ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 598/2010/298
'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप इस लघु शृंखला का आनंद ले रहे हैं। विश्व के जाने माने पियानिस्ट्स में से दस पियानिस्ट्स के बारे में हम इस शृंखला में जानकारी दे रहे हैं। पाँच नाम शामिल हो चुके हैं, आइए आज की कड़ी में बाकी के पाँच नामों का ज़िक्र करें। शुरुआत कर रहे हैं महान संगीत-शिल्पी मोज़ार्ट से। वूल्फ़गैंग मोज़ार्ट भी एक आश्चर्य बालक थे, जिसे अंग्रेज़ी में हम child prodigy कहते हैं। केवल तीन वर्ष की उम्र में उनके हाथों की नाज़ुक उंगलियाँ पियानो के की-बोर्ड पर फिरती हुई देखी गई, और पाँच वर्ष के होते होते वो गानें कम्पोज़ करने लग गये, और पता है ये गानें किनके लिखे होते थे? उनके पिता के लिखे हुए। और बहुत ही छोटी उम्र से वो स्टेज-कॊण्सर्ट्स भी करने लगे, और आगे चलकर एक महान संगीतकार बन कर संगीताकाश में चमके। उन्हीं की सिम्फ़नी को आधार बना कर संगीतकार सलिल चौधरी ने फ़िल्म 'छाया' का वह गीत कम्पोज़ किया था, "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा..."। ख़ैर, आगे बढ़ते हैं, और अब जो नाम मैं लेना चाहता हूँ, वह है फ़्रान्ज़ लिस्ज़्ट का। अगर आप ने इस शृंखला को ग़ौर से पढ़ा है तो आपको याद आ गया होगा कि इनका ज़िक्र पहले भी आ चुका है। इस हंगरियन पियानिस्ट ने भी अपना करीयर बहुत ही छोटे उम्र में शुरु किया। उनके जीवन से जुड़ी बहुत कम तथ्य उपलब्ध है। उल्लेखनीय बात यह है कि केवल पियानो ही नहीं, वो कई और साज़ भी बहुत अच्छा बजा लेते थे, जिनमें चेलो (cello) भी शामिल है। एक और जानेमाने पियानिस्ट हुए हैं वाल्टर विल्हेम गीसेकिंग्। यह भी एक हैरतंगेज़ संगीतकार रहे इस बात के लिए कि इन्होंने कभी भी पियानो पर बैठकर कुछ कम्पोज़ नहीं किया; बल्कि वे घण्टों चुपचाप बैठे रहते थे और अपने गीतों को मन ही में कम्पोज़ करते और बजाते जाते थे। उसके बाद पियानो पर बैठकर बिना कोई ग़लती किए हू-ब-हू वैसा बजा जाते जैसा कि उन्होंने मन में सोच रखा था। आर्तुरो बेनेदेत्ती माइकेलैंजेली भी पूरे पर्फ़ेक्शन के साथ बजाते थे, जिनकी रेखोडिंग्स बिना एडिटिंग किए भी पर्फ़ेक्ट हुआ करती थी। उनका काफ़ी बदनाम भी था इस बात के लिए कि वो कॊण्सर्ट्स जब तब कैन्सल कर देते थे और आयोजकों को ग़लत परिस्थिति में डाल देते थे। एक और पियानिस्ट जिनका उल्लेख होना चाहिए, वो हैं ऐल्फ़्रेड कॊर्टोट। उन्हें जाना जाता है उनके आश्चर्यजनक रेकॊर्डिंग्स के लिए, तथा चॊपिन, ब्र्हाम्स, लिस्ज़्ट व अन्य कम्पोज़र्स जैसी वेरिएशन्स के लिए। उन्होंने अपने ख़ुद के वेरिएशन्स भी इसमें जोड़े और साधारण कम्पोज़िशन्स में ऐसे ऐसे बदलाव लाये जो वाक़ई आश्चर्यजनक थे।
