Skip to main content

राग भीमपलासी : SWARGOSHTHI – 269 : RAG BHIMPALASI






स्वरगोष्ठी – 269 में आज

मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 2 : लता और मदन भैया का साथ

‘नैनों में बदरा छाए बिजली सी चमके हाय ऐसे में सजन मोहे गरवा लगाए...’




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर पिछले अंक से शुरू हुई हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का भी सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की और फिर उस राग की जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की दूसरी कड़ी में आज हमने राग भीमपलासी में उनका स्वरबद्ध किया, फिल्म ‘मेरा साया’ का एक गीत चुना है। इस गीत को पार्श्वगायिका लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। इस गीत को चुनने का एक कारण यह भी है कि फिल्म जगत में मदन मोहन और लता मंगेशकर की भाई-बहन की जोड़ी विख्यात रही है। इस जोड़ी ने संगीत-प्रेमियों को अनेक मधुर गीतों का उपहार दिया है। आज हम राग भीमपलासी पर आधारित इसी जोड़ी का तैयार किया एक गीत फिल्म ‘मेरा साया’ से चुन कर प्रस्तुत कर रहे हैं। इस गीत के साथ ही राग का स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे के स्वर में राग भीमपलासी की एक बन्दिश भी प्रस्तुत कर रहे हैं। 



फ़िल्म-संगीत जगत में जब जोड़ियों की बात चलती है, या यूँ कहें कि जब गायक-संगीतकार जोड़ियों की बात की जाती है, तब लता मंगेशकर और मदन मोहन की जोड़ी का उल्लेख अवश्य होता है। इस जोड़ी ने एक से एक लाजवाब शास्त्रीय रचनाएँ हमें दी हैं, फिर चाहे वो शुद्ध हिन्दी के बोलों पर आधारित गीत हो या फिर ग़ज़लनुमा अन्दाज़ की कोई रचना। आज हम जिस रचना की चर्चा कर रहे हैं, वह 1964 की फ़िल्म ’मेरा साया’ से लिया गया है। राग भीमपलासी पर आधारित यह गीत है "नैनों में बदरा छाये, बिजली सी चमके हाय..."। लता मंगेशकर और मदन मोहन की जोड़ी की यह एक बेहद महत्वपूर्ण रचना है जिसे जितनी बार भी सुनें मन नहीं भरता। क्या बोल, क्या संगीत, क्या गायकी, क्या ऑरकेस्ट्रेशन, हर पहलू अद्वितीय, हर बात कमाल। इस गीत की ख़ास बात यह है कि अगर इसे यूँ ही उपर उपर सुना जाए तो कोई भी इसमें राग ढूँढ़ता रह जाएगा और गीत ख़त्म हो जाएगा, लेकिन बहुत ध्यान से सुनने पर पूरे गीत में भीमपलासी का छाया हुआ वलय महसूस किया जा सकता है। पहली पंक्ति में गान्धार और मध्यम का प्रयोग हुआ है और "ऐसे में बलम मोहे" में कोमल निषाद का खटका है। इसी टुकड़े में भीमपलासी राग से बाहर जाते हुए मदन मोहन ने कोमल धैवत का गज़ब का प्रयोग किया है।

