"तू ही सागर तू ही किनारा...", जानिए कि कैसे एक "ग़ैर फ़िल्मी" भक्ति गीत ने सुलक्षणा पण्डित को दिलाया फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड
एक गीत सौ कहानियाँ - 91
'तू ही सागर तू ही किनारा ...'
हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 91-वीं कड़ी में आज जानिए 1974 की फ़िल्म ’संकल्प’ की भक्ति रचना "तू ही सागर तू ही किनारा..." के बारे में जिसे सुलक्षणा पंडित ने गाया था। बोल कैफ़ी आज़मी के और संगीत ख़य्याम का।
सिंगिंग् स्टार्स की आख़िरी पीढ़ी में शायद दो ही नाम आते हैं - एक सलमा आग़ा और दूसरा सुलक्षणा पंडित।
ख़ूबसूरती और आवाज़, दोनों में सुलक्षणा पंडित भीड़ से अलग थीं। हालाँकि सफलता उनसे दूर दूर ही रही, पर उन्होंने जितना काम किया, अच्छा काम किया, स्तरीय काम किया। उनके गाए बहुत से फ़िल्मी गीत मशहूर हुए थे उस ज़माने में जब लता और आशा चोटी पर विराजमान थीं। 1974 की फ़िल्म ’संकल्प’ के गीत "तू ही सागर तू ही किनारा, ढूंढ़ता है तू किसका सहारा" के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार मिला था। आज इसी गीत के बनने की कहानी प्रस्तुत है सुलक्षणा जी के ही शब्दों में जिसका विस्तृत वर्णन उन्होंने ’विविध भारती’ के ’उजाले उनकी यादों के’ कार्यक्रम के लिए वरिष्ठ उद्घोषक कमल शर्मा से किया था। "मैं यह कहूँगी कि गाना एक ऐसी चीज़ है जो हम माइक के सामने गाते हैं। हम समझते हैं कि म्युज़िक डिरेक्टर एक प्रोड्युसर भी होता है एक हिसाब से, क्योंकि वो अपने बच्चे को सिंगर को सौंप देता है। और उसका अंजाम गायक को देना चाहिए। ख़य्याम साहब एक फ़िल्म कर रहे थे और मैं चाहती थी कि ख़य्याम साहब कोई मुझे गाना दे, तो अक्सर उनके यहाँ मैं जाया करती थी। एक भजन है उनका जो मैंने गाया है, दो भजन हैं, वो आज तक सुबह 6 बजे किसी भी चैनल में आ जाते हैं। "प्रभु तुम अन्तर्यामी, दया करो दया करो स्वामी...", यह गाया था मैंने ख़य्याम साहब के साथ।" सुलक्षणा जी की बातों को आगे बढ़ाने से पहले यह बता दें कि उनका गाया यह ग़ैर-फ़िल्मी भक्ति गीत उस समय बहुत लोकप्रिय हो गया था और रेडियो पर भक्ति गीतों के कार्यक्रमों में अक्सर बजा करता था।
अब आगे की दासतान सुलक्षणा जी के शब्दों में - "प्रभु तुम अन्तर्यामी, दया करो दया करो स्वामी..., यह गाया
था मैंने ख़य्याम साहब के साथ। इस गाने के दौरान ख़य्याम साहब की एक और फ़िल्म भी चल रही थी और उस फ़िल्म के निर्देशक थे रमेश सहगल। ये वोही रमेश स्हगल थे जिन्होंने सुनिल दत्त साहब को ’रेल्वे प्लैटफ़ॉर्म’ फ़िल्म में पहली बार इन्ट्रोड्युस किया था। जब मैंने "प्रभु तुम अन्तर्यामी" गाया, तो रमेश सहगल साहब ने कहा कि यह लड़की जो है, मुझे ये ही चाहिए इस फ़िल्म में, मैं किसी को नहीं लेने वाला। मैं हैरान रह गई। जैसे विजेता ने ऐक्टिंग् सीखी, शुरुआत उसकी ऐसे हुई, लेकिन मैंने कोई ऐक्टिंग् नहीं सीखी, तो यह जो बात है, यह joint हो गई शबाना जी से और मेरे से। वो चाहते थे या तो शबाना आज़मी हो या मैं होऊँ। मैंने शबाना जी से रीक्वेस्ट किया कि आप यह कर दीजिए क्योंकि मैं ऐक्टिंग् बिलकुल नहीं जानती हूँ। बोले तुम नहीं जानती हो> झूठ बोलती हो, जो इंसान के अन्दर गाना होता है, वही तो ऐक्टिंग् होती है। मैं देखती रह गई कि क्या कहा है इन्होंने। फिर खैयाम साहब ने कहा कि कर ही लो बेटा, क्या फ़र्क पड़ता है, कर लो अगर वो चाहते हैं तो। मैंने वह फ़िल्म साइन की।" यह फ़िल्म थी ’संकल्प’ जिसमें रमेश सहगल ने सुलक्षणा पंडित को एक पुजारिन के किरदार के लिए चुना और उन्हीं पर उनका गाया यह भक्ति गीत फ़िल्माया। इस गीत के लिए फ़िल्मफ़ेअर के अलावा तानसेन पुरस्कार और स्वामी हरिदास पुरस्कार से भी सुलक्षणा जी को सम्मानित किया गया था। "तू ही सागर, तू ही किनारा", इस गीत को फ़िल्म में तीन भागों में रखा गया है, क्रम से 3:10, 5:32 और 3:05 मिनट की अवधि के। यह भी उल्लेखनीय बात है कि इस फ़िल्म में केवल यही एक गीत गायिका की आवाज़ में है। फ़िल्म की नायिका या किसी अन्य अभिनेत्री पर कोई भी गीत नहीं है। बाक़ी के गीत मुकेश और महेन्द्र कपूर ने गाए हैं।
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आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
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