७० के दशक के बाद आज ८० के दशक की बारी। आज का प्रस्तुत गीत है साल १९८३ की फ़िल्म 'बड़े दिलवाला' से। एक बार फिर आज किशोर कुमार की आवाज़ गूंजेंगी, लेकिन गीतकार और संगीतकार बदल गये हैं। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा और राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया हुआ यह आशावादी गीत है "जीवन के दिन छोटे सही हम भी बड़े दिलवाले, कल की हमें फ़ुर्सत कहाँ सोचें जो हम मतवाले"। सच ही तो है, हमें आज को पूरे जोश और उल्लास के साथ जीना चाहिए, क्या पता कल ये आलम रहे ना रहे! ख़ैर, 'बड़े दिलवाला' फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन किया था भप्पी सोनी ने। उपन्यासकार गुल्शन नंदा की कहानी पर संवाद लिखे डॊ. राही मासूम रज़ा नें और फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाईं ऋषी कपूर, टिना मुनीम, सारिका, अरुणा इरानी, जगदीप, मदन पुरी, कल्पना अय्यर, अम्जद ख़ान और प्राण साहब नें। आज का यह गीत तो ऋषी कपूर पियानो पर बैठ कर गा रहे होते हैं, लेकिन इसी गीत का एक अन्य वर्ज़न भी है जिसे उदित नारायण और लता मंगेशकर ने गाया है और जो फ़िल्माया गया है प्राण और सारिका पर। फ़िल्म के संगीत विभाग में योगदान दिया था बासु देव चक्रवर्ती, मनोहारी सिंह, और मारुति राव नें, जो पंचम दा के सहायक रहे। और गीतों को रेकॊर्ड किया कौशिक साहब नें। जहाँ तक इस गाने में पियानो का सवाल है, तो प्रिल्युड में बहुत ख़ूबसूरत और साफ़ पियानो बजाया है, और गीत के मुखड़े की धुन भी पियानो से ही शुरु होकर किशोर दा की आवाज़ में "ला ला ला..." में जाकर मर्ज हो जाती है। बड़ा ही सुंदर संगीत संयोजन इस गीत का रहा, और इसीलिए पंचम के साथ साथ हमने उनके सहायकों का भी नाम लिया। लेकिन सटीक रूप से हम यह आपको बता नहीं सकते कि किस साज़िंदे ने इस गीत में पियानो बजाया होगा। लेकिन जिन्होंने भी बजाया है, उनको हम सलाम करना चाहेंगे। वैसे आपको यह बात बता दें कि एक पियानिस्ट जिन्होंने राहुल देव बर्मन के कई गीतों में पियानो बजाया है, वो हैं माइक मचाडो (Mike Machado)| तो आइए इस ख़ूबसूरत गीत को सुना जाये, और इस गीत के बोलों को अगर हम अपने अपने जीवन में थोड़ा तवज्जो दें तो मेरा ख़याल है कि इससे जीवन बेहतर ही बनेगा। इस गीत का भाव यही है कि हम अपना शिकायती स्वभाव को छोड़ कर उपरवाले का शुक्रिया अदा कर ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करें।
"यह ज़िंदगी दर्द भी है, यह ज़िंदगी है दवा भी,
दिल तोड़ना ही न जाने, जाने यह दिल जोड़ना भी,
इस ज़िंदगी का शुक्रिया सदके मैं उपरवाले,
कल की हमें फ़ुर्सत कहाँ सोचें जो हम मतवाले।"
क्या आप जानते हैं...