मदन मोहन का संगीत जितना कोमल रहा है, उनकी बाहरी शख़्सियत उतनी ही कठोर थी। वो अपने अनुशासन में इतने दृढ़ थे कि वो अपने साज़िन्दों के बजाये हुए टुकड़े को गीत से हटवा तक देते थे अगर वो ठीक न बजाए या फिर अगर रेकॉर्डिंग पर वो देर से पहुँचे। ऐसा ही एक क़िस्सा हुआ "नैनों में बदरा छाए..." की रेकॉर्डिंग पर। इस गीत के रिहर्सल हो रहे थे और कुछ साज़िन्दे बार-बार एक जगह पर ग़लत बजा रहे थे, जिस वजह से लता जी को बार-बार गीत गाना पड़ रहा था। मदन जी के धैर्य की सीमा पार हो गई। वो इतने ज़्यादा उत्तेजित हो गए कि स्टुडियो के कन्ट्रोल रूम से रेकॉर्डिंग रूम तक (जहाँ साज़िन्दे बैठे थे) पहुँचने के लिए उन्होंने सामने का शीशा ही तोड़ डाला अपने हाथों से और अपने आप को लहूलुहान कर लिया। साज़िन्दे उनके इस रूप को देख कर घबरा गए। ग़ुस्से से तिलमिलाए हुए मदन मोहन ने हाथ पर पट्टी बाँधने से इनकार कर दिया, जब तक गाना ठीक तरीके से रेकॉर्ड नहीं हो गया। मदन मोहन की रचनाएँ उत्कृष्ट होने के बावजूद पुरस्कार उनसे हमेशा दूर ही रहा करते। 1964 में मदन मोहन को ’वो कौन थी’ के संगीत के लिए फ़िल्मफ़ेयर के लिए नामांकित किया गया, पर पुरस्कार चला गया लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल को ’दोस्ती’ के लिए। 1966 में ’मेरा साया’ के लिए फिर उनका चयन हुआ ’गाइड’ और ’सूरज’ के साथ, पर फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका से मतभेद होने के बाद उनका नाम हटा दिया गया और उसकी जगह ’दो बदन’ फ़िल्म को शामिल कर लिया गया। पुरस्कार शंकर जयकिशन (’सूरज’) को मिला। मदन जी बहुत निराश हुए थे इस घटना से। फ़िल्मफ़ेयर ने भले उनके साथ नाइंसाफ़ी की हो, Cine Music Directors Award उन्हें कई बार प्राप्त हुए जिसका चयन केवल फ़िल्मी संगीतकार ही किया करते थे। जब अन्य संगीतकारों ने "नैनों में बदरा छाये..." गीत के लिए यह पुरस्कार उन्हें दिया, तो उन्होंने सभी संगीतकारों को अपने घर पर रात्रि-भोज पर बुलाया और अपने हाथों से खाना बना कर सभी को बड़े प्यार से खिलाया। यह उनका तरीक़ा था धन्यवाद कहने का। लीजिए, पहले आप यह गीत सुनिए।


राग भीमपलासी : नैनों में बदरा छाए...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – मेरा साया



राग ‘भीमपलासी’ भारतीय संगीत का एक ऐसा राग है, जिसमें भक्ति और श्रृंगार रस की रचनाएँ खिल उठती है। यह औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात आरोह में पाँच स्वर- सा, (कोमल), म, प, नि (कोमल), सां और अवरोह में सात स्वर- सां नि (कोमल), ध, प, म (कोमल), रे, सा प्रयोग किए जाते हैं। इस राग में गान्धार और निषाद कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह काफी थाट का राग है और इसका वादी और संवादी स्वर क्रमशः मध्यम और तार सप्तक का षडज होता है। कभी-कभी वादी स्वर मध्यम के स्थान पर पंचम का प्रयोग भी किया जाता है। भीमपलासी के गायन-वादन का समय दिन का चौथा प्रहर होता है। कर्नाटक संगीत पद्यति में ‘भीमपलासी’ के समतुल्य राग है ‘आभेरी’। ‘भीमपलासी’ एक ऐसा राग है, जिसमें खयाल-तराना से लेकर भजन-ग़ज़ल की रचनाएँ संगीतबद्ध की जाती हैं। श्रृंगार और भक्ति रस की अभिव्यक्ति के लिए यह वास्तव में एक आदर्श राग है। आइए अब हम आपको इसी राग में कण्ठ संगीत का एक मोहक उदाहरण सुनवाते हैं। सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे राग भीमपलासी, तीनताल में निबद्ध एक मोहक बन्दिश प्रस्तुत कर रही हैं। आप इस रचना का रसास्वादन कीजिए और मुझे, आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग भीमपलासी : ‘जा जा रे अपने मन्दिरवा...’ विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे




संगीत पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 269वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको राग आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 270वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इस गीत में किस राग का आभास हो रहा है?

2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – क्या आप गीत के गायक की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए।

आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 14 मई, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 271वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 267 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘देख कबीरा रोया’ से राग आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – रागेश्री या रागेश्वरी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायक – मन्ना डे

इस बार की संगीत पहेली में चार प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों का सही उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। ये विजेता हैं - पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। इन सभी विजेताओं ने दो-दो अंक अर्जित किया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात


मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी नई श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ का शुभारम्भ का रसास्वादन कर रहे हैं। इस श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार मदन मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को चुन कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला के इस अंक में हमने आपसे राग भीमपलासी पर चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नई श्रृंखला के नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।


शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी  
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   



Comments

'ऐसे में बलम मोहे' में ऋषभ का नहीं, कोमल निषाद का खटका है| इसी टुकड़े में भीमपलासी राग से बाहर जाते हुए कोमल धैवत का ग़ज़ब प्रयोग मदन मोहन ने किया है|

क्षमा-सहित
मुकेश गर्ग
त्रुटि इंगित करने के लिए धन्यवाद, मुकेश जी। आपके सुझाव के अनुसार यथास्थान आवश्यक संशोधन कर दिया गया है।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट