स्वरगोष्ठी – 271 में आज
मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 4 : मुकेश और राग यमन के स्वर
‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ...’
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी
श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की चौथी कड़ी में मैं
कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का
हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म
संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार
सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित
संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के
प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा और
फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की चौथी कड़ी में
आज हमने राग कल्याण अथवा यमन के स्वरों पर आधारित मदन मोहन का स्वरबद्ध
किया, फिल्म ‘संजोग’ का एक गीत चुना है। इस गीत को पार्श्वगायक मुकेश ने
स्वर दिया है। मदन मोहन के स्वरबद्ध बहुत कम गीतों को गायक मुकेश ने स्वर
दिया है। मदन मोहन और मुकेश के इस योग से राग का स्वरूप और गीत का भाव
भरपूर उभरता है। राग कल्याण अथवा यमन पर आधारित इस गीत के साथ ही राग का
यथार्थ स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद राशिद खाँ के
स्वर में इसी राग की एक बन्दिश भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
यह
सच है कि मदन मोहन की अधिकतर रचनाएँ गायिका प्रधान हुआ करती थीं, पुरुष
गायकों को ज़्यादा गीत गाने को नहीं मिलते थे उनकी फ़िल्मों में, और जितने
मिलते थे, उनमें से ज़्यादातर रफ़ी साहब की आवाज़ में होते क्योंकि उनके
कम्पोज़िशन्स और स्टाइल के मुताबिक रफ़ी साहब की आवाज़ ही उन गीतों के लिए
सटीक होती थी। आप शायद यक़ीन न करें कि गायक मुकेश ने अपने पूरे संगीत सफर
में मदन मोहन के लिए मात्र नौ गीत ही गाए हैं। कारण क्या है पता नहीं, पर
शायद यही वजह रही होगी जो अभी हमने कहा। पर यह बताना अत्यन्त आवश्यक है कि
मदन मोहन के करीअर की पहली रचना को स्वर मुकेश ने ही दिया था। यह थी 1950
की फ़िल्म ’आँखें’ का गीत "प्रीत लगा के मैंने यह फल पाया..."। यह
मदन मोहन के संगीत में पहला हिन्दी फ़िल्मी गीत था। आइए आज आपको बतायें कि
इस पहली फ़िल्म तक पहुँचने से पहले मदन मोहन ने क्या-क्या किया। अपने लाहौर
काल में उन्होंने शास्त्रीय संगीत का क ख ग सीखा श्री करतार सिंह से, लेकिन
यह बहुत ही अल्प समय के लिए था। संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा उन्होंने
नहीं ली। 11 वर्ष की आयु में बम्बई में वो आकाशवाणी पर बच्चों के
कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया। लेकिन यहाँ भी संगीत से उनका नाता कुछ
ख़ास नहीं बन सका। 1946 में जब वो कार्यक्रम सहायक के रूप में आकाशवाणी
लखनऊ में कार्यरत हुए, तभी उन्हें ठीक तरह से संगीत के साथ घुलने का मौक़ा
मिला। उन पर पहला प्रभाव पड़ा जद्दनबाई के गाये गीतों का। आगे चलकर बेगम
अख़्तर और बरकत अली ख़ाँ की गायकी से वो मुतासिर हुए। आकाशवाणी में रहने की
वजह से उन्हें अपने समय के नामचीन शास्त्रीय गायकों और वादकों से मिलने और
उनसे संगीत की बारीकियों को सीखने-समझने के बहुत से अवसर मिले जिनका
उन्होंने पूरा-पूरा लाभ उठाया। अनजाने में मदन मोहन ने धुनों की रचना भी
शुरू कर दी छोटे-मोटे रेडियो कार्यक्रमों के लिए। 1947 में उनका तबादला
आकाशवाणी दिल्ली में हो गया, लेकिन उन्हें वहाँ संगीत का वह माहौल नहीं
मिला जो लखनऊ में था। तंग आकर उन्होंने आकाशवाणी की सरकारी नौकरी छोड़ दी और
पहुँच गए मायानगरी बम्बई।
आगे
की दास्तान हम आने वाले अंकों में बतायेंगे, फ़िलहाल बापस मुड़ते हैं मदन
मोहन की पहली फ़िल्म ’आँखें’ की ओर। इसी फ़िल्म में मुकेश ने एक और गीत गाया "हमसे नैन मिलाना बी.ए. पास करके..." जो शमशाद बेगम के साथ गाया हुआ एक युगल गीत था। मुकेश और मदन मोहन की जोड़ी के बाक़ी सात गीत इस प्रकार हैं - "क्या साथ मेरा दोगे तुम प्यार की राहों में..." (फ़िल्म- समुन्दर 1957, लता के साथ), "तुम चल रहे हो हम चल रहे हैं..." (फ़िल्म- दुनिया न माने, 1959, लता के साथ), "हम चल रहे थे वो चल रहे थे..." (फ़िल्म- दुनिया न माने, 1959), "एक मंज़िल राही दो फिर प्यार ना कैसे हो..." (फ़िल्म- संजोग, 1961, लता के साथ), "भूली हुईं यादों मुझे इतना ना सताओ..." (फ़िल्म- संजोग, 1961), "चल चल मेरे दिल प्यार तेरी है मंज़िल..." (फ़िल्म- अकेली मत जइयो, 1963, जॉनी विस्की के साथ), और "इंसानों से क्यों झुकते हो..."
