ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 589/2010/289
"आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक"। मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शेर के बाद हम सुरैया के लिये भी यही कह सकते हैं कि उनकी गायकी, उनके अभिनय में वो जादू था कि जिसका असर एक उम्र नहीं, बल्कि कई कई उम्र तक होता रहेगा। 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा', सिंगिंग् स्टार सुरैया को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस लघु शृंखला की आज नवी कड़ी में सुनिए १९५४ की फ़िल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' की एक अन्य ग़ज़ल "नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उसको सुनाये ना बने, क्या बने बात जहाँ बात बनाये ना बने"। ग़ालिब के इन ग़ज़लों को सुरों में ढाला था संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद ने। इस फ़िल्म का निर्देशन सोहराब मोदी ने किया था। ग़ालिब की ज़िंदगी पर आधारित इस फ़िल्म को बहुत तारीफ़ें नसीब हुए। ग़ालिब की भूमिका में नज़र आये थे भारत भूषण और सुरैया बनीं थीं चौधवीं, उनकी प्रेमिका, जो एक वेश्या थीं। फ़िल्म के अन्य कलाकारों में शामिल थे निगार सुल्ताना, दुर्गा खोटे, मुराद, मुकरी, उल्हास, कुमकुम और इफ़्तेखार। इस फ़िल्म को १९५५ में राष्ट्रीय पुरस्कार के तहत स्वर्ण-कमल से पुरस्कृत किया गया था। सोहराब मोदी और संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे। फ़िल्मफ़ेयर में रुसी के. बंकर को सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन के लिए पुरस्कृत किया गया था। १९५४ में सुरैया की बाकी फ़िल्में आयीं 'वारिस', 'शमा परवाना' और 'बिलवामंगल'। इसके बाद सुरैया ने जिन फ़िल्मों में काम किया उनकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है:
१९५५ - ईनाम
१९५६ - मिस्टर लम्बू
१९५८ - तक़दीर, ट्रॊली ड्राइवर, मालिक
१९६१ - शमा
१९६३ - रुस्तोम सोहराब
१९६४ में सुरैया ने फ़िल्म 'शगुन' का निर्माण किया, १९६५ में फ़िल्म 'दो दिल' में केवल गीत गाये, और यही उनकी अंतिम फ़िल्म थी। उसके बाद सुरैया ने अपने आप को इस फ़िल्म जगत से किनारा कर लिया और गुमनामी में रहने लगीं। वो ना किसी सार्वजनिक जल्से में जातीं, ना ही ज़्यादा लोगों से मिलती जुलतीं। उनके इस पड़ाव का हाल आपको हम कल की कड़ी में बताएँगे।
सुरैया को फ़िल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में अभिनय करने का गर्व था। जब वो विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में तशरीफ़ लायी थीं, उन्होंने आज की इस प्रस्तुत ग़ज़ल को पेश करते हुए कुछ इस तरह से कहा था - "ज़िंदगी में कुछ मौके ऐसे आते हैं जिनपे इंसान सदा नाज़ करता है। मेरी ज़िंदगी में भी एक मौका ऐसा आया था जब फ़िल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' को प्रेसिडेण्ट अवार्ड मिला और उस फ़िल्म का एक ख़ास शो राष्ट्रपति भवन में हुआ, जहाँ हमने पंडित नेहरु के साथ बैठकर यह फ़िल्म देखी थी। पंडित नेहरु हर सीन में मेरी तारीफ़ करते और मैं फूली ना समाती। इस वक़्त पंडितजी की याद के साथ मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल पेश करती हूँ, नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उसको सुनाये ना बने, क्या बने बात जहाँ बात बनाये ना बने।"
क्या आप जानते हैं...
कि सुरैया ने कोई बसियत नहीं बनवाई थी, इसलिए उनकी मृत्यु के तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार ने उनकी जायदाद सील कर दी और दावेदार के लिए अर्ज़ी आमंत्रित की।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -बेहद मशहूर गीत.
