ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 08
'ओल्ड इस गोल्ड' में आज बारी है एक सदाबहार युगल गीत को सुनने की. दोस्तों, फिल्मकार वी शांताराम और संगीतकार वसंत देसाई प्रभात स्टूडियो के दिनो से एक दूसरे से जुडे हुए थे, जब वसंत देसाई वी शांताराम के सहायक हुआ करते थे. वी शांताराम को वसंत देसाई के प्रतिभा का भली भाँति ज्ञान था. इसलिए जब उन्होंने प्रभात छोड्कर अपने 'बैनर' राजकमल कलामंदिर की नीव रखी तो वो अपने साथ वसंत देसाई को भी ले आए. "दहेज", "झनक झनक पायल बाजे", "तूफान और दीया", और "दो आँखें बारह हाथ" जैसी चर्चित फिल्मों में संगीत देने के बाद वसंत देसाई ने राजकमल कलामंदिर की फिल्म "मौसी" में संगीत दिया था सन 1958 में. इस फिल्म में एक बडा ही प्यारा सा गीत गाया था तलत महमूद और लता मंगेशकर ने. यही गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' में.
हालाँकि वी शांताराम प्रभात स्टूडियो छोड चुके थे, लेकिन उसे अपने दिल से दूर नहीं होने दिया. उन्होने अपने बेटे का नाम इसी 'स्टूडियो' के नाम पर प्रभात कुमार रखा. और उनके इसी बेटे ने फिल्म "मौसी" का निर्देशन किया. सुमति गुप्ते और बाबूराव पेंढारकर अभिनीत यह फिल्म बहुत ज़्यादा नहीं चली लेकिन इस फिल्म का गीतकार भरत व्यास का लिखा यह युगल गीत चल पडा. कुछ लोगों का कहना था कि वसंत देसाई के संगीत में शास्त्रीयता और मराठी लोक संगीत की भरमार होती है और उसमें विविधता का अभाव है. इस गीत के ज़रिए वसंत-दा ने ऐसे आरोपों को ग़लत साबित किया. एक और बात, इसी गीत की धुन पर तेलुगु के संगीतकार घनतसला ने 1960 की तेलुगु फिल्म शांतीनिवासं में एक गीत बनाया जिसके बोल थे "'कम कम कम'". हल्का फुल्का 'कॉंपोज़िशन' और 'ऑर्केस्ट्रेशन', सहज बोल, और मधुर गायिकी, इन सब के आधार पर मौसी फिल्म के इस युगल गीत के दीये टीम टीम करके नहीं बल्कि अपनी पूरी रौशनी के साथ चमकने लगे और आज भी इसकी चमक वैसी ही बरक़रार है.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. लता मंगेशकर और चितलकर की आवाजें हैं इस मशहूर युगल गीत में.
२. इसी फिल्म के नाम की एक और फिल्म बनी थी १९७९ में जिसमें ऋषि कपूर और जय प्रदा की प्रमुख भूमिकाएं थी.
३. मुखड़े में शब्द हैं -"चुप"
कुछ याद आया...?
(पिछली पहेली का परिणाम)
अरे ये क्या हुआ...मनु जी इस बार कैसे चूक गए भाई...खैर मीत जी ने एकदम सही जवाब दिया.
आखिर हमारे सचिन शून्य पर आउट हो ही गए...क्या किया जाये नीलम जी :),
नीरज जी आपका स्वागत है....सही कहा आपने.
प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'ओल्ड इस गोल्ड' में आज बारी है एक सदाबहार युगल गीत को सुनने की. दोस्तों, फिल्मकार वी शांताराम और संगीतकार वसंत देसाई प्रभात स्टूडियो के दिनो से एक दूसरे से जुडे हुए थे, जब वसंत देसाई वी शांताराम के सहायक हुआ करते थे. वी शांताराम को वसंत देसाई के प्रतिभा का भली भाँति ज्ञान था. इसलिए जब उन्होंने प्रभात छोड्कर अपने 'बैनर' राजकमल कलामंदिर की नीव रखी तो वो अपने साथ वसंत देसाई को भी ले आए. "दहेज", "झनक झनक पायल बाजे", "तूफान और दीया", और "दो आँखें बारह हाथ" जैसी चर्चित फिल्मों में संगीत देने के बाद वसंत देसाई ने राजकमल कलामंदिर की फिल्म "मौसी" में संगीत दिया था सन 1958 में. इस फिल्म में एक बडा ही प्यारा सा गीत गाया था तलत महमूद और लता मंगेशकर ने. यही गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' में.
