Skip to main content

"गोरी हैं कलाइयाँ" -- यही था उस साल का सर्वश्रेष्ठ गीत; जानिये कुछ बातें इस गीत से जुड़े...


एक गीत सौ कहानियाँ - 29
 

गोरी हैं कलाइयाँ, तू ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियाँ...



'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कप्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह साप्ताहिक स्तंभ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 29-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'आज का अर्जुन' के गीत "गोरी हैं कलाइयाँ" के बारे में ... 



बप्पी दा और लता जी
प्पी लाहिड़ी को भले ही डिस्को किंग्‍ की उपाधि दी जाती है, पर उनकी ऐसी अनेक रचनायें हैं जिनमें शास्त्रीय संगीत, तथा बंगाल व अन्य प्रदेशों के लोक संगीत की झलक मिलती है। ऐसा ही एक गीत है 1990 की फ़िल्म 'आज का अर्जुन' का। राजस्थानी रंग में रंगा "गोरी हैं कलाइयाँ, तू ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियाँ" गीत उस दौर के बेहद लोकप्रिय गीतों में से एक था। 80 के दशक में बप्पी दा स्वरबद्ध फ़िल्मों में अधिकतर पाश्चात्य अंदाज़ के या फिर चल्ताऊ क़िस्म के गीत हुआ करते थे जिनमें महिला स्वर आशा भोसले, एस. जानकी, अलिशा चिनॉय आदि गायिकाओं के होते थे। लेकिन उनका हमेशा यह प्रयास होता था कि हर फ़िल्म में कम से कम एक गीत ऐसा बनायें जिसे वो लता मंगेशकर से गवा सके। अत: लता जी को राज़ी करने के लिए वो उन्हीं की शैली में गीत कम्पोज़ किया करते। फ़िल्म 'हिम्मतवाला' में "नैनों में सपना, सपनों में सजना", फ़िल्म 'तोहफ़ा' में "अल्बेला मौसम, कहता है स्वागतम", फ़िल्म 'पाप की दुनिया' में "बंधन टूटे ना सारी ज़िन्दगी", फ़िल्म 'थानेदार' में "और भला क्या माँगू मैं रब से मुझे तेरा प्यार मिला", फ़िल्म 'गुरु' में "ज‍इयो ना ज‍इयो ना हमसे दूर कभी ज‍इयो ना" की तरह फ़िल्म 'आज का अर्जुन' में भी उन्होंने लता जी को ध्यान में रखते हुए "गोरी हैं कलाइयाँ" की रचना की। शब्बीर कुमार और साथियों के साथ गाया लता जी का यह गीत उस वर्ष का चोटी का गीत सिद्ध हुआ।

1990 में एक से एक कामयाब म्युज़िकल फ़िल्में आईं, और अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत 'वार्षिक गीतमाला' में नामांकित होने वाले गीतों में 'किशन कन्हैया', 'चालबाज़', 'बहार आने तक', 'सौतन की बेटी', 'आशिक़ी', 'थानेदार', 'जीना तेरी गली में', 'तुम मेरे हो', 'चाँदनी', 'घर का चिराग', 'दिल', 'आयी मिलन की रात', 'मैंने प्यार किया', और 'हम' जैसी फ़िल्में शामिल थे, जिनके गानें सुपर-डुपर हिट हुए थे। ख़ुद बप्पी लाहिड़ी के तीन गीत चोटी का पायदान प्राप्त करने की लड़ाई में शामिल थे - "तम्मा तम्मा लोगे" (थानेदार), "तूतक तूतक तूतियाँ आइ लव यू" (घर का चिराग), और "गोरी हैं कलाइयाँ"। तमाम गीतों को पछाड़ता हुआ 'आज का अर्जुन' का यह गीत जा पहुँचा चोटी के पायदान पर और बन गया 'सॉंग्‍स ऑफ़ दि ईअर'। दूसरे पायदान पर "कबूतर जा जा" (मैंने प्यार किया) और तीसरे पायदान पर "मुझे नींद न आये" (दिल) गीत रहे।

