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भूतों की पार्टी से गर्माया चुनावी मैदान तो उठी भीतर से ये पुकार

ताज़ा सुर ताल २०१४ -१४

दोस्तों लोक सभा के चुनाव शुरू हो चुके हैं, और कुछ ही दिनों में देश को उसका नया प्रधानमन्त्री मिल जाएगा. मगर ये तभी संभव होगा जब हम लोग जाती धर्म उंच नीच के दायरों से उठकर अपने अपने मतों का प्रयोग करें, साफ़ और सवच्छ छवि वाले, देश के हिट की सोचने वाले प्रतिनिधियों को चुनकर संसद में भेजें. ताकि देश तरक्की और अमन परस्ती की राह पर आगे बढ़ सके. चुनावी माहौल में हमें अपने मत का महत्त्व समझाती फिल्म है नितीश तिवारी  निर्देशित भूतनाथ रिटर्न्स  जो कुछ सालों पहले आई भूतनाथ का दृतीय संस्करण है. अमिताभ अभिनीत भूतनाथ  को बच्चों और बड़ों दोनों का भरपूर प्यार मिला था, आज भी जब ये फिल्म छोटे परदे पर आती है तो हर कोई इसे देखने के लिए मचल उठता है, ऐसे में इस दृतीय संस्करण से भी ढेरों उम्मीदें हैं. हालाँकि पहले संस्करण में संगीत पर अधिक जोर नहीं दिया गया था, पर इस बार इस कमी को भी पूरा कर दिया गया है. फिल्म के गीत पार्टी तो बनती है  और हर हर गंगे  खूब सुना जा रहा है. पर आज हम आपके लिए लाये हैं फिल्म का एक अन्य गीत. 

राम संपत का स्वरबद्ध और ऋतुराज के गाये इस गीत में एक प्रार्थना है...एक दरख्वास्त है उस परवरदिगार से कि चुनाव के दौरान और उसके बाद भी इस देश पर अपनी मेहर रखे. न आदमी की आदमी झेले गुलामियाँ, न आदमी से आदमी मांगें सलामियाँ .  जिन नुमायिन्दों को हम चुन कर भेजें, वो राजा के सामान नहीं बल्कि जनता का सेवक बन देश को सर्वोपरि रख काम करें. इमानदारी, इंसानियत और न्याय की कसौटी पर विवेकपूर्ण रूप से नेतृत्व करे. इस गीत को लिखा है मुन्ना धीमान ने. सूफी और शास्त्रीय रंगों से सजे इस गीत में गजब की कशिश है. लीजिये सुनिए फिल्म भूतनाथ रिटर्न  का ये गीत साहिब नज़र रखना .... फिर मिलेगे शुक्रवार को एक और नए गीत के साथ. 


                 

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अच्छे गीत हैं इसके..

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