Skip to main content

जब ओ पी नैयर के गीतों को आल इंडिया रेडियो ने प्रतिबंधित कर दिया....

नैयर साहब की जयंती पर विशेष



ओ.पी.नैयर नाम सुनते ही एक पतली काया और टोपी पहने हुए इंसान की छवि सामने आती है ।नैयर साहब का जन्म 16जनवरी १९२६ में लाहोर जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है,हुआ। दबंग, निरंकुश और हमेशा नये प्रयोग करने वाले इस सितारे का नाम माता पिता ने ओंकार प्रसाद रखा।



पाकिस्तान के विभाजन के बाद वो लाहोर से अमृतसर आ गये। ओंकार प्रसाद ने संगीत की सेवा करने के लिए अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी । अपने संगीत के सफ़र की शुरुआत इन्होंने आल इंडिया रेडियो से की ।इनकी पत्नी सरोज मोहनी नैयर एक बहुत ही अच्छी गीतकारा थी. सरोज के द्वारा लिखा गया ‘प्रीतम आन मिलो...’.ने ओपी को सिने जगत में नयी उँचाइयों तक पहुँचा दिया. सिने जगत में ओ. पी. नैयर का नाम ओपी प्रसिद्ध हुआ ।थोड़े ही दिनो के बाद एक रिकॉर्डिंग कंपनी ने इनके गाने ‘प्रीतम आन मिलो’ और ‘कौन नगर तेरा दूर ठिकाना’ को लेकर एक संगीत का एल्बम निकाला, जो लोगों के द्वारा बहुत पसंद किया गया और नैयर साहब के काम को लोगों ने पहचाना । कुछ ही दिनों बाद हिन्दी फिल्मों में अपने नसीब को आज़माने ये मुंबई आ गये ।



१९४९ में "कनीज़" से इन्हें सिने जगत में काम मिलना शुरू हुआ । निर्देशक कृष्ण केवल ने इन्हें ‘कनीज़’ में बेक ग्राउंड संगीत देने का काम दिया । बतौर संगीतकार "आसमान" १९५२ इनकी पहली फिल्म थी ।इन्होंने अपने संगीत साधना के सफ़र की शुरुआत की । फिर "छम छमा छम", "बाज़" आदि फिल्मों में संगीत दिया और इनकी सभी फिल्में एक के बाद एक असफल रही । नैयर साहब निराश होकर लौट जाने का सोच ही रहे थे कि गुरु दत्त जी द्वरा निर्देशित ‘आर पार’ सुपेरहिट रही और इनके संगीत ने लोगों के दिल और ज़ुबान पर जगह बना ली । हिन्दुस्तानी धुन के साथ पाश्चत्य संगीत, और पंजाबी ताल संगम लोगों ने पहले कभी नहीं सुना था । ओ. पी. नैयर की अनूठी संगीत शैली ने लोगों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ना शुरू कर दिया ।



आइए सुनते हैं आर पार फिल्म का ये गाना

कभी आर कभी पार लगा तीरे नज़र .....







कहीं चन्चल हँसी के साथ मस्ती लिए हुए संगीत, कहीं गहरी भावना लिए हुए मन को छूते हुए संगीत ने इन्हें संगीत जगत की उँचाई पर पहुँचा दिया। नैयर साहब ने अपने संगीत में सारंगी और पियानो का बहुत अच्छा प्रयोग किया ।

"बाबूजी धीरे चलना ..." जैसा गीत भी एक ऐसा ही उदाहरण है. "आर−पार" , "सी. आई. डी.", "तुमसा नहीं देखा", एक के बाद एक लगातार हिट फिल्में देते हुए ये सिने जगत में सबसे महँगे संगीतकार बने । १९५० में एक फिल्म में संगीत देने के १ लाख रुपये लेने वाले पहले संगीतकार थे । “नया दौर” इनकी सबसे सुपरहिट फिल्म रही ।इस फिल्म के लिए उन्हें 1957 में फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला



आइए सुनते हैं इसी फ़िल्म से उनका एक उनका सुपरहिट गाना-

उड़े जब जब जुल्फ़े तेरी………………..







सिर्फ़ कुछ ही फिल्मों में अपनी कला का लोहा मनवा देने वाले ये संगीतकार ज़िद्दी और एकांतप्रिय स्वभाव के कारण भी चर्चा में रहे. कुछ लोग इन्हें घमंडी, दबंग और निरंकुश स्वभाव के भी कहते थे, हालाँकि नये एवम् जूझते हुए गायकों के साथ ये बहुत उदार रहे । पत्रकार हमेशा से ही इनके खिलाफ रहे और इनको हमेशा ही बागी संगीतकार के रूप में पेश किया गया ।



सुनते चलें, फ़िल्म "नया दौर" का एक और गाना.

माँग के साथ तुम्हारा .................







पचास के दशक के दौरान आल इंडिया रेडियो ने इनके संगीत को आधुनिक कहते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया और इनके गाने रेडियो पर काफ़ी लंबे समय तक नहीं बजाए गये। इस बात से उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि वे अपनी धुन बनाते रहे और वे सभी देश में बड़ी हिट रही । उस समय सिर्फ़ श्री लंका के रेडियो पर ही इनके नये गाने सुने जा सकते थे । बहुत जल्दी ही अँग्रेज़ी अख़बारों में इनकी तारीफ के चर्चे शुरू हो गये और इन्हें हिन्दी संगीत में उस्ताद कहा जाने लगा.



गीता दत्त जी,आशा भोंसले जी और मोहम्मद रफ़ी के साथ सबसे ज़्यादा काम किया । मोहम्मद रफ़ी से अलग होने के बाद ओपी महेंद्र कपूर के साथ काम करने लगे । महेंद्र कपूर जी ओपी के लिए दिल से गाते थे । उनकी आवाज़ और एहसास की गहराई ने ओपी के गानों में भावनाओं को उभारा और लोगों के दिलों तक ओपी के विचारों की गहराई पहुँचाई ।



आइए एक गीत सुनते हैं, महेंद्र कपूर की आवाज़ में -

बदल जाए अगर माली चमन होता नही खाली....







(जारी...)



प्रस्तुति- श्रद्धा जैन



आज संगीतकार ओ पी नैयर साहब की ८३ वीं जयंती है, इसी जनवरी माह की २८ तारिख २००७ को वो इस दुनिया से अलविदा कह गए थे. श्रद्धा जी के इस आलेख का दूसरा हिस्सा हम २८ तारीख को आपके लिए लेकर आयेंगें, तब तक सुनिए जीनिअस ओ पी नय्यर साहब के संगीतबद्ध किए कुछ नायाब नग्में -



बेईमान बलमा - फ़िल्म - हम सब चोर हैं

गरीब जान के हमको - फ़िल्म - मंतर

बहुत शुक्रिया- फ़िल्म - एक मुसाफिर एक हसीना

दीवाना हुआ बादल - फ़िल्म - काश्मीर की कली

अंधेरे में जो बैठे हैं - फ़िल्म - सम्बन्ध

बाबूजी धीरे चलना - फ़िल्म - आर पार

आँखों ही आँखों में - फ़िल्म - सी आइ डी

आँचल में सजा ले - फ़िल्म - फ़िर वही दिल लाया हूँ.

आओ हुजूर - फ़िल्म - किस्मत

आपके हसीन रुख पे - फ़िल्म - बहारें फ़िर भी आयेंगीं












Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...