सुनिए अमिताभ बच्चन की आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन का काव्य पाठ
आज हिन्दी साहित्य के माधुर्य रस से लबालब काव्य लिखने वाले हालावादी कवि हरिवंश राय बच्चन छठवीं पुण्यतिथि है।उनका नाम याद आते ही याद आता है २५ वर्ष का एक युवक - लम्बे घुँघराले बाल, इकहरा शरीर, दरमियाना कद,गेहुँआ रंग, दार्शनिक मुद्रा और शरारत भरी आँखें। दिन में कचहरी और रात में होटल या ट्रेन में। २ नोट बुक सदा हाथ में रहती। एक अखबारी नोट तथा दूसरी निजी जो उसकी सच्ची साथी थी,जिसमें वो अपनी प्यारी कल्पनाएँ छन्दोबद्ध रूप में लिखता था।गला सुरीला था। अक्सर गुनगुनाता था-
"अरूण कमल कोमल कलियों का, प्याली, फूलों का प्याला..."
अपने गीतों की धुन स्वयं बनाता और मस्ती से गाता था। एक ऐसा कवि जिसने मात्र १३ वर्ष की आयु में अपनी पहली कविता लिखी। आरम्भ में छोटी-छोटी सभाओं में लोकप्रिय हुआ और कुछ ही दिनों में समस्त हिन्दी प्रेमियों में गायक कवि के रूप में प्रचलित हो गया। १९३३ में बनारस में एक बड़ा कविसम्मेलन हुआ। दिग्गज कवियों के बीच मधुशाला के २ पद सुनाकर दिग्विजय पा ली। बैठबा चाहते थे पर तालियों की गड़गड़ाहट ने तीसरा, फिर चौथा पद सुनाया। विद्यार्थी सिर्फ़ बच्चन जी को सुनना चाहते थे। उनको आश्वासन दिया गया कि कल फिर से बच्चन जी का कविता पाठ होगा तब जाकर विद्यार्थी बैठे।
दूसरे दिन वाइसचान्सलर से लेकर सभी अध्यापक और विद्यार्थी उन्हें सुनने पहुँच गए। विद्यार्थी कापी लेकर आए थे। बच्चन जी ने अपनी मधुर तर्ज में मधुशाला गानी आरम्भ की। श्रोता झूम रहे थे और सैंकड़ों कंठ उनके साथ गुनगुना रहे थे। ३ दिनों में बच्चन जी की ख्याति पूरे हिन्दी जगत में फैल गई। मधुशाला का प्रथम संस्करण छपवाने के लिए धन नहीं था। एक प्रकाशक के पास पाँडुलिपि छोड़ आए। कुछ दिन बाद वह प्रकाशक मधुशाला की २० प्रतियाँ लेकर उनके पास आया। उसने बताया कि उसने १००० प्रतियाँ छपवाई थी जिनमें से केवल २० ही बची हैं। सब हाथों हाथ बिक गई।
आर्थिक संकट तो था ही साथ में पारिवारिक संकट भी कम नहीं थे। सबसे बड़ा आघात पत्नी श्यामा की मृत्यु से लगा। कवि का हृदय टूट गया। टूटे हृदय से १९३७ में निशा निमंत्रण लिखा । १९४० में आकुल अंतर और विकल विश्व की रचना की। १९४२ में तेजी जी से विवाह हुआ। यह विवाह बहुत शुभ था। इलाहबाद विश्व विद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में लैक्चरार बने। समय बदल गया। प्रणय पत्रिका में उन्होने लिखा-लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के एक और पहलू से होकर निकल चला ।
बच्चन जी साहित्य में हालावाद को लेकर आए।उनकी कविता विद्रोह और जीवन का संदेश देती थी। उसमें असाधारण माधुर्य का समावेश था। उन्होने नव जीवन और आस- विश्वास का संदेश दिया- जो बीत गई सो बात गई......
