ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 590/2010/290
सुरैया के गाये सुमधुर गीतों को सुनते हुए और उनकी चर्चा करते हुए हम आज आ पहुँचे हैं उन पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' की दसवीं और अंतिम कड़ी पर। आइए आज हम सुरैया की उस ज़िंदगी में थोड़ा झाँके जिसे वो फ़िल्मलाइन छोड़ने के बाद अंत तक जी रही थीं। हालाँकि उन्हें आर्थिक तौर पर कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन वो बहुत अकेली हो गई थीं। अंतिम दिनों में वो अपने वकील पर निर्भर थीं, जिन्होंने उनका ख़याल भी रखा, और सुरैया ने भी अपनी कुछ सम्पत्ति उनकी बेटियों के नाम कर दीं। लेकिन इसके अलावा भी सुरैया की बहुत सारी स्थायी सम्पत्ति थी, जिसमें थे वर्ली में एक पूरी इमारत जिसमें ६ फ़्लैट्स, गराज और आउटहाउसेस थे; इसके अलावा लोनावला में भी एक बंगला था। इतनी सारी जायदाद की मालकिन होने के बावजूद सुरैया एक किराये के फ़्लैट में रहती थीं। १९९८ में वो गुमनामी से बाहर निकलीं और स्क्रीन विडिओकॊन अवार्ड्स में शरीक हुईं, जिसमें अभिनेता सुनिल दत्त के हाथों से 'लाइफ़टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड' ग्रहण किया। सफ़ेद सलवार कमीज़ में उस दिन भी सुरैया कितनी ग्रेसफ़ुल दिख रहीं थीं। उनमें जो अदबी बात थी, वह बात अंत तक उनमें कायम थी। पुरस्कार लेते वक़्त जब उन्होंने माइक हाथ में लिया तो इतनी जज़्बाती हो गईं कि उनका गला चोक हो गया। जावेद जाफ़री ने जब उनसे कुछ गुनगुनाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया, जिसका सभी ने सम्मान किया। ३१ जुलाई २००४ को सुरैया हमें छोड़ कर चली गईं अलविदा अलविदा कहते हुए।
आज के अंक के लिए हमने चुना है फ़िल्म 'शमा परवाना' का गीत "अलविदा अलविदा, ओ जाने तमन्ना अलविदा, हो सके तो बख्श देना"। 'प्यार की जीत' और 'बड़ी बहन' जैसी सुपर-डुपर हिट फ़िल्मों के बाद डी. डी. कश्यप ने सुरैया को १९५४ की इस फ़िल्म 'शमा परवाना' में डिरेक्ट दिया और इसमें पहली बार उनके नायक बनें शम्मी कपूर। अब तक शम्मी कपूर 'जीवन ज्योति', 'गुल सानोबार', 'खोज', 'लैला मजनु', 'रेल का डिब्बा', 'ठोकर' और 'महबूबा' जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके थे। इस फ़िल्म में शम्मी कपूर के साथ काम करने की यादों को सुरैया ने कुछ इस तरह से व्यक्त किया था उस 'जयमाला' कार्यक्रम में - "आजकल तो ऐक्टिंग् सीखाने के बाक़ायदा स्कूल खुले हुए हैं, लेकिन फिर भी ज़रा कमज़ोरी दिखायी देती है। मुझे तो ऐसा लगता है कि आज के कलाकार कला की तरफ़ ध्यान कम देते हैं। पुराने कलाकारों में सहगल साहब और मोतीलाल जी ऐसे कलाकार थे जिनकी ऐक्टिंग् और ज़िंदगी में फ़र्क नहीं महसूस होता था। इसकी वजह यह थी कि इन लोगों ने कला को अपने जीवन में ढाल लिया था। फ़िल्म 'शमा परवाना' में मेरा और शम्मी कपूर का साथ था। उन दिनों शम्मी कपूर फ़िल्मों में नये नये आये थे, बहुत दुबले पतले, नाज़ुक से थे। आज की तरह उस समय वो उछल-कूद करते तो मैं कह देती "ज़रा सम्भल के, कहीं कमर में लोच ना आ जाए (हँसते हुए)"। तो लीजिए फ़िल्म 'शमा परवाना' का यह गीत सुनिये जिसे लिखा है मजरूह साहब ने और संगीतकार हैं हुस्नलाल भगतराम। यह फ़िल्म हुस्नलाल-भगतराम की आख़िरी चर्चित फ़िल्मों में से थी। भले ही सुरैया पर केन्द्रित इस शृंखला का समापन हम "अलविदा अलविदा" गीत से कर रहे हैं, लेकिन हक़ीक़त तो यही है कि सुरैया जी, तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा। आपको यह शृंखला कैसी लगी, ज़रूर लिखिएगा oig@hindyugm.com के ईमेल पते पर। अब आज के लिए दीजिए इजाज़त, शनिवार की शाम साप्ताहिक विशेषांक के साथ दोबारा उपस्थित होंगे। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'जीत' के सेट पर देव आनंद ने सुरैया को ३००० रुपय की एक हीरे की अंगूठी से प्रेम निवेदन किया था। उस ज़माने के लिहाज़ से ३००० की रकम एक बड़ी रकम थी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 01/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -1938 की फिल्म है ये.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजनाना जी की जबरदस्त टक्कर के बावजूद अमित जी विजयी रहे...नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ, शरद जी वेलकॉम बेक
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
सुरैया के गाये सुमधुर गीतों को सुनते हुए और उनकी चर्चा करते हुए हम आज आ पहुँचे हैं उन पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' की दसवीं और अंतिम कड़ी पर। आइए आज हम सुरैया की उस ज़िंदगी में थोड़ा झाँके जिसे वो फ़िल्मलाइन छोड़ने के बाद अंत तक जी रही थीं। हालाँकि उन्हें आर्थिक तौर पर कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन वो बहुत अकेली हो गई थीं। अंतिम दिनों में वो अपने वकील पर निर्भर थीं, जिन्होंने उनका ख़याल भी रखा, और सुरैया ने भी अपनी कुछ सम्पत्ति उनकी बेटियों के नाम कर दीं। लेकिन इसके अलावा भी सुरैया की बहुत सारी स्थायी सम्पत्ति थी, जिसमें थे वर्ली में एक पूरी इमारत जिसमें ६ फ़्लैट्स, गराज और आउटहाउसेस थे; इसके अलावा लोनावला में भी एक बंगला था। इतनी सारी जायदाद की मालकिन होने के बावजूद सुरैया एक किराये के फ़्लैट में रहती थीं। १९९८ में वो गुमनामी से बाहर निकलीं और स्क्रीन विडिओकॊन अवार्ड्स में शरीक हुईं, जिसमें अभिनेता सुनिल दत्त के हाथों से 'लाइफ़टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड' ग्रहण किया। सफ़ेद सलवार कमीज़ में उस दिन भी सुरैया कितनी ग्रेसफ़ुल दिख रहीं थीं। उनमें जो अदबी बात थी, वह बात अंत तक उनमें कायम थी। पुरस्कार लेते वक़्त जब उन्होंने माइक हाथ में लिया तो इतनी जज़्बाती हो गईं कि उनका गला चोक हो गया। जावेद जाफ़री ने जब उनसे कुछ गुनगुनाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया, जिसका सभी ने सम्मान किया। ३१ जुलाई २००४ को सुरैया हमें छोड़ कर चली गईं अलविदा अलविदा कहते हुए।
आज के अंक के लिए हमने चुना है फ़िल्म 'शमा परवाना' का गीत "अलविदा अलविदा, ओ जाने तमन्ना अलविदा, हो सके तो बख्श देना"। 'प्यार की जीत' और 'बड़ी बहन' जैसी सुपर-डुपर हिट फ़िल्मों के बाद डी. डी. कश्यप ने सुरैया को १९५४ की इस फ़िल्म 'शमा परवाना' में डिरेक्ट दिया और इसमें पहली बार उनके नायक बनें शम्मी कपूर। अब तक शम्मी कपूर 'जीवन ज्योति', 'गुल सानोबार', 'खोज', 'लैला मजनु', 'रेल का डिब्बा', 'ठोकर' और 'महबूबा' जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके थे। इस फ़िल्म में शम्मी कपूर के साथ काम करने की यादों को सुरैया ने कुछ इस तरह से व्यक्त किया था उस 'जयमाला' कार्यक्रम में - "आजकल तो ऐक्टिंग् सीखाने के बाक़ायदा स्कूल खुले हुए हैं, लेकिन फिर भी ज़रा कमज़ोरी दिखायी देती है। मुझे तो ऐसा लगता है कि आज के कलाकार कला की तरफ़ ध्यान कम देते हैं। पुराने कलाकारों में सहगल साहब और मोतीलाल जी ऐसे कलाकार थे जिनकी ऐक्टिंग् और ज़िंदगी में फ़र्क नहीं महसूस होता था। इसकी वजह यह थी कि इन लोगों ने कला को अपने जीवन में ढाल लिया था। फ़िल्म 'शमा परवाना' में मेरा और शम्मी कपूर का साथ था। उन दिनों शम्मी कपूर फ़िल्मों में नये नये आये थे, बहुत दुबले पतले, नाज़ुक से थे। आज की तरह उस समय वो उछल-कूद करते तो मैं कह देती "ज़रा सम्भल के, कहीं कमर में लोच ना आ जाए (हँसते हुए)"। तो लीजिए फ़िल्म 'शमा परवाना' का यह गीत सुनिये जिसे लिखा है मजरूह साहब ने और संगीतकार हैं हुस्नलाल भगतराम। यह फ़िल्म हुस्नलाल-भगतराम की आख़िरी चर्चित फ़िल्मों में से थी। भले ही सुरैया पर केन्द्रित इस शृंखला का समापन हम "अलविदा अलविदा" गीत से कर रहे हैं, लेकिन हक़ीक़त तो यही है कि सुरैया जी, तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा। आपको यह शृंखला कैसी लगी, ज़रूर लिखिएगा oig@hindyugm.com के ईमेल पते पर। अब आज के लिए दीजिए इजाज़त, शनिवार की शाम साप्ताहिक विशेषांक के साथ दोबारा उपस्थित होंगे। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'जीत' के सेट पर देव आनंद ने सुरैया को ३००० रुपय की एक हीरे की अंगूठी से प्रेम निवेदन किया था। उस ज़माने के लिहाज़ से ३००० की रकम एक बड़ी रकम थी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 01/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -1938 की फिल्म है ये.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजनाना जी की जबरदस्त टक्कर के बावजूद अमित जी विजयी रहे...नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ, शरद जी वेलकॉम बेक
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
Movie : Bhabhi
वैसे मेरे लिए तो अच्छा है.अभी तक तो में अव्वल आ नहीं पाया हूँ.
सभी लोगों को शुभकामनाएँ
SARASWATI DEVI was the screen name of India's first lady composer in cinema. The beautiful Parsi lady's real name was Khursheed Manchershah Minocher-Homji.
PraKish
Pratibha-Kishore
CANADA