स्वरगोष्ठी – 284 में आज
पावस ऋतु के राग – 5 : पण्डित रविशंकर की अनूठी रचना
‘बादल देख डरी...’ और ‘छाए बदरा कारे कारे...’
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जाने-माने
गीतकार गुलज़ार को मीरा के जीवन पर एक फिल्म बनाने का प्रस्ताव मिला।
मीराबाई की मुख्य भूमिका में अभिनेत्री हेमामालिनी का और संगीत निर्देशन के
लिए लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का चुनाव पहले ही हो चुका था। फ़िल्म की
स्क्रिप्ट तैयार हो जाने के बाद गुलज़ार ने सिटिंग रखी फ़िल्म के संगीतकार
लक्ष्मी-प्यारे के साथ। मीराबाई द्वारा लिखी बेशुमार भजनों की चर्चा करते
हुए अन्त में कुल 12 भजन छाँट लिए गये जो फ़िल्म में रखे जाने थे। फ़िल्म के
निर्माता ने व्यावसायिक पत्रिकाओं में विज्ञापन प्रकाशित कर दिया - 'आज की
मीरा' (लता मंगेशकर) 'मीरा' की मुहूर्त शॉट में क्लैप करेंगी। गुलज़ार ने
पहला भजन "मेरे तो गिरिधर गोपाल..." को सबसे पहले फ़िल्माने की
तैयारी भी कर ली। लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने भजन कम्पोज़ किया और लता जी से
सम्पर्क किया रेकॉर्डिंग के लिए। लक्ष्मी-प्यारे जानते थे कि लता जी ना
नहीं करेंगी। पर उनके सर पे बिजली आ गिरी जब लता जी ने इसे गाने से इन्कार
कर दिया। लता जी के अनुसार अभी हाल ही में उन्होंने अपने भाई हृदयनाथ
मंगेशकर के लिए मीरा भजनों का एक ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम रेकॉर्ड किया है, इसलिए
दोबारा किसी कमर्शियल फ़िल्म के लिए वही भजन नहीं गा सकती। लता जी किसी
विवाद में नहीं पड़ना चाहती थीं। मसला इतना नाज़ुक था कि ना तो गुलज़ार लता जी
से इस पर बहस कर सकते थे और एल.पी. का तो सवाल ही नहीं था। हुआ यूँ कि लता
जी के ना कहने पर एल. पी ने भी फ़िल्म में संगीत देने से मना कर दिया।
उन्हे लगा कि कहीं लता जी उनसे नाराज़ हो गईं और भविष्य में उनके गीत गाने
से मना कर देंगी तो वो बरबाद हो जायेंगे। ख़ैर, लता जी के पीछे हट जाने के
बाद गुलज़ार ने आशा भोसले से अनुरोध किया। पर आशा जी ने भी यह कहते हुए मना
कर दिया कि जहाँ देवता ने पाँव रखे हों, वहाँ फिर मनुष्य पाँव नहीं रखते।
अब 'मीरा' की टीम डर गई। न लता है, न आशा, न एल.पी.। गुलज़ार अगर चाहते तो
पंचम को संगीतकार बनने के लिए अनुरोध कर सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं
किया। लता और आशा के गुलज़ार को मना करने पर पंचम वैसे ही शर्मिन्दा थे,
गुलज़ार उन्हें और ज़्यादा शर्मिन्दा नहीं करना चाहते थे। और इस तरह से लता,
आशा, एल.पी, पंचम - ये दिग्गज इस फ़िल्म से बहुत दूर हो गये।
गुलज़ार
ने हार नहीं मानी और सोचने लगे कि ऐसा कौन संगीतकार है जो अपने संगीत के
दम पर लता और आशा के बिना भी फ़िल्म के गीतों को सही न्याय और स्तर दिला
सकता है! और तभी उन्हें पण्डित रविशंकर का नाम याद आया। पण्डित जी उस समय
न्यूयॉर्क में थे; उनसे फोन पर सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि वो
सितम्बर-अक्तूबर में भारत आएँगे और आने के बाद स्क्रिप्ट पढ़ कर अपना फ़ैसला
सुनायेंगे। वह जून का महीना था और गुलज़ार इतने दिनों तक इन्तज़ार नहीं कर
सकते थे। इसलिए उन्होंने अमरीका का टिकट कटवाया और पहुँच गये पण्डित जी के
पास। यह गुलज़ार साहब की पहली अमरीका यात्रा थी। पण्डित जी को स्क्रिप्ट
पसन्द आई, पर उस पर काम वो सितम्बर से ही शुरू कर पायेंगे, ऐसा उन्होंने
कहा। लेकिन गुलज़ार साहब के फिर से अनुरोध करने पर वो अमरीका में रहते हुए
ही धुनों पर काम करने को तैयार हो गये। अभी भी पण्डित जी को थोड़ी सी
हिचकिचाहट थी क्योंकि उन्होंने भी लता मंगेशकर वाले विवाद की चर्चा सुनी
थी। संयोग से जब गुलज़ार पण्डित जी से मिलने अमरीका गये, उन दिनों लता जी भी
वहीं थीं। गुलज़ार साहब और पण्डित जी ने लता जी को फ़ोन किया और उन्हें सब
कुछ बताया तो लता जी ने उनसे कहा कि उन्हें फ़िल्म 'मीरा' के बनने से कोई
परेशानी नहीं है, बस वो ख़ुद इसमें शामिल नहीं होना चाहती।
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राग मीरा मल्हार : ‘बादल देख डरी...’ : वाणी जयराम : संगीत – पं. रविशंकर : फिल्म – मीरा
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रामदासी मल्हार : ‘छाए बदरा कारे कारे...’ : उस्ताद अमीर खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 284वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित गीत का अंश
सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों
के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 290वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने
के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की चौथी
श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन का आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – इस गीत में कण्ठ-स्वर को पहचानिए और हमे इस गायिका का नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 24 सितम्बर, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 286वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 282 की संगीत पहेली में हमने आपको 1967 में प्रदर्शित फिल्म
‘रामराज्य’ से एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा
था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- राग – सूर मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है – ताल – तीनताल तथा तीसरे प्रश्न का उत्तर है- स्वर – लता मंगेशकर।
इस
बार की पहेली में तीन प्रतिभागियों ने सही उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव
प्राप्त किया है। पहेली का सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं - वोरहीज,
न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और पेंसिलवेनिया अमेरिका से विजया राजकोटिया। इन सभी विजेताओं ने दो-दो अंक अर्जित किये है। सभी विजेता प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में हमारी
श्रृंखला ‘पावस ऋतु के राग’ जारी है। आज के अंक में आपने राग मीरा की
मल्हार और रामदासी मल्हार का रसास्वादन किया। श्रृंखला के अगले अंक में हम
पावस ऋतु के एक अन्य राग का परिचय प्राप्त करेंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक
स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते
है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। हमारी अगली
श्रृंखला के लिए आप अपने सुझाव हमे भेज सकते हैं। श्रृंखला “पावस ऋतु के
राग” के लिए आप अपने सुझाव या फरमाइश ऊपर दिये गए ई-मेल पते पर शीघ्र
भेजिए। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी
यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक
के साथ प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का
हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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