'आज का अर्जुन' में अमिताभ बच्चन और जया प्रदा की जोड़ी नज़र आई। अभी हाल ही में फ़ेसबूक पर बिग बी ने इस गीत के बारे में अपना स्टेटस अपडेट करते हुए लिखा, "This was considered to be the piece de resistance of the movie and was filmed with such zest and energy that I had a trying time keeping in step with Jaya Prada. Bappi Lahiri’s music was winner. Gori hain kalaaiyan was such a hit in Rajasthan that I am told it was chanted throughout the streets and gullies of Jaipur, where the film producer KC Bokadia hails from." ("यह गीत इस फ़िल्म का मुख्य आकर्षण सिद्ध हुआ, और इस गीत को इतनी लगन और ऊर्जा के साथ फ़िल्माया गया कि मुझे जया प्रदा के साथ कदम से कदम मिलाने में बड़ी मुश्किल हुई। बप्पी लाहिड़ी का संगीत विजयी रहा। गोरी हैं कलाइयाँ राजस्थान में इतना ज़्यादा मक़बूल हुआ कि मुझे ऐसा बताया गया कि जयपुर की गलियों और मुहल्लों लगातार गाया गया जहाँ से के. सी. बोकाडिया ताल्लुख रखते थे")।

"गोरी हैं कलाइयाँ" गीत की एक बड़ी ख़ासीयत है मटकों का सुंदर प्रयोग। विविध भारती के 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम को प्रस्तुत करते हुए बप्पी दा ने इस गीत के बारे में बताया, "इस गाने में मैंने पहली बार मटका, मिट्टी का, एक एक स्केल में यूज़ किया। लता जी जब स्टुडियो में आईं तो इतने सारे मटके देख कर कहा कि इतने मटके क्यों? मैंने कहा कि लता जी, मैं मटके से एक्स्पेरिमेण्ट कर रहा हूँ, तबला तरंग का। लता जी को भी बहुत पसंद आया, और यह गाना 1990 का नंबर वन सॉंग्‍ था। और आप लोगों को भी पसंद आया"। इस गीत में राजस्थानी लोक गीत "बन्ना रे बागा में झूला गाल्या" का प्रयोग किया गया है। कोरस इस पंक्ति को गाती हैं और इस पंक्ति के जवाब में लता जी गाती हैं "आया रे छैल भँवर जी आया"। "बन्ना रे..." गीत के साथ घूमर नृत्य शैली में नृत्य किया जाता है। घूमर नृत्य राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य राजस्थान में प्रचलित अत्यंत लोकप्रिय नृत्य है, जिसमें केवल स्त्रियाँ ही भाग लेती हैं। इसमें लहँगा पहने हुए स्त्रियाँ गोल घेरे में लोकगीत गाती हुई नृत्य करती हैं। जब ये महिलाएँ विशिष्ट शैली में नाचती हैं तो उनके लहँगे का घेर एवं हाथों का संचालन अत्यंत आकर्षक होता है। इस नृत्य में महिलाएँ लम्बे घाघरे और रंगीन चुनरी पहनकर नृत्य करती हैं। इसी सौन्दर्य को "गोरी हैं कलाइयाँ" गीत में दर्शाया गया है।
शब्बीर कुमार


"गोरी हैं कलाइयाँ" गीत के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए जब मैं इस गीत के गायक शब्बीर कुमार से फ़ेसबूक पर सम्पर्क किया तो कुछ और रोचक तथ्य सामने आ गए। शब्बीर कुमार ने बताया, "यह गीत किसी और ने गाया था। लेकिन शायद अमिताभ बच्चन जी ने मेरा नाम सजेस्ट किया कि यह गीत शब्बीर कुमार को लता जी के साथ गवाया जाए! और गीत का अन्तरा एक ही साँस में शब्बीर कुमार से रेकॉर्ड कराया जाए! वैसे मैं किसी भी सिंगर का रेकॉर्डेड गीत डब नहीं करता, यह मेरा उसूल है, लेकिन मुझे बाद में बताया गया कि यह गीत किसी जाने-माने गायक ने गाया था। यही इस गीत के पीछे की संक्षिप्त और सही जानकारी है।" शब्बीर कुमार ने उस गायक का नाम तो नहीं बताना चाहा, पर हम कुछ कुछ अंदाज़ा ज़रूर लगा सकते हैं। इस फ़िल्म में शब्बीर कुमार के अलावा दो गीतों में अमित कुमार की आवाज़ थी - "चली आना तू पान की दुकान में" और "ना जा रे ना जा रे"; तथा एक अन्य गीत में मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज़ थी। इसलिए हो न हो, इन दो गायकों में से किसी एक की आवाज़ में रेकॉर्ड हुई होगी। ख़ैर, जो भी है, अन्तिम सत्य यही है कि इस गीत ने अपार शोहरत हासिल की। यह गीत न तो लता मंगेशकर का गाया सर्वश्रेष्ठ गीत है, न शब्बीर कुमार का, और न ही इसके गीतकार अंजान या संगीतकार बप्पी लाहिड़ी की श्रेष्ठ रचना। फिर भी कुछ तो बात है इस गीत में जो इसे भीड़ से अलग करती है, और आज भी जब हम इस गीत को सुनते हैं तो जैसे दिल ख़ुश हो जाता है।



