Skip to main content

राग दरबारी कान्हड़ा : SWARGOSHTHI – 270 : RAG DARABARI KANHDA



स्वरगोष्ठी – 270 में आज


मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 3 : रफी और मदन की खूबसूरत ग़ज़ल


‘मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊँ कैसे...’




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की तीसरी कड़ी में आज हमने राग दरबारी कान्हड़ा के स्वरों पर आधारित मदन मोहन का स्वरबद्ध किया, फिल्म ‘आपकी परछाइयाँ’ का एक गीत चुना है। इस गीत को पार्श्वगायक मोहम्मद रफी ने स्वर दिया है। मदन मोहन के स्वरबद्ध अधिकतर ग़ज़लों को रफी साहब ने अपनी आकर्षक आवाज़ में ढाला है। राग दरबारी पर आधारित इस ग़ज़ल के साथ ही राग का स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम सुप्रसिद्ध बाँसुरी वादक रोनू मजुमदार की बाँसुरी पर बजाया राग दरबारी कान्हड़ा की एक रचना भी प्रस्तुत कर रहे हैं।


संगीतकार मदन मोहन को फ़िल्म-संगीत जगत में ग़ज़लों को आम जनता में लोकप्रिय बनाने के लिए श्रेय दिया जाता है। ग़ज़लों को मूल ग़ज़ल गायकी के रूप में न प्रस्तुत कर, उनके फ़िल्मी संस्करण को वह इस तरह से बनाते थे कि हर आम और ख़ास, दोनों में लोकप्रिय हो जाए। पिछले दो अंकों में हमने दो गीत पेश किए। आज के अंक में एक राग आधारित ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है। रफ़ी साहब की आवाज़ में राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित, राजा मेहन्दी अली ख़ाँ की इस ग़ज़ल को हमने फ़िल्म ’आपकी परछाइयाँ’ से चुना है। ग़ज़ल के बोल हैं- "मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊँ कैसे, लुट गए होश तो फिर होश में आऊँ कैसे..."। ग़ज़लों की जब बात आती है तब रफ़ी साहब और मदन जी की जोड़ी का कोई सानी नहीं। "आपके पहलू में आकर रो दिये, दास्तान-ए-ग़म सुना कर रो दिये..." (मेरा साया) और "तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम कर लूँगा, सफ़र इस उम्र का पल में तमाम कर लूँगा..." (नौनिहाल) की तरह प्रस्तुत ग़ज़ल भी रफ़ी-मदन मोहन की एक लाजवाब कृति है। जब ग़ज़लों के राग आधारित होने की बात आती है तो अधिकतर ग़ज़लें भैरवी या पहाड़ी की छाया लिये होती हैं। राग दरबारी पर भी वैसे कई ग़ज़लें आधारित रही हैं, जैसे कि ग़ुलाम अली की मशहूर ग़ज़ल "हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है...", या फिर मेंहदी हसन की "कु ब कु फैल गई बात शनाशाई की...", और फिर जगजीत सिंह की तो कई ग़ज़लें हैं इस राग पर जैसे कि "देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे" और "सुनते हैं कि मिल जाती है"। जगजीत सिंह की ही आवाज़ में एक भक्ति रचना "जय राधा माधव जय कुंजबिहारी..." भी दरबारी पर ही आधारित है। यह राग मदन मोहन का भी पसन्दीदा राग रहा है। इसी फ़िल्म ’आपकी परछाइयाँ’ का एक अन्य गीत "अगर मुझसे मोहब्बत है तो अपने सब ग़म मुझे दे दो..." भी इसी राग को आधार बना कर उन्होंने कम्पोज़ किया था। फ़िल्म ’अनपढ़’ के मशहूर सदाबहार गीत "आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे..." में भी दरबारी कान्हड़ा की झलक मिलती है। अगर रफ़ी साहब के गाये मदन मोहन के नगमों की बात करें तो कम से कम दो और गीत ऐसे हैं जो इस राग पर आधारित हैं। ये हैं "बस्ती बस्ती पर्वत पर्वत गाता जाए बंजारा..." (रेल्वे प्लैटफ़ॉर्म) और "मैं तेरे दर पे आया हूँ, कुछ करके जाऊँगा..." (लैला मजनूँ)।

