स्वरगोष्ठी – 272 में आज
मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 5 : मन्ना डे और लता के दिव्य स्वर में ललित
‘प्रीतम दरस दिखाओ...’
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की पाँचवीं कड़ी में मैं
कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का
हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म
संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार
सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित
संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के
प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा और
फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी
में आज हम राग ललित के स्वरों में पिरोये गए फिल्म ‘चाचा जिन्दाबाद’ गीत का
रसास्वादन कराएँगे। राग आधारित गीतों को स्वर देने में दक्ष पार्श्वगायक
मन्ना डे और लता मंगेशकर के युगल स्वरो में यह गीत है। संगीतकार मदन मोहन
द्वारा राग ललित के स्वर में निबद्ध फिल्म ‘चाचा ज़िन्दाबाद’ के इस गीत के
साथ ही राग का यथार्थ स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम विश्वविख्यात शहनाई
वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की राग ललित की एक मनभावन रचना भी प्रस्तुत कर
रहे हैं।
मदन
मोहन के संगीत सफ़र के शुरुआती दिनों के बारे में हमने पिछले अंक में ज़िक्र
किया था। आइए कहानी को वहीं से आगे बढ़ाते हैं। 1947 में दिल्ली में
आकाशवाणी की नौकरी को छोड़ कर मदन मोहन मायानगरी बम्बई आ पहुँचे। उन्हें
गाने का बहुत शौक़ था और वो गाते भी बहुत अच्छा थे। 1947 में ही उन्हें
बहज़ाद लखनवी की लिखी दो ग़ज़लें गाने और रेकॉर्ड करवाने का मौक़ा मिल गया। ये
ग़ज़लें थीं "आने लगा है कोई नज़र जलवा गर मुझे..." और "इस राज़ को दुनिया जानती है..."।
इसके अगले साल, 1948 में उन्हें दो और प्राइवेट ग़ज़ल रेकॉर्ड करने का अवसर
मिला जिनके शायर थे दीवान शरार। मदन मोहन की आवाज़ में ये दो ग़ज़लें थीं "वो आए तो महफ़िल में इठलाते हुए आए..." और "दुनिया मुझे कहती है कि मैं तुझको भुला दूँ..."।
प्राइवेट रेकॉर्ड से सीधे फ़िल्मी गीत रेकॉर्ड करने के लिए उन्हें ज़्यादा
इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। उसी साल लता मंगेशकर के साथ मास्टर ग़ुलाम हैदर के
संगीत निर्देशन में 1948 की फ़िल्म ’शहीद’ में एक भाई-बहन का गीत गाने का
मौक़ा मिला जिसके बोल थे "पिंजरे में बुलबुल बोले, मेरा छोटा सा दिल डोले..."।
लेकिन बदक़िस्मती से ना तो यह गीत फ़िल्म में रखा गया और ना ही इसे
ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड पर जारी किया गया। फ़िल्म संगीत संसार में उनकी एन्ट्री
होते होते रह गई। लेकिन जल्दी ही उन्होंने संगीतकार सचिन देव बर्मन के
सहायक के रूप में काम करना शुरू कर दिया फ़िल्म ’दो भाई’ में। 1948-49 में
उन्होंने संगीतकार श्यामसुन्दर को असिस्ट किया फ़िल्म ’ऐक्ट्रेस’ और
’निर्दोष’ में। मदन मोहन के पिता राय बहादुर चुन्नीलाल के ’बॉम्बे टॉकीज़’
और फिर ’फ़िल्मिस्तान’ के साथ सम्बन्ध होने की वजह से फ़िल्म जगत में दाख़िल
होने में उन्हें कुछ हद तक मदद मिली। पर मदन मोहन ने इस रिश्ते के बलबूते
कभी कुछ हासिल करने की कोशिश नहीं की। कारण यह था कि उनके पिता ने दूसरी
विवाह कर लिया था, जिससे वो अपने परिवार से दूर हो गए थे। इस पारिवारिक
मनमुटाव की वजह से मदन मोहन ने कभी अपने पिता के नाम का सहारा नहीं लिया।
बतौर स्वतन्त्र संगीतकार मदन मोहन को उनका पहला ब्रेक कैसे मिला, यह कहानी
हम आपको बतायेंगे इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।
अब
आते हैं आज के गीत पर। आज का राग है ललित। इस राग के लिए मदन मोहन के जिस
गीत को हमने चुना है, वह है फ़िल्म ’चाचा ज़िन्दाबाद’ से। लता मंगेशकर और
मन्ना डे की युगल आवाज़ों में "प्रीतम दरस दिखाओ..." शास्त्रीय संगीत
पर आधारित बनने वाले फ़िल्मी गीतों में विशेष स्थान रखता है। 1959 में
निर्मित इस फ़िल्म का गीत-संगीत बिल्कुल असाधारण था। एक तरफ़ "बैरन नींद ना आए..." और "प्रीतम दरस दिखाओ..." जैसी राग आधारित रचनाएँ थीं तो दूसरी तरफ़ Rock 'N' Roll आधारित किशोर कुमार का गाया "ऐ हसीनों, नाज़नीनों..."
जैसा गीत था। बदक़िस्मती से फ़िल्म फ़्लॉप हो गई और इसकी कब्र में इसके गानें
भी चले गए। पर अच्छी बात यह है कि शास्त्रीय संगीत आधारित फ़िल्म के दोनों
गीतों को कम ही सही पर मकबूलियत ज़रूर मिली थी। "प्रीतम आन मिलो..."
गीत के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। फ़िल्म में एक सिचुएशन ऐसी थी कि
एक लड़की अपने गुरु से शास्त्रीय संगीत सीख रही है। इस सिचुएशन पर मदन मोहन
ने राजेन्द्र कृष्ण से "प्रीतम दरस दिखाओ..." गीत लिखवा कर राग ललित
में उसे स्वरबद्ध किया। उनकी दिली ख़्वाहिश थी कि इस गीत को उस्ताद अमीर
ख़ाँ साहब और लता मंगेशकर गाए। लेकिन जब लता जी के कानों में यह ख़बर पहुँची
कि मदन जी उनके साथ उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब को गवाने की सोच रहे हैं, वो पीछे
हो गईं। उन्होंने निर्माता ओम प्रकाश और मदन मोहन से कहा कि उन्हें इस गीत
के लिए माफ़ कर दिया जाए और किसी अन्य गायिका को ख़ाँ साहब के साथ गवाया
जाए। मदन मोहन अजीब स्थिति में फँस गए। वो लता जी के सिवाय किसी और से यह
गीत गवाने की सोच नहीं सकते थे, और दूसरी तरफ़ ख़ाँ साहब को गवाने की भी उनकी
तीव्र इच्छा थी। जब उन्होंने लता जी से कारण पूछा तो लता जी ने उन्हें कहा
कि वो इतने बड़े शास्त्रीय गायक के साथ गाने में बहुत नर्वस फ़ील करेंगी
जिनकी वो बहुत ज़्यादा इज़्ज़त करती हैं। लता जी ने भले उस समय यह कारण बताया
हो, पर कारण कुछ और भी थे। वो नहीं चाहती थीं कि उनके साथ ख़ाँ साहब की
तुलनात्मक विश्लेषण लोग करे। दूसरा, एक बार कलकत्ता में बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ
साहब के साथ स्टेज शो में लता जी बहुत शर्मनाक स्थिति में पड़ गई थीं जब
वहाँ मौजूद दर्शकों ने बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब से ज़्यादा लता जी को तवज्जो
देते हुए शोर मचाने लगे थे। ख़ाँ साहब की लता जी बहुत इज़्ज़त करती थीं, पर उस
घटना ने उन्हें बेहद लज्जित कर दिया था। लता जी ने क़सम खा लिया कि इसके
बाद शास्त्रीय गायकों के साथ कभी शोज़ नहीं करेंगी। ख़ैर, "प्रीतम दरस दिखाओ...” को अन्त में मन्ना डे और लता जी ने गाया। लीजिए, अब आप राग ललित के स्वरों में यह प्यारा युगल गीत सुनिए।
राग ललित : ‘प्रीतम दरस दिखाओ...’ : मन्ना डे और लता मंगेशकर : फिल्म – चाचा ज़िन्दाबाद
आज के अंक में अब हम आपसे राग ललित की संरचना पर कुछ चर्चा कर रहे हैं। राग ललित, भारतीय संगीत का एक अत्यन्त मधुर राग है। राग ललित पूर्वी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में कोमल ऋषभ, कोमल धैवत तथा दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह और अवरोह दोनों में पंचम स्वर पूर्णतः वर्जित होता है। इसीलिए इस राग की जाति षाड़व-षाड़व होती है। अर्थात, राग के आरोह और अवरोह में 6-6 स्वरों का प्रयोग होता है। पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने राग ललित में शुद्ध धैवत के प्रयोग को माना है। उनके अनुसार यह राग मारवा थाट के अन्तर्गत माना जाता है। राग ललित की जो स्वर-संरचना है उसके अनुसार यह राग किसी भी थाट के अनुकूल नहीं है। मारवा थाट के स्वरों से राग ललित के स्वर बिलकुल मेल नहीं खाते। राग ललित में शुद्ध मध्यम स्वर बहुत प्रबल है और यह राग का वादी स्वर भी है। इसके विपरीत मारवा में शुद्ध मध्यम सर्वथा वर्जित होता है। राग का वादी स्वर शुद्ध मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। आपको राग ललित का उदाहरण सुनवाने के लिए हमने विश्वविख्यात शहनाईनवाज उस्ताद बिस्मिलाह खाँ की शहनाई को चुना है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ अपनी शहनाई पर राग ललित में तीनताल में निबद्ध एक मोहक रचना प्रस्तुत कर रहे हैं। लीजिए, आप भी इस मधुर शहनाई पर राग ललित का रसास्वादन कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग ललित : शहनाई पर तीनताल की गत : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 272वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक बार पुनः संगीतकार मदन
मोहन के संगीत से सजे एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर
आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के 280वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी श्रृंखला
(सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन का आपको किस राग का आभास हो रहा है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत की गायिका को पहचान सकते हैं? गायिका का नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 4 जून, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 274वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 270 की संगीत पहेली में हमने आपको मदन मोहन के संगीत निर्देशन में
बनी और 1961 में प्रदर्शित फिल्म ‘संजोग’ से एक राग आधारित गीत का एक अंश
सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर
देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – कल्याण अथवा यमन, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है – ताल – दादरा तथा तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक – मुकेश।
इस
बार की पहेली में चार प्रतिभागियों ने सही उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव
प्राप्त किया है। सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं - वोरहीज, न्यूजर्सी
से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, जिन्होने दो-दो अंक अर्जित किये है। सभी चारो विजेता प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
पिछली श्रृंखला के विजेता
इस
वर्ष की दूसरी श्रृंखला की पहेली (261 से 270वें अंक) में प्राप्तांकों की
गणना के बाद सर्वाधिक 20 अंक अर्जित कर दो प्रतिभागियों - पेंसिलवेनिया,
अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है। 18 अंक प्राप्त कर वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया ने दूसरा, 16 अंक पाकर चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल ने तीसरा और 15 अंक अर्जित कर हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने श्रृंखला में चौथा स्थान प्राप्त किया है। श्रृंखला के सभी विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में जारी
हमारी श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की आज की कड़ी में आपने
राग ललित का परिचय प्राप्त किया। इस श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार मदन
मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को चुन कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।
श्रृंखला के अगले अंक में हम संगीतकार मदन मोहन के एक अन्य राग आधारित गीत
के साथ प्रस्तुत होंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे
पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार
ही आगामी विषय निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप भी अपने सुझाव और
फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास
करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले
रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप
सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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