सुनिए गौरव सोलंकी, तेजेन्द्र शर्मा, असग़र वजाहत और श्याम सखा का कहानीपाठ
१५ जनवरी २००९ को हिन्द-युग्म ने गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में 'कथापाठ-एक विमर्श' कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें लंदन के वरिष्ठ हिन्दी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा और भारत के युवा कथाकार गौरव सोलंकी का कहानीपाठ हुआ। संचालन हरियाणा के वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' ने किया। प्रसिद्ध कहानीकार असग़र वजाहत मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित थे। युवा कहानीकार अजय नावरिया और अभिषेक कश्यप ने कहानी और कहानीपाठ पर अपने विचार रखे।
जैसाकि हिन्द-युग्म टीम ने उदय प्रकाश की कहानीपाठ और उसपर नामवर सिंह के वक्तव्य के कार्यक्रम को रिकॉर्ड करके सुनवाया था और यह वादा किया था कि इस तरह के कार्यक्रमों को लेकर उपस्थित होता रहेगा, ताकि वे हिन्दी प्रेमी भी लाभांवित हो सकें, जो किन्हीं कारणों से ऐसे कार्यक्रमों में सम्मिलित नहीं हो पाते।
तो सुनिए और खुद तय करिए कि हिन्द-युग्म द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम कैसा रहा?
१५ जनवरी २००९ को हिन्द-युग्म ने गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में 'कथापाठ-एक विमर्श' कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें लंदन के वरिष्ठ हिन्दी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा और भारत के युवा कथाकार गौरव सोलंकी का कहानीपाठ हुआ। संचालन हरियाणा के वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' ने किया। प्रसिद्ध कहानीकार असग़र वजाहत मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित थे। युवा कहानीकार अजय नावरिया और अभिषेक कश्यप ने कहानी और कहानीपाठ पर अपने विचार रखे।
जैसाकि हिन्द-युग्म टीम ने उदय प्रकाश की कहानीपाठ और उसपर नामवर सिंह के वक्तव्य के कार्यक्रम को रिकॉर्ड करके सुनवाया था और यह वादा किया था कि इस तरह के कार्यक्रमों को लेकर उपस्थित होता रहेगा, ताकि वे हिन्दी प्रेमी भी लाभांवित हो सकें, जो किन्हीं कारणों से ऐसे कार्यक्रमों में सम्मिलित नहीं हो पाते।
तो सुनिए और खुद तय करिए कि हिन्द-युग्म द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम कैसा रहा?
Comments
कार्यक्रम में सबसे ज्यादा चर्चा सोलंकी और तेजेन्द्र शर्मा की कहानीयों पर हुई, सखा साहब का ’महेसर का ताऊ’ किसी को याद ही नहीं आया...शायद वो न लंदन का था और न जवान.
सोलंकी साहब की शैली अदभुत है, ’बाँह में मछली क्यों नही है’ और ’डर से आगे’ में लिपटा बलात्कार के विरुध आक्रोश एक नपुंसक की भांति हर साल हरियाणा में ६५० से अधिक ’सम्मान हत्यायों’ पर खामोशी क्यों इखत्यार कर लेता है? उसे बाजपेयी का संसद में भाषण याद दिलाना याद रहता है और खाप पंचायतों के तुग़लकी फ़र्मानो के तले बिलखते नौजवानों की चित्कारें क्यों सुनाई नहीं देती...सखा साहब का ताऊ भी इस विषय पर आपराधिक चुप्पी साधे रहा..क्यों...? क्या यही सामाजिक आयना है..यदि आपका उत्तर हाँ है तो मैं हबीब जालिब के मानिंद ’नहीं जानता मैं नहीं मानता’..लंदन से तेजेन्द्र शर्मा जाकर यदि इस मुद्दों पर चुप्पी साध लें, प्रश्न न करें, किसी की जवाब देही न ले तो बडे शर्म की बात है और छद्द्म राष्ट्रवाद की चादर ओढ़ कर वाह वाह लूटने का प्रयास करें तो इससे बडा गज़ब क्या हो सकता है.
तेजेन्द्र शर्मा जी की कहानी..पास्पोर्ट पर कई कसीदे पढे गये..मैं ये नही जान सका कि उद्देशय नामक दिये तले ये कहाँ तक खरी बात है? देश भक्ति का ढकोंसला और मूढ़तायुक्त राष्ट्र्वाद कई शताब्दियों से इस निरिह इंसान का दुश्मन रहा है, इसमें अगर धर्म को और जोड़ दें तो सबसे ज्यादा इंसानी जानें इन्ही तीनों ने मिलकर ली हैं..तब हमारे पास क्या कोई और विकल्प नहीं है? हम कब तक ये पुराने नुस्खे परोसते रहेंगे? क्या आज से २०-३० साल बाद कोई इन सरहदों पर विश्वास करने वाला मिलेगा..? क्या ये कथा कालजयी श्रेणी में है..? इतनी अल्पायु वाली कहानी पर बडी़ बडी बातें करना कहाँ तक जायज़ है? सखा के ताऊ को फ़िर भी आज से २०० वर्ष बाद उसकी संवेदनाओं के लिये याद किया जा सकता है पर तेजेन्द्र के स्वतंत्रता सेनानी को आज के बालक ही निरुत्तर कर दें तो कोई बडी बात नहीं. जो चरित्र अपने खुद के बच्चों को यह साबित नहीं कर सका कि ये मुल्क उनके खवाबों की ताबीर पूरी कर देगा, वह किसी और के लिये प्रेरणा प्रसंग कैसे बन सकता है? तथाकथित प्रवासी अपराध बोध से ग्रस्त मन:स्थिति ही इस कमजोर चरित्र का महिमा मण्डन कर सकती है. इस विषय पर न किसी की निगाह गयी या जानबूझ डाली नही गयी, वज़ाहत साहब भी चूक गये.
समीक्षकों, टिप्प्णीकर्तायों, आलोचकों से एक और अनुरोध है...प्रेमचंद, टेगौर, लियो टाल्स्टोय को किसी राजेन्द्र यादव और नामवर सिंह के सर्टिफ़िकेट की ज़रुरत नहीं पडी़ थी..ये लोग सर्जन के माहिर थे, मौलिक थे और मानविय मूल्यों के रचियता थे. रही बात रिपिटेशन की तो इससे क्या फ़र्क पडता है, ये यूनिवर्सिटियां जानें, इंसानी मौलिक व्यवहार अगर सदियों से समानता बरत सकता है..तो लेखक क्यों नहीं, पाठक भी तो नया है.. उसे कहाँ इस बात कि चिंता है कि फ़्लां लेखक से पहले किस लेखक ने क्या लिखा ?
चर्चा शुरु होगी..इस आशा के साथ..आपका स्वागत करता हूँ.