१९५२ में बच्चन जी अंग्रेजी में डाक्टरेट करने के लिए कैम्बरिज गए। १९५४ में आए और १९५५ में आकाशवाणी में हिन्दी प्रोड्यूसर बने। बाद में विदेश मंत्रालय से निमंत्रण मिल गया। उनकी लोकप्रियता का आधार उनका मधुर कंठ था। उनकी रचनाएँ उनके मुख से सुनना एक सौभाग्य था।
जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए किन्तु सामाजिक जीवन में ऐसे रहे जैसे पानी में कमल। धीर-गम्भीर अपने परिवार में खुश रहते। दिल्ली में रहकर भी दिल्ली वालों की तरह क्लब आदि में बहुत कम जाते थे। अधिकतर समय घर पर ही बिताते थे। बीसियों निमंत्रणों के बाद भी बहुत कम बाहर जाते थे। दिनचर्या एकदम नियमित रहती। व्यायाम, स्वाध्याय नियम से करते। सादा जीवन और शाकाहारी भोजन किया करते । बागवानी का शौंक रखते थे, पत्थरों से घर सजाना उन्हें बहुत पसन्द था। जब भी सैर को जाते दो चार पत्थर उठा लाते। घर में एक मन्दिर भी बनाया हुआ था। अध्ययन में ज़रा भी हस्तक्षेप सहन नहीं करते। बैठकर लिखा करते। उनका कहना था- लेटकर लिखी कविता भी लेखक के समान ही शिथिल हो जाती है। वे चुस्ती में विश्वास रखते थे। उनके दो पुत्र हुए- अमित और अजित। अमित एक महान अभिनेता के रूप में लोकप्रिय हैं। आज भारत का बच्चा -बच्चा अमित जी को जानता है।
अपना परिचय उन्होने स्वयं आत्म परिचय में दिया-
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ।
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ।
जिसको सुनकर जग झूम,झुके लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
जीवन के संबन्ध में उनके विचार बहुत ही दार्शनिक थे। वे गाते थे-
प्याला है पर पी जाएँगें,
है ज्ञात नहीं इतना हमको,
इस पार नीयति ने भेजा है
असमर्थ बना कितना हमको।
किन्तु जीवन संघर्षों से जूझना उन्हें प्रिय था-
तीर पर कैसे रूकूँ मैं,
आज लहरों का निमंत्रण....
सुनिए सुपुत्र अमिताभ बच्चन की दमदार आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन जी की ये रचनाएँ -
पहला हिस्सा
दूसरा हिस्सा
प्रस्तुति- शोभा महेन्द्रू
आज हिन्दी साहित्य के माधुर्य रस से लबालब काव्य लिखने वाले हालावादी कवि हरिवंश राय बच्चन छठवीं पुण्यतिथि है।उनका नाम याद आते ही याद आता है २५ वर्ष का एक युवक - लम्बे घुँघराले बाल, इकहरा शरीर, दरमियाना कद,गेहुँआ रंग, दार्शनिक मुद्रा और शरारत भरी आँखें। दिन में कचहरी और रात में होटल या ट्रेन में। २ नोट बुक सदा हाथ में रहती। एक अखबारी नोट तथा दूसरी निजी जो उसकी सच्ची साथी थी,जिसमें वो अपनी प्यारी कल्पनाएँ छन्दोबद्ध रूप में लिखता था।गला सुरीला था। अक्सर गुनगुनाता था-
"अरूण कमल कोमल कलियों का, प्याली, फूलों का प्याला..."
