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राग भैरवी : SWARGOSHTHI – 322 : RAG BHAIRAVI





स्वरगोष्ठी – 322 में आज

संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 8 : राग भैरवी

रोशन की जन्मशती वर्ष में विदुषी प्रभा अत्रे और मन्ना डे से राग भैरवी के गीत सुनिए




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन” की आठवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था। 14 जुलाई 1917 को तत्कालीन पश्चिमी पंजाब के गुजरावालॉ शहर (अब पाकिस्तान) में एक ठेकेदार के परिवार में जन्मे रोशन का रूझान बचपन से ही अपने पिता के पेशे की और न होकर संगीत की ओर था। संगीत की ओर रूझान के कारण वह अक्सर फिल्म देखने जाया करते थे। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म ‘पूरन भगत’ देखी। इस फिल्म में पार्श्वगायक सहगल की आवाज में एक भजन उन्हें काफी पसन्द आया। इस भजन से वह इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने यह फिल्म कई बार देख डाली। ग्यारह वर्ष की उम्र आते-आते उनका रूझान संगीत की ओर हो गया और वह पण्डित मनोहर बर्वे से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मनोहर बर्वे स्टेज के कार्यक्रम को भी संचालित किया करते थे। उनके साथ रोशन ने देशभर में हो रहे स्टेज कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मंच पर जाकर मनोहर बर्वे जब कहते कि “अब मैं आपके सामने देश का सबसे बडा गवैया पेश करने जा रहा हूँ” तो रोशन मायूस हो जाते क्योंकि “गवैया” शब्द उन्हें पसन्द नहीं था। उन दिनों तक रोशन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि गायक बना जाये या फिर संगीतकार। कुछ समय के बाद रोशन घर छोडकर लखनऊ चले गये और पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी द्वारा स्थापित मॉरिस कॉलेज ऑफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक (वर्तमान में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) में प्रवेश ले लिया और कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर के मार्गदर्शन में विधिवत संगीत की शिक्षा लेने लगे। पाँच वर्ष तक संगीत की शिक्षा लेने के बाद वह मैहर चले आये और उस्ताद अलाउदीन खान से संगीत की शिक्षा लेने लगे। एक दिन अलाउदीन खान ने रोशन से पूछा “तुम दिन में कितने घण्टे रियाज करते हो। ” रोशन ने गर्व के साथ कहा ‘दिन में दो घण्टे और शाम को दो घण्टे”, यह सुनकर अलाउदीन बोले “यदि तुम पूरे दिन में आठ घण्टे रियाज नहीं कर सकते हो तो अपना बोरिया बिस्तर उठाकर यहाँ से चले जाओ”। रोशन को यह बात चुभ गयी और उन्होंने लगन के साथ रियाज करना शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनकी मेहनत रंग आई और उन्होंने सुरों के उतार चढ़ाव की बारीकियों को सीख लिया। इन सबके बीच रोशन ने उस्ताद बुन्दु खान से सांरगी की शिक्षा भी ली। उन्होंने वर्ष 1940 में दिल्ली रेडियो केंद्र के संगीत विभाग में बतौर संगीतकार अपने कैरियर की शुरूआत की। बाद में उन्होंने आकाशवाणी से प्रसारित कई कार्यक्रमों में बतौर हाउस कम्पोजर भी काम किया। वर्ष 1948 में फिल्मी संगीतकार बनने का सपना लेकर रोशन दिल्ली से मुम्बई आ गये। श्रृंखला की आठवीं कड़ी में आज हमने 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘दिल ही तो है’ का एक अनूठा गीत चुना है, जिसे रोशन ने राग भैरवी के स्वरों में पिरोया है। यह गीत मन्ना डे की आवाज़ में प्रस्तुत है। इसके साथ ही हम इसी राग में निबद्ध एक भक्तिगीत सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका विदुषी प्रभा अत्रे के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे हैं।



मन्ना डे
सुरगन्धर्व मन्ना डे से रोशन का साथ 1957 की फिल्म 'आगरा रोड' से हुआ जिसमे मन्ना डे ने गीता दत्त के साथ एक हास्य गीत -"ओ मिस्टर, ओ मिस्टर सुनो एक बात..." गाया था। 1959 में मन्ना डे ने रोशन की तीन फिल्मों -'आँगन', 'जोहरा ज़बीं' और 'मधु' के गीतों को गाया, जिसमें 'मधु' फिल्म का भजन -"बता दो कोई कौन गली गए श्याम..." बहुत लोकप्रिय हुआ। 1960 की फिल्म 'बाबर' की कव्वाली -"हसीनों के जलवे परेशान रहते....." ने भी संगीत प्रेमियों को आकर्षित किया। परन्तु इन दोनों बहुआयामी कलाकारों की श्रेष्ठतम कृति तो अभी आना बाकी था। 1960 में फिल्म 'बरसात की रात' आई, जिसके लिए रोशन ने एक 12 मिनट लम्बी कव्वाली का संगीत रचा। इसे गाने के लिए मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, सुधा मल्होत्रा और एस.डी. बातिश को चुना गया। मन्नाडे को इस जवाबी कव्वाली में उस्ताद के लिए, मोहम्मद रफ़ी को नायक भारत भूषण के लिए और आशा भोसले को नायिका के लिए गाना था। इस कव्वाली के बोल थे -"ना तो कारवाँ की तलाश है...."। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह कव्वाली फिल्म संगीत के क्षेत्र में 'मील का पत्थर' सिद्ध हुआ। रोशन और मन्ना डे, दोनों शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित थे और लोक संगीत की समझ रखने वाले थे। 1963 में रोशन को एक अवसर मिला, अपना श्रेष्ठतम संगीत देने का। फिल्म थी 'दिल ही तो है', जिसमे राज कपूर और नूतन नायक-नायिका थे। यह गाना राज कपूर पर फिल्माया जाना था। फिल्म के प्रसंग के अनुसार एक संगीत मंच पर एक नृत्यांगना के साथ बहुत बड़े उस्ताद को गायन संगति करनी थी। अचानक उस्ताद के न आ पाने की सूचना मिलती है। आनन-फानन में चाँद (राज कपूर) को दाढ़ी-मूंछ लगा कर मंच पर बैठा दिया जाता है। रोशन ने इस प्रसंग के लिए गीत का जो संगीत रचा, उसमे शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत की इतनी सारी शैलियाँ डाल दीं कि उस समय के किसी फ़िल्मी पार्श्वगायक के लिए बेहद मुश्किल काम था। मन्ना डे ने इस चुनौती को स्वीकार किया और गीत -"लागा चुनरी में दाग, छुपाऊं कैसे...." को अपना स्वर देकर गीत को अमर बना दिया। इस गीत का ढांचा 'ठुमरी' अंग में है, किन्तु इसमें ठुमरी के अलावा 'तराना', 'पखावज के बोल', 'सरगम', नृत्य के बोल', 'कवित्त', 'टुकड़े', यहाँ तक कि तराना के बीच में हल्का सा ध्रुवपद का अंश भी इस गीत में है। संगीत के इतने सारे अंग मात्र सवा पाँच मिनट के गीत में डाले गए हैं। जिस गीत में संगीत के तीन अंग होते हैं, उन्हें 'त्रिवट' और जिनमें चार अंग होते हैं, उन्हें 'चतुरंग' कहा जाता है। मन्ना डे के गाये इस गीत को कोई नया नाम देना चाहिए। यह गीत भारतीय संगीत में 'सदा सुहागिन राग' के विशेषण से पहचाने जाने वाले राग -"भैरवी" पर आधारित है। कुछ विद्वान् इसे राग "सिन्धु भैरवी" पर आधारित मानते हैं किन्तु जाने-माने संगीतज्ञ पं. रामनारायण ने इस गीत को "भैरवी" आधारित माना है। गीत की एक विशेषता यह भी है कि गीतकार साहिर लुधियानवी ने कबीर के एक निर्गुण पद की भावभूमि पर इसे लिखा है। आइए इस कालजयी गीत को सुनते हैं।

राग भैरवी : ‘लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे...’ : मन्ना डे : फिल्म – दिल ही तो है


प्रभा अत्रे
राग भैरवी के स्वर-समूह अनेक रसों का सृजन करने में समर्थ होते हैं। इनमें भक्ति और करुण रस प्रमुख हैं। स्वरों के माध्यम से प्रत्येक रस का सृजन करने में राग भैरवी सर्वाधिक उपयुक्त राग है। संगीतज्ञ इसे ‘सदा सुहागिन राग’ तथा ‘सदाबहार’ राग के विशेषण से अलंकृत करते हैं। सम्पूर्ण जाति का यह राग भैरवी थाट का आश्रय राग माना जाता है। राग भैरवी में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर शुद्ध मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग भैरवी के आरोह स्वर हैं, सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां तथा अवरोह के स्वर, सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒ (कोमल), सा होते हैं। यूँ तो इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला है, किन्तु आमतौर पर इसका गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। ‘भारतीय संगीत के विविध रागों का मानव जीवन पर प्रभाव’ विषय पर अध्ययन और शोध कर रहे लखनऊ के जाने-माने मयूर वीणा और इसराज वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने एक बातचीत के दौरान बताया कि भारतीय रागदारी संगीत से राग भैरवी को अलग करने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो मानव जाति प्रातःकालीन ऊर्जा की प्राप्ति से वंचित हो जाएगी। राग भैरवी मानसिक शान्ति प्रदान करता है। इसकी अनुपस्थिति से मनुष्य डिप्रेशन, उलझन, तनाव जैसी असामान्य मनःस्थितियों का शिकार हो सकता है। प्रातःकाल सूर्योदय का परिवेश परमशान्ति का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में भैरवी के कोमल स्वर- ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद, मस्तिष्क की संवेदना तंत्र को सहज ढंग से ग्राह्य होते है। कोमल स्वर मस्तिष्क में सकारात्मक हारमोन रसों का स्राव करते हैं। इससे मानव मानसिक और शारीरिक विसंगतियों से मुक्त रहता है। भैरवी के विभिन्न स्वरों के प्रभाव के विषय में श्री मिश्र ने बताया कि कोमल ऋषभ स्वर करुणा, दया और संवेदनशीलता का भाव सृजित करने में समर्थ है। कोमल गान्धार स्वर आशा का भाव, कोमल धैवत जागृति भाव और कोमल निषाद स्फूर्ति का सृजन करने में सक्षम होता है। भैरवी का शुद्ध मध्यम इन सभी भावों को गाम्भीर्य प्रदान करता है। धैवत की जागृति को पंचम स्वर सबल बनाता है। इस राग के गायन-वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। भैरवी के स्वरों की सार्थक अनुभूति कराने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं, विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे के स्वर में राग भैरवी में निबद्ध एक नवदुर्गा की स्तुति। इस गीत में देवी के विविध स्वरूपों का वर्णन भी है। आप इस रचना के माध्यम से राग भैरवी के भक्तिरस का अनुभव कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग भैरवी : "जगज्जननी भवतारिणी मोहिनी तू नवदुर्गा..." : डॉ. प्रभा अत्रे




संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 320वें अंक की पहेली में आज हम आपको संगीतकार रोशन द्वारा स्वरबद्ध वर्ष 1964 में प्रदर्शित एक फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 330वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के तीसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।





1 – गीत में किस राग में निबद्ध है? हमें राग का नाम लिख भेजिए।

2 – रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है? ताल का नाम लिखिए।

3 – यह किस पार्श्वगायिका की आवाज़ है?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 24 जून, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 324वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘‘स्वरगोष्ठी’ की 320वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘ताजमहल’ से एक राग आधारित गीत का एक अंश प्रस्तुत कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – तोड़ी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – लता मंगेशकर

इस अंक की पहेली में हमारे नियमित प्रतिभागी, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी ने प्रश्नों के सही उत्तर दिए हैं और इस सप्ताह के विजेता बने हैं। उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर रोशन की जन्मशती वर्ष पर जारी हमारी श्रृंखला ‘संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन’ के इस अंक में हमने आपके लिए राग भैरवी में निबद्ध एक कालजयी गीत और राग भैरवी की शास्त्रीय संरचना पर चर्चा की और इस राग का एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया। रोशन के संगीत पर चर्चा के लिए हमने फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय चटर्जी के आलेख और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग लिया है। हम इन दोनों विद्वानों का आभार प्रकट करते हैं। आगामी अंक में हम भारतीय संगीत जगत के सुविख्यात संगीतकार रोशन के एक अन्य राग आधारित गीत पर चर्चा करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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