हालाँकि वी शांताराम प्रभात स्टूडियो छोड चुके थे, लेकिन उसे अपने दिल से दूर नहीं होने दिया. उन्होने अपने बेटे का नाम इसी 'स्टूडियो' के नाम पर प्रभात कुमार रखा. और उनके इसी बेटे ने फिल्म "मौसी" का निर्देशन किया. सुमति गुप्ते और बाबूराव पेंढारकर अभिनीत यह फिल्म बहुत ज़्यादा नहीं चली लेकिन इस फिल्म का गीतकार भरत व्यास का लिखा यह युगल गीत चल पडा. कुछ लोगों का कहना था कि वसंत देसाई के संगीत में शास्त्रीयता और मराठी लोक संगीत की भरमार होती है और उसमें विविधता का अभाव है. इस गीत के ज़रिए वसंत-दा ने ऐसे आरोपों को ग़लत साबित किया. एक और बात, इसी गीत की धुन पर तेलुगु के संगीतकार घनतसला ने 1960 की तेलुगु फिल्म शांतीनिवासं में एक गीत बनाया जिसके बोल थे "'कम कम कम'". हल्का फुल्का 'कॉंपोज़िशन' और 'ऑर्केस्ट्रेशन', सहज बोल, और मधुर गायिकी, इन सब के आधार पर मौसी फिल्म के इस युगल गीत के दीये टीम टीम करके नहीं बल्कि अपनी पूरी रौशनी के साथ चमकने लगे और आज भी इसकी चमक वैसी ही बरक़रार है.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. लता मंगेशकर और चितलकर की आवाजें हैं इस मशहूर युगल गीत में.
२. इसी फिल्म के नाम की एक और फिल्म बनी थी १९७९ में जिसमें ऋषि कपूर और जय प्रदा की प्रमुख भूमिकाएं थी.
३. मुखड़े में शब्द हैं -"चुप"
कुछ याद आया...?
(पिछली पहेली का परिणाम)
अरे ये क्या हुआ...मनु जी इस बार कैसे चूक गए भाई...खैर मीत जी ने एकदम सही जवाब दिया.
आखिर हमारे सचिन शून्य पर आउट हो ही गए...क्या किया जाये नीलम जी :),
नीरज जी आपका स्वागत है....सही कहा आपने.
प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
वैसे तलत साहब के मैने ज्यादातर एकल गीत ही सुने है
सुमित भारद्वाज
nahi ,agli baar phir se shatak ki umeed ki jaay ,manu ji aa jaayiye
aawaj ke ground me apne gano ki ballebaaji ke jouhar dikhane ke liye
शायद यही है ना ?
वैसे ओल्ड इज़ गोल्ड का यह सिलसिला बेहतर तरीके से हमारी ज़िंदगी में जम गया है। हर शाम अब महफिल लगती है यहाँ।
सुजोय जी और सजीव जी इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
-विश्व दीपक
वो हमसे चुप हैं ...हम उनसे चुप हैं ,
मनाने वाले मना रहे हैं..
मगर फिल्म का SAN, या नाम आदि कुछ नहीं मालूम...
पर शुक्रिया ,.....आपने नीलम जी की तरह "" मनु जी बुद्धू घोषित किये जाते हैं..""
जैसा मेरे नाम का बैनर नहीं लगाया...... :::))))))))
अब तो रोज़ ही जाजम बिछ रही है, लेट हो रहे है.
लेट होवन है,सो खोवत है...
samajh gaye n ,kahiye to ek bainar
yahaan bhi banwa de aapke liye
"dhurandhar sachin(manu) ne bhi ki cheeting deepak ji ke ranon ko jodkar shatak jamaane ki kosish" ...........(bura mat maaniyega .pata nahi kaun si baat aap dil se laga len ).