स्वरगोष्ठी – 323 में आज
संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 9 : राग कामोद
रोशन की जन्मशती वर्ष में मिश्र बन्धुओं और लता मंगेशकर से कामोद की बन्दिश सुनिए
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लता मंगेशकर |
रोशन
ने अपनी कई फिल्मों में रागों की बन्दिशों को फिल्मी गीत के रूप में शामिल
किया था। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने राग गौड़ मल्हार की एक बन्दिश
आपके लिए प्रस्तुत कर चुके हैं। आज की कड़ी में भी हम आपको रोशन द्वारा चुनी
गई राग कामोद की बन्दिश का रसास्वादन करा रहे हैं। यह राग कामोद की एक
परंपरागत बन्दिश है, उसका उपयोग फिल्म में भी हुआ है। सुप्रसिद्ध
साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा के चर्चित कथानक ‘चित्रलेखा’ पर आधारित 1964 में
इसी नाम से फिल्म बनी थी, जिसमें यह बन्दिश शामिल की गई थी। फिल्म के
गीतकार साहिर लुधियानवी हैं, जिन्होने राग कामोद की मूल पारम्परिक बन्दिश
की स्थायी के शब्दों को यथावत रखते हुए अन्तरों में परिवर्तन किया है।
फिल्म में यह गीत लता मंगेशकर ने रोशन के संगीत निर्देशन में गाया था।
संगीतकार रोशन ने साहिर का यह गीत राग कामोद के स्वरों में संगीतबद्ध किया
है। फिल्म ‘चित्रलेखा’ के गीतों में लोकप्रियता के साथ-साथ रचनात्मकता का
गुण भी उपस्थित है। फिल्म में रोशन के स्वरबद्ध किये कई लाजवाब गीत हैं।
साहिर लुधियानवी और रोशन की जोड़ी ने -“संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे...”
सुन कर यह कहना कठिन है कि साहिर लुधियानवी के शब्द प्रभावी हैं या रोशन
की धुन। मुहम्मद रफी की आवाज़ में राग यमन कल्याण पर आधारित गीत –“मन रे तू काहे न धीर धरे...”, राग कलावती पर आधारित और आशा भोसले व उषा मंगेशकर के स्वरों में –“काहे तरसाए जियरा...”, लता मंगेशकर की आवाज़ में –“सखी री मेरा मन उलझे तन डोले...”
रंजकता की दृष्टि से श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। इसी फिल्म में रोशन ने राग कामोद
की एक पारम्परिक बन्दिश को थोड़े शाब्दिक परिवर्तन के साथ फिल्मी गीत का
रूप दिया था। मूल बन्दिश के अन्तरे की पंक्तियाँ हैं –“चमक बिजुरी मेहा बरसे...” जबकि फिल्म गीत का अन्तरा है –“अलकों में कुण्डल डालो और देह सुगन्ध बसा लों...”।
मूल बन्दिश वर्षा ऋतु का गीत है जबकि साहिर लुधियानवी ने इसे श्रृंगार रस
प्रधान गीत बना दिया। अब आप लता मंगेशकर की आवाज़ में राग कामोद की इस खयाल
रचना का फिल्मी रूप सुनिए।
राग कामोद : ‘एरी जाने न दूँगी...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – चित्रलेखा
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राजन और साजन मिश्र |
आज
के अंक में हम आपसे दोनों मध्यम स्वरों से युक्त राग कामोद पर चर्चा कर
रहे हैं। कल्याण थाट और कल्याण अंग से संचालित होने वाले इस राग को कुछ
गायक प्राचीन ग्रन्थकारों के आधार पर बिलावल थाट के अन्तर्गत भी मानते हैं।
औड़व-सम्पूर्ण जाति के इस राग के आरोह में गान्धार और निषाद स्वर का प्रयोग
नहीं किया जाता। तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग केवल आरोह में पंचम के साथ और
शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में किया जाता है। इस राग का
वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर ऋषभ होता है। राग कामोद के आरोह के स्वर
हैं- सा रे प म(तीव्र) प ध प नि ध सां तथा अवरोह के स्वर हैं- सां नि ध प म(तीव्र) प ध प ग म(शुद्ध) रे सा।
राग वर्गीकरण के प्राचीन सिद्धान्तों के अनुसार राग कामोद को राग दीपक की
पत्नी माना जाता है। इस राग का गायन-वादन पाँचवें प्रहर अर्थात रात्रि के
प्रथम प्रहर में किया जाता है। श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए कामोद
आदर्श राग है। इस राग में ऋषभ-पंचम स्वरों की संगति अधिक होती है। ऋषभ से
पंचम को जाते समय सर्वप्रथम मध्यम से मींड़युक्त झटके के साथ ऋषभ स्वर पर
आते हैं और फिर पंचम को जाते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रक्रिया में