(फ़िल्म- चौकीदार, 1974, रफ़ी और आशा के साथ)। मुकेश - मदन मोहन जोड़ी के
उपर्युक्त गीतों की ओर ध्यान दें तो यह पायेंगे कि फ़िल्म ’संजोग’ के दो
गीतों के अलावा कोई भी गीत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ। ख़ास तौर पर "भूली हुईं यादों..."
गीत सर्वसाधारण के साथ-साथ स्तरीय संगीत की समझ रखने वाले संगीत
विशेषज्ञों को भी बहुत पसन्द आया। राग कल्याण पर आधारित इस गीत की ख़ासियत
यह है कि मुकेश की आवाज़ और अदायगी नैज़ल (nasal) होने की वजह से "न" के
उच्चरण वाले शब्द सुनने में अच्छा लगता है। "हुईं", "यादों", "इतना ना",
"चैन", "रहने", "पास ना" जैसे शब्दों में "न" की ध्वनि होने की वजह से इस
गीत में मुकेश की आवाज़ ही श्रेष्ठ हो सकती थी। इस गीत में दादरा ताल का
प्रयोग हुआ है। लीजिए, अब आप राग कल्याण अर्थात यमन पर आधारित संगीतकार मदन
मोहन का स्वरबद्ध यह गीत सुनिए।
राग कल्याण अथवा यमन : ‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ...’ : मुकेश :फिल्म – संजोग
राग कल्याण अथवा यमन, कल्याण थाट का ही आश्रय राग है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग में मध्यम स्वर तीव्र और शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। राग कल्याण अथवा यमन का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के गायन-वादन का उपयुक्त समय गोधूलि बेला, अर्थात रात्रि के पहले प्रहर का पूर्वार्द्ध काल होता है। इस राग का प्राचीन नाम कल्याण ही मिलता है। मुगल काल में राग का नाम यमन प्रचलित हुआ। वर्तमान में इसका दोनों नाम, कल्याण और यमन, प्रचलित है। यह दोनों नाम एक ही राग के सूचक हैं, किन्तु जब हम ‘यमन कल्याण’ कहते हैं तो यह एक अन्य राग का सूचक हो जाता है। राग यमन कल्याण, राग कल्याण अथवा यमन से भिन्न है। इसमें दोनों मध्यम का प्रयोग होता है, जबकि यमन में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। राग कल्याण अथवा यमन के चलन में अधिकतर मन्द्र सप्तक के निषाद से आरम्भ होता है और जब तीव्र मध्यम से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तब पंचम स्वर को छोड़ देते हैं। राग कल्याण के कुछ प्रचलित प्रकार हैं; पूरिया कल्याण, शुद्ध कल्याण, जैत कल्याण आदि। राग कल्याण गंभीर प्रकृति का राग है। इसमे ध्रुपद, खयाल तराना तथा वाद्य संगीत पर मसीतखानी और रजाखानी गतें प्रस्तुत की जाती हैं। राग की यथार्थ प्रकृति और स्वरूप का उदाहरण देने के लिए अब हम आपको इस राग की एक श्रृंगारपरक् बन्दिश प्रस्तुत कर रहे हैं। तीनताल में निबद्ध इस रचना के विश्वविख्यात गायक उस्ताद राशिद खाँ हैं।
राग कल्याण अथवा यमन : ‘ऐसों सुगढ़ सुगढ़वा बालमा...’ : उस्ताद राशिद खान
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 271वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको राग आधारित फिल्मी गीत का एक
अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 280वें अंक की
पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें
इस वर्ष के तीसरे सत्र (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – इस गीतांश के स्वरों में आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गीत के गायक और गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनके नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 28 मई, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 273वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 269 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1964 में प्रदर्शित फिल्म
‘आपकी परछाइयाँ’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न
पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली के पहले
प्रश्न का सही उत्तर है- राग – दरबारी कान्हड़ा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायक – मोहम्मद रफी।
इस
बार की संगीत पहेली में पाँच प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों का सही
उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। ये विजेता हैं - चेरीहिल,
न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। इन सभी विजेताओं ने दो-दो अंक अर्जित किया है। पाँचो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी
नई श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ का रसास्वादन कर रहे हैं।
इस श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार मदन मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को
चुन कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। आज की इस कड़ी में हमने आपसे राग
कल्याण अथवा यमन पर चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में
हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र भेजते है। हम उनके सुझाव के
अनुसार ही आगामी विषय और कड़ियों का निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप
भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का
हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल
अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नई श्रृंखला के नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments