ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 583/2010/283
फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध गायिका-अभिनेत्री सुरैया पर केन्द्रित लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' की तीसरी कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा जलाने के लिए। ३० और ४० के दशकों में कुंदन लाल सहगल का कुछ इस क़दर असर था कि उस ज़माने के सभी कलाकार उनके साथ काम करने के लिए एक पाँव पर खड़े रहते थे। और अगर किसी नए कलाकार को यह सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो उसके लिए यह बहुत बड़ी बात होती थी। ऐसा ही मौका सुरैया जी को भी मिला जब १९४५ में फ़िल्म 'तदबीर' में उन्हें सहगल साहब के साथ न केवल अभिनय करने का मौका मिला, बल्कि उनके साथ युगल गीत गाने का भी मौका मिला। और क्योंकि सुरैया जी ख़ुद यह मानती थी कि यह उनके लिए एक बहुत बड़ी बात थी, इसलिए हमने सोचा कि सुरैया और सहगल साहब का गाया उसी फ़िल्म का एक युगल गीत इस शृंखला में बजाया जाए। गीत के बोल हैं "मिलने के दिन आ गये"। इस फ़िल्म में संगीत था कमचर्चित संगीतकार लाल मोहम्मद का। उनके बारे में अभी आपको बताएँगे, लेकिन उससे पहले सुनिए सुरैया के शब्दों में सहगल साहब के बारे में, उसी 'जयमाला' कार्यक्रम से - "एक ज़माना था जब मैं फ़िल्मी दुनिया में नहीं आयी थी और उस वक़्त सहगल साहब की फ़िल्मों को बड़े शौक से देखती थी। उनके गानों ने मुझ पर जादू की तरह असर किया था और मैं अकेले में उन्हीं के गीत गाती रहती थी। ये कभी सोचा भी ना था कि उनके साथ मेरी फ़िल्में भी बनेंगी। लेकिन सहगल साहब के साथ मेरी तीन फ़िल्में बनीं - 'तदबीर', 'उमर ख़य्याम', और 'परवाना'। मुझे फ़क्र है कि मैंने उनके साथ काम किया और बहुत कुछ सीखा। एक बार मैंने उनसे पूछा, "सहगल साहब, आप इतना अच्छा कैसे गा लेते हैं?" तो सहगल साहब ने जवाब दिया, "हम जिस गाने को गाते हैं, पहले उसके जज़्बात को समझते हैं, उसकी भावनाओं में डूब जाते हैं और तभी वही भावनाएँ सुरों में ढलकर निकलती हैं"।
और अब कुछ बातें संगीतकार लाल मोहम्मद की। ये बातें हमने बटोरी पंकज राग लिखित किताब 'धुनों की यात्रा' से। लाल मोहम्मद तबले के उस्ताद माने जाते थे और मास्टर ग़ुलाम के भी सहायक रहे थे। जयंत देसाई प्रोडक्शन की सहगल-सुरैया अभिनीत मशहूर फ़िल्म 'तदबीर' का संगीत ख़ूब लोकप्रिय हुआ था और लाल मोहम्मद की सफलतम फ़िल्मों में से एक है। सहगल साहब के गाये इस फ़िल्म के गीतों में "जनम-जनम का दुखिया प्राणी आया शरण तिहारी", "मैं पंछी आज़ाद मेरा कहीं दूर ठिकाना रे", "चाहे तू मिटा दे, चाहे तू बचा ले" और इन सब से बढ़कर राग भीमपलासी पर आधारित 'हसरतें ख़ामोश हैं" तथा बनारसी अंग लिए हुए सम्भवत: राग जौनपुरी पर आधारित "मैं किस्मत का मारा भगवान" ने ख़ूब धूम मचाई थी। सुरैया का "जाग ओ सोने वाले, कोई जगाने आया" और "उड़ने वाले पंछी" भी अच्छे चले थे। इसी फ़िल्म में सुरैया को सहगल के साथ 'रानी खोल दे अपने द्वार' जैसा लोकप्रिय गाना भी गाने का यादगार अवसर मिला था। यह गीत राग देस पर आधारित था। तो आइए, सुनते हैं गुज़रे ज़माने की दो यादगार आवाज़ें, फ़िल्म 'तदबीर' के इस गीत में। गीतकार हैं स्वामी रामानंद।
क्या आप जानते हैं...
कि एक बार जयंत देसाई की फ़िल्म 'सम्राट चन्द्रगुप्त' के एक गीत की रेकॊर्डिंग् में सहगल साहब ने सुरैया को गाते हुए सुना, और अपनी अगली फ़िल्म 'तदबीर' के लिए उन्हें अभिनेत्री चुनने का सुझाव दिया।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 04/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - इस फिल्म के निर्देशक थे ए आर कारदार.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - एक प्रसिद्ध ठुमरी गायिका ने भी इस फिल्म में प्ले बैक किया था जो आज के दौर के एक मशहूर अभिनेता की माँ भी थी, जानते हैं क्या उनका नाम - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजाना जी आपको २ अंक मिलते अगर आप दूसरी बार जवाब नहीं देते, अगर आप दूसरे जवाब को डिलीट भी कर देते तो भी ठीक था, पर वास्तव में दो जवाब देकर आपने किसी और का एक अंक छीन लिया, और नियम तो नियम है उसका पालन हमें करना पड़ेगा बेहद दुःख के साथ. चलिए आगे से आपको याद रहेगा.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध गायिका-अभिनेत्री सुरैया पर केन्द्रित लघु शृंखला 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा' की तीसरी कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा जलाने के लिए। ३० और ४० के दशकों में कुंदन लाल सहगल का कुछ इस क़दर असर था कि उस ज़माने के सभी कलाकार उनके साथ काम करने के लिए एक पाँव पर खड़े रहते थे। और अगर किसी नए कलाकार को यह सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो उसके लिए यह बहुत बड़ी बात होती थी। ऐसा ही मौका सुरैया जी को भी मिला जब १९४५ में फ़िल्म 'तदबीर' में उन्हें सहगल साहब के साथ न केवल अभिनय करने का मौका मिला, बल्कि उनके साथ युगल गीत गाने का भी मौका मिला। और क्योंकि सुरैया जी ख़ुद यह मानती थी कि यह उनके लिए एक बहुत बड़ी बात थी, इसलिए हमने सोचा कि सुरैया और सहगल साहब का गाया उसी फ़िल्म का एक युगल गीत इस शृंखला में बजाया जाए। गीत के बोल हैं "मिलने के दिन आ गये"। इस फ़िल्म में संगीत था कमचर्चित संगीतकार लाल मोहम्मद का। उनके बारे में अभी आपको बताएँगे, लेकिन उससे पहले सुनिए सुरैया के शब्दों में सहगल साहब के बारे में, उसी 'जयमाला' कार्यक्रम से - "एक ज़माना था जब मैं फ़िल्मी दुनिया में नहीं आयी थी और उस वक़्त सहगल साहब की फ़िल्मों को बड़े शौक से देखती थी। उनके गानों ने मुझ पर जादू की तरह असर किया था और मैं अकेले में उन्हीं के गीत गाती रहती थी। ये कभी सोचा भी ना था कि उनके साथ मेरी फ़िल्में भी बनेंगी। लेकिन सहगल साहब के साथ मेरी तीन फ़िल्में बनीं - 'तदबीर', 'उमर ख़य्याम', और 'परवाना'। मुझे फ़क्र है कि मैंने उनके साथ काम किया और बहुत कुछ सीखा। एक बार मैंने उनसे पूछा, "सहगल साहब, आप इतना अच्छा कैसे गा लेते हैं?" तो सहगल साहब ने जवाब दिया, "हम जिस गाने को गाते हैं, पहले उसके जज़्बात को समझते हैं, उसकी भावनाओं में डूब जाते हैं और तभी वही भावनाएँ सुरों में ढलकर निकलती हैं"।
और अब कुछ बातें संगीतकार लाल मोहम्मद की। ये बातें हमने बटोरी पंकज राग लिखित किताब 'धुनों की यात्रा' से। लाल मोहम्मद तबले के उस्ताद माने जाते थे और मास्टर ग़ुलाम के भी सहायक रहे थे। जयंत देसाई प्रोडक्शन की सहगल-सुरैया अभिनीत मशहूर फ़िल्म 'तदबीर' का संगीत ख़ूब लोकप्रिय हुआ था और लाल मोहम्मद की सफलतम फ़िल्मों में से एक है। सहगल साहब के गाये इस फ़िल्म के गीतों में "जनम-जनम का दुखिया प्राणी आया शरण तिहारी", "मैं पंछी आज़ाद मेरा कहीं दूर ठिकाना रे", "चाहे तू मिटा दे, चाहे तू बचा ले" और इन सब से बढ़कर राग भीमपलासी पर आधारित 'हसरतें ख़ामोश हैं" तथा बनारसी अंग लिए हुए सम्भवत: राग जौनपुरी पर आधारित "मैं किस्मत का मारा भगवान" ने ख़ूब धूम मचाई थी। सुरैया का "जाग ओ सोने वाले, कोई जगाने आया" और "उड़ने वाले पंछी" भी अच्छे चले थे। इसी फ़िल्म में सुरैया को सहगल के साथ 'रानी खोल दे अपने द्वार' जैसा लोकप्रिय गाना भी गाने का यादगार अवसर मिला था। यह गीत राग देस पर आधारित था। तो आइए, सुनते हैं गुज़रे ज़माने की दो यादगार आवाज़ें, फ़िल्म 'तदबीर' के इस गीत में। गीतकार हैं स्वामी रामानंद।
क्या आप जानते हैं...
कि एक बार जयंत देसाई की फ़िल्म 'सम्राट चन्द्रगुप्त' के एक गीत की रेकॊर्डिंग् में सहगल साहब ने सुरैया को गाते हुए सुना, और अपनी अगली फ़िल्म 'तदबीर' के लिए उन्हें अभिनेत्री चुनने का सुझाव दिया।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 04/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - इस फिल्म के निर्देशक थे ए आर कारदार.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - एक प्रसिद्ध ठुमरी गायिका ने भी इस फिल्म में प्ले बैक किया था जो आज के दौर के एक मशहूर अभिनेता की माँ भी थी, जानते हैं क्या उनका नाम - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजाना जी आपको २ अंक मिलते अगर आप दूसरी बार जवाब नहीं देते, अगर आप दूसरे जवाब को डिलीट भी कर देते तो भी ठीक था, पर वास्तव में दो जवाब देकर आपने किसी और का एक अंक छीन लिया, और नियम तो नियम है उसका पालन हमें करना पड़ेगा बेहद दुःख के साथ. चलिए आगे से आपको याद रहेगा.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
आज मेरा इंटरनेट धोखा दे गया. :(
अनजाना जी ने बाज़ी मार ली.
निर्मला देवी जिनका असली नाम नजीम था गोविंदा की माँ थी.
अवध लाल