पंचम के साथ ऋषभ की संगति कभी न हो। राग हमीर और केदार के समान राग कामोद
में भी कभी-कभी कोमल निषाद का प्रयोग अवरोह में राग की रंजकता बढ़ाने के लिए
किया जाता है। राग कामोद में गान्धार का प्रयोग कभी भी सपाट नहीं बल्कि
वक्र प्रयोग होता है। राग हमीर और केदार इसके समप्रकृति राग हैं। राग हमीर
के समान कामोद राग के वादी और संवादी स्वर रागों के समय सिद्धान्त की
दृष्टि से खरा नहीं उतरता। रागों के समय सिद्धान्त के अनुसार जो राग दिन के
पूर्व अंग में उपयोग किये जाते हैं, उनका वादी स्वर सप्तक के पूर्व अंग
में होना चाहिए। कामोद राग को इस नियम का अपवाद माना गया है, क्योंकि यह
रात्रि के प्रथम प्रहर गाया जाता है और इसका वादी स्वर पंचम है। यह स्वर
सप्तक के उत्तरांग का एक स्वर है। अब आपको इस राग की एक बन्दिश सुप्रसिद्ध
युगल गायक पण्डित राजन मिश्र और साजन मिश्र की आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे
हैं। राग कामोद की यह अत्यन्त प्रचलित परम्परागत रचना है, जिसके बोल हैं- ‘ए री जाने न दूँगी...’।
इस प्रस्तुति में तबला संगति सुधीर पाण्डेय ने और हारमोनियम संगति महमूद
धौलपुरी ने की है। अब आप पण्डित राजन और साजन मिश्र के स्वरों में राग
कामोद की इस पारम्परिक रचना को सुनिए और हमे आज के इस अंक को यहीं विराम
देने की अनुमति दीजिए।
राग कामोद : ‘एरी जाने न दूँगी...’ : पण्डित राजन मिश्र और साजन मिश्र
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 323वें अंक की पहेली में आज हम आपको वर्ष 1965 में प्रदशित रोशन की एक
पुरानी फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको
तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 330वें अंक की पहेली
के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष
के तीसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश में आपको किस राग का आधार परिलक्षित हो रहा है?
2 – रचना के इस अंश में किस ताल का प्रयोग किया गया है?
3 – यह किस मशहूर पार्श्वगायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 1 जुलाई, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 325वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 321वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘दिल ही
तो है’ से एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन में से दो
प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – मन्ना डे।
इस अंक की पहेली में हमारे सभी पाँच नियमित प्रतिभागियों ने दो-दो अंक अपने खाते में जोड़ लिये हैं। वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी इस सप्ताह के विजेता हैं। उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला ‘संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन’ के इस नौवें अंक में
हमने आपके लिए राग कामोद पर आधारित फिल्म ‘आम्रपाली’ से रोशन के एक गीत और
इस राग की शास्त्रीय संरचना पर चर्चा की और इस राग का एक परम्परागत उदाहरण
पण्डित राजन और साजन मिश्र के स्वरों में प्रस्तुत किया। 'स्वरगोष्ठी' के
322वें अंक में हमने राग भैरवी की चर्चा की थी। इस अंक में आपको राग भैरवी
पर आधारित एक कालजयी गीत का रसास्वादन कराया गया था। हमारी एक नियमित पाठक
और श्रोता पेंसिलवेनिया, अमेरिका की विजया राजकोटिया ने उसी गीत के सितार
वादन का एक वीडियो भेजा है। गीत -"लागा चुनरी में दाग..." को सितार पर
चन्द्रशेखर फानसे और उनके शिष्य प्रस्तुत कर रहे हैं। आप पहले यह संगीत
सुनिए।
रोशन
के संगीत पर चर्चा के लिए हमने फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय
चटर्जी के आलेख और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग
लिया है। हम इन दोनों विद्वानों का आभार प्रकट करते हैं। आगामी अंक में हम
भारतीय संगीत जगत के सुविख्यात संगीतकार रोशन के एक अन्य राग आधारित गीत पर
चर्चा करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के
बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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