अपने गीतों की धुन स्वयं बनाता और मस्ती से गाता था। एक ऐसा कवि जिसने मात्र १३ वर्ष की आयु में अपनी पहली कविता लिखी। आरम्भ में छोटी-छोटी सभाओं में लोकप्रिय हुआ और कुछ ही दिनों में समस्त हिन्दी प्रेमियों में गायक कवि के रूप में प्रचलित हो गया। १९३३ में बनारस में एक बड़ा कविसम्मेलन हुआ। दिग्गज कवियों के बीच मधुशाला के २ पद सुनाकर दिग्विजय पा ली। बैठबा चाहते थे पर तालियों की गड़गड़ाहट ने तीसरा, फिर चौथा पद सुनाया। विद्यार्थी सिर्फ़ बच्चन जी को सुनना चाहते थे। उनको आश्वासन दिया गया कि कल फिर से बच्चन जी का कविता पाठ होगा तब जाकर विद्यार्थी बैठे।
दूसरे दिन वाइसचान्सलर से लेकर सभी अध्यापक और विद्यार्थी उन्हें सुनने पहुँच गए। विद्यार्थी कापी लेकर आए थे। बच्चन जी ने अपनी मधुर तर्ज में मधुशाला गानी आरम्भ की। श्रोता झूम रहे थे और सैंकड़ों कंठ उनके साथ गुनगुना रहे थे। ३ दिनों में बच्चन जी की ख्याति पूरे हिन्दी जगत में फैल गई। मधुशाला का प्रथम संस्करण छपवाने के लिए धन नहीं था। एक प्रकाशक के पास पाँडुलिपि छोड़ आए। कुछ दिन बाद वह प्रकाशक मधुशाला की २० प्रतियाँ लेकर उनके पास आया। उसने बताया कि उसने १००० प्रतियाँ छपवाई थी जिनमें से केवल २० ही बची हैं। सब हाथों हाथ बिक गई।
आर्थिक संकट तो था ही साथ में पारिवारिक संकट भी कम नहीं थे। सबसे बड़ा आघात पत्नी श्यामा की मृत्यु से लगा। कवि का हृदय टूट गया। टूटे हृदय से १९३७ में निशा निमंत्रण लिखा । १९४० में आकुल अंतर और विकल विश्व की रचना की। १९४२ में तेजी जी से विवाह हुआ। यह विवाह बहुत शुभ था। इलाहबाद विश्व विद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में लैक्चरार बने। समय बदल गया। प्रणय पत्रिका में उन्होने लिखा-लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के एक और पहलू से होकर निकल चला ।
बच्चन जी साहित्य में हालावाद को लेकर आए।उनकी कविता विद्रोह और जीवन का संदेश देती थी। उसमें असाधारण माधुर्य का समावेश था। उन्होने नव जीवन और आस- विश्वास का संदेश दिया- जो बीत गई सो बात गई......
१९५२ में बच्चन जी अंग्रेजी में डाक्टरेट करने के लिए कैम्बरिज गए। १९५४ में आए और १९५५ में आकाशवाणी में हिन्दी प्रोड्यूसर बने। बाद में विदेश मंत्रालय से निमंत्रण मिल गया। उनकी लोकप्रियता का आधार उनका मधुर कंठ था। उनकी रचनाएँ उनके मुख से सुनना एक सौभाग्य था।
जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए किन्तु सामाजिक जीवन में ऐसे रहे जैसे पानी में कमल। धीर-गम्भीर अपने परिवार में खुश रहते। दिल्ली में रहकर भी दिल्ली वालों की तरह क्लब आदि में बहुत कम जाते थे। अधिकतर समय घर पर ही बिताते थे। बीसियों निमंत्रणों के बाद भी बहुत कम बाहर जाते थे। दिनचर्या एकदम नियमित रहती। व्यायाम, स्वाध्याय नियम से करते। सादा जीवन और शाकाहारी भोजन किया करते । बागवानी का शौंक रखते थे, पत्थरों से घर सजाना उन्हें बहुत पसन्द था। जब भी सैर को जाते दो चार पत्थर उठा लाते। घर में एक मन्दिर भी बनाया हुआ था। अध्ययन में ज़रा भी हस्तक्षेप सहन नहीं करते। बैठकर लिखा करते। उनका कहना था- लेटकर लिखी कविता भी लेखक के समान ही शिथिल हो जाती है। वे चुस्ती में विश्वास रखते थे। उनके दो पुत्र हुए- अमित और अजित। अमित एक महान अभिनेता के रूप में लोकप्रिय हैं। आज भारत का बच्चा -बच्चा अमित जी को जानता है।
अपना परिचय उन्होने स्वयं आत्म परिचय में दिया-
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ।
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ।
जिसको सुनकर जग झूम,झुके लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
जीवन के संबन्ध में उनके विचार बहुत ही दार्शनिक थे। वे गाते थे-
प्याला है पर पी जाएँगें,
है ज्ञात नहीं इतना हमको,
इस पार नीयति ने भेजा है
असमर्थ बना कितना हमको।
किन्तु जीवन संघर्षों से जूझना उन्हें प्रिय था-
तीर पर कैसे रूकूँ मैं,
आज लहरों का निमंत्रण....
सुनिए सुपुत्र अमिताभ बच्चन की दमदार आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन जी की ये रचनाएँ -
पहला हिस्सा
दूसरा हिस्सा
प्रस्तुति- शोभा महेन्द्रू
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धन्यवाद
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