Skip to main content

जब मिला तबले को वरदान

पंडित किशन महाराज (१९२३- २००८) को संगीत की तीनों विधाओं में सर्वश्रेष्ठ कलाकार होने का सौभाग्य प्राप्त था. वो तबले के उस्ताद होने के साथ साथ मूर्तिकार, चित्रकार, वीर रस के कवि और ज्योतिष के मर्मज्ञ भी थे. यानी दूसरे शब्दों में कहें तो भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण से सम्मानित होने वाले वाले पहले कलाकार पंडित किशन महाराज जी, एक सम्पूर्ण कलाकार थे. बीते साल में उन्हें खोना संगीत की दुनिया को हुई एक बहुत बड़ी क्षति है. वीणा साधिका, राधिका बुधकर जी लेकर आई हैं पंडित जी पर दो विशेष आलेख.

रात का समय ....जब पुरी दुनिया गहरी नींद में सो रही थी ...तब वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में तबले की थाप गूंज रही थी, तबले के बोल मानो ईश्वरीय नाद की तरह सम्पूर्ण वातावरण में बहकर उसे दिव्य और भी दिव्य बना रहे थे, अचानक न जाने क्या हुआ और तबले की ध्वनी कम और मंदिर की घंटियों की आवाज़ ज्यादा सुनाई देने लगी, उन्होंने पल भर के लिए तबले की बहती गंगा को विराम दिया और सब कुछ शांत हो गया, उन्होंने फ़िर तबले पर बोलो की सरिता का प्रवाह अविरत किया और फ़िर मंदिरों की घंटिया बजने लगी, सुबह लोगो ने कहा उन्हें ईश्वरीय वरदान मिला हैं, संकट मोचन हनुमान ने स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी के तबले को वरदान दिया, और उनका तबला युगजयी हो गया ।

आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन जी का जन्म, जन्माष्टमी की वैसी ही आधी रात को हुआ जैसी आधी रात में युगों युगों तक हर ह्रदय पर राज्य करने वाले किशन कन्हैया का जन्म हुआ था, इस जन्माष्टमी की आधी रात को शायद वर मिला हैं कि इस रात दिव्य आत्मायें, देव, गंधर्व ही पृथ्वी पर जन्म लेंगे ।

आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे, माथे पर एक लाल रंग का टिक्का हमेशा लगा रहता था, वे जब संगीत सभाओं में जाते, संगीत सभायें लय ताल से परिपूर्ण हो गंधर्व सभाओ की तरह गीत, गति और संगीतमय हो जाती । अपने पिताजी पंडित हरि महाराज जी से संगीत शिक्षा लेने के उपरांत आदरणीय पंडित किशन महाराज जी ने अपने चाचा पंडित कंठे महाराज जी से शिक्षा ग्रहण की ।

बनारस के संकट मोचन मंदिर में ही पहला संगीत कार्यक्रम देने के बाद सन १९४६ में पंडित जी में मुंबई की और प्रस्थान किया, एक बहुत बड़े संगीत कार्यक्रम के अवसर पर देश के श्रेष्ठ सितार वादक आदरणीय पंडित रविशंकर जी और आदरणीय पंडित किशन महाराज जी पहली बार मिले, जैसे ही इनका वादन सम्म्पन हुआ, श्रोताओ में से आदरणीय ओमकारनाथ ठाकुर जी उठे और मंच पर जाकर उन्होंने घोषणा की "यह दोनों बच्चे भविष्य के भारतीय शास्त्रीय संगीत के चमकते सितारे होंगे ।" उसी दिन से आदरणीय पंडित रविशंकर जी, ओर स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी में गहरी मैत्री हो गई ।

तबला बजाने के लिए वैसे पद्मासन में बैठने की पद्धत प्रचलित हैं, किंतु स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी दोनों घुटनों के बल बैठ कर वादन किया करते थे, ख्याल गायन के साथ उनके तबले की संगीत श्रोताओ पर जादू करती थी, उनके ठेके में एक भराव था, और दाये और बाये तबले का संवाद श्रोतोई और दर्शको पर विशिष्ट प्रभाव डालता था ।

अपनी युवा अवस्था में में पंडित जी ने कई फिल्मो में तबला वादन किया, जिनमे नीचनगर, आंधियां, बड़ी माँ आदि फिल्मे प्रमुख हैं ।

कहते हैं न महान कलाकार एक महान इंसान भी होते हैं, ऐसे ही महान आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी भी थे, उन्होंने बनारस में दूरदर्शन केन्द्र स्थापित करने के लिए भूख हड़ताल भी की और संगत कलाकारों के प्रति सरकार की ढुलमुल नीति का भी पुरजोर विरोध किया ।

श्रद्धेय किशन महारज जी को मेरा सादर प्रणाम, सुनतें हैं उनकी एल्बम "साज़" से तीन ताल-


प्रस्तुति -वीणा साधिका
राधिका
(राधिका बुधकर )


लेख के अगले अंक में : जब मुझे विचित्र वीणा बजाने हेतू मिला आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी का आशीर्वाद


Comments

बहुत खुब, भाई तबले ने तो सच मै मस्त कर दिया, पंडित किशन महाराज को श्रधाज्लि, ओर वीणा साधिका, राधिका बुधकर जी ओर आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस सुंदर लेख को हम सब तक पहुचाने के लिये.अब दोवारा से यह तबला बादन सुनता हूं
राधिका जी आवाज़ पर आपका स्वागत है. पंडित जी के बारे में इतना सब बताने का आभार....अगली कड़ी का इंतज़ार है
राधिका जी,

हिन्दी के पाठकों/श्रोताओं को आप बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ दे रही हैं। अमर कलाकारों को यह सच्ची श्रद्दाँजलि है। मुझे खुशी है कि आपजैसे कलाप्रेमियों के सहयोग से हिन्द-युग्म लम्बे समय तक यह निधियाँ वर्तमान पीढ़ी और आगामी पीढ़ी में लुटाता रहेगा।

साधुवाद।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...