आज जब मदन मोहन के ग़ज़लों की बात चल ही पड़ी है तो क्यों न दो ऐसे ग़ज़ल गायकों के उद्‍गारों पर नज़र डाल ली जाए जो इन्होंने मदन मोहन की शान में कहे थे। ये दो ग़ज़ल के सुविख्यात कलाकार हैं, बेगम अख़्तर और जगजीत सिंह। बेगम अख़्तर, मदन जी को याद करती हुईं कहती हैं, "मदन मोहन जी को मैं उस वक़्त से जानती हूँ, जब कि ये लखनऊ रेडियो स्टेशन पर थे। उस ज़माने में मदन जी को मौसिक़ी से धुन की हद तक लगाव था। जब देखो हारमोनियम बजा रहे हैं, तानपुरा लिए बैठे हैं, या फिर गा रहे हैं। इसके बाद ये बम्बई आए और म्युज़िक डायरेक्टर बन गए। उनकी एक फ़िल्म ’भाई भाई’ रिलीज़ हुई थी। उन्हीं दिनों मैं दिल्ली आई हुई थी। मेरे साथ मुजद्दत नियाज़ी और एक आनन्द, बहुत बड़े फ़नकार, और बहुत से लोग जमा थे, और मैंने पहली बार उनकी फ़िल्म का यह गाना, "क़दर जाने ना" रेडियो पर सुना तो मत पूछिये कि क्या हालत हुई! मैंने उसी वक़्त मदन जी को बम्बई ट्रंक-कॉल किया और फ़ोन के उपर पूरे 18 मिनट, या शायद 22 मिनट तक यह गाना सुनती रही, हम सब सुनते रहे बारी बारी से उनकी ज़बान में।" जगजीत सिंह का मदन मोहन के बारे में कहना है, "मदन मोहन एक ऐसे कम्पोज़र हैं जिनकी कम्पोज़िशन इतने प्योर हैं, उनके गीत जितने दिल को छूते हैं, मेरे ख़याल से इण्डियन हिस्ट्री में इतनी दिल को छूने वाली कम्पोज़िशन किसी ने नहीं बनाई। मदन मोहन जी के बारे में अक्सर लोग इस तरह से कहते हैं कि मदन जी ग़ज़ल के किंग हैं, मगर मदन जी is a very modern composer और हर तरह के उन्होंने गाने बनाए हैं - modern और light romantic, और ग़ज़ल ऐसा है कि वो ग़ज़ल इतना दिल से बनाते थे कि अधिक से अधिक लोगों के दिलों को छू जाती थी, depth बहुत है उनकी ग़ज़लों में।" जहाँ तक गहराई की बात है लता जी ने भी एक साक्षात्कार में यह बताया था कि मदन जी गीतकार को गाना वापस लौटा देते थे अगर शब्दों में गहराई ना हो तो। आज की प्रस्तुत ग़ज़ल गहराई, मौसिक़ी और गायकी, तीनों के लिहाज़ से बेहतरीन है, आइए सुनते हैं, फिल्म ‘आपकी परछाइयाँ’ की यह ग़ज़ल।


राग दरबारी कान्हड़ा : ‘मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊँ कैसे...’ : मोहम्मद रफी : फिल्म - आपकी परछाइयाँ 




अभी आपने मदन मोहन का राग दरबारी कान्हड़ा को आधार बना कर ग़ज़ल के रूप में स्वरबद्ध किया यह गीत सुना। 'दरबारी कान्हड़ा' राग का यह नामकरण अकबर के काल से प्रचलित हुआ। मध्यकालीन ग्रन्थों में राग का नाम दरबारी कान्हड़ा नहीं मिलता। इसके स्थान पर कर्नाट या शुद्ध कर्नाट नाम से यह राग प्रचलित था। तानसेन दरबार में अकबर के सम्मुख राग कर्नाट गाते थे, जो बादशाह और अन्य गुणी संगीत-प्रेमियों को खूब पसन्द आता था। राज दरबार का पसंदीदा राग होने से धीरे-धीरे राग का नाम दरबारी कान्हड़ा हो गया। प्राचीन नाम ‘कर्नाट’ परिवर्तित होकर ‘कान्हड़ा’ प्रचलित हो गया। वर्तमान में राग दरबारी कान्हड़ा आसावरी थाट का राग माना जाता है। इस राग में गान्धार, धैवत और निषाद स्वर सदा कोमल प्रयोग किया जाता है। शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। राग की जाति वक्र सम्पूर्ण होती है। अर्थात इस राग में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है। मध्यरात्रि के समय यह राग अधिक प्रभावी लगता है। गान्धार स्वर आरोह और अवरोह दोनों में तथा धैवत स्वर केवल अवरोह में वक्र प्रयोग किया जाता है। कुछ विद्वान अवरोह में धैवत को वर्जित करते हैं। तब राग की जाति सम्पूर्ण-षाडव हो जाती है। राग दरबारी का कोमल गान्धार अन्य सभी रागों के कोमल गान्धार से भिन्न होता है। राग का कोमल गान्धार स्वर अति कोमल होता है और आन्दोलित भी होता है। इस राग का चलन अधिकतर मन्द्र और मध्य सप्तक में किया जाता है। यह आलाप प्रधान राग है। इसमें विलम्बित आलाप और विलम्बित खयाल अत्यन्त प्रभावी लगते हैं। राग के यथार्थ स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपको इस राग का संक्षिप्त आलाप और मध्य लय की एक रचना बाँसुरी पर प्रस्तुत कर रहे हैं। वादक हैं, सुविख्यात बाँसुरी वादक पण्डित रोनू मजुमदार। मन्द्र सप्तक में स्वर का प्रयोग, विलम्बित लय की रचना, पखावज की संगति और स्वर का आन्दोलन इस प्रस्तुति की प्रमुख विशेषता है। आप राग दरबारी कान्हड़ा का रसास्वादन कीजिए और मुंझे आज के इस अंक को यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।


राग दरबारी कान्हड़ा : आलाप और मध्य लय की रचना : पण्डित रोनू मजुमदार






संगीत पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 270वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक बार पुनः संगीतकार मदन मोहन के संगीत से सजे एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक का परिणाम आने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत के इस अंश को सुन का आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?

2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – क्या आप गीत के गायक को पहचान सकते हैं? इस गायक का नाम बताइए।

आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 21 मई, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 272वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 268 की संगीत पहेली में हमने आपको मदन मोहन के संगीत निर्देशन में बनी और 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘मेरा साया’ से एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – भीमपलासी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है – ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायिका – लता मंगेशकर

इस बार की पहेली में चार प्रतिभागियों ने सही उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। चारो प्रतभागियों ने सभी तीन प्रश्न का सही-सही उत्तर दिया है। सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं - पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, और चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जिन्होने दो-दो अंक अर्जित किये है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात


मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में जारी हमारी नई श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की आज की कड़ी में आपने राग दरबारी कान्हड़ा का परिचय प्राप्त किया। इस श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार मदन मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को चुन कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला के अगले अंक में हम संगीतकार मदन मोहन के एक अन्य राग आधारित गीत के साथ प्रस्तुत होंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। ‘स्वरगोष्ठी’ पर आप भी अपने सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।


शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट