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उदय प्रकाश का कहानीपाठ और आलाकमान की बातें

९ जनवरी २००९ को हिन्दी अकादमी की ओर से आयोजित कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग


९ जनवरी २००९ को मैं पहली दफ़ा किसी कथापाठ सरीखे कार्यक्रम में गया था। कार्यक्रम रवीन्द्र सभागार, साहित्य अकादमी, दिल्ली में था जिसमें फिल्मकार, कवि, कथाकार उदय प्रकाश का कथापाठ और उनपर प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह का वक्तव्य होना था। जाने की कई वज़हें थीं। हिन्द-युग्म पिछले १ साल से कालजयी कहानियों का पॉडकास्ट प्रसारित कर रहा है। पहले इस आयोजन में हम निरंतर नहीं थे, लेकिन जुलाई से पिट्वबर्गी अनुराग शर्मा के जुड़ने के बाद हम हर शनिवार को प्रेमचंद की कहानियाँ प्रसारित करने लगे। कई लोग शिकायत करते रहे थे (खुले तौर पर न सही) कि कहानियों के वाचन में और प्रोफेशनलिज्म की ज़रूरत है। तो पहली बात तो ये कि मैं उदय प्रकाश जैसे वरिष्ठ कथाकारों को सुनकर यह जानना चाहता था कि असरकारी कहानीपाठ आखिर क्या बला है? हालाँकि इसमें मुझे निराशा हाथ लगी। मुझे लगा कि हिन्द-युग्म के अनुराग शर्मा, शन्नो अग्रवाल और शोभा महेन्द्रू इस मामले में बहुत आगे हैं। लेकिन फिर भी कहानीकार से कहानी सुनने का अपना अलग आनंद है।

दूसरी वजह थी कि यह भी सीखें कि यदि खुद इस तरह का आयोजन करना हो तो किन-किन बातों का ध्यान रखना होता है। चूँकि हिन्द-युग्म ने भी लंदन निवासी हिन्दी कथाकार तेजेन्द्र शर्मा का कथापाठ करवाने का निश्चय किया था। १५ जनवरी को गाँधी शांति प्रतिष्ठान सभागार, नई दिल्ली में। संयोग की बात थी कि इस कार्यक्रम में भी टिप्पणीकार के तौर पर प्रो॰ नामवर सिंह का आना परिकल्पित था। लेकिन राजेन्द्र यादव जी से जब मैं ४ या ५ जनवरी को मिलने गया तो उन्होंने बताया कि ९ जनवरी को भी ऐसा ही कार्यक्रम है जिसमें नामवर जी आ रहे हैं। अतः अपने कार्यक्रम का रूप-रंग बदलना पड़ा।

यह भी देखना चाहता था कि इस तरह के कार्यक्रमों में युवाओं की उपस्थिति क्या है। ४ युवा लेकर तो मैं ही गया था, शेष मीडियाकर्मी थे। शायद सरकारी निकायों द्वारा होने वाले प्रयासों में कहीं न कहीं कोई कमी है। क्योंकि इस तरह के कार्यक्रमों की जानकारी भी वे युवाओं तक नहीं पहुँचाते। भाई मार्केटिंग तो चाहिए ही।

एक ख़ास बात तो जो मैंने महसूस की वह ये कि हमलोगों को छोड़कर वहाँ उपस्थित ज्यादातर लोगों ने उदय प्रकाश का साहित्य उदय प्रकाश से अधिक पढ़ रखा था, इसलिए उनको नया सुनने को कुछ नहीं मिलने वाला था। इसलिए यदि वे कथापाठ के दौरान सो भी गये तो उनकी कोई गलती नहीं थी। लगभग ५० मिनट तक उदय प्रकाश का कथापाठ चलता रहा जिसमें उन्होंने अपनी कुछ लघुकथाएँ और अपनी प्रसिद्ध कहानी 'पीली छतरी वाली लड़की' का एक अंश और अपने उपन्यास 'मोहनदास' का एक हिस्सा सुनाया। इसके बाद जब हिन्दी के आलाकमान ने माइक को लपका और यह कहाँ कि आज मेरे पास बोलने के लिए बहुत कुछ नहीं है, मैं चाहूँगा कि श्रोता सवाल करें, तब लोगों में थोड़ी-बहुत हलचल हुई और लोगों ने सवाल दागना शुरू किया।

आलाकमान नामवर सिंह ने कहा कि हिन्दी साहित्य के १०० वर्षों के इतिहास में तीन ही ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने कविता और कहानी दोनों पर बराबर और समर्थ हस्तक्षेप रखा। पहले जयशंकर प्रसाद, दूसरे अज्ञेय और तीसरे उदय प्रकाश।

अपनी आलोचनाओं के लिए मशहूर नामवर उस दिन केवल प्रसंशा के शब्द इस्तेमाल कर रहे थे। जैसे उन्होंने बैठे-बैठे पिछले १०० वर्षों के १० महान कहानीकारों की एक सूची बनाई थी, जिसमें प्रेमचंद, जैनेन्द्र, यशपाल, भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा इत्यादि में उदय प्रकाश का भी नाम था।

मैं एक तीसरा काम भी करने गया था, जिसकी उम्मीद कम से कम हिन्दी अकादमी से तो नहीं की जा सकती। मैंने कार्यक्रम को mp3 रिकॉर्डर से रिकॉर्ड कर लिया ताकि वे लोग भी सुन सकें जो कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाते या नहीं होना चाहते। २ घन्टे की रिकॉर्डिंग को १ घंटा ३३ मिनट का बनाकर और सुनने लायक बनाकर हमने आपके लिए लाया है। सुनें-




mp3 download
श्रोताओं के सवाल रिकॉर्ड नहीं हो पाये हैं, लेकिन उदय प्रकाश के जवाब से आपको अंदाज़ा लग जायेगा कि श्रोताओं ने क्या पूछा है।


आज शाम ५ बजे से हिन्द-युग्म भी इसी तरह का एक कार्यक्रम कर रहा है, जिसमें तेजेन्द्र शर्मा और गौरव सोलंकी का कथापाठ होगा, जिसपर असग़र वजाहत और अजय नावरिया अपने विचार देंगे। आप भी ज़रूर आयें। विवरण यहाँ देखें। इस कार्यक्रम में कम से कम इतना अंतर ज़रूर होगा कि यहाँ सुनने वाला नया होगा, जवान होगा और शायद ज़रूरी भी। ऐसा नहीं है कि वरिष्ठ नहीं होगे। एक तरह का पीढ़ियों का संगम होगा

Comments

H P SHARMA said…
ek bahut hee sunder prayaas. ghar baithe sahitya kee mahfil mai hone jaisa ahsaas mila. uday prakaash kee pratibhaa kee jo saraahna dr namvar singh ne kee hai vo iske kavil bhee hain. gtalk per unse thodee charchaa karne ka mauka mujhe milaa hai aur peeli chhatree balee ladkee pustak mer paas hai. mujeh lagtaa hai jintaa unhe padhaa gayaa hai usse jyadaa padhe jaane ke ve kavila hain.

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