ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 586/2010/286
नमस्कार! रविवार की शाम और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर एक नई सप्ताह का आग़ाज़। दोस्तों नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस महफ़िल में। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल रोशन है उस गायिका-अभिनेत्री के गाये हुए गीतों से जिन्हें हम जानते हैं सुरैया के नाम से। इस शृंखला के पहले हिस्से में पाँच गानें ४० के दशक के सुनने के बाद, आइए आज क़दम रखते हैं ५० के दशक में। सुरैया की ज़िंदगी का एक अध्याय रहे हैं अभिनेता देव आनंद। सुरैया और देव साहब का प्रेम-संबंध इण्डस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया था। सुरैया पर केन्द्रित कोई भी चर्चा देव साहब के ज़िक्र के बिना समाप्त नहीं हो सकती। क्या हुआ था कि वे दोनों मिल ना सके, एक दूजे का हमसफ़र बन ना सके। आइए आज देव साहब की किताब 'रोमांसिंग् विद् लाइफ़' से कुछ अंश यहाँ पेश करें। देव साहब कहते हैं, "मैं सातवें आसमान पर उड़ रहा था क्योंकि हम दोनों अब एन्गेज हो चुके थे। मैं उसे पाना चाहता था, ज़्यादा, और भी ज़्यादा, लेकिन फिर मुझे उसकी तरफ़ से कोई आवाज़ नहीं आई। हमारी फ़िल्मों की शूटिंग् भी ख़त्म हो गई, और अब तो एक दूसरे से मिलने का कोई बहाना ही नहीं बचा था। दिन सप्ताह में बदल गये, लेकिन उसकी कोई ख़बर मुझ तक नहीं पहुँची। न कोई चिट्ठी, न कोई फ़ोन, न तार। मैंने दिवेचा से सम्पर्क किया और उसने वादा किया कि उसका हालचाल लेकर मुझे बताएगा। लेकिन इस बार तो उसे भी उसके (सुरैया के) घर घुसने की इजाज़त नहीं मिली। सुरैया की दादी ने उसके मुंह पर ही दरवाज़ा बंद कर दिया यह कहते हुए कि इन दिनों हम अपने करीबी दोस्तों का भी स्वागत नहीं कर रहे जिसके पीछे कुछ ऐसे कारण हैं जिसे हम बताना नहीं चाहते। फिर भी दिवेचा ने यह पता लगा ही लिया कि सुरैया के घर में बहुत अशांति का माहौल बना हुआ है- उसके और मेरे रिश्ते को लेकर। कोई इस रिश्ते को स्वीकार नहीं रहा सिवाय उसकी माँ के। सुरैया की माँ को बाकी घरवालों ने यह कहकर डराया कि अगर वो इस रिश्ते का समर्थन करेगी तो या तो उसे ही घर से निकल जाना पड़ेगा या फिर उसकी दादी आत्महत्या कर लेंगी। इस तरह से सुरैया पर दबाव बढ़ता गया और उसके लिए आँसू बहाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। और सुरैया ने एक दिन निर्णय ले लिया कि वो मुझे अपने दिमाग से निकाल देगी। एक दिन सुरैया ने अपनी उस अंगूठी को, जो मैंने उसे दी थी, समुंदर के किनारे जाकर, उसे अंतिम बार देख कर, दूर समुंदर में फेंक दिया। मेरा दिल टूट गया, लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई है। उसके बिना मुझे अपनी ज़िंदगी बेमानी लगने लगी। लेकिन अपने आप को मार कर भी तो कुछ साबित नहीं होता, सिवाय अपने आप को कायर ठहराने के। आख़िरकार मैं अपने भाई चेतन के कंधे पर सर रख कर ख़ूब रोया, क्योंकि चेतन को ही पता था कि मैं सुरैया से कितना प्यार करता था। उन्होंने मुझे सांत्वना देते हुए कहा था कि तुम्हारे जीवन का यह अध्याय तुम्हें आगे जीवन में और ज़्यादा मज़बूत बना देगा इससे भी बड़ी मुसीबतों और लड़ाइयों को लड़ने के लिए।" उधर दोस्तों, सुरैया ने भी आजीवन शादी नहीं की और देव आनंद के लिए अपने प्यार को बिकने नहीं दिया, मिटने नहीं दिया, मरने नहीं दिया। सुरैया के इस निष्पाप प्रेम में इतनी शक्ति और सच्चाई थी कि किसी भी फ़िल्मकार की आज तक हिम्मत नहीं हुई उनके जीवन की इस कहानी पर फ़िल्म बनाने की। सुरैया ने जैसे अपने ही गाये हुए उस गीत को सच साबित कर दिया कि "परवानों से प्रीत सीख ली शमा से सीखा जल जाना, फिर दुनिया को याद रहेगा तेरा मेरा अफ़साना"।