कि विश्व का सब से बड़ा पियानो का नाम है Challen Concert Grand, जो ११ फ़ीट लम्बा और १०० किलो से ज़्यादा है, और जिसका कुल स्ट्रिंग टेन्शन ३० टन से भी ज़्यादा है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 09/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म में किस सीनियर अदाकारा ने अहम् भूमिका निभायी है - २ अंक
सवाल २ - फिल्म में अपनी भूमिका के लिए इन्हें सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता का फिल्म फेयर मिला, कौन हैं ये - ३ अंक
सवाल ३ - लता जी के साथ किन दो नए दौर के गायकों ने इसे गाया है - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर अंजाना जी और अमित जी मौके पर खरे उतरे....कौन जीतेगा ये बाज़ी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप इस लघु शृंखला का आनंद ले रहे हैं। विश्व के जाने माने पियानिस्ट्स में से दस पियानिस्ट्स के बारे में हम इस शृंखला में जानकारी दे रहे हैं। पाँच नाम शामिल हो चुके हैं, आइए आज की कड़ी में बाकी के पाँच नामों का ज़िक्र करें। शुरुआत कर रहे हैं महान संगीत-शिल्पी मोज़ार्ट से। वूल्फ़गैंग मोज़ार्ट भी एक आश्चर्य बालक थे, जिसे अंग्रेज़ी में हम child prodigy कहते हैं। केवल तीन वर्ष की उम्र में उनके हाथों की नाज़ुक उंगलियाँ पियानो के की-बोर्ड पर फिरती हुई देखी गई, और पाँच वर्ष के होते होते वो गानें कम्पोज़ करने लग गये, और पता है ये गानें किनके लिखे होते थे? उनके पिता के लिखे हुए। और बहुत ही छोटी उम्र से वो स्टेज-कॊण्सर्ट्स भी करने लगे, और आगे चलकर एक महान संगीतकार बन कर संगीताकाश में चमके। उन्हीं की सिम्फ़नी को आधार बना कर संगीतकार सलिल चौधरी ने फ़िल्म 'छाया' का वह गीत कम्पोज़ किया था, "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा..."। ख़ैर, आगे बढ़ते हैं, और अब जो नाम मैं लेना चाहता हूँ, वह है फ़्रान्ज़ लिस्ज़्ट का। अगर आप ने इस शृंखला को ग़ौर से पढ़ा है तो आपको याद आ गया होगा कि इनका ज़िक्र पहले भी आ चुका है। इस हंगरियन पियानिस्ट ने भी अपना करीयर बहुत ही छोटे उम्र में शुरु किया। उनके जीवन से जुड़ी बहुत कम तथ्य उपलब्ध है। उल्लेखनीय बात यह है कि केवल पियानो ही नहीं, वो कई और साज़ भी बहुत अच्छा बजा लेते थे, जिनमें चेलो (cello) भी शामिल है। एक और जानेमाने पियानिस्ट हुए हैं वाल्टर विल्हेम गीसेकिंग्। यह भी एक हैरतंगेज़ संगीतकार रहे इस बात के लिए कि इन्होंने कभी भी पियानो पर बैठकर कुछ कम्पोज़ नहीं किया; बल्कि वे घण्टों चुपचाप बैठे रहते थे और अपने गीतों को मन ही में कम्पोज़ करते और बजाते जाते थे। उसके बाद पियानो पर बैठकर बिना कोई ग़लती किए हू-ब-हू वैसा बजा जाते जैसा कि उन्होंने मन में सोच रखा था। आर्तुरो बेनेदेत्ती माइकेलैंजेली भी पूरे पर्फ़ेक्शन के साथ बजाते थे, जिनकी रेखोडिंग्स बिना एडिटिंग किए भी पर्फ़ेक्ट हुआ करती थी। उनका काफ़ी बदनाम भी था इस बात के लिए कि वो कॊण्सर्ट्स जब तब कैन्सल कर देते थे और आयोजकों को ग़लत परिस्थिति में डाल देते थे। एक और पियानिस्ट जिनका उल्लेख होना चाहिए, वो हैं ऐल्फ़्रेड कॊर्टोट। उन्हें जाना जाता है उनके आश्चर्यजनक रेकॊर्डिंग्स के लिए, तथा चॊपिन, ब्र्हाम्स, लिस्ज़्ट व अन्य कम्पोज़र्स जैसी वेरिएशन्स के लिए। उन्होंने अपने ख़ुद के वेरिएशन्स भी इसमें जोड़े और साधारण कम्पोज़िशन्स में ऐसे ऐसे बदलाव लाये जो वाक़ई आश्चर्यजनक थे।
