होगी, पिच उतना ऊँचा होगा), चौड़ाई (वायर जितनी पतली होगी, पिच उतना ऊँचा होगा), और टेन्शन (वायर जितनी टाइट होगी, पिच उतना ऊँचा होगा)। एक वाइब्रेटिंग वायर अपने आप को कई छोटे वायरों में बाँट लेती है। और प्रत्येक भाग एक अपना अलग पिच उत्पन्न करती है, जिसे 'पार्शियल' (partial) कहते हैं। किसी वाइब्रेटिंग स्ट्रिंग में एक फ़ण्डमेण्टल होता है और पार्शियल्स का एक पूरा सीरीज़ होता है। इस विज्ञान को अगर और ज़्यादा गहराई से जानना हो तो आप किसी भी कॊलेज फ़िज़िक्स पुस्तक के 'साउण्ड' अध्याय को रेफ़र कर सकते हैं।
'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला में कल आपने ८० के दशक का एक गीत सुना था और आज भी हम इसी दशक में रहेंगे, और कल के और आज के गाने में एक और समानता यह है कि इन दोनों गानों में कुछ हद तक जीवन दर्शन की बातें छुपी हुईं हैं। "जीवन के दिन छोटे सही हम भी बड़े दिलवाले" के बाद आज बारी है "ज़िंदगी हर क़दम एक नई जंग है, जीत जाएँगे हम तू अगर संग है"। जी हाँ, १९८५ की ब्लॊकबस्टर फ़िल्म 'मेरी जंग' का सब से उल्लेखनीय यह गीत है हमारे आज के अंक का गीत। यह गीत भी ख़ूब लोकप्रिय हुआ था और फ़िल्म की कहानी के साथ भी सीधी सीधी जुड़ी हुई है। फ़िल्म की शुरुआत में नूतन और गिरिश करनाड अपने बच्चों के साथ इस गीत को गाते हुए नज़र आते हैं (लता और नितिन मुकेश की आवाज़ों में)। एक ग़लत केस में गिरिश करनाड फँस जाते हैं और उन्हें फाँसी हो जाती है, जिसे नूतन सह नहीं पातीं और मानसिक संतुलन खो बैठती हैं। उनका बेटा अनिल कपूर अपनी माँ और बहन की देखभाल करता है, और कोशिश करता रहता है कि अपनी माँ की याद्दाश्त वापस ला सके। और इस प्रयास में उनका सहारा बनता है वही गीत, और बार बार वो इस गीत को गाते रहते हैं। इस तरह से इस गीत के दो और वर्ज़न है फ़िल्म में, एक शब्बीर कुमार का एकल और एक में शब्बीर कुमार के साथ लता जी भी हैं, जो फ़िल्माया गया है अनिल कपूर और उनकी नायिका मीनाक्षी शेषाद्री पर। और आख़िरकार यही गीत नूतन की याद्दाश्त वापस लाता है। एन.एन. सिप्पी निर्मित और सुभाष घई निर्देशित इस फ़िल्म को लोगों ने हाथों हाथ लिया, और फ़िल्मफ़ेयर में इस फ़िल्म में जानदार अभिनय के लिए नूतन और अमरीश पुरी, दोनों को ही सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री और सह-अभिनेता के पुरस्कार मिले। 'मेरी जंग' के गीतकार थे आनंद बक्शी और संगीतकार थे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। इस गीत में पियानो का इस्तेमाल जितना सुंदर है, उतने ही शानदार हैं इसके बोल। पूर्णत: आशावादी स्वर में लिखे इस गीत को जब भी हम सुनते हैं, दिल में जैसे एक जोश उत्पन्न हो जाता है ज़िंदगी को एक चैलेंज की तरह स्वीकार करने का। और अगर आप मायूस हैं, टेन्शन में है, दुखी हैं, तो यकीन मानिये, यह गीत किसी दवा से कम कारगर नहीं है। आज़माके देखिएगा कभी! तो आइए इस ख़ूबसूरत गीत को सुना जाये, पहले लता मंगेशकर और नितिन मुकेश की आवाज़ों में और उसके बाद शब्बीर कुमार और लता मंगेशकर की आवाज़ों में। इस गीत में आप मेरी पसंद भी शामिल कर लीजिए, बचपन से लेकर आज तक यह मेरे फ़ेवरिट गीतों में से एक रहा है। और दोस्तों, आज चलते चलते 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तरफ़ से हम भी आप से यही कहना चाहेंगे कि जीत जाएँगे हम आप अगर हमारे संग है। तो अपना साथ युंही बनाये रखिएगा, हमेशा।
क्या आप जानते हैं...
कि यामाहा पियानो कंपनी ने एक नई तरह का पियानो बनाया है जिसकी कीमत कुछ ३३३,००० अमरीकी डॊलर्स है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - १९९१ में प्रदर्शित हुई थी ये फिल्म.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म के निर्देशक की ये पहली फिल्म थी, और वो मुख्यता अभिनय तक सीमित रहते हैं, कौन हैं ये - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्माता कौन थे - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
कल तो अंजाना जी जल्दबाजी में बुरी तरह चूक गए, और ये चूक उन्हें भारी पड़ सकती है....यानी आज फैसला मैच की अंतिम गेंद पर होगा...अंजाना जी आपसे ऐसी शिकायत की उम्मीद नहीं थी...ये तो गुगली है बीच बीच में नहीं पड़े तो सपाट पिच में गेम का मज़ा नहीं रहता...इसे स्पोर्ट्समैन शिप के साथ लीजिए...मौसम क्रिकेट का है इसलिए हम भी जरा उसी भाषा में बतिया रहे हैं....वैसे विजय जी आपको भी कुछ शिकायत थी...कुछ हद तक दूर हुई या नहीं...:)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
नही न्.
अपन तो जो भी करते सब कुछ भूल बहाल बस उसमे डूब जाते हैं.जब तक मन संतुष्ट नही हो जाता लगी रहती हूँ.आपने भी तो ये जो संगीत में डूबना सीख लिया है,जानते है इसके अपने सुख को.
तो बेहद थकान के बाद भी मैं इसे इंजॉय कर रही हूँ और भागते-२ देखो आपको खत लिख कर ही जा रही हूँ.टेक केअर और सबको खूब याद करना.
बाय.त्रुटियों के लिए माफी.... अभि दुबारा पढ़ने का समय नही है.स्वयम एडिट करे.
हा हा हा
ऐसिच है आपकी इंदु तो
इस बार आपने पहेली में एक प्रहार कर दिया.
लगातार एक ही संगीतकार के दो गीत श्रृंखला में शामिल कर के.
अवध लाल
अब भी ले सकते हो ना?ले लो प्लीज़ मेरी ओर से हेप्पी बर्थडे वाला प्यार...आशीर्वाद और ढेर सारी शुभकामनाएं.
लक्ष्मी सरस्वती मेहरबान हो और जीवन संगीतमयी हो