स्वरगोष्ठी – 320 में आज
संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 6 : राग पूरियाधनाश्री
राग पूरियाधनाश्री में पण्डित भीमसेन जोशी से खयाल और आशा भोसले से गीत सुनिए
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन
के गीतों में राग-दर्शन” की छठी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम
फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग
आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का
संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में
उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को
स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी
चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग
आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर
चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था।
14 जुलाई 1917 को तत्कालीन पश्चिमी पंजाब के गुजरावालॉ शहर (अब पाकिस्तान)
में एक ठेकेदार के परिवार में जन्मे रोशन का रूझान बचपन से ही अपने पिता
के पेशे की और न होकर संगीत की ओर था। संगीत की ओर रूझान के कारण वह अक्सर
फिल्म देखने जाया करते थे। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म ‘पूरन भगत’ देखी।
इस फिल्म में पार्श्वगायक सहगल की आवाज में एक भजन उन्हें काफी पसन्द आया।
इस भजन से वह इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने यह फिल्म कई बार देख
डाली। ग्यारह वर्ष की उम्र आते-आते उनका रूझान संगीत की ओर हो गया और वह
पण्डित मनोहर बर्वे से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मनोहर बर्वे स्टेज के
कार्यक्रम को भी संचालित किया करते थे। उनके साथ रोशन ने देशभर में हो रहे
स्टेज कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मंच पर जाकर मनोहर बर्वे
जब कहते कि “अब मैं आपके सामने देश का सबसे बडा गवैया पेश करने जा रहा हूँ”
तो रोशन मायूस हो जाते क्योंकि “गवैया” शब्द उन्हें पसन्द नहीं था। उन
दिनों तक रोशन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि गायक बना जाये या फिर संगीतकार।
कुछ समय के बाद रोशन घर छोडकर लखनऊ चले गये और पण्डित विष्णु नारायण
भातखण्डे जी द्वारा स्थापित मॉरिस कॉलेज ऑफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक (वर्तमान
में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) में प्रवेश ले लिया और कॉलेज के
प्रधानाचार्य डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर के मार्गदर्शन में विधिवत
संगीत की शिक्षा लेने लगे। पाँच वर्ष तक संगीत की शिक्षा लेने के बाद वह
मैहर चले आये और उस्ताद अलाउदीन खान से संगीत की शिक्षा लेने लगे। एक दिन
अलाउदीन खान ने रोशन से पूछा “तुम दिन में कितने घण्टे रियाज करते हो। ”
रोशन ने गर्व के साथ कहा ‘दिन में दो घण्टे और शाम को दो घण्टे”, यह सुनकर
अलाउदीन बोले “यदि तुम पूरे दिन में आठ घण्टे रियाज नहीं कर सकते हो तो
अपना बोरिया बिस्तर उठाकर यहाँ से चले जाओ”। रोशन को यह बात चुभ गयी और
उन्होंने लगन के साथ रियाज करना शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनकी मेहनत रंग आई
और उन्होंने सुरों के उतार चढ़ाव की बारीकियों को सीख लिया। इन सबके बीच
रोशन ने उस्ताद बुन्दु खान से सांरगी की शिक्षा भी ली। उन्होंने वर्ष 1940
में दिल्ली रेडियो केंद्र के संगीत विभाग में बतौर संगीतकार अपने कैरियर की
शुरूआत की। बाद में उन्होंने आकाशवाणी से प्रसारित कई कार्यक्रमों में
बतौर हाउस कम्पोजर भी काम किया। वर्ष 1948 में फिल्मी संगीतकार बनने का
सपना लेकर रोशन दिल्ली से मुम्बई आ गये। श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में आज
हमने 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘सूरत और सीरत’ का एक गीत चुना है, जिसे
रोशन ने राग पूरियाधनाश्री के स्वरों में पिरोया है। यह गीत आशा भोसले की
आवाज़ में प्रस्तुत है। इसके साथ ही इसी राग में निबद्ध एक खयाल सुप्रसिद्ध
शास्त्रीय गायक पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे हैं।
आशा भोसले |
सातवें
दशक के आरम्भिक दौर की फिल्मों में रोशन का संगीत गुणबत्ता के साथ-साथ
लोकप्रियता की कसौटी पर खरा उतरता है। इस दौर की सर्वाधिक सफलतम फिल्म
‘बरसात की रात’ थी। इसी फिल्म में फिल्म संगीत के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ
कव्वाली शामिल थी, जिसकी रिकार्डिंग में 29 घण्टे का समय लगा था। इस फिल्म
में राग आधारित गीतों की भरमार थी। इसके अलावा रोशन ने इस फिल्म में आकर्षक
गज़लें भी संगीतबद्ध की थी। फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गज़लें संगीतबद्ध करने
में लोग मदन मोहन को आज भी याद करते हैं। परन्तु रोशन की स्वरबद्ध गज़लें भी
तुलनात्मक दृष्टि से मदन मोहन की गज़लों से कम आकर्षक नहीं हैं। फिल्म
‘बरसात की रात’ के बाद के दौर में कुछ संगीत समीक्षकों के मतानुसार रोशन
लोकप्रियता की ओर अधिक ध्यान देने लगे थे। इसी तथ्य को दूसरे शब्दों में
कहा जा सकता है कि रोशन की रचनाओं में अब वह लोच और स्पर्श आगया था जो
रचनाओं को आम श्रोताओं के बीच पसंदीदा बनाता है। रोशन के संगीत से सजी इसी
दौर की फिल्म ‘बाबर’ और ‘आरती’ में भी राग आधारित गीतों की उत्कृष्ठता थी।
इन फिल्मों के गीतों का हमने पिछले अंकों में आपको रसास्वादन कराया है। आज
के अंक में हम 1962 की ही फिल्म ‘सूरत और सीरत’ की चर्चा कर रहे हैं,
जिसमें रोशन का संगीत था। इस फिल्म में रोशन को गीतकार शैलेन्द्र और साहिर
लुधियानवी का साथ मिला। इस फिल्म में साहिर लुधियानवी का लिखा और लता
मंगेशकर का गाया गीत –“गीत मेरा सुलाए जगाए तुझे...” एक मधुर रचना थी। इसी फिल्म में गायक मुकेश की आवाज़ में, शैलेन्द्र का लिखा गीत राग शिवरंजिनी के स्वरों की छाया लिए –“बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही न समाये तो क्या कीजे...”
