स्वरगोष्ठी – 285 में आज
पावस ऋतु के राग – 6 : बसन्त देसाई की अन्तिम रचना
‘मेहा बरसने लगा है आज...’ और ‘ऋतु आई सावन की...’
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला – “पावस ऋतु के राग” की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आपको स्वरों के माध्यम से
बादलों की उमड़-घुमड़, बिजली की कड़क और रिमझिम फुहारों में भींगने के लिए
आमंत्रित करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत
पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में
गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा
कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी
प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु
के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का
गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे
सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी
वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। इस श्रृंखला की
पाँचवीं कड़ी में आज हम राग जयन्त अथवा जयन्ती मल्हार पर चर्चा करेंगे। इस
राग में पहले हम आशा भोसले की आवाज़ में एक फिल्मी गीत प्रस्तुत करेंगे। यह
गीत 1976 में प्रदर्शित फिल्म ‘शक’ से लिया गया है, जिसके संगीतकार हैं
बसन्त देसाई। दूसरे चरण में राग जयन्त मल्हार की एक प्राचीन किन्तु मोहक
बन्दिश का हमने चयन किया है। अपने समय के बहुआयामी संगीतज्ञ पण्डित विनायक
राव पटवर्धन ने इस रचना को स्वर दिया है।
आशा भोसले |
राग जयन्त मल्हार : ‘मेहा बरसने लगा है आज...’ : आशा भोसले : फिल्म – शक
विनायक राव पटवर्धन |
राग जयन्त मल्हार : ‘ऋतु आई सावन की...’ : पण्डित विनायक राव पटवर्धन
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 285वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको उपशास्त्रीय लोक संगीत में
समान रूप से लोकप्रिय शैली से लिये गए गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के
इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के
उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 290वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के
बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के चौथे सत्र
(सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – भारतीय संगीत की यह कौन सी शैली है? उस शैली का नाम बताइए।
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत की गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें गायिका का नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 1 अक्टूबर, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम
‘स्वरगोष्ठी’ के 287वें अंक में प्रकाशित किया जाएगा। इस अंक में प्रकाशित
और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी
या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस
संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 283 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1979 में प्रदर्शित फिल्म
‘मीरा’ से राग आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा
था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली के पहले प्रश्न
का सही उत्तर है- राग – मीरा मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायिका – वाणी जयराम।
इस
बार की संगीत पहेली में चार प्रतिभागियों ने प्रश्नों का सही उत्तर देकर
विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। इस बार की पहेली में हमारे नियमित
विजेता प्रतिभागी हैं - चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी। आप सभी चार विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में जारी
हमारी श्रृंखला ‘पावस ऋतु के राग’ की आज यह छठी कड़ी है। आज की कड़ी में आपने
राग जयन्त मल्हार का रसास्वादन किया। इस श्रृंखला में हम वर्षा ऋतु में
गाये-बजाए जाने वाले मल्हार अंग के कुछ रागों को चुन कर आपके लिए हम
प्रस्तुत कर रहे हैं। अगले अंक में हम आपको पावस ऋतु में ही गायी जाने वाली
उपशास्त्रीय और लोक सगीत में समान रूप से प्रचलित संगीत शैली के
कुछ उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी, हमें
लिखिए। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता
नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी कड़ी
में वर्षा ऋतु का ही एक राग प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला के लिए आप अपने
सुझाव या फरमाइश ऊपर दिये गए ई-मेल पते पर शीघ्र भेजिए। हम आपकी फरमाइश
पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ
प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम
स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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