"तुम जो आओ तो प्यार आ जाए...", कैसा कम्युनिकेशन गैप हुआ था गीतकार योगेश और संगीतकार रॉबिन बनर्जी के बीच?
एक गीत सौ कहानियाँ - 92
'तुम जो आओ तो प्यार आ जाए ...'
रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना
रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 92-वीं कड़ी में आज जानिए 1962 की फ़िल्म ’सखी रॉबिन’ के मशहूर गीत "तुम जो आओ तो प्यार आ जाए..." के बारे में जिसे मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर ने गाया था। बोल योगेश के और संगीत रॉबिन बनर्जी का। गीतकार योगेश |
रॉबिन बनर्जी का शुमार कमचर्चित संगीतकारों में होता है। 50 के दशक के अन्त से लेकर 70 के दशक के मध्य तक वो सक्रीय थे फ़िल्म जगत में। लेकिन अधिकतर स्टण्ट फ़िल्मों में संगीत देने का ही उन्हें मौक़े मिले, जिस वजह से वो कभी भी पहली श्रेणी के संगीतकारों में शामिल नहीं हो सके। संगीत देने के साथ साथ वो एक अच्छे गायक भी रहे। उनके संगीत से सजी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं "तुम जो आओ तो प्यार आ जाए" (’सखी रॉबिन’, 1962), "देश का प्यारा सबका दुलारा" (’मासूम’, 1960, "दग़ाबाज़ क्यों तूने" (’वज़िर-ए-आज़म’, 1961), "आँखों आँखों में" ('Marvel Man', 1964) आदि। गायक के रूप में उनके कुछ परिचित गानें हैं "इधर तो आ" (’Tarzan And Kingkong' 1965), "ये नशा क्या हुआ है" (’फिर आया तूफ़ान’, 1973) और दो गीत 1964 की फ़िल्म ’हुकुम का इक्का’ के - "चोरी चोरी गली मोरी" और "किया है हुस्न को बदनाम"। उनके करीअर का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत वही है जो योगेश का लिखा पहला गीत है, यानी कि फ़िल्म ’सखी रॉबिन’ का "तुम जो आओ तो प्यार आ जाए, ज़िन्दगी में बहार आ जाए"। इसे मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर ने गाया था। 60 के दशक में कम बजट की फ़िल्मों के निर्माताओं और संगीतकारों के लिए लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ें पाना ख़्वाब समान हुआ करता था। मन्ना डे की भी यह नाराज़गी रही कि बड़ी बजट की फ़िल्मों में उन्हें केवल शास्त्रीय राग आधारित गीत गाने के लिए ही बुलवाए जाते या फिर किसी बूढ़े किरदार पर फ़िल्माये जाने वाले गीत के लिए। लेकिन उन्हें कम बजट की फ़िल्मों में नायक पर फ़िल्माए जाने वाले बहुत से गीत मिले और यह गीत उन्हीं में से एक है।
उधर गायिकाओं में सुमन कल्याणपुर को ’ग़रीबों की लता’ कहा जाता था। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि रॉबिन
मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर |
और अब इस गीत को सुनते हैं जो रंजन और शालिनी पर फ़िल्माया गया था।
अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर।
आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
Comments