दशकों बाद भी सदाबहार गीतों की श्रेणी में रखे जाने योग्य है। इस फिल्म
में आशा भोसले के स्वर में राग पूरियाधनाश्री पर आधारित एक गीत है, जिसे
हमने आज के अंक के लिए चुना है। शैलेन्द्र के इस गीत को रोशन ने अनूठे
कहरवा ताल में निबद्ध कर एक मधुर गीत का रूप दिया है। गीत के बोल हैं, -“प्रेम लगन मन में बसा ले...”। अब आप फिल्म “सूरत और सीरत’ का राग पूरियाधनाश्री पर आधारित यह गीत सुनिए।
राग पूरियाधनाश्री : “प्रेम लगन मन में बसा ले...” : आशा भोसले : फिल्म – सूरत और सीरत
पण्डित भीमसेन जोशी |
पूर्वी
थाट के विभिन्न रागों में राग पूरियाधनाश्री एक अत्यन्त लोकप्रिय राग है।
राग पूर्वी की तरह राग पूरियाधनाश्री भी सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात
इस राग के आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर इस्तेमाल किये जाते हैं। इसका
ऋषभ और धैवत स्वर कोमल होता है तथा मध्यम स्वर तीव्र होता है। आरोह के
स्वर- नि रे(कोमल) ग म॑(तीव्र) प ध(कोमल) प नि सां और अवरोह के स्वर- रे(कोमल) नि ध(कोमल) प म॑(तीव्र) ग म॑(तीव्र) रे(कोमल) ग रे(कोमल)
सा होते हैं। राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है। राग
पूरियाधनाश्री के गायन-वादन के लिए सायंकाल सन्धिप्रकाश के सामय को उपयुक्त
माना जाता है। राग पूरियाधनाश्री दो रागों; पूरिया और धनाश्री का मिश्रण
है। प्रचलित राग धनाश्री काफी थाट का राग है, जिसमे गान्धार और निषाद स्वर
कोमल प्रयोग किया जाता है। अतः अधिकतर संगीतज्ञ राग पूरियाधनाश्री को एक
स्वतंत्र राग मानते हैं। इसमें पूर्वी थाट के दो रागों पूरिया और धनाश्री
का मिश्रण है। हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव लिखित पुस्तक ‘राग परिचय’, भाग – 3
में इस राग के बारे में एक तथ्य का उल्लेख है। इसके अनुसार पण्डित विष्णु
नारायण भातखण्डे कृत ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’ के चौथे भाग इस राग का
वादी-संवादी स्वर क्रमशः पंचम और ऋषभ माना गया है। हम सभी जानते हैं कि
वादी-संवादी में षडज-पंचम भाव अथवा षडज-मध्यम भाव का होना आवश्यक है। पंचम
और ऋषभ में इनमें से कोई भाव नहीं है। इस दृष्टि से कोमल ऋषभ का संवादी
होना उचित नहीं है। इस राग में कोमल ऋषभ स्वर पर कभी भी न्यास नहीं किया
जाता। इस दृष्टि से भी ऋषभ का संवादी होना उचित नहीं है। कोमल ऋषभ के स्थान
पर षडज स्वर को संवादी मानना न्यायसंगत है। कुछ विद्वान पंचम को वादी और
षडज को संवादी मानते हैं। आइए, अब आप राग पूरियाधनाश्री में एक द्रुत खयाल
पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में सुनिए।आप इस गीत का रसास्वादन कीजिए और
मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग पूरियाधनाश्री : “पायलिया झंकार मोरी....” : पण्डित भीमसेन जोशी
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 320वें अंक की पहेली में आज हम आपको संगीतकार रोशन द्वारा स्वरबद्ध
सातवें दशक के आरम्भिक दौर की एक फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा
रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने
हैं। 320वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक
अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत में किस राग का आधार है? हमें राग का नाम लिख भेजिए।
2 – रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है? ताल का नाम लिखिए।
3 – यह किस पार्श्वगायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 10 जून, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 322वें अंक में प्रकाशित
करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि
आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम
आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘‘स्वरगोष्ठी’
की 318वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘आरती’ के
एक राग आधारित गीत का एक अंश प्रस्तुत कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों का
उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – खमाज, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – मुहम्मद रफी।
इस अंक की पहेली में हमारे नियमित प्रतिभागी, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी
ने प्रश्नों के सही उत्तर दिए हैं और इस सप्ताह के विजेता बने हैं।
उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला ‘संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन’ के इस अंक में हमने आपके
लिए राग पूरियाधनाश्री पर आधारित रोशन के एक गीत और राग की शास्त्रीय
संरचना पर चर्चा की और इस राग का एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया। रोशन के
संगीत पर चर्चा के लिए हमने फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय
चटर्जी के आलेख और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग
लिया है। हम इन दोनों विद्वानों का आभार प्रकट करते हैं। आगामी अंक में हम
भारतीय संगीत जगत के सुविख्यात संगीतकार रोशन के एक अन्य राग आधारित गीत पर
चर्चा करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के
बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार
को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का
स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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