Skip to main content

सूर मल्हार : SWARGOSHTHI – 283 : SUR MALHAR




स्वरगोष्ठी – 283 में आज


पावस ऋतु के राग – 4 : पण्डित भीमसेन जोशी से सुनिए सूर मल्हार


“बादरवा गरजत आए...” और “बादरवा बरसन लागी...”




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला – “पावस ऋतु के राग” की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आपको स्वरों के माध्यम से बादलों की उमड़-घुमड़, बिजली की कड़क और रिमझिम फुहारों में भींगने के लिए आमंत्रित करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। इस श्रृंखला की चौथी कड़ी में आज हम राग गौड़ मल्हार पर चर्चा करेंगे। आज की कड़ी में हम आपको पहले फिल्म संगीतकार वसन्त देसाई का स्वरबद्ध किया, राग सूर मल्हार पर आधारित फिल्म ‘रामराज्य’ का एक गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे। इसके बाद राग का वास्तविक स्वरूप उपस्थित करने के लिए सुविख्यात गायक पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में हम इस राग के दो खयाल रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे, जिसके बोल हैं- ‘बादरवा गरजत आए...’ और ‘बादरवा बरसन लागी...’।


ल्हार अंग के रागों की श्रृंखला में कुछ राग अपने युग के महान संगीतज्ञों, कवियों के नाम पर प्रचलित है। ऐसा ही एक उल्लेखनीय राग है- सूर मल्हार। ऐसी मान्यता है कि इस राग की रचना हिन्दी के भक्त कवि सूरदास ने की थी। इस ऋतु प्रधान राग में निबद्ध रचनाओं में पावस के सजीव चित्रण का गुण तो होता ही है, नायिका के विरह के भाव को सम्प्रेषित करने की क्षमता भी होती है। राग सूर मल्हार काफी थाट का राग माना जाता है। इसकी जाति औडव-षाडव होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छः स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। यह उत्तरांग प्रधान राग है। राग सूर मल्हार में दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत स्वरों का तथा अवरोह में गान्धार स्वर का प्रयोग वर्जित होता है।

फिल्मी संगीतकारों ने वर्षा ऋतु के इस राग सूर मल्हार पर आधारित एकाध गीत ही रचे हैं, जिसमें वर्षा ऋतु के अनुकूल भावों की अभिव्यक्ति हो। संगीतकार वसन्त देसाई का संगीतबद्ध किया एक कर्णप्रिय गीत हमे अवश्य उपलब्ध हुआ। फिल्म संगीतकारों में वसन्त देसाई एक ऐसे संगीतकार रहे हैं जिनकी रचनाओं में रागदारी संगीत के प्रति लगाव और उनकी प्रतिबद्धता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। मल्हार अंग के रागों के प्रति उनका लगाव उनकी अन्तिम फिल्म ‘शक’ तक निरन्तर बना रहा। मल्हार अंग के रागों पर संगीतकार वसन्त देसाई ने अनेक फिल्मी गीतों की रचना की है। उनके द्वारा संगीतबद्ध राग मियाँ मल्हार में स्वरबद्ध ‘गुड्डी’ का गीत -'बोले रे पपीहरा...' तो बेहद लोकप्रिय है। आज के अंक में हम राग सूर मल्हार के स्वरों में पिरोया उनका एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। 1967 में प्रदर्शित फिल्म ‘रामराज्य’ का यह गीत है, जिसे भरत व्यास ने लिखा, वसन्त देसाई ने संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर ने स्वर दिया है।


राग सूर मल्हार : ‘डर लागे गरजे बदरवा..’ : लता मंगेशकर : फिल्म रामराज्य



इस राग की कुछ अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए जाने-माने इसराज और मयूर वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने बताया कि सूर मल्हार का मुख्य अंग है- सा [म]रे प म, नी(कोमल) म प, नी(कोमल)ध प, म रे सा होता है। राग के गायन-वादन में यदि सारंग झलकने लगे तो नी(कोमल) ध s म प नी(कोमल) ध s प स्वरों का प्रयोग करने से सारंग तिरोहित हो जाता है। श्री मिश्र के अनुसार सारंग के भाव में मेघ मल्हारांश उद्वेग के चपल और गम्भीर ओज से युक्त भाव में राग देस के अंश के विरह भाव के मिश्रण से कसक-युक्त उल्लास में वेदना के मिश्रण से नये रस-भाव का सृजन होता है। अब आप पण्डित भीमसेन जोशी से सुनिए, राग सूर मल्हार में निबद्ध दो मोहक खयाल रचनाएँ। मध्यलय की रचना एकताल में है, जिसके बोल हैं- ‘बादरवा गरजत आए...’ और इसके बाद द्रुत तीनताल की बन्दिश के बोल हैं- ‘बादरवा बरसन लागी...’। आप इन खयाल रचनाओं को सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग सूर मल्हार : ‘बादरवा गरजत आए...’ और ‘बादरवा बरसन लागी...’ : पण्डित भीमसेन जोशी





संगीत पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 283वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको लगभग चार दशक की फिल्म से लिये गए एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 290वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के चौथे सत्र (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत के इस अंश को सुन कर आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?

2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – क्या आप गीत की गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें गायिका का नाम बताइए।

आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 17 सितम्बर, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम ‘स्वरगोष्ठी’ के 285वें अंक में प्रकाशित किया जाएगा। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता 


‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 281 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म ‘मल्हार’ से राग आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – गौड़ मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायिका – लता मंगेशकर

इस बार की संगीत पहेली में पाँच प्रतिभागियों ने प्रश्नों का सही उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। इस बार की पहेली में हमारे नियमित विजेता प्रतिभागी हैं - हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी। आप सभी पाँच विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


तीसरे सत्र के विजेता


इस वर्ष की तीसरे सत्र की पहेली (271 से 280वें अंक) में प्राप्तांकों की गणना के बाद सर्वाधिक 20 अंक अर्जित कर तीन प्रतिभागियों - पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है। 18 अंक प्राप्त कर चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल ने दूसरा, और 16 अंक अर्जित कर हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने इस सत्र में तीसरा स्थान प्राप्त किया है। सत्र के सभी विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात


मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में जारी हमारी श्रृंखला ‘पावस ऋतु के राग’ की आज यह दूसरी कड़ी है। आज की कड़ी में आपने राग सूर मल्हार का रसास्वादन किया। इस श्रृंखला में हम वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले मल्हार अंग के कुछ रागों को चुन कर आपके लिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी, हमें लिखिए। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी कड़ी में वर्षा ऋतु का ही एक राग प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला के लिए आप अपने सुझाव या फरमाइश ऊपर दिये गए ई-मेल पते पर शीघ्र भेजिए। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


 


Comments

सारगर्भित पोस्ट !! बहुमूल्य जानकारी !!

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट