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कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र.....आज भी इस गीत की रिदम को सुनकर मन थिरकने नहीं लगता क्या आपका ?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 546/2010/246

मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और नए सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, पिछले तीन हफ़्तों से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सज रही है एक ऐसी महफ़िल जिसे रोशन कर रहे हैं हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ समान फ़िल्मकार। 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' लघु शृंखला के पहले तीन खण्डों में वी. शांताराम, महबूब ख़ान और बिमल रॊय के फ़िल्मी सफ़र पर नज़र डालने के बाद आज से हम इस शृंखला का चौथा और अंतिम खण्ड शुरु कर रहे हैं। और इस खण्ड के लिए हमने जिस फ़िल्मकार को चुना है, वो एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार हैं। फ़िल्म निर्माण और निर्देशन के लिए तो वो मशहूर हैं ही, अभिनय के क्षेत्र में भी उन्होंने लोहा मनवाया है और साथ ही एक अच्छे नृत्य निर्देशक भी रहे हैं। इस बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न फ़िल्मकार को दुनिया जानती है गुरु दत्त के नाम से। आज से अगले चार अंकों में हम गुरु दत्त को और उनके फ़िल्मी सफ़र को थोड़ा नज़दीक से जानने और समझने की कोशिश करेंगे और साथ ही उनके द्वारा निर्मित और/या निर्देशित फ़िल्मों के कुछ बेहद लोकप्रिय व सदाबहार गानें भी सुनेंगे। गुरु दत्त पडुकोण का जन्म ९ जुलाई १९२५ को बैंगलोर (मैसूर प्रोविंस) में हुआ था। उनके पिता शिवशंकरराव पडुकोण और माँ वसंती पडुकोण चित्रपुर के सारस्वत थे। पिता पहले पहले स्कूल के हेडमास्टर थे और बाद में बैंक की नौकरी कर ली, जब कि उनकी माँ एक स्कूल में पढ़ाती थीं और लघु कहानियाँ लिखती थीं, तथा बांगला के उपन्यासों को कन्नड़ में अनुवाद भी करती थीं। जब गुरु दत्त का जन्म हुआ, उस वक़्त वसंती पडुकोण की उम्र केवल १६ वर्ष थी। परिवार की आर्थिक अवस्था ठीक ना होने और माता-पिता में संबंध अच्छे ना होने की वजह से गुरु दत्त का बचपन कठिन ही रहा। गुरु दत्त का नाम शुरु में वसंत कुमार रखा गया था, लेकिन बालावस्था में एक हादसे का शिकार होने के बाद उनका बदलकर गुरु दत्त कर दिया गया, क्योंकि परिवार के हिसाब से यह नाम ज़्यादा शुभ था। गुरु दत्त के तीन छोटे भाई थे आत्माराम, देवीदास और विजय, और उनकी एकमात्र बहन थी ललिता। निर्देशिका कल्पना लाजमी ललिता की ही बेटी हैं। गुरु दत्त बचपन में अपना बहुत सारा समय अपने मामा बालाकृष्णा बी. बेनेगल के साथ बिताया करते थे, जिन्हें वो बकुटमामा कहकर बुलाते थे। बकुटमामा उन दिनों फ़िल्मों के पोस्टर्स पेण्ट किया करते थे। इसी बकौटमामा के भतीजे हैं महान फ़िल्मकार श्याम बेनेगल। तो दोस्तों, यह था गुरु दत्त साहब के परिवार का पार्श्व।

दोस्तों, गुरु दत्त के नाम से बहुत से लोगों को आज भी यह लगता है कि बंगाली थे, जब कि ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन उनका बंगाल से नाता तो ज़रूर है। जैसा कि हमने बताया कि गुरु दत्त के पिता हेडमास्टर थे और उसके बाद बैंक की नौकरी की। फिर उसके बाद वो एक क्लर्क की हैसियत से बर्मा शेल कंपनी में कार्यरत हो गये और इस तरह से कलकत्ते के भवानीपुर में रहने लगे। यहीं पर गुरु दत्त की स्कूली शिक्षा सम्पन्न हुई। और इसी वजह से गुरु दत्त बंगला भी बहुत फ़ुर्ती से बोल लेते थे। बंगाल की संस्कृति को उन्होंने इतने अच्छे से अपने में समाहित किया कि बाद में जब बंगाल के पार्श्व पर बनी फ़िल्मों का निर्माण किया तो उनमें जान डाल दी। दोस्तों, गुरु दत्त के फ़िल्मी सफ़र की कहानी हम कल के अंक से शुरु करेंगे, आइए अब सीधे आ जाते हम आज बजने वाले गीत पर। इस पहले अंक के लिए हमने उस फ़िल्म का शीर्षक गीत चुना है जो गुरु दत्त निर्मित, निर्देशित व अभिनीत पहली ब्लॊकबस्टर फ़िल्म थी। जी हाँ, 'आर-पार'। ऐसी बात नहीं कि इससे पहले उन्होंने फ़िल्में निर्देशित नहीं की, लेकिन 'आर पार' को जो शोहरत और बुलंदी हासिल हुई थी, वह बुलंदी पहले की फ़िल्मों को नसीब नहीं हुई थी। शम्शाद बेगम की आवाज़ में मजरूह सुल्तनपुरी की रचना और संगीतकार, जी हाँ, हमारे ओ.पी. नय्यर साहब, जिनके साथ गुरु दत्त की बहुत अच्छी ट्युनिंग् जमी थी। नय्यर साहब भी इसी गीत को अपना पहला कामयाब गीत बताते रहे हैं। विविध भारती के 'दास्तान-ए-नय्यर' शृंखला में जब कमल शर्मा ने उनसे पूछा कि क्या वो अपना पहला गीत "प्रीतम आन मिलो" को मानते हैं, तो नय्यर साहब ने खारिज करते हुए "कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र" का ही ज़िक्र किया। तो आइए शम्शाद बेगम की खनकती आवाज़ में इस गीत को सुनते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि इसी वर्ष २०१० में गुरु दत्त को सी.एन.एन ने अपने "Top 25 Asian actors of all time" की सूची में शामिल किया है।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०७ /शृंखला ०५
गीत का इंटरल्यूड सुनिए-


अतिरिक्त सूत्र - इससे आसान कुछ हो ही नहीं सकता :).

सवाल १ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - गायिका का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ने दो अंकों की छलांग लगायी, मगर श्याम जी अभी भी आगे हैं, भाई श्याम का कोई तोड़ फिलहाल नज़र नहीं आ रहा.....बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

AVADH said…
गीतकार: साहिर लुधियानवी
अवध लाल
गीता दत्त जी के सिवा कौन कह सकता है बाकि...........जाने क्या तुने कही जाने क्या मैंने सुनी बात कुछ बन ही गई ना?
Pratibha K-S said…
सवाल १ - संगीतकार बताएं - Sachin Dev Burman

Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada
“हम आगे बढ़ते हैं, नए रास्ते बनाते हैं, और नई योजनाएं बनाते हैं, क्योंकि हम जिज्ञासु है और जिज्ञासा हमें नई राहों पर ले जाती है। ”
- वाल्ट डिज़्नी
teen dinon ke natya samaroh hone ke karan samaya par upasthit nahIM ho pa raha hoon. aaj bhi nahi aa paoonga. doosare din ya late night mein hi dekh pata hoon.

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