फिल्म - आज का अर्जुन : 'गोरी हैं कलाइयाँ तू ला दे मुझे हरी हरी चूड़ियाँ...' : लता मंगेशकर और शब्बीर कुमार : संगीत - बप्पी लाहिड़ी 



अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें cine.paheli@yahoo.com के पते पर।


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 

Comments

बप्पी लाहिड़ी ने 'गोरी हैं कलाईयां' गीत सीधे सीधे शंकर (जयकिशन) जी की अंतिम फ़िल्म 'गोरी' के गीत से उठाया है...शंकर जी इस फ़िल्म के सभी गीतों की धुन बना चुके थे लेकिन गीतों को रेकॉर्ड करने से पहले ही अचानक उनका निधन हो गया था...बाद में इन गीतों को एनॉक डेनियल्स ने रेकॉर्ड कराया था...तमाम मुश्किलों से ग़ुज़रती हुई ये फ़िल्म पूरी होने के क़रीब 5 साल बाद साल 1992 में प्रदर्शित हुई थी और क्रेडिट्स में संगीतकार के तौर पर एनॉक डेनियल्स का नाम दिया गया था...इन हालात का फ़ायदा उठाकर बप्पी लाहिड़ी ने ये धुन फ़िल्म 'आज का अर्जुन' (1990) में इस्तेमाल कर ली थी...संयोग से आज शंकर जी की पुण्यतिथि है, उनका देहांत ठीक 27 साल पहले दिनांक 26 अप्रैल 1987 को हुआ था।
मूल गीत का यू-ट्यूब लिंक इस प्रकार है...
http://youtu.be/gtKjt8SwZ0E
Sajeev said…
ये गोरी फिल्म का गाना मैंने भी सुना था उस दौरान, पर इसके पीछे की कहानी पता नहीं थी. मुझे लगा कि शायद ये आज का अर्जुन के गीत की नक़ल है....खैर ये वाकई साबित करता है की इस इंडस्ट्री में अच्छे संगीत की कद्र भी तब ही है जब उसे अच्छा बैनर, और अच्छे कलाकार मिलें
Pankaj Mukesh said…
Nahin sajeev ji, shishir ji ka kahana satya hai...
is script ko jab main padhana start kiya to plan kar liya tha ki shankar ji ki tune kee copy ke bare mein comment jaroor kaunga, magar jab pahala coment sharma ji ka padha to khushi mili ki sangeet kee ruchi rkhanewale kitna bebas ho jate hain kisi geet ke satyapan ke bare mai vivechana karne mein.
main gori hai kaliyan ko bappi da's creation ke roop mein kabhi bhi sweekar nahin karta. haan but its a result of inspiration.
Moreove, i found one most important but critical song of bappi da's as TAMMA TAMMA LOGE, which was found to be a "JUDWA SONG" of LP's JUMMA CHUMMA DE DE FROM HUM. BOTH HAVE SIMILARITY IN SIGNATURE TUNE, MAIN TUNE AND WORDS/ BUT ITS A TOTALLY CO-INCIDENCE THAT BOTH SONGS HAD BEEN CREATED INDEPENDENTLY ON THE CLOSE TIME SPAN AND INSPIRED FROM AN ENGLISH SONG,WHICH IS VERY EASILY AVAILABLE ON U-TUBE.
REGARDS,

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट