देखते ही देखते वर्ष 2017 का आधा पूरा हो गया। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हिन्दी फ़िल्म जगत में बहुत सी फ़िल्में बनती चली गईं। और इन फ़िल्मों के लिए गाने भी बनते चले गए। वर्ष के प्रथम चार महीनों के फ़िल्म-संगीत की समीक्षा ’चित्रकथा’ में हम कर चुके हैं। आइए आज के अंक में निगाह डालें मई और जून में प्रदर्शित होने वाली फ़िल्मों के गीत-संगीत पर।
मई का महीना शुरु हुआ एक ताज़े हवा के झोंके से। जी हाँ, फ़िल्म ’मेरी प्यारी बिन्दु’ के ऐल्बम को सुन कर कुछ इसी तरह का अहसास हुआ। आयुष्मान खुराना - परिनीति चोपड़ा अभिनीत इस फ़िल्म में सचिन-जिगर ने संगीत दिया और गीत लिखे कौसर मुनीर और प्रिया सरय्या ने। अन्य कई अभिनेताओं की तरह परिनीति ने भी अपनी गायन क्षमता का पहली बार परिचय दिया इस फ़िल्म में। यह ग़ज़ल है "माना के हम यार नहीं, लो तय है के प्यार नहीं"। कौसर मुनीर ने इस ग़ज़ल से वापसी की है अर्थपूर्ण बोलों वाले गीतों की तरफ़। परिनीति ने आशातीत गायकी का परिवय देते हुए इस शास्त्रीय संगीत की छाया में स्वरबद्ध रचना को बेहद सुन्दर तरीक़े से गाया है। तेज़ रफ़्तार का कोई गीत होता तो बात अलग थी, लेकिन ऐसे ठहराव वाले गीत में सुरों को संभाल कर गाना बेहद मुश्किल काम है। इस ग़ज़ल का एक युगल संस्करण भी है जिसे परिनीति ने सोनू निगम के साथ मिल कर गाया है। भारतीय वाद्यों के प्रयोग से इस ग़ज़ल को चार चाँद लग गया है। ऐल्बम का दूसरा गीत है नकश अज़ीज़ और जोनिता गांधी का गया रेट्रो फ़ील वाला "ये जवानी तेरी, ये जवानी मेरी"। थिरकन भरा हल्के फुल्के बोलों से सजा यह गीत हमें 70 के दशक की याद दिला जाता है। तीसरा गीत है अरिजीत सिंह का गाया "ओ हारेया मैं दिल हारेया"। अतिथि गीतकार प्रिया सरय्या का लिख यह गीत लम्बी रेस का घोड़ा है। यूं तो अरिजीत के इस जौनर के बहुत से गीत हम सुन चुके हैं, पर यह गीत ख़ास है इसके कम्पोज़िशन, बोल और गायकी के लिहाज़ से। गीटार के सुन्दर प्रयोग वाला यह गीत अन्त तक हमारे साथ रहता है। क्लिन्टन सेरेजो और डॉमिनिक़ सेरेजो का गाया "इस तरह" हमें 80 के दशक में ले जाता है। भले यह सचिन-जिगर की रचना है, लेकिन कहीं से एक शंकर-अहसान-लॉय के संगीत की ख़ुशबू सी आती है। इस ऐल्बम की सबसे सुन्दर बात यह है कि सचिन-जिगर ने हर गीत को अलग ट्रीटमेण्ट दे कर विविधता की मिसाल कायम की है। जिगर और सनाह मोइदुत्ती की युगल आवाज़ों में "अफ़ीमी है तेरा मेरा प्यार" एक नर्म रोमांटिक गीत है जिसमें जिगर और सनाह की ताज़ी आवाज़ें दिल को छू जाती है। "अफ़ीमी" शब्द का क्या ख़ूबसूरत अंदाज़ में इस्तमाल हुआ है, शायद पहली बार किसी फ़िल्मी गीत में। और अन्तिम गीत है मोनाली ठाकुर की आवाज़ में "खोल दे बाहें" भी एक ख़ूबसूरत गीत है जिसमें कौसर मुनीर के हिन्दी बोलों के साथ साथ अतिथि गीतकार राना मजुमदार के बांग्ला बोल भी हैं। इसमें भी गीटार का सुन्दर प्रयोग है जो मोनाली की सुरीली आवाज़ के साथ-साथ चलता है। हिन्दी गीत में बांग्ला शब्दों को सही तरीके से ढाला गया है जिस वजह से यह एक अनूठा गीत बन गया है। कुल मिला कर ’मेरी प्यारी बिन्दु’ ऐल्बम एक सफल ऐल्बम है रचनात्मक्ता और विविधता के लिहाज़ से। 12 मई को एक और फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी ’सरकार 3’। फ़िल्म के निर्माताओं के अनुसार यह फ़िल्म ’सरकार’ और ’सरकार राज’ से भी ज़्यादा ग़ुस्सेवाला है। और यह बात इसके गीतों में भी साफ़ झलकता है। फ़िल्म के सात गीत रोहित तेओतिआ द्वारा लिखा और रवि शंकर द्वारा स्वरबद्ध किया हुआ है। अमिताभ बच्चन की आवाज़ में ’गणेश आरती’ के अलावा बाकी सभी गीत किसी न किसी दृष्टि से पहले की दो फ़िल्मों के "गोविन्दा" के इर्द-गिर्द घूमते हैं। ऐल्बम का पहला गीत "ग़ुस्सा" आज के समाज के आम आदमी के ग़ुस्से को उजागर करता है। सुखविन्दर सिंह की बुलन्द आवाज़, उस पर "गोविन्दा" का मन्त्रोच्चारण और पार्श्व का परक्युशन, सब मिल कर एक सशक्त गीत है यह। इसी गीत का एक अन्य संस्करण है "ऐंग्री मिक्स" जिसमें मिका सिंह की भी आवाज़ शामिल है। फिर एक बार कैलाश खेर की आवाज़ में "साम धाम" का एक अन्य रूप इस ऐल्बम में शामिल है और इस बार उनके साथ आवाज़ मिलाई है साकेत बैरोलिया ने। अमिताभ के संवाद से शुरु होता है निलाद्री कुमार का "सरकार ट्रान्स"। टेक्नो बीट्स की गति तनाव को बढ़ाती हुई लगातार बढ़ती चली जाती है