७० के दशक के बाद आज ८० के दशक की बारी। आज का प्रस्तुत गीत है साल १९८३ की फ़िल्म 'बड़े दिलवाला' से। एक बार फिर आज किशोर कुमार की आवाज़ गूंजेंगी, लेकिन गीतकार और संगीतकार बदल गये हैं। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा और राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया हुआ यह आशावादी गीत है "जीवन के दिन छोटे सही हम भी बड़े दिलवाले, कल की हमें फ़ुर्सत कहाँ सोचें जो हम मतवाले"। सच ही तो है, हमें आज को पूरे जोश और उल्लास के साथ जीना चाहिए, क्या पता कल ये आलम रहे ना रहे! ख़ैर, 'बड़े दिलवाला' फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन किया था भप्पी सोनी ने। उपन्यासकार गुल्शन नंदा की कहानी पर संवाद लिखे डॊ. राही मासूम रज़ा नें और फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाईं ऋषी कपूर, टिना मुनीम, सारिका, अरुणा इरानी, जगदीप, मदन पुरी, कल्पना अय्यर, अम्जद ख़ान और प्राण साहब नें। आज का यह गीत तो ऋषी कपूर पियानो पर बैठ कर गा रहे होते हैं, लेकिन इसी गीत का एक अन्य वर्ज़न भी है जिसे उदित नारायण और लता मंगेशकर ने गाया है और जो फ़िल्माया गया है प्राण और सारिका पर। फ़िल्म के संगीत विभाग में योगदान दिया था बासु देव चक्रवर्ती, मनोहारी सिंह, और मारुति राव नें, जो पंचम दा के सहायक रहे। और गीतों को रेकॊर्ड किया कौशिक साहब नें। जहाँ तक इस गाने में पियानो का सवाल है, तो प्रिल्युड में बहुत ख़ूबसूरत और साफ़ पियानो बजाया है, और गीत के मुखड़े की धुन भी पियानो से ही शुरु होकर किशोर दा की आवाज़ में "ला ला ला..." में जाकर मर्ज हो जाती है। बड़ा ही सुंदर संगीत संयोजन इस गीत का रहा, और इसीलिए पंचम के साथ साथ हमने उनके सहायकों का भी नाम लिया। लेकिन सटीक रूप से हम यह आपको बता नहीं सकते कि किस साज़िंदे ने इस गीत में पियानो बजाया होगा। लेकिन जिन्होंने भी बजाया है, उनको हम सलाम करना चाहेंगे। वैसे आपको यह बात बता दें कि एक पियानिस्ट जिन्होंने राहुल देव बर्मन के कई गीतों में पियानो बजाया है, वो हैं माइक मचाडो (Mike Machado)| तो आइए इस ख़ूबसूरत गीत को सुना जाये, और इस गीत के बोलों को अगर हम अपने अपने जीवन में थोड़ा तवज्जो दें तो मेरा ख़याल है कि इससे जीवन बेहतर ही बनेगा। इस गीत का भाव यही है कि हम अपना शिकायती स्वभाव को छोड़ कर उपरवाले का शुक्रिया अदा कर ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करें।
"यह ज़िंदगी दर्द भी है, यह ज़िंदगी है दवा भी,
दिल तोड़ना ही न जाने, जाने यह दिल जोड़ना भी,
इस ज़िंदगी का शुक्रिया सदके मैं उपरवाले,
कल की हमें फ़ुर्सत कहाँ सोचें जो हम मतवाले।"
क्या आप जानते हैं...
कि विश्व का सब से बड़ा पियानो का नाम है Challen Concert Grand, जो ११ फ़ीट लम्बा और १०० किलो से ज़्यादा है, और जिसका कुल स्ट्रिंग टेन्शन ३० टन से भी ज़्यादा है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 09/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म में किस सीनियर अदाकारा ने अहम् भूमिका निभायी है - २ अंक
सवाल २ - फिल्म में अपनी भूमिका के लिए इन्हें सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता का फिल्म फेयर मिला, कौन हैं ये - ३ अंक
सवाल ३ - लता जी के साथ किन दो नए दौर के गायकों ने इसे गाया है - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर अंजाना जी और अमित जी मौके पर खरे उतरे....कौन जीतेगा ये बाज़ी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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फिल्म करण अर्जुन का गाना "सूरज कब दूर गगन से चंदा कब दूर किरन से' की धुन कई वर्षों पहले रोशन लाल जी ने अपने किसी एक गाने के बीच में इस्तेमाल करी थी. मैंने करीब १० वर्षों पहले वो गाना सुना था. अब में उसको ढूँढने की कोशिश कर रहा हूँ.
क्या कोई मेरी मदद कर सकता है?
वह गीत है - "बहुत दिया देने वाले ने तुझको,आँचल हि न समाये तो क्या कीजे" फ़िल्म 'सूरत और सीरत' से।