सवाल १ - फिल्म के निर्देशक बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
भाई ये तो हम कहीं पहुँचते हुए नज़र नहीं आ रहे...मुकाबला एकदम बराबरी का है....आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी है...देखते हैं :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
"आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक"। मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शेर के बाद हम सुरैया के लिये भी यही कह सकते हैं कि उनकी गायकी, उनके अभिनय में वो जादू था कि जिसका असर एक उम्र नहीं, बल्कि कई कई उम्र तक होता रहेगा। 'तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा', सिंगिंग् स्टार सुरैया को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस लघु शृंखला की आज नवी कड़ी में सुनिए १९५४ की फ़िल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' की एक अन्य ग़ज़ल "नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उसको सुनाये ना बने, क्या बने बात जहाँ बात बनाये ना बने"। ग़ालिब के इन ग़ज़लों को सुरों में ढाला था संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद ने। इस फ़िल्म का निर्देशन सोहराब मोदी ने किया था। ग़ालिब की ज़िंदगी पर आधारित इस फ़िल्म को बहुत तारीफ़ें नसीब हुए। ग़ालिब की भूमिका में नज़र आये थे भारत भूषण और सुरैया बनीं थीं चौधवीं, उनकी प्रेमिका, जो एक वेश्या थीं। फ़िल्म के अन्य कलाकारों में शामिल थे निगार सुल्ताना, दुर्गा खोटे, मुराद, मुकरी, उल्हास, कुमकुम और इफ़्तेखार। इस फ़िल्म को १९५५ में राष्ट्रीय पुरस्कार के तहत स्वर्ण-कमल से पुरस्कृत किया गया था। सोहराब मोदी और संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे। फ़िल्मफ़ेयर में रुसी के. बंकर को सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन के लिए पुरस्कृत किया गया था। १९५४ में सुरैया की बाकी फ़िल्में आयीं 'वारिस', 'शमा परवाना' और 'बिलवामंगल'। इसके बाद सुरैया ने जिन फ़िल्मों में काम किया उनकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है:
१९५५ - ईनाम
१९५६ - मिस्टर लम्बू
१९५८ - तक़दीर, ट्रॊली ड्राइवर, मालिक
१९६१ - शमा
१९६३ - रुस्तोम सोहराब
१९६४ में सुरैया ने फ़िल्म 'शगुन' का निर्माण किया, १९६५ में फ़िल्म 'दो दिल' में केवल गीत गाये, और यही उनकी अंतिम फ़िल्म थी। उसके बाद सुरैया ने अपने आप को इस फ़िल्म जगत से किनारा कर लिया और गुमनामी में रहने लगीं। वो ना किसी सार्वजनिक जल्से में जातीं, ना ही ज़्यादा लोगों से मिलती जुलतीं। उनके इस पड़ाव का हाल आपको हम कल की कड़ी में बताएँगे।
सुरैया को फ़िल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में अभिनय करने का गर्व था। जब वो विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में तशरीफ़ लायी थीं, उन्होंने आज की इस प्रस्तुत ग़ज़ल को पेश करते हुए कुछ इस तरह से कहा था - "ज़िंदगी में कुछ मौके ऐसे आते हैं जिनपे इंसान सदा नाज़ करता है। मेरी ज़िंदगी में भी एक मौका ऐसा आया था जब फ़िल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' को प्रेसिडेण्ट अवार्ड मिला और उस फ़िल्म का एक ख़ास शो राष्ट्रपति भवन में हुआ, जहाँ हमने पंडित नेहरु के साथ बैठकर यह फ़िल्म देखी थी। पंडित नेहरु हर सीन में मेरी तारीफ़ करते और मैं फूली ना समाती। इस वक़्त पंडितजी की याद के साथ मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल पेश करती हूँ, नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उसको सुनाये ना बने, क्या बने बात जहाँ बात बनाये ना बने।"
क्या आप जानते हैं...
कि सुरैया ने कोई बसियत नहीं बनवाई थी, इसलिए उनकी मृत्यु के तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार ने उनकी जायदाद सील कर दी और दावेदार के लिए अर्ज़ी आमंत्रित की।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -बेहद मशहूर गीत.
सवाल १ - फिल्म के निर्देशक बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
भाई ये तो हम कहीं पहुँचते हुए नज़र नहीं आ रहे...मुकाबला एकदम बराबरी का है....आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी है...देखते हैं :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
Welcome home.
आपकी अनुपस्थिति खाल रही थी.
We were really missing you.
वैसे इधर अमित जी और अनजाना जी की कांटेदार टक्कर चल रही है.
अवध लाल
Pratibha
Ottawa, Canada