और अन्त में अचानक ख़त्म हो जाती है। रोहन विनायक द्वारा स्वरबद्ध ’गणेश आरती’ में अमिताभ बच्चन फिर एक बार परफ़ेक्शन का परिचय देते हैं। धीमी लय से शुरु हो कर जैसे जैसे आरती आगे बढ़ती है, इसकी गति भी ते होने लगती है। "थाम्बा" भी बिग-बी की पंक्तियों से शुरु होता है, वो ही बोल जो ’सरकार’ के "गोविन्दा" गीत में थे। आगे इस गीत को नवराज हंस आगे बढ़ाते हैं पूरे जोश के साथ। मिका, आदर्श शिन्डे और साकेत की आवाज़ों में "शक्ति" भी कुछ कुछ उसी तरह का गीत है। कुल मिला कर ’सरकार 3’ का ऐल्बम इस सीकुएल के पिछले दो फ़िल्मों के ढांचे में ही ढला हुआ है। फ़िल्म के बाहर इन गीतों का क्या वजूद होगा, कहना मुश्किल है।
मई के दूसरे सप्ताह में प्रदर्शित हुई ’हाफ़ गर्लफ़्रेंड’। अर्जुन कपूर और श्रद्धा कपूर अभिनीत इस फ़िल्म में छह संगीतकार हैं - तनिष्क बागची, फ़रहान सईद, राहुल मिश्र, मिथुन, अमि मिश्र और ॠषी रिच। ऐल्बम का पहला गीत है "बारिश"। तनिष्क के इस कम्पोज़िशन ने माधव और रिया के रोमांस के आग में हवा का काम किया है। आराफ़ात महमूद और तनिष्क के लिखे बोल "ये मौसम की बारिश, ये बारिश का पानी, ये पानी की बूंदें, तुझे ही तो ढूंढ़े..." बड़े सुन्दर तरीके से गीत के मूड का बयाँ करते हैं। ऐश किंग् और शाशा तिरुपति की आवाज़ें दोनों अदाकारों पर अच्छी बैठी हैं। दूसरा गीत है "तू थोड़ी देर और ठहर जा"; श्रेया घोषाल की सुमधुर आवाज़ में यह गीत कानों में शहद घोलती है। फ़रहान सईद द्वारा स्वरबद्ध कुमार का लिखा यह गीत एक प्रेमी के इन्तज़ार को बड़े ख़ूबसूरत तरीके से बयाँ करता है। फ़रहान ने श्रेया का अच्छा साथ निभाया है इस युगल गीत में। गीत की एक और ख़ास बात है मुराद अली ख़ाँ का बजाया सारंगी की तानें। कुल मिला कर एक सुकूनदायक नग़मा। तीसरा गीत है राहुल मिश्र का गाया और स्वरबद्ध किया "तू ही है, तू ही तो है मेरा जुनूँ"। लाडो सुवल्का का लिखा यह क़व्वालीनुमा नग़मा थोड़े देर के लिए ’फ़ना’ के "चाँद सिफ़ारिश" की याद दिला जाता है। एक आशिक़ के टूटे हुए दिल की सदा है यह गीत और राहुल की उदासी भरी आवाज़-ओ-अंदाज़ ने गीत को सही मुकाम दिया है। ऐल्बम का अगला गीत है "फिर भी तुमको चाहूंगा"। मिथुन द्वारा स्वरबद्ध और मिथुन, अरिजीत सिंह व शाशा तिरुपति की आवाज़ों में मनोज मुन्तशिर का लिखा यह गीत शायद ऐल्बम का श्रेष्ठ गीत है। इस दर्द भरे गीत में पियानो, संतूर और बाँसुरी का सुन्दर प्रयोग है और मनोज के असरदार बोल "कल मुझसे मोहब्बत हो ना हो, कल मुझको इजाज़त हो ना हो, टूटे दिल के टुकड़े लेकर, तेरे दर पे ही रह जाऊंगा" दिल को चीर जाते हैं। ’एक विलेन’ फ़िल्म के "गलियाँ" गीत से इसकी थोड़ी बहुत समानता ज़रूर है। इसी गीत का दूसरा भाग है "पल भर" जिसे मिथुन और अरिजीत ने गाया है। कहना मुश्किल है कि दोनों में कौन सा संस्करण बेहतर है। अगला गीत है "lost without you" जिसे पहली बार सुन कर शायद इससे प्यार न हो, लेकिन कुछ और बार सुनने पर इसका असर बनने लगता है। अनुष्का शहाणे और कुणाल वर्मा का लिखा, अमि मिश्र का स्वरबद्ध किया तथा अनुष्का शहाणे व अमि मिश्र का गाया यह गीत हिन्दी-अंग्रेज़ी गीत है जिसमें चीनी वाद्य एर्हु का प्रयोग हुआ है। फ़रहान की "तू थोड़ी देर ठहर जा" का अंग्रेज़ी संस्करण है "stay a little longer" जिसे लिखा व गाया है अनुष्का शहाणे ने, लेकिन हिन्दी संस्करण ही दिल को छूता है। ऐल्बम का अगला गीत है फ़िल्म का शीर्षक गीत "मेरे दिल में" जिसे ॠषी रिच ने कम्पोज़ किया है। हिन्दी और अंग्रेज़ी बोलों से सजा यह गीत यश आनन्द, यश नर्वेकर, आर. रेखी, इशिता मित्र उधवानी और वेरोनिका मेहता ने लिखा है तथा इसे गाया है वेरिनिका और यश नर्वेकर ने। यह दौर सोशल मीडिया में प्रेम निवेदन का दौर है और यह गीत इसी बात की पुष्टि करता है। रैप के शौकीनों के लिए है यह गीत आकर्षक होगा। इसी गीत का एक संवाद संस्करण भी है जिसमें अर्जुन कपूर ने भोजपुरी में संवाद बोले हैं। कुल मिला कर यह ऐल्बम टूटे हुए दिल वाले आशिकों को ध्यान में रख कर बनाया गया है ऐसा प्रतीत होता है। इसी सप्ताह प्रदर्शित हुई ’जट्टू इंजिनीयर’। कम बजट की यह फ़िल्म नहीं चली। गुरमीत राम रहिम सिंह के संगीत में उन्हीं का लिखा और गाया "होली की पिचकारी" और "जोश में पूरे होश में" गीत सुनने वालों पर कोई असर नहीं कर सके।