दोस्तों, आज के इस अंक के लिए देव आनंद और सुरैया की जिस फ़िल्म का गीत हमने चुना है, वह है 'अफ़सर'। इस फ़िल्म का एक बहुत ही ख़ूबसूरत गीत "मनमोर हुआ मतवाला, किसने जादू डाला"। इस गीत के ज़रिये सुरैया के दिल में यादें जुड़ी थीं सचिन देव बर्मन की। तभी तो उन्होंने उस 'जयमाला' कार्यक्रम में इस गीत को और बर्मन दादा को याद किया था इन शब्दों में - "फ़ौजी भाइयों, आज तक मैंने करीब सौ फ़िल्मों में काम किया है और इसी हिसाब से कई सौ गानें भी गाये होंगे! मगर गाना मैंने बाक़ायदा किसी से सीखा नहीं, इसे ख़ुदा की ही देन कह लीजिए कि म्युज़िक डिरेक्टर्स मुझे जैसा रिहर्स करा देते थे, मैं वैसा ही गा देती थी। देव आनंद की फ़िल्म 'अफ़सर' जब बन रही थी तो बर्मन दादा ने मेरे लिए एक गीत तैयार किया। बर्मन दादा इस गीत को इतना गाते थे कि मैंने देव आनंद से कहा कि क्यों ना सिचुएशन बदल दी जाये और इस गीत को बर्मन दादा ही गाये! लेकिन बर्मन दादा नहीं राज़ी हुए, कहने लगे कि यह गीत ख़ास तौर से तुम्हारे लिए बनाया है, इसलिए तुम्हे ही गाना होगा। ख़ैर, मैंने ही वह गीत गाया"। और दोस्तों, आप भी अब उस गीत का आनंद लीजिए जिसे पंडित नरेन्द्र शर्मा ने लिखा है।
क्या आप जानते हैं...
कि देव आनंद के साथ सुरैया ने कुल ६ फ़िल्मों में काम किया। ये फ़िल्में हैं 'विद्या', 'जीत', 'शायर', 'नीलू', 'दो सितारे' और 'अफ़सर'।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 07/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -इस फिल्म में सुर्रैया के नायक थे सी एच आत्मा.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अरे एक बार फिर वही कहानी...सच है इससे रोचक मुकाबला आज तक नहीं हुआ है...अनजाना जी और अमित जी बधाई के पात्र हैं और बधाई प्रतिभा जी और किशोर संपत जी को भी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
नमस्कार! रविवार की शाम और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर एक नई सप्ताह का आग़ाज़। दोस्तों नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस महफ़िल में। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल रोशन है उस गायिका-अभिनेत्री के गाये हुए गीतों से जिन्हें हम जानते हैं सुरैया के नाम से। इस शृंखला के पहले हिस्से में पाँच गानें ४० के दशक के सुनने के बाद, आइए आज क़दम रखते हैं ५० के दशक में। सुरैया की ज़िंदगी का एक अध्याय रहे हैं अभिनेता देव आनंद। सुरैया और देव साहब का प्रेम-संबंध इण्डस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया था। सुरैया पर केन्द्रित कोई भी चर्चा देव साहब के ज़िक्र के बिना समाप्त नहीं हो सकती। क्या हुआ था कि वे दोनों मिल ना सके, एक दूजे का हमसफ़र बन ना सके। आइए आज देव साहब की किताब 'रोमांसिंग् विद् लाइफ़' से कुछ अंश यहाँ पेश करें। देव साहब कहते हैं, "मैं सातवें आसमान पर उड़ रहा था क्योंकि हम दोनों अब एन्गेज हो चुके थे। मैं उसे पाना चाहता था, ज़्यादा, और भी ज़्यादा, लेकिन फिर मुझे उसकी तरफ़ से कोई आवाज़ नहीं आई। हमारी फ़िल्मों की शूटिंग् भी ख़त्म हो गई, और अब तो एक दूसरे से मिलने का कोई बहाना ही नहीं बचा था। दिन सप्ताह में बदल गये, लेकिन उसकी कोई ख़बर मुझ तक नहीं पहुँची। न कोई चिट्ठी, न कोई फ़ोन, न तार। मैंने दिवेचा से सम्पर्क किया और उसने वादा किया कि उसका हालचाल लेकर मुझे बताएगा। लेकिन इस बार तो उसे भी उसके (सुरैया के) घर घुसने की इजाज़त नहीं मिली। सुरैया की दादी ने उसके मुंह पर ही दरवाज़ा बंद कर दिया यह कहते हुए कि इन दिनों हम अपने करीबी दोस्तों का भी स्वागत नहीं कर रहे जिसके पीछे कुछ ऐसे कारण हैं जिसे हम बताना नहीं चाहते। फिर भी दिवेचा ने यह पता लगा ही लिया कि सुरैया के घर में बहुत अशांति का माहौल बना हुआ है- उसके और मेरे रिश्ते को लेकर। कोई इस रिश्ते को स्वीकार नहीं रहा सिवाय उसकी माँ के। सुरैया की माँ को बाकी घरवालों ने यह कहकर डराया कि अगर वो इस रिश्ते का समर्थन करेगी तो या तो उसे ही घर से निकल जाना पड़ेगा या फिर उसकी दादी आत्महत्या कर लेंगी। इस तरह से सुरैया पर दबाव बढ़ता गया और उसके लिए आँसू बहाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। और सुरैया ने एक दिन निर्णय ले लिया कि वो मुझे अपने दिमाग से निकाल देगी। एक दिन सुरैया ने अपनी उस अंगूठी को, जो मैंने उसे दी थी, समुंदर के किनारे जाकर, उसे अंतिम बार देख कर, दूर समुंदर में फेंक दिया। मेरा दिल टूट गया, लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई है। उसके बिना मुझे अपनी ज़िंदगी बेमानी लगने लगी। लेकिन अपने आप को मार कर भी तो कुछ साबित नहीं होता, सिवाय अपने आप को कायर ठहराने के। आख़िरकार मैं अपने भाई चेतन के कंधे पर सर रख कर ख़ूब रोया, क्योंकि चेतन को ही पता था कि मैं सुरैया से कितना प्यार करता था। उन्होंने मुझे सांत्वना देते हुए कहा था कि तुम्हारे जीवन का यह अध्याय तुम्हें आगे जीवन में और ज़्यादा मज़बूत बना देगा इससे भी बड़ी मुसीबतों और लड़ाइयों को लड़ने के लिए।" उधर दोस्तों, सुरैया ने भी आजीवन शादी नहीं की और देव आनंद के लिए अपने प्यार को बिकने नहीं दिया, मिटने नहीं दिया, मरने नहीं दिया। सुरैया के इस निष्पाप प्रेम में इतनी शक्ति और सच्चाई थी कि किसी भी फ़िल्मकार की आज तक हिम्मत नहीं हुई उनके जीवन की इस कहानी पर फ़िल्म बनाने की। सुरैया ने जैसे अपने ही गाये हुए उस गीत को सच साबित कर दिया कि "परवानों से प्रीत सीख ली शमा से सीखा जल जाना, फिर दुनिया को याद रहेगा तेरा मेरा अफ़साना"।
दोस्तों, आज के इस अंक के लिए देव आनंद और सुरैया की जिस फ़िल्म का गीत हमने चुना है, वह है 'अफ़सर'। इस फ़िल्म का एक बहुत ही ख़ूबसूरत गीत "मनमोर हुआ मतवाला, किसने जादू डाला"। इस गीत के ज़रिये सुरैया के दिल में यादें जुड़ी थीं सचिन देव बर्मन की। तभी तो उन्होंने उस 'जयमाला' कार्यक्रम में इस गीत को और बर्मन दादा को याद किया था इन शब्दों में - "फ़ौजी भाइयों, आज तक मैंने करीब सौ फ़िल्मों में काम किया है और इसी हिसाब से कई सौ गानें भी गाये होंगे! मगर गाना मैंने बाक़ायदा किसी से सीखा नहीं, इसे ख़ुदा की ही देन कह लीजिए कि म्युज़िक डिरेक्टर्स मुझे जैसा रिहर्स करा देते थे, मैं वैसा ही गा देती थी। देव आनंद की फ़िल्म 'अफ़सर' जब बन रही थी तो बर्मन दादा ने मेरे लिए एक गीत तैयार किया। बर्मन दादा इस गीत को इतना गाते थे कि मैंने देव आनंद से कहा कि क्यों ना सिचुएशन बदल दी जाये और इस गीत को बर्मन दादा ही गाये! लेकिन बर्मन दादा नहीं राज़ी हुए, कहने लगे कि यह गीत ख़ास तौर से तुम्हारे लिए बनाया है, इसलिए तुम्हे ही गाना होगा। ख़ैर, मैंने ही वह गीत गाया"। और दोस्तों, आप भी अब उस गीत का आनंद लीजिए जिसे पंडित नरेन्द्र शर्मा ने लिखा है।
क्या आप जानते हैं...
कि देव आनंद के साथ सुरैया ने कुल ६ फ़िल्मों में काम किया। ये फ़िल्में हैं 'विद्या', 'जीत', 'शायर', 'नीलू', 'दो सितारे' और 'अफ़सर'।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 07/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -इस फिल्म में सुर्रैया के नायक थे सी एच आत्मा.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अरे एक बार फिर वही कहानी...सच है इससे रोचक मुकाबला आज तक नहीं हुआ है...अनजाना जी और अमित जी बधाई के पात्र हैं और बधाई प्रतिभा जी और किशोर संपत जी को भी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
अवध लाल
गीत के शब ही जादू भरे है
अभी तक इस गीत का जादू है
वह भी क्या दिन थे