Skip to main content

कभी आपने सुना है फ़िल्म 'संगम' के इस कमचर्चित गीत को?


एक गीत सौ कहानियाँ - 28
 

आई लव यू...



'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कप्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह साप्ताहिक स्तंभ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 28-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'संगम' के एक कमचर्चित गीत के बारे में ... 

 'संगम', 1964 की राज कपूर की महत्वाकांक्षी फ़िल्म। बेहद कामयाब। यह राज कपूर की पहली रंगीन फ़िल्म भी थी। फ़िल्म की कामयाबी में इसके गीत-संगीत का महत्वपूर्ण योगदान था। फ़िल्म के सात गीत थे - "बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं", "ओ महबूबा, तेरे दिल के पास", "दोस्त दोस्त न रहा", "हर दिल जो प्यार करेगा", "ओ मेरे सनम", "मैं का करूँ राम मुझे बुढ्ढा मिल गया", "यह मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर" - एक से बढ़ कर एक, सुपर-डुपर हिट, यह बताना मुश्किल कि कौन सा गीत किससे उपर है लोकप्रियता में। लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता है कि इन सात गीतों के अलावा भी एक और गीत इस फ़िल्म में मौजूद है, जिसे पार्श्व-संगीत के रूप में फ़िल्म में प्रयोग किया गया है। विविअन लोबो की आवाज़ में यह गीत है "आइ लव यू"। यह गीत 'संगम' के मूल 'Long Play' और '78 RPM' पर उपलब्ध है। यह गीत अपने आप में अनूठा है, कारण, इस गीत का स्वरूप किसी आम हिन्दी फ़िल्मी गीत जैसा नहीं है; बल्कि एक ही बात और एक ही पंक्ति को कई विदेशी भाषाओं में दोहराया गया है। ऐसी कौन सी सिचुएशन थी 'संगम' में कि राज कपूर को इस तरह के एक गीत की ज़रूरत महसूस हुई? दरसल 'संगम' में एक सिचुएशन था कि जब राज कपूर और वैजयन्तीमाला अपने हनीमून के लिए यूरोप के टूर पर जाते हैं, वहाँ अलग अलग देशों की सैर कर रहे होते हैं, और क्योंकि यह हनीमून ट्रिप है, तो प्यार तो है ही। तो यूरोप में फ़िल्माये जाने वाले इन दृश्यों के लिए एक पार्श्व-संगीत की आवश्यकता थी।

पर राज कपूर हमेशा एक क़दम आगे रहते थे। उन्होंने यह सोचा कि पार्श्व-संगीत के स्थान पर क्यों न एक पार्श्व-गीत रखा जाये, जो बिल्कुल इस सिचुएशन को मैच करता हो! उन्होंने अपने दिल की यह बात शंकर- जयकिशन को बतायी। साथ ही कुछ सुझाव भी रख दिये। राज कपूर नहीं चाहते थे कि यह किसी आम गीत के स्वरूप में बने और न ही इसके गायक कलाकार लता, मुकेश या रफ़ी हों। शंकर और जयकिशन सोच में पड़ गये कि क्या किया जाये! उन दिनों जयकिशन चर्चगेट स्टेशन के पास गेलॉर्ड होटल के बोम्बिलि रेस्तोराँ में रोज़ाना शाम को जाया करते थे। उनकी मित्र-मंडली वहाँ जमा होती और चाय-कॉफ़ी की टेबल पर गीत-संगीत की चर्चा भी होती। शम्मी कपूर उनमें से एक होते थे। उसी रेस्तोराँ में जो गायक-वृन्द ग्राहकों के मनोरंजन के लिए गाया करते थे, उनमें गोवा के कुछ गायक भी थे। उन्हीं में से एक थे विविअन लोबो। ऐसे ही किसी एक दिन जब जयकिशन 'संगम' के इस गीत के बारे में सोच रहे थे, विविअन लोबो वहाँ कोई गीत सुना रहे थे। जयकिशन को एक दम से ख़याल आया कि क्यों न लोबो से इस पार्श्व गीत को गवाया जाये! लोबो की आवाज़ में एक विदेशी रंग था, जो इस गीत के लिए बिल्कुल सटीक था। बस फिर क्या था, विविअन लोबो की आवाज़ इस गीत के लिए चुन ली गई। विविअन लोबो की आवाज़ में यह एकमात्र हिन्दी फ़िल्मी गीत है। इसके बाद उनकी आवाज़ किसी भी फ़िल्मी गीत में सुनाई नहीं दी। पर कहा जाता है कि उन्होंने कोंकणी गायिका लोरना के साथ कुछ कोंकणी गीत रेकॉर्ड किये हैं।

अब अगला सवाल यह था कि गीत के बोल क्या होंगे! पार्श्व में बजने वाले 3 मिनट के सीक्वेन्स के लिए एक ऐसे गीत की आवश्यकता थी जिसमें कम से कम बोल हों पर संदेश ऐसा हो कि जो सिचुएशन को न्याय दिला सके। तब राज कपूर ने यह सुझाव दिया कि हनीमून के दृश्य के लिए सबसे सटीक और सबसे छोटा मुखड़ा है "आइ लव यू"। तो क्यों न अलग अलग यूरोपियन भाषाओं में इसी पंक्ति का दोहराव करके 3 मिनट के इस दृश्य को पूरा कर दिया जाये! सभी को यह सुझाव ठीक लगा, और पूरी टीम जुट गई "आइ लव यू" के विभिन्न भाषाओं के संस्करण ढूंढने में। अंग्रेज़ी के अलावा जर्मन ("ich liebe dich"), फ़्रेन्च ("j’ vous t’aime") और रूसी ("ya lyublyu vas"/ "Я люблю вас") भाषाओं का प्रयोग इस गीत में हुआ है, और साथ ही "इश्क़ है इश्क़" को भी शामिल किया गया है। इस तरह से गीत का मुखड़ा कुछ इस तरह का बना:

वैयनतीमाला के साथ राज कपूर और शंकर जयकिशन
ich liebe dich, 
I love you.
j’ vous t’aime,
I love you.
ya lyublyu vas (Я люблю вас),
I love you.
ishq hai ishq,
I love you.

यह मुखड़ा बनने के बाद इसका एक अन्तरा भी बना। 

come shake my hand
and love each other
let’s bring happiness
in this world together
this is the only truth
remember my brother
this is the only truth
remember my brother

गीत के संगीतकार के रूप में शंकर जयकिशन का नाम दिया गया है। संगीत संयोजन को सुन कर इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह शंकर जयकिशन का ही कम्पोज़िशन है। पर इसके गीतकार के लिए किसे क्रेडिट मिलना चाहिये? शैलेन्द्र? हसरत? राज कपूर? शंकर-जयकिशन? या फिर विविअन लोबो? जी हाँ, कुछ लोगों का कहना है कि इस गीत को दरसल विविअन लोबो ने ही लिखा था, पर इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। और ना ही विविअन लोबो के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध है। कुछ लोगों का कहना है कि शंकर जयकिशन के ऑरकेस्ट्रा में वायलिन और बास प्लेअर के लिए एक नाम V.V.N. Lobo का आता रहा है, शायद ये वही हो! यह अफ़सोस की ही बात है कि विविअन लोबो 'संगम' जैसी सफल और यादगार फ़िल्म के संगीत से जुड़े होने के बावजूद गुमनामी के अन्धेरे में ही रह गये। आज अगर वो जीवित हैं, तो कहाँ रहते होंगे? शायद गोवा में? या फिर क्या पता मुंबई में ही। अपने इस एक गीत से यह गायक ख़ुद गुमनामी में रह कर पूरी दुनिया को प्यार करना सिखा गया।

'संगम' के अन्य लोकप्रिय गीतों की तरह यह गीत लोकप्रिय तो नहीं हुआ, क्योंकि रेडियो पर इसे बजता हुआ कभी सुनाई नहीं दिया। पर राज कपूर सालों बाद भी इस गीत के असर से बाहर नहीं निकल सके। इस गीत के बनने के ठीक 20 साल बाद, जब उन्होंने फ़िल्म 'राम तेरी गंगा मैली' की योजना बनाई, तो उन्होंने इस फ़िल्म के संगीतकार रवीन्द्र जैन को कुछ-कुछ ऐसी ही धुन पर एक गीत कम्पोज़ करने का अनुरोध किया। उनके इस अनुरोध को सर-माथे रख रवीन्द्र जैन बना लाये "सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन"। इन दोनों गीतों को ध्यान से सुनने पर दोनों की धुनों में समानता साफ़ सुनाई पड़ती है। बस इतनी सी है फ़िल्म 'संगम' के इस अनूठे अनसुने गीत की दास्तान!

फिल्म संगम : 'आई लव यू...' : विवियन लोवो : संगीत - शंकर जयकिशन 




अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें cine.paheli@yahoo.com के पते पर।


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 

Comments

pks said…
Bahut achchhi jaankari...Shukriya

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...