19 मई को ’हिन्दी मीडियम’ भी प्रदर्शित हुई जिसमें फिर एक बार सचिन-जिगर का संगीत था। इसके ऐल्बम में 2016 के गुरु रंढवा और अर्जुन के चार्टबस्टर गीत "सूट सूट" को शामिल किया गया है। इसे कम्पोज़ किया था गुरु और रजत नागपाल ने। उत्तर भारत के शादी में बजने वाले गीतों की श्रेणी में यह गीत वहाँ के क्लब्स में ज़रूर ख़ूब बजेंगे। ऐल्बम का मूड बदल जाता है जब सचिन जिगर ले आते हैं आतिफ़ असलम को "हूर" में। प्रिया सरय्या के काव्यात्मक बोलों वाले इस गीत में आतिफ़ असलम का वही अंदाज़ सुनने को मिला एक अरसे के बाद। एक अच्छी रचना है कुल मिला कर। "सूट सूट" के बाद एक और सुपरहिट गीत है "ओ हो हो हो" जो बरसों से उत्तर भारत के क्लबों की शान है। सुखबीर के मूल गीत पर कुमार ने नए बोल लिखे हैं और इक्का ने रैप किया है। इस गीत की और क्या बात करें, यह तो लोकप्रियता के झंडे गाढ़ चुका है बरसों पहले ही। बाल गायिका तनिष्का सांघवी ने "इक जिन्दड़ी" को गा कर चमत्कृत कर दिया है। सचिन-जिगर और कुमार का यह गीत एक सिचुएशनल ट्रैक है जो फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है। मई के आख़िरी हफ़्ते चार फ़िल्में रिलीज़ हुईं। इनमें एक है कम बजट फ़िल्म ’चकल्लसपुर’। प्रवेश मल्लिक के लिखे और स्वरबद्ध गीतों में पहला गीत है फ़िल्म का शीर्षक गीत "चक चक चकल्लसपुर" जो एक हास्य गीत है और जिसे प्रवेश ने ही गाया है। इस गीत के बिल्कुल विपरीत भाव पर प्रवेश का गाया दर्द भरा गीत है "ये सपना किसका जला है"। तीसरा गीत बिहार के लोक शैली पर आधारित गीत है "उड़ जायी सुगनमा हो राम" जिसे सुनिल मल्लिक ने गाया है। इस गीत में एक बाप अपने मरे हुए बेटे को अपने हाथों में लेकर अस्पताल से घर की तरफ़ लौटते हुए दिखाया जाता है। ऐसे करुण दृश्य में अपनी आँसुओं को रोक पाना संभव नहीं, और उस पर ऐसे भावुक गीत ने व्यथा को और भी बढ़ा दिया है। मूड को बदलते हुए फ़िल्म का अन्तिम गीत है प्रवेश की आवाज़ में "मोरा बलमा सहरिया"। सस्ते भोजपुरी गीतों के ऐल्बम का कोई गीत है ऐसा प्रतीत होता है। इस सप्ताह की दूसरी फ़िल्म है ’कुटुम्ब - दि फ़ैमिली’। आर्यन जैन के संगीत में फ़िल्म के गीत आर्यन और राजेन्द्र तिवारी ने लिखे हैं। पहला गीत एक होली गीत है आर्यन जैन, तृप्ति शक्या और राजपाल यादव की आवाज़ों में। "अवध का छोरा मचाए धमाल" में वो सब बातें हैं जो एक होली गीत में होती हैं। दूसरा गीत है "जाने क्यों बेवजह ये मौसम सुहाना सुहाना लगे" जिसे शाहिद माल्या ने गाया है। पहले प्यार के अहसास को दर्शाता यह गीत एक सुन्दर रचना है। मुखड़े के बाद क़व्वाली/ सूफ़ी शैली में अन्तरा कम्पोज़ किया है आर्यन ने। जावेद अली और लीना बोस की आवाज़ों में "इश्क़ में तेरे ऐसा लगी मुझे यार जैसे ठंडी ठंडी पुर्वैया की चली है बयार" मिट्टी की ख़ुशबू लिए एक नर्मोनाज़ुक प्रेम गीत है। अफ़सोस की बात यह है कि कम बजट की फ़िल्म होने की वजह से इन गानो का ज़्यादा प्रोमोशन नहीं हुआ और इसलिए इन्हें ज़्यादा सुना नहीं जा रहा है।
मई के आख़िरी सप्ताह की तीसरी फ़िल्म थी ’थोड़ी थोड़ी सी मनमानियाँ’। फ़िल्म में दो गीतकार-संगीतकार जोड़ियाँ हैं - गीतकार राघव दत्त - संगीतकार ट्रॉय आरिफ़, तथा गीतकार प्रेरणा सहेतिया - संगीतकार अजय वाज़। इस ऐल्बम में गाने ऐसे हैं जो हर उम्र के श्रोताओं को पसंद आएंगे। राघव-ट्रॉय के दो गीत हैं और प्रेरणा-अजय के तीन। राघव-ट्रॉय का पहला गीत है शेखर रावजियानी और शालमली खोलगडे की आवाज़ों में "मेहरबाँ मेहरबाँ" और दूसरा गीत है यासेर देसाई का गाया "बंजारे"। पहला गीत अगर थिरकता डान्स नंबर है तो दूसरा गीत सॉफ़्ट रॉक शैली में कम्पोज़ किया हुआ ऐसा गीत है जो आपको पिछले दशक के इमरान हाश्मी के फ़िल्मों के गीतों की याद दिला जाएगा। प्रेरणा-अजय के तीन गीत हैं "तू बस चल यहाँ" (निखिल डी’सूज़ा, प्रेरणा), "थोड़ी मनमानियाँ" (निखिल) और "तराशता मैं ये रास्ता" (सिद्धार्थ बसरूर)। "तू बस चल यहाँ" में देसी पंजाबी और रॉक म्युज़िक का फ़्युज़न है; उधर "थोड़ी मनमानियाँ" फ़िल्म के शीर्षक गीत के रूप में एक केअर-फ़्री क़िस्म का गीत है जिसमें एक युवा अपने मन की सुनने की सीख देख रहा है सभी को। "तराशता मैं" में सिद्धार्थ की आवाज़ में एक यूथ अपील है, एक नयापन है जो उन्हें आगे ले जाने में कारगर सिद्ध होगी। मई के अन्तिम सप्ताह में प्रदर्शित होने वाली चौथी और सबसे महत्वपूर्ण फ़िल्म रही सचिन तेन्दुलकर की बायोपिक ’सचिन- ए बिलियन ड्रीम्स’। इस फ़िल्म में गीतों की ज़्यादा गुंजाइश नहीं थी। ए. आर. रहमान और इरशाद कामिल ने तीन गीत रचे हैं। पहला गीत तो हमें सीधा क्रिकेट स्टेडियम में पहुँचा देता है। "सचिन सचिन" का शोर, और ड्रम्स के बीट्स ने इस गीत को एक पावरफ़ुल ट्रैक बना दिया है। इस गीत की ख़ासियत यह है कि इसके चौदह संस्करण बने हैं अलग अलग भारतीय भाषाओं में। ऐसा पिछली बार शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म ’फ़ैन’ में देखा गया था। ख़ैर, इस गीत में कैली ने रैप किया है और सुखविन्दर सिंह की बुलन्द आवाज़ खुल कर आई है जैसा उन्होंने "चक दे इंडिया" में गाया था। शास्त्रीय संगीत की छोटी-छोटी बारीकियों को क्या ख़ूब उभारा है उन्होंने। और दूसरा गीत है "हिन्द मेरे जिन्द" रहमान की आवाज़ में है। देशभक्ति की छाया लिए यह गीत हारमोनियम, बाँसुरी और ड्रम बीट्स से सुसज्जित एक विजय गीत है। और तीसरा गीत है "मर्द मराठा" जिसे ए. आर. अमीन और अंजली गायकवाड ने गाया है। मराठी लोक शैली में कम्पोज़ यह गीत हमें थिरका जाता है। सचिन के लिए हर भारतीय के दिल में इतनी इज़्ज़त है कि उन पर बनी इस फ़िल्म का हर एक पहलु हमें पसन्द आएगी और इसके गानें कोई व्यतिक्रम नहीं है।
जून का महीना शुरु हुआ ऐनिमेटेड फ़िल्म ’हनुमान दा दमदार’ से। रुचि नारायण की इस बाल फ़िल्म में बॉलीवूड के कई जानेमाने कलाकारों ने अपनी आवाज़ें दीं जैसे कि सलमान ख़ान, जावेद अख़्तर, रवीना टंडन, विनय पाठक, मकरन्द देशपांडे, सौरभ शुक्ला, चंकी पांडे, कुणाल खेमु, स्नेहा खनवलकर और हुसैन दलाल। स्नेहा ने ही फ़िल्म का संगीत तैयार किया है और गीत लिखे हैं अभिषेक दुबे ने। ऐल्बम का पहला गीत है सागर कुन्दुरकर की आवाज़ में "भाई ओ भाई"। बच्चों को यह गीत निस्संदेह पसन्द आएगा इसके रीदम और मज़ेदार बोलों की वजह से। दूसरा गीत है "हनुमान चालीसा" जिसे स्नेहा पंडित, मिलिन्द बोरवनकर, निहार शेम्बेकर, रुचि नारायण और ताहिर शब्बीर ने गाया है। बाल आवाज़ में ’हनुमान चालीसा’ का आधुनिक संस्करण आकर्षक है जिसमें गीटार और ड्रम्स ने फ़्युज़न की सृष्टि की है। स्वानन्द किरकिरे और मीनल जैन की आवाज़ों में "आजा आजा निन्नि वाली परियाँ" एक लोरी गीत है जिसमें ऐसी कहानी है जो बच्चों को रात में सुलाते हुए सुनाई जाती है। और चौथा गीत है वही फ़िल्म ’मासूम’ का इतिहास रचने वाला "लकड़ी की काठी" जिसे रिक्रीएट किया गया है। गुलज़ार और पंचम के मूल गीत को वनिता मिश्र, गौरी बापट और गुरप्रीत कौर ने गाया था। ’हनुमान दा दमदार’ फ़िल्म के लिए इस गीत के लिए अतिरिक्त बोल लिखे हैं फ़िल्म के गीतकार अभिषेक दुबे ने, और इस गीत को गाया है राशी सलिल हरमलकर, विया कुमार, अरहान ख़ान, विक्रम सदानन्द पटकर और अत्रेयी भट्टाचार्य ने। कुल मिला कर इस फ़िल्म के चारों गीत अच्छे बने हैं और इनमें रचनात्मक्ता दिखाई देती है। जून के पहले सप्ताह कुल पाँच फ़िल्में प्रदर्शित हुईं। एक की चर्चा हमने की, दूसरी फ़िल्म थी ’ए डेथ इन दि गंज’ जिसमें कोई गीत नहीं है। तीसरी फ़िल्म थी ’स्वीटी वेड्स एन आर आइ’। ऐल्बम की शुरुआत होती है अर्को के संगीत में अरमान मलिक और प्रकृति कक्कर के गाए "ओ साथिया" से। एक धीमा प्रेम गीत, कर्णप्रिय कम्पोज़िशन, ऐकोस्टिक गीटार का ताज़ा अहसास, कुल मिला कर एक सुन्दर रचना। अरमान और प्रकृति की असरदार आवाज़ों ने इस नर्मोनाज़ुक रोमान्टिक गीत को सुन्दर जामा पहनाया है। ऐल्बम का दूसरा गीत है 90 के दशक का सुपरहिट पंजाबी गीत "दिल ले गई कुड़ी गुजरात दी" जिसे जसबीर जस्सी ने गाया था। इस फ़िल्म की कहानी में एक गुजराती पिता अपनी बेटी की शादी एक एन.आर.आइ से करवाना चाहते हैं, शायद इसी से प्रेरित होकर इस गीत को इस फ़िल्म में रखने का विचार आया होगा। ख़ैर, स्व: श्याम भटेजा के मूल गीत पर अतिरिक्त बोल लिखे डॉ. देवेन्द्र काफ़िर ने और संगीत रिक्रीएट किया जयदेव कुमार ने। केडी के रैप पर जसबीर जस्सी के साथ सोनिआ शर्मा और अकासा सिंह की भी आवाज़ें हैं। रैप वाले जगहों पर गुजराती शब्द डाले गए हैं जो सुनने में मज़ेदार हैं। तीसरा गीत एक बार फिर से सॉफ़्ट नंबर है पलाश मुछाल के लिखे और संगीत में। इस गीत के कुल चार संस्करण हैं। पहले संस्करण में आतिफ़ असलम और पलक मुछाल की आवाज़ें हैं; पहली बार सुनते हुए हो सकता है यह गीत ज़्यादा अपील न करे, लेकिन दो एक बार सुनने पर इसकी कर्णप्रियता दिल को भी छूने लगती है। लेकिन पलक की आवाज़ अतिथि गायिका के रूप में ही लिया गया है जो शुरु होने से पहले ही जैसे ख़त्म हो जाती है। अरिजीत के एकल संस्करण में एक हौन्टिंग् टच है और तीसरे संस्करण में आतिफ़ और अरिजीत के संस्करणों को मिक्स किया गया है जो अपने आप में एक अनोखा प्रयोग है। चौथा संस्करण है पलक मुछाल की एकल आवाज़ में। पलाश का ही लिखा और स्वरबद्ध किया एक शादी गीत है "वेडिंग् होने वाली है" जिसे पलक मुछाल और शाहिद माल्या ने गाया है। एक चुलबुला मज़ेदार गीत जिसमें लड़का शादी के बन्धन को अस्त-व्यस्त कर रहा है और लड़की शादी को लेकर उत्साहित है। राज आशू के संगीत में, शकील आज़मी का लिखा अरमान मलिक की आवाज़ में "शिद्दत से चाहता हूँ" एक तीव्र प्रेम का गीत है जिसमें अरमान की आवाज़ से दीवानगी छलक रही है। इसी गीत का मोहम्मद इरफ़ान का गाया अन्य संस्करण भी है जो अरमान के मुकाबले नर्म है, नाज़ुक है। दोनों संस्करणों का वैषम्य सुन्दर बन पड़ा है। ऐल्बम का आख़िरी नग़मा है "ज़िन्दगी बना लूँ"। पलक मुछाल की आवाज़ में शाहजहाँ अली का स्वरबद्ध किया और बंजारा रफ़ी का लिखा यह गीत कर्णप्रिय है जिस पर संगीत संयोजन इसे और भी ज़्यादा भावुक बनाता है। कुल मिला कर ’स्वीटी वेड्स एन आर आइ’ का ऐल्बम ऐवरेज से उपर है।
2 जून को प्रदर्शित होने वाली पाँच फ़िल्मों में चौथी फ़िल्म थी ’दोबारा: सी यू ईविल’। यूं तो हॉरर फ़िल्मों में बहुत ज़्यादा गीतों की गुंजाइश नहीं होती है, लेकिन ’1920’ फ़िल्म से इस जौनर की फ़िल्मों में भी अच्छे ख़ासे गीतों का चलन शुरु हुआ था और अब तक जारी है। ’दोबारा’ में भी चार गीत हैं। अर्को का लिखा, उन्हीं का स्वरबद्ध और उनकी तथा असीस कौर की आवाज़ों में ऐल्बम का पहला गीत है "कारी कारी"। अकेलापन और यादें रात की तन्हाई में किस तरह डँसती हैं, यह गीत प्रमाण है। उदासी भरा यह गीत दिल को उदास कर देता है। इस गीत के अन्य संस्करण में अर्को के साथ पायल देव की आवाज़ है। नवोदित गायिका ज्योतिका टंग्री की आवाज़ में "हमदर्द" एक बार फिर अर्को की लिखी-स्वरबद्ध रचना है जिसमें विक्रम भट्ट के हॉरर फ़िल्मों के गीतों के जौनर की याद दिलाती है। गीत में वायलिन का संगीत एक अमंगल की अनुभूति कराती है जो शायद फ़िल्म की कहानी के साथ चलती है। इस गीत का भी एक अन्य संस्करण है जिसमें नेहा पांडे की मुख्य आवाज़ है और साथ में है पैरी जी का रैप। दोनों में निस्सन्देह पहला संस्करण बेहतर है। ऐल्बम का श्रेष्ठ गीत अरिजीत सिंह की आवाज़ में है - "अब रात गुज़रने वाली है"। पुनीत शर्मा का लिखा व समीरा कोपीकर द्वारा स्वरबद्ध यह गीत ऐल्बम के दूसरे गीतों के भाव के इर्द-गिर्द ही घूमता है लेकिन कुल मिला कर इसका स्तर ऊँचा है। गीत का अन्य संस्करण है समीरा की आवाज़ में जिस पर जोनथन रेबेरो का रैप है। समीरा की आवाज़ में भी यह गीत अच्छा सुनाई दिया पर अरिजीत वाले संस्करण की बात ही कुछ और है। ऐल्बम के अन्डरकरण्ट को एक तरफ़ रखते हुए ऐल्बम का अन्तिम गीत कुछ अलग हट कर है। ताशा ताह और राऊल की आवाज़ों में "मलंग" को एक प्रोमोशनल ट्रैक के रूप में इस्तमाल किया गया। इन दोनों ने इस गीत को लिखा और संगीत दिया राऊल और मैक्स वूल्फ़ ने। लगता नहीं कि इस गीत को फ़िल्म की कहानी में कोई जगह मिली होगी। और 2 जून को रिलीज़ होने वाली पाँचवी फ़िल्म रही ’डिअर माया’ जिसमें मनीषा कोइराला ने अभिनय किया। अनुपम रॉय के संगीत में ऐल्बम का पहला गीत है "सात रंगों से दोस्ताना हुआ" जिसे रेखा भारद्वाज ने गाया है। तबला और सितार के सुन्दर समन्वय ने इस सुरीले गीत की शान को बढ़ा दिया है। इसी गीत का एक ऐकोस्टिक वर्ज़न है अनुपम की ही आवाज़ में जिसमें घटम के संयोजन ने चार चाँद लगा दिया है। हर्षदीप कौर की आवाज़ में "सूने साये तूने पाए" भी बहुत ही सुन्दर तरीके से गाया गया है जिसमें फ़्युज़न है भारतीय और पाश्चात्य साज़ों का। जोनिता गांधी की आवाज़ में "कहने को" एक मधुर तान से शुरु होता है जो जुदाई के दर्द को उजागर करता है। गीत का हूक लाइन है "How do I say goodbye?" और ऐल्बम का अन्तिम गीत है "बुरी बुरी"। राशी मल की आवाज़ में यह गीत स्पाइस गर्ल्स की याद दिला जाता है।
9 जून को भी पाँच फ़िल्में प्रदर्शित हुईं। पहली फ़िल्म है ’राबता’ जिसमें सुशान्त सिंह राजपूत और कृति सानोन ने अभिनय किया है। प्रीतम और JAM8 के संगीत में फ़िल्म के गीतों को लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य, इरशाद कामिल और कुमार ने। पिछले दिनों यह फ़िल्म विवादों से घिर गई। पहले इसे 2009 की तेलुगू फ़िल्म ’मगधीरा’ के निर्माताओं से लीगल नोटिस मिला उनकी फ़िल्म की कहानी चुराने के इलज़ाम में। और तीन सप्ताह पहले संगीतकार प्रीतम ने फ़िल्म के निर्माता से अनुरोध किया कि उनका नाम फ़िल्म की नामावली से हटा दिया जाए क्योंकि वो किसी और के गीतों को रिक्रीएट करना नहीं चाहते। फ़िल्म के निर्माता चाहते थे कि T-Series के एक हिट गीत को प्रोमोशन के मक़सद से इस्तमाल किया जाए। लेकिन इन सब के बावजूद फ़िल्म का ऐल्बम बहुत ही साधारण बना है। ऐल्बम का पहला गीत है अरिजीत सिंह की आवाज़ में "इक वारी"। ऊँची दुकान फीका पकवान, इस गीत के लिए यह मुहावरा सटीक है। ऐकोस्टिक गीटार का सिन्थेसाइज़र कॉर्ड्स के साथ जुगलबन्दी, इलेक्ट्रॉनिक ध्वनियों का क्रेसेन्डो, नए ज़माने के परक्युशन लूप्स, और उस पर अरिजीत की असरदार आवाज़; लेकिन ताज्जुब की बात है कि गीत ख़त्म होने के बाद आपके दिल पर कोई असर नहीं होता। इसका एक जुबिन नौटियाल संस्करण भी है जिसमें गायकी नर्म है और पार्श्व में कोरस है। मेरी व्यक्तिगत पसन्द अरिजीत वाला संस्करण है। आपको याद होगा ’एजेन्ट विनोद’ फ़िल्म में प्रीतम का ही रचा "राबता" गीत था श्रेया घोषाल का गाया। इस फ़िल्म में इसी गीत को शीर्षक गीत के रूप में डाला गया है जिसे अरिजीत सिंह और निकिता गांधी ने गाया है। श्रेया वाला संस्करण निस्संदेह ज़्यादा सुरीला था, इस वाले में बहुत ज़्यादा इलेक्ट्रॉनिक ध्वनियों और ऑटोट्युनरों का कुंभ लगा है। आज के कलाकारों को शायद ऐसा लगता है कि "अली", "मौला" जैसे शब्दों के होने से ही वह एक सूफ़ी गीत बन जाता है। इस फ़िल्म के साथ भी यही हुआ। अरिजीत की आवाज़ में "लम्बी सी जुदाइयाँ" एक दर्द भरा गीत है जो वायलिन से शुरु हो कर ऐकोस्टिक गीटार से होते हुए 90 के दशक के ढोलक और सिन्थेसाइज़र के रास्ते चल पड़ता है। लेकिन तभी अचानक "अली मौला" के नारे सुनाई देते हैं जिनका इस्तमाल इस गीत को एक सूफ़ी नंबर करार देने के अलावा कुछ और नहीं हो सकता। अरिजीत ने वैसे इस गीत को सही मुकाम दिलाया है और कम्पोज़िशन के लिहाज़ से भी इस ऐल्बम का यह एक उम्दा नग़मा है। अरिजीत, नेहा कक्कर और मीत ब्रदर्स की आवाज़ों में "मैं तेरा बॉयफ़्रेन्ड ना ना ना" भी एक रीमेक है 2015 के हिट पंजाबी गीत का। गीत का कैची रीदम इसे लोकप्रिय बनाएगी इसमें कोई संदेह नहीं है पर इस गीत में कोई ख़ास बात भी नहीं है। आतिफ़ असलम की आवाज़ में "दरसल" का कम्पोज़िशन अच्छा है लेकिन आतिफ़ की हर गीत में अपने ’जल’ बैन्ड जैसी गायकी एकरसता पैदा कर रही है। एक लव बैले में जिस तरह की नाज़ुकी की ज़रूरत होती है, वह कहीं कहीं ही सुनाई दी। कुल मिला कर ’राबता’ का गीत-संगीत ऐवरेज है।
9 जून को प्रदर्शित होने वाली दूसरी फ़िल्म है ’बहन होगी तेरी’ जो एक रोमान्टिक कॉमेडी है और इस थीम का असर इसके सात गीतों पर भी पड़ा है। ऐल्बम का पहला गीत है "जय मा - काला चश्मा" जिसमें भक्ति रस है और ऐसा लगता है कि फ़िल्म में इसे जागरण के दृश्य के लिए प्रयोग में लाया गया होगा। संगीतकार जयदेव कुमार ने मूल "काला चश्मा" की धुन को बरकरार रखा है। साहिल सोलंकी, ज्योतिका टंगरी और पैरी जी के गाए इस गीत में मूल गीत की पंक्तियों पर माँ शेरावाली की शान में पंक्तियाँ डाले हैं गीतकार सोनू सग्गु ने। 80-90 के दशक में लोकप्रिय फ़िल्मी गीतों की धुनों पर भजन-कीर्तन की याद दिला दी है इस गीत ने। कुल मिला कर सभी ने अच्छा काम किया है इस गीत में। अरिजीत की आवाज़ में "तेरा होके रहूँ" ऐल्बम का श्रेष्ठ गीत है। इन्टरल्युड में बांसुरी की नर्म ध्वनियाँ और पार्श्व में ऐकोस्टिक गीटार का प्रयोग बहुत सुन्दर है जो इस धीमे रोमान्टिक गीत को और भी असरदार बनाते हैं। कौशिक, आकाश और गुड्डु द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को बिपिन दास ने लिखा है। राहुल देव बर्मन - आनन्द बक्शी के सुपरहिट गीत "जानू मेरी जान मैं तेरे कुर्बान" को ॠषी रिच ने इस फ़िल्म के लिए रीक्रिएट किया है जिसे जग्गी डी, शिवि और रफ़्तार ने गाया है। मूल गीत का फ़्लेवर बरकरार है जिस पर क्लबों में नौजवान ख़ूब थिरक रहे होंगे इन दिनों। यासिर देसाई, पावनी पांडे और यश नरवेकर के गाए "तेरी यादों में" एक रोमान्टिक गीत है जिसकी शुरुआत आशाजनक है लेकिन आगे चल कर गीत कहीं खो जाता है। वैसे यश और सुकृति कक्कर की आवाज़ में इस गीत का रीप्राइज़ वर्ज़न काफ़ी बेहतर है। अमजद नदीम द्वारा स्वरबद्ध "तैनु ना बोल पावाँ" एक और धीमा मेलडी प्रधान गीत है जिसे यासिर और ज्योतिका की सुरीली गायकी सुनने वालों को अपनी ओर खींच कर रखता है। इसका भी रीप्राइज़ वर्ज़न असीस कौर की आवाज़ में मूल गीत से बेहतर है। इस सप्ताह रिलीज़ होने वाली अगली फ़िल्म है ’बच्चे सच्चे कच्चे’। इस फ़िल्म में अन्ना हज़ारे ने अतिथि भूमिका निभाई है। फ़िल्म के संगीतकार हैं रविशंकर एस। बच्चों के फ़िल्म में जिस तरह के गाने होते हैं, इस फ़िल्म में भी उसी तरह के हैं। फ़िल्म का शीर्षक गीत वाइ. स्पूर्ति और साथियों ने गाया है जिसमें बच्चे बड़ों की ग़लतियों को पक्ड़ रहे हैं। गीत लिखा है मीना और यशमिता ने। दूसरा गीत है "तेरे पास ये नहीं वो नहीं" जिसे भरत और वैष्नवि ने गाया है। गीत बहुत ही अर्थपूर्ण है जो आज के बच्चों की मनस्थिति को दर्शाता है। फ़िल्म का एक और गीत है "ऐ ख़ुदा वक़्त की रफ़्तार को बढ़ा दे" जावेद अली की आवाज़ में जिसमें एक सूफ़ियाना अंग है और दर्दीला होते हुए भी मन को सुकून देता है।
जून के दूसरे सप्ताह की अगली फ़िल्म रही ’लव यू फ़ैमिली’। इसमें चार संगीतकारों ने संगीत दिया। ऐल्बम का पहला गीत तनमय पाहवा के संगीत में संजीव चतुर्वेदी का लिखा हुआ है। प्रथमेश ताम्बे की आवाज़ में "सर से पाँव तक तेरा इश्क़ ओढ़ बैठा हूँ" युवा अपील लिए एक रोमान्टिक गीत है जिसे निस्संदेह आज की युवा पीढ़ी पसन्द करेगी। साज़ों की अनर्थक भीड़ नहीं, बोल भी सुन्दर, और प्रथमेश की नई ताज़ी दिलकश आवाज़ में इस गीत को सुन कर अच्छा लगा। दूसरा गीत है नरेश करवाला के संगीत में और उन्हीं का लिखा हुआ। ज़ुबीन गर्ग और मेघना यागनिक की आवाज़ों में "तूने छूआ जाने क्या हुआ के जल उठा है बदन" डिस्को बीट्स वाला आधुनिक प्रेम गीत है जिसमें कामोत्तेजक बोल जैसे कि "होठों पे तपस है, साँसों में सिस्कियाँ, लम्हों की ख़्वाहिशें, अब तू समझ भी जा, बरस जा मुझ पे तू बरस जा" गीत को एक कामुक अंग प्रदान करते हैं। ज़ुबीन की आवाज़ में इस तरह के गीत निखर कर आता है। रॉबी बादल ने ऐल्बम के तीम गीत कम्पोज़ किए हैं जिन्हें तीन अलग अलग गीतकारों ने लिखे हैं। तनवीर ग़ाज़ी का लिखा "इश्क़ ने ऐसा शंख बजाया, गूंज उठी तन्हाई मेरी" मधुश्री और सोनू निगम की आवाज़ों में एक बेहद कर्णप्रिय रचना है जिसमें शास्त्रीय संगीत की छाया है। एक अरसे के बाद वरिष्ठ गायकों की आवाज़ में ऐसा स्तरीय गीत सुन कर एक सुखद अनुभूति हुई। मधुश्री की एकल आवाज़ में स्व: हैदर नाज़मी का लिखा "माँ" भी एक भावुक रचना है जिसमें एक बेटी अपनी माँ को ख़त लिख रही है। इसे सुनते हुए आँसुओं को रोक पाना मुश्किल है। फिर एक बार रॉबी बादल ने बेहद ख़ूबसूरत कम्पोज़िशन तैयार की है। "साथ कोई नहीं मेरे, पास कोई नहीं अब मेरे, दुख में उलझी हूँ माँ, ख़ुद से रूठी हूँ माँ, मुझसे रूठा मेरा आसमाँ, ओ माँ..."। मधुश्री की ऊँची पट्टी पर "ओ माँ" की पुकार कलेजा चीर जाता है। शाहिद ख़ान का लिखा फ़िल्म का शीर्षक गीत गाया है मधुश्री, विक्रान्त सिंह, मृदुल घोष, सौम्या और रॉबी बादल; यह एक अंग्रेज़ी गीत है जिसकी धुन "लास्ट क्रिस्मस" की धुन से प्रेरित है (इसी धुन से अनु मलिक भी प्रेरित हुए थे "दिल मेरा चुराया क्यों" गीत के लिए)। यह एक सिचुएशनल गीत है जिसका अस्तित्व फ़िल्म के अन्दर ही है। संगीतकार विष्णु नारायण ने दो गीत कम्पोज़ किए हैं जिन्हें कनवर जुनेजा ने लिखा है। नरेश अय्यर और विष्णु नारायण की आवाज़ों में "नॉटी नॉटी पार्टी" एक साधारण पार्टी गीत है और इस तरह के गीत थोक के भाव आ रहे हैं आजकल। दलेर मेहन्दी, कल्पना पटवारी और विष्णु नारायण की आवाज़ों में "पेग शेग ला लो" भी एक और पार्टी गीत है, फ़र्क बस इतना है कि यह एक पंजाबी पेग शेग क़िस्म का डान्स नंबर है। इस बेहद आम गीत के लिए दलेर मेहन्दी जैसे वरिष्ठ गायक की क्या ज़रूरत पड़ गई, यह कहना मुश्किल है।
16 जून को दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं - ’गेस्ट इन लंदन’ और ’बैंक चोर’। ’अतिथि तुम कब जाओगे’ का सीकुएल ’गेस्ट इन लंदन’ के संगीत के लिए राघव सचर और अमित मिश्र को चुना गया। ऐल्बम शुरु होता है "फ़्रैंकली तू सोना नचदी" से जो एक डान्स नंबर है लेकिन तेज़ रफ़्तार वाला नहीं। अच्छी बात यह है कि इसमें अनर्थक ईलेक्ट्रॉनिक ध्वनियों का महाकुंभ नहीं है। कुमार के पंजाबी प्रधान बोलों पर राघव सचर और तरन्नुम मलिक ने देसी धमाल मचाया है। राघव ने सैक्सोफ़ोन का अच्छा प्रयोग किया है इस गीत में। "बारिश" जैसे सुकूनदायक गीत के बाद ऐश किंग् की वापसी हुई है "दिल मेरा" गीत में। प्रकृति कक्कर और शाहिद माल्या की आवाज़ों के होते हुए भी यह गीत कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पायी। तीसरा गीत है "दारु विच प्यार" जो हमें ’रईस’ के "लैला मैं लैला" की याद दिला जाता है। वैसे यह गीत ’तुम बिन’ के ताज़ के गाए "दारु विच प्यार" का ही रीक्रिएशन है जिस पर आर्य आचार्य ने रैपिंग् की है। अमित मिश्र और नवेन्दु त्रिपाठी का गाया फ़िल्म का शीर्षक गीत एक सिचुएशनल गीत है जिसका फ़िल्म की कहानी में ही महत्व होगा। "आएगा आनेवाला" गीत के मुखड़े को ही आधार बना कर इस गीत को डेवेलप किया गया है। ऐल्बम का अन्तिम गीत है "रब्बा मेरे हाल दा मेहरम तू" सूफ़ीयाना अंदाज़ का भक्तिमूलक रचना है जिसमें सुमीत आनन्द और अमित मिश्र की आवाज़ें हैं। इस ऐल्बम की अच्छी बात यह है कि केवल पाँच गाने हैं अलग अलग तरह के और किसी भी गीत का अनर्थक रीमिक्स वर्ज़न नहीं बनाया गया है। ’बैंक चोर’ फ़िल्म का साउन्डट्रैक एक मल्टि-कम्पोज़र ऐल्बम है जिसमें कैलाश खेर, रोचक कोहली, शमिर टंडन, और बाबा सेहगल ने संगीत दिया है। ऐल्बम का पहला गीत शीर्षक गीत है "हम हैं बैंक चोर" जिसे कैलाश खेर और अम्बिलि मेनन ने गाया है। इन दोनों ने ही इसे मिल कर लिखा है। जिस तरह से बीच बीच में "बैंक चोर" बोला गया है, ऐसा लगता है कि जैसे आज के दौर का सर्वाधिक लोकप्रिय गाली को बढ़ावा दिया गया है। कैलाश खेर जैसे गायक को इस तरह के घटिया उद्येश्य वाले गीत को लिखने, स्वरबद्ध करने और गाने की क्या आवश्यक्ता पड़ गई थी यह वो ही बता सकते हैं बेहतर! ऐल्बम का दूसरा गीत है अधीश शर्मा का लिखा और रोचक कोहली का स्वरबद्ध किया "तशरीफ़"। रोचक की ही आवाज़ में यह गीत हाल के समय में आने वाली हास्य प्रधान गीतों में काफ़ी सृजनात्मक है। ’हवाइज़ादा’ के गीतों की तरह इस गीत में भी रोचक ने देसी मिज़ाज को बरकरार रखा है। शमिर टंडन के संगीत में वरुण लिखाटे का लिखा ऐल्बम का तीसरा गीत है "बीसी रैप नॉक-आउट: मुंबई वर्सस दिल्ली" जो मुंबई और दिल्ली के बीच एक रैप बैटल है। बहुत ही नई सोच है और काफ़ी मज़ेदार भी। गायक नेज़ी और प्रधान ने अच्छी गायकी का प्रदर्शन किया है। गौतम गोविंद शर्मा का लिखा, रोचक कोहली का स्वरबद्ध किया नकश अज़ीज़ और साथियों का गाया "जय बाबा बैंक चोर" सुन कर ऐसा लग रहा है कि जैसे कोई उसी गाली का प्रोमोशन कर रहा है। बाबा सहगल का लिखा, स्वरबद्ध किया और उन्हीं का गाया "बाए बाबा बैंक चोर" तो जैसे एक गाली ही है। वर्ष 2017 के प्रथमार्ध की अन्तिम फ़िल्म है सलमान ख़ान की ’ट्युब लाइट’ जो रिलीज़ हो रही है ईद के पाक़ मौक़े पर। प्रीतम के संगीत से सजे इस फ़िल्म में गीत लिखे हैं अमिताभ भट्टाचार्य और कौसर मुनीर ने। फ़िल्म में कुल छह गीत हैं। कमाल ख़ान और अमित मिश्र की आवाज़ में "सजन रेडियो बजने दे ज़रा"। इस गीत में पार्श्व संगीत और गायन को बहुत सुन्दर तरीके से समक्रमिक बनाया गया है। यह ऐल्बम अभी हाल ही में जारी हुआ है, देखना है कि क्या यह गीत धीरे धीरे लोकप्रियता के पायदान चढ़ पाता है या नहीं। "नाच मेरी जान" एक त्योहार गीत है जिसमें प्रीतम ने बड़ी चतुराई से चार अलग अलग आवाज़ों को साथ में लेकर आए हैं और ये आवाज़ें हैं कमाल ख़ान, नकश अज़ीज़, देव नेगी और तुषार जोशी। अमिताभ के शब्द असरदार हैं और "किन्तु परन्तु" जैसे बोल गीत को मज़ेदार बनाते हैं। कुल मिला कर एक अच्छा गीत है पर लगता नहीं कि यह एक लम्बी रेस का घोड़ा बन पाएगा। राहत फ़तेह अली ख़ान की आवाज़ में "तिनका तिनका दिल मेरा" एक अच्छी रचना है और राहत साहब की पुर-असर आवाज़ में कोई भी आम गीत ख़ास बन ही जाता है।
यहाँ आकर पूरी होती है वर्ष 2017 के प्रथमार्ध में प्रदर्शित होने वाली हिन्दी फ़िल्मों के गीत-संगीत की समीक्षा। ’चित्रकथा’ में आगे चल कर हम फिर से लेकर आएँगे इस वर्ष के द्वितीयार्थ के फ़िल्मी गीतों का लेखा-जोखा।
आख़िरी बात
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शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